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विदेशी निवेश की वक़ालत करते मोदी, हड़ताल की तैयारी करते मज़दूर और किसान

मोदी श्रम क़ानूनों, कृषि और अन्य विभिन्न क्षेत्रों में सुधार की बात करते हुए विदेशी कंपनियों को आकर्षित कर रहे हैं। लेकिन, उन्हें शायद इस बात का भान नहीं कि 26-27 नवंबर को मज़दूर और किसान इन नीतियों के ख़िलाफ़ हड़ताल पर जा रहे हैं।
मोदी

बिहार के थका देने वाले चुनाव अभियान, उग्र होती महामारी और दम निकाल देने वाली मंदी के बीच भी 5 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ख़ास बैठक को सम्बोधित करने के लिए समय निकाल लिया था। उस बैठक में भाग लेने वालों ने जो कुछ समझा और प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा, वह एक बेहद जोखिम भरा मार्केटिंग वाला स्वर था। वर्चुअल ग्लोबल इन्वेस्टर्स राउंडटेबल (VGIR) 2020 नाम की उस बैठक में दुनिया के 20 सबसे अमीर निवेशक मौजूद थे, जो भारत के प्रधानमंत्री की तरफ़ से रखे जाने वाली पेशकश पर नज़र गड़ाये हुए थे। ये निवेशक उन पेंशन और सॉवरेन वेल्थ फ़ंड वाले हैं, जिनके बीच 6 ट्रिलियन से ज़्यादा की संपत्ति का प्रबंधन करते हैं। उनमें शामिल थे-जीआईसी, टेमासेक, यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन, पेंशन डेनमार्क, कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी, जापान पोस्ट बैंक, कोरिया इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन और इसी तरह के अन्य निवेशक।

उस बैठक में भारतीय निवेशकों की तरफ़ से छह प्रमुख उद्योगपति-दीपक पारेख, रतन टाटा, नंदन नीलेकणि, मुकेश अंबानी, दिलीप शांघवी और उदय कोटक भी मौजूद थे। वित्तीय नियामकों के विभिन्न शीर्ष अधिकारी सहित वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और आरबीआई के गवर्नर, शक्तिकांत दास भी मौजूद थे।

इस बैठक में मोदी ने जो कुछ कहा, उसे सिक्के का दूसरा पहलू कहा जा सकता है। सरकार का कहना था कि उसने श्रम क़ानूनों में बदलाव किया है, कृषि सम्बन्धित नये क़ानून बनाये हैं, कर क़ानूनों (ख़ास तौर पर कॉर्पोरेट टैक्स) को बदल दिया है, और इसी तरह के कुछ और ज़रूरी बदलाव लाये हैं। यह सब भारत को मज़बूत और समृद्ध बनाने के नाम पर किया गया है।

वैश्विक निवेशकों के साथ इस बैठक का लहज़ा बारीक़ तौर पर कुछ अलग था। मोदी ने कथित तौर पर कहा कि भारत में कॉरपोरेट कर व्यवस्था को आसान बनाया गया है, नये श्रम कोड लाये गये हैं और विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन से जुड़ी गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। बड़ी रक़म के लेन-देन करने वाले चीनी निवेशकों के लिए वह वास्तव में जो कुछ कह रहे थे, वह सब कुछ इस तरह था- आपको ज़्यादा कर का भुगतान नहीं करना होगा, आप जिस श्रम बल को नियोजित करेंगे, वह ज़्यादा वेतन या लाभ को लेकर सवाल पूछकर आपके लिए कोई परेशानी इसलिए खड़ी नहीं कर पायेगा, क्योंकि हमारे क़ानून अब नियोक्ता के बेहद अनुकूल हैं, यहां तक कि खेती से लेकर विपणन तक की हमारी कृषि प्रणाली को भी कॉर्पोरेट निवेश के लिए खोल दिया गया है,तो फिर, इससे ज़्यादा और क्या किया जा सकता है?

मोदी ने कथित तौर पर कहा कि वह सबसे अच्छे और सुरक्षित दीर्घकालिक फ़ायदा पहुंचाने वाली रक़म की ज़रूरत को लेकर अवगत हैं। “इसलिए, हमारा नज़रिया इन मामलों को लेकर दीर्घकालिक और स्थायी समाधान खोजने वाला रहा है। इस तरह का नज़रिया आपकी ज़रूरत के साथ बहुत अच्छी तरह से मेल खाता है।”

वास्तव में मोदी ने अपनी सरकार का पेंशन और धन निधि की मांगों के साथ "बहुत अच्छी तरह से मेल खाने" वाले नज़रिये को सामने रखकर असलियत रख दी है। सवाल है कि ये फ़ंड चाहते क्या हैं ? एक शब्द में कहा जाय, तो वे फ़ायदा चाहते हैं। वे हर कहीं और उस हर जगह निवेश करेंगे,जहां ज़्यादा से ज़्यादा पैसा बनाने की थोड़ी-बहुत भी गुंज़ाइश हो। उनकी प्रतिबद्धता न तो उस देश के लोगों के प्रति है,जहां उनके पैसे लगे हुए होते हैं, और न ही उनके लिए काम करने वाले श्रमिकों को लेकर है। इन पैसो का एकमात्र मक़सद अपने ग्राहकों को ज़्यादा से ज़्यादा ‘फ़ायदा’ पहुंचाना है। जरूरत पड़ने पर वे अपने निवेश को तेज़ी के साथ वापस भी ले लेंगे, या इसे किसी अन्य उद्योग में लगा देंगे। ज़रूरत पड़ने पर वे बेहतर रिटर्न पाने के लिए अपने निवेश वाले औद्योगिक संपत्तियों को बेच भी डालेंगे।

विदेशी निवेशकों से बार-बार की गयी अपील

चूंकि हाल के महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था एक तरह से निढाल हो चुकी है, ऐसे में मोदी के नेतृत्व वाली यह सरकार लगातार विदेशी निवेशकों से भारत में अपना पैसा लगाने की याचना कर रही है। इस साल जुलाई में उन्होंने यूएस इंडिया बिज़नेस काउंसिल (USIBC) की इंडिया आइडियाज शिखर बैठख को सम्बोधित किया था, जिस बैठक में अमेरिकी कारोबारी शामिल थे।उस बैठक में उन्होंने उन सभी तरीक़ों को गिनाया, जिसके तहत उनकी सरकार ने उनकी राह आसान कर दी है। जिन क्षेत्रों में विदेशी कंपनियां निवेश कर सकती हैं, उन्हें उन्होंने इस तरह गिनाया:

• बीमा क्षेत्र, जहां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा 49% और बीमा से सम्बन्धित मध्यवर्ती संस्थाओं में यह सीमा बढ़ाकर 100% तक कर दी गयी है।

• टेक सेक्टर, जहां “फ़ाइव जी, बड़े डेटा एनालिटिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग, ब्लॉकचेन और इंटरनेट से जुड़ी चीज़ों के अवसर पैदा होने वाले हैं।”

• कृषि, जहां 2025 तक खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के आधे ट्रिलियन डॉलर से भी ज़्यादा होने की उम्मीद है।

• स्वास्थ्य क्षेत्र, जहां भारत हर साल 22% की दर से बढ़ रहा है

• बुनियादी ढांचे, जहां अमेरिकी कंपनियां लाखों सड़कों, राजमार्गों और बंदरगाहों के बनाने से फ़ायदा उठा सकती हैं।

• नागरिक उड्डयन, जहां अगले दशक में यात्रियों की संख्या की दोगुनी होने की उम्मीद है और कंपनियों को एक हज़ार विमान की ज़रूरत होगी

• रक्षा, जहां एफ़डीआई की सीमा 74% तक बढ़ा दी गयी है।

मोदी ने सितंबर महीने में वीडियो लिंक के ज़रिये यूएस इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फ़ोरम को सम्बोधित किया था और भारत में निवेश के उन फ़ायदों को गिनाया, जिनमें शामिल थे: श्रम सुधार, जो नियोक्ताओं के लिए अनुपालन लागत (Compliance Cost) को कम कर रहे हैं और श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं, एक बेहतर कर व्यवस्था, और अन्य फ़ायदों के बीच जोखिम को कम करने वाला दिवाला और दिवालियापन संहिता(Insolvency and Bankruptcy Code)।

मोदी ने कथित तौर पर कहा, “मित्रों, आगे का रास्ता अवसरों से भरा-पड़ा है। ये अवसर सार्वजनिक और निजी,दोनों ही क्षेत्रों में हैं। इसमें मुख्य आर्थिक क्षेत्रों के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्र भी शामिल हैं।”

उन्होंने दोहराते हुए कहा कि उनकी सरकार ने विदेशी निवेशकों के लिए कोयला, खनन, रेलवे, रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के दरवाज़े भी खोल दिये हैं। उन्होंने अगस्त में शुरू किये गये कृषि विनिर्माण सुधारों और 14 बिलियन डॉलर के कृषि वित्तपोषण की सुविधा के बारे में भी बात की।

‘सुधार’ की असली वजह सामने आयी

इस तरह, अब सबकुछ आपके सामने है। मोदी सरकार अर्थव्यवस्था में इस ‘सुधार’ को लेकर इतनी जल्दबाज़ी इसलिए करती रही है, ताकि विदेशी निवेश के लिए इसे ज़्यादा आसान बनाया जा सके। क़ानूनों में बदलाव, कर में कटौती,कारोबार करने में आसानी, कई निकायों का ख़ात्मा, कई प्राधिकरणों का निर्माण,ये सभी कार्य मोदी सरकार की इसी दिशा में की गयी तैयारी है। इसमें अटकलें लगाने या किसी तरह के संदेह की बात इसलिए नहीं रह गयी है, क्योंकि ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी बार-बार विदेशी दर्शकों के सामने इन बातों को स्वीकार कर रहे हैं।

मोदी और उनके समर्थक निश्चित रूप से इस रणनीति को बिल्कुल ही अलग तरीक़े से पेश करते हैं। वे कहते हैं कि यह रणनीति भारत को 'आत्मनिर्भर' बनाने के लिए है! और यह कि इस तरह के आत्मनिर्भरता के ज़रिये भारतीयों को शांति और समृद्धि हासिल हो सकेगी। आख़िर, सरकारी स्वामित्व वाले अपने सार्वजनिक क्षेत्र को विदेशी कंपनियों को बेच देने को कैसे आत्मनिर्भरता कहा जा सकता है, इसे तो बस मोदी ही समझा सकते हैं। ये कंपनियां भारत में अपने प्रचुर संसाधनों के साथ ख़ैरात बांटने तो आ नहीं रही हैं। वे ऐसी लुटेरी कारोबारी कंपनियां हैं,जो अपने फ़ायदे को ज़्यादा से ज़्यादा करने के लिए निवेश कर रही हैं। यह सच है कि वे कुछ उत्पादक क्षमताओं को स्थापित करने या दूसरों का विस्तार करने, या नई तकनीकों को लाने में निवेश करेंगे। लेकिन, यही काम तो भारत सरकार भी कर सकती थी। जैसा कि पिछले साल वाणिज्यिक खनन और विदेशी कंपनियों के लिए कोयला-खदान खोलने के ख़िलाफ़ कामयाब हड़ताल करने के बाद कोयला खदानों में काम करने वाले ट्रेड यूनियनों ने बताया था कि सार्वजनिक क्षेत्र की कोल इंडिया लिमिटेड सरकार को करों के साथ-साथ लाभांश से मिले हजारों करोड़ रुपये का फ़ायदा दे रहा है। अगर यह विदेशी निवेशक के नियंत्रण में आ जाता है, तो न सिर्फ़ कर से मिलने वाले फ़ायदे में कमी आयेगी, बल्कि मिलने वाला लाभांश भी उनकी ही जेब में चला जायेगा। इसके अलावा,वे कार्यबल में कटौती करेंगे, और आगे चलकर नियमित श्रमिक आकस्मिक आधार पर नियुक्त होने लगेंगे।

हालांकि मोदी को निश्चित रूप से इन बातों से अवगत होना चाहिए, लेकिन उन्होंने इन सभी निवेशकों के सामने एक बात का खुलासा नहीं किया है कि वह कितनी लगन के साथ उन्हें आकर्षित कर रहे हैं। यह सचाई है कि इस साल 26-27 नवंबर को पूरे भारत के श्रमिक उन नीतियों के ख़िलाफ़ हड़ताल पर जा रहे हैं, जिन्हें उन्होंने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए गिनाया था। इसके अलावा, उस हड़ताल में नये कृषि क़ानूनों के विरोध में करोड़ों किसान भी शामिल होंगे, जो अपनी योजना के मुताबिक़ दिल्ली में सरकार का घेराव करेंगे।

इस हक़ीक़त का एहसास शायद विदेशी निवेशकों के साथ-साथ ख़ुद मोदी को भी नहीं है कि बेचने की जिस आकर्षक पेशकश का वह ढोल पीट रहे हैं, वह ज़्यादातर भारतीयों के लिए ज़िंदगी और मौत के सवाल हैं, और वे अपने भविष्य को लेकर लड़ने के लिए तैयार हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Modi Pleads for Foreign Investment, While Workers & Farmers Prepare for Strike

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