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नए शोध से पता चला है कि नींद के दौरान यादें कैसे बरक़रार रहती हैं

नींद के दौरान हिप्पोकैम्पस स्वतः स्फ़ूर्त तरीक़े से प्रतिक्रिया करता है और जागते हुए इसी तरह का गतिविधि स्वरूप उत्पन्न करता है।
नींद के दौरान यादें कैसे बरक़रार रहती हैं

दिमाग़ हमेशा काम करता रहता है चाहे हम सो रहे होते हैं या जाग रहे होते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस वक़्त हम सो रहे होते हैं हमारा मस्तिष्क दीर्घकालिक यादों को स्थिर करने में लगा होता है। मस्तिष्क का विभिन्न हिस्सा अलग-अलग गतिविधियों में लगा होता है, और यहां तक कि सोते समय मस्तिष्क का ख़ास हिस्सा दीर्घकालिक यादों को स्थिर करने में सक्रिय रहता है। नींद के दौरान मस्तिष्क की गतिविधियों को समझने के लिए काफ़ी अध्ययन किए गए जो यादों को स्थिर करते हैं। 

मस्तिष्क विभिन्न चरणों में कुछ तरंगों का उत्सर्जन भी करता है जिसे मस्तिष्क तरंगों के रूप में जाना जाता है। नींद के दौरान यानी आराम के समय में मस्तिष्क तरंग का रूप डेल्टा तरंग होता है। मस्तिष्क की तरंगें काम पर एक साथ लगे बड़ी संख्या में न्यूरॉन्स का सामूहिक व्यवहार है। अलग-अलग कार्यों को करते समय विभिन्न विशिष्ट मस्तिष्क तरंगें मस्तिष्क की विभिन्न गतिविधि स्वरूप दिखाती है।

हिप्पोकैम्पस और कोर्टेक्स मस्तिष्क के दो प्रमुख हिस्से हैं जो दीर्घकालिक स्मृति को इकट्ठा करने की प्रक्रिया में शामिल हैं। नींद के दौरान हिप्पोकैम्पस स्वतः स्फ़ूर्त तरीक़े से प्रतिक्रिया करता है और जागते हुए भी उसी तरह गतिविधि स्वरूप उत्पन्न करता है। इसके अलावा, हिप्पोकैम्पस द्वारा भेजे गए संकेतों पर कोर्टेक्स की प्रतिक्रिया के साथ हिप्पोकैम्पस और कोर्टेक्स संवाद करते हैं। आराम या ख़ामोशी की दीर्घकालिक अवधि के बाद सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है जो डेल्टा तरंग है। और डेल्टा तरंग तब एक लयबद्ध गतिविधि के बाद होती है जिसे स्लीप स्पिंडल कहा जाता है। यह स्लीप स्पिंडल की अवधि के दौरान है जिसे कोर्टेक्स स्थिर यादों को तैयार करने के लिए अपने सर्किट को पुनर्गठित करता है।

डेल्टा तरंग एक पहेली बनी हुई है। डेल्टा तरंग द्वारा प्रदर्शित मौन अवधि हिप्पोकैम्पस तथा कॉर्टेक्स और कॉर्टेक्स की कार्यात्मक संगठन के बीच सूचना विनिमय के अनुक्रम को बाधित क्यों करती है?

हाल ही में साइंस नामक पत्रिका में डेल्टा तरंग के दौरान होने वाली प्रक्रिया की खोज को लेकर एक लेख प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि नींद के दौरान मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली डेल्टा तरंगों में कॉर्टेक्स की मौन अवधि सामान्यीकृत नहीं होती है। इसके बारे में दशकों से धारणा है। दूसरे शब्दों में नई खोज डेल्टा तरंगों के बारे में दशकों पुरानी धारणा को नकारती है। इस अध्ययन से पता चलता है कि कोर्टेक्स वास्तव में न्यूरॉन्स की समूह को अलग करता है जो दीर्घकालिक स्मृति तैयार करने में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं।

डेल्टा तरंग की अवधि में कॉर्टिकल हिस्सा में कुछ न्यूरॉन सक्रिय रहते हैं और इंटर न्यूरोनल कनेक्शन के माध्यम से समूह बनाते हैं। न्यूरॉन्स कोड इनफॉर्मेशन के छोटे अंश के समूह होते हैं। यह एक आश्चर्यजनक खोज है। क्योंकि, डेल्टा तरंग के दौरान, अधिकांश कॉर्टिकल न्यूरॉन्स शांत रहते हैं और यह अपेक्षित है। लेकिन कम संख्या में न्यूरॉन्स जो सक्रिय हैं, जैसा कि ये शोध बताता है, संभावित उत्तेजना से सुरक्षित रहते हुए महत्वपूर्ण गणना कर सकता है। ये खोज आगे भी होती है। ये कहती है कि हिप्पोकैम्पस में न्यूरॉन्स के सहज पुनर्सक्रियता से यह तय होता है कि कॉर्टेक्स में कौन से न्यूरॉन सक्रिय रहेंगे।

दिन की गतिविधियों के दौरान मस्तिष्क कई चीज़ें ग्रहण करता है और उनमें से कई को याद रखता है। ये न्यूरॉन जो स्थान-विषयक स्मृति के निर्माण में भाग लेते हैं वे भी न्यूरॉन्स होते हैं जो डेल्टा तरंग की अवधि के दौरान कॉर्टेक्स में समूह का निर्माण करते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि मस्तिष्क लंबे समय के लिए स्मृति के निर्माण में कितनी जटिलताएं हल करता है।

हिप्पोकैम्पस में पुनर्सक्रियता के साथ जुड़े न्यूरॉन्स को अलग करने के लिए इन वैज्ञानिकों ने चूहों में कृत्रिम डेल्टा तरंगों का इस्तेमाल किया। इसका परिणाम यह था कि जब दाएं न्यूरॉन्स को अलग किया गया तो इस चूहे को अपनी स्मृति को स्थिर करते पाया गया और अगले दिन स्थान-विषयक परीक्षण में सफल हुआ। ये परिणाम कोर्टेक्स के प्रति हमारी समझ को काफ़ी बदल देते हैं।

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