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मोदी वह बरगद का पेड़ हैं, जिसके नीचे कुछ भी फल-फूल नहीं सकता

मोदी कैबिनेट में जगह मिलने से प्रसिद्ध या अपने काम के लिए तारीफ़ मिलने की कोई गारंटी नहीं होती।
modi

किसी सरकार के प्रवक्ता, उसके मंत्रियों से ज़्यादा जाने-पहचाने जाते हैं, यह बात उस सरकार के बारे में क्या बताती है? हाल में एक बीजेपी प्रवक्ता लाइव टीवी पर श्रम मंत्री का नाम याद नहीं कर पाए। पूरे घटनाक्रम से हैरान होकर मैंने करीब 12 पत्रकारों, एक वकील, एक शोधार्थी, मुंबई में रहने वाले एक एक्टर, नोएडा के एक आईटी कर्मचारी और एक हाउसवाइफ को फोन किया। मैंने उनसे प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रियों की पहचान से जुड़े सवाल पूछे।

केवल तीन लोग ही श्रम मंत्री का नाम बता पाए, वहीं संस्कृति और पर्यटन मंत्री का नाम सिर्फ एक ही शख्स को मालूम था। कौशल विकास एवम् उद्यमिता मंत्री का नाम कोई नहीं बता पाया, वहीं कृषि और किसान कल्याण मंत्री को सिर्फ दो लोग ही पहचान पाए। लेकिन मोदी की पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा को सभी जानते थे।

मोदी की सरकार में जगह मिलने पर प्रसिद्धि या फिर अपने काम की तारीफ मिलने की कोई गारंटी नहीं है। लेकिन यह कोई तय नियम नहीं है। अगर कोई गृहमंत्री का नाम पूछ ले, तो लोग ऐसे प्रतिक्रिया देते हैं, जैसे यह कोई मूर्खता भरा सवाल है। आखिर अमित शाह को कौन नहीं पहचानता? बीजेपी प्रेसिडेंट या गृहमंत्री बनने से पहले से ही वह इतने सारे विवादों में उलझे थे, कि उनकी प्रसिद्धि, उनके व्यक्तित्व से आगे पहुंच गई। लेकिन उन्हीं उबलते हुए पत्रकारों का खून तब झंडा पड़ गया, जब उनसे आयुष मंत्री का नाम पूछा गया।

कुछ लोगों को यह जानकर झटका लगा कि स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धन आयुष मंत्री नहीं हैं। कम से कम लोगों को स्वास्थ्यमंत्री के बारे में तो पता है, नहीं तो यह तो और भी बड़ा मजाक हो जाता। आप सोच रहे होंगे कि लोग हर्षवर्धन को महामारी के चलते जानते हैं। हां ऐसा है भी, लेकिन कुछ लोग उन्हें दिल्ली वाले नेता के तौर पर जानते हैं। हर्षवर्धन ने 2014 के चुनाव में निर्वतमान् कानून मंत्री कपिल सिब्बल को हराया था। आखिर जब कोरोना के आयुर्वेदिक "इलाजों" ने पूरे देश में बाढ़ ला दी है और दक्षिणपंथी बाबा रामदेव अनाधिकारिक राजवैद्य बन गए हैं, तब एक स्वास्थ्यमंत्री का काम ही क्या बचा है?

एक प्रसिद्ध पत्रकार ने कहा कि "अपनी कैबिनेट में नंबर एक से लेकर नंबर दस तक के सारे पायदान पर खुद मोदी हैं। तो नंबर 11 पर कौन है, यह बताना मुश्किल है। शायद गृहमंत्री, रक्षामंत्री या वित्तमंत्री।"

बल्कि रक्षा मंत्रालय और वित्तमंत्रालय की खुद की अहमियत है, इससे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता कि उनके प्रभार में कौन सा मंत्री है। हर कोई जानता है कि देश का विदेशमंत्री कौन है, देश का हाईवे और रोड ट्रांसपोर्ट मंत्री कौन है। यहां तक कि मानव संसाधन मंत्रालय और पेट्रोलियम-प्राकृतिक गैस मंत्रियों को भी बड़े पैमाने पर पहचाना जाता है। लेकिन यह भी अजीब बात है कि एक ऐसी पार्टी जो संस्कृति पर दुनियाभर की बातें करती है, उसके मंत्री को कोई नहीं जानता। आखिर अयोध्या में मंदिर बनने के पहले, संस्कृति मंत्री को ख़बरों में नहीं होना चाहिए था? उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही अकेले मंदिर के बारे में बात करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

मोदी की कैबिनेट में उन मंत्रियों की भरमार है, जो प्रधानमंत्री द्वारा अहमियत दिए जाने वाले कामों को करते हैं, जैसे- महिला एवम् युवा कल्याण। लेकिन अब भी ज़्यादातर लोग यह नहीं जानते कि स्मृति ईरानी महिला एवम् बाल विकास मंत्री हैं। एक टीवी स्टार के तौर पर स्मृति ईरानी की तस्वीर धुंधली पड़ चुकी है। अब उन्हें राहुल गांधी को चुनाव हराने वाली शख्सियत के तौर पर देखा जाता है। बहुत कम लोग ईरानी द्वारा संभाले जा रहे मंत्रालयों को जानते हैं। इनमें मानव संसाधन विकास, सूचना एवम् प्रसारण, कपड़ा या महिला एवम् बाल विकास जैसे मंत्रालय शामिल हैं। इसी तरह जिन 12 लोगों से मैंने बात की, उनमें से केवल दो यह बता पाए कि किरण रिजिजू ही युवा एवम् खेल मामलों के मंत्री हैं। वे उन्हें अब भी गृहराज्य मंत्री के तौर पर याद रखते हैं, ना कि अल्पसंख्यक मामले के राज्यमंत्री के तौर पर उन्हें पहचानते हैं।

आप कहेंगे कि पत्रकार ठीक से अपना होमवर्क नहीं कर रहे हैं। आप कहेंगे कि इस तरह का पोल बेहद ख़तरनाक तरीके से अवैज्ञानिक हो सकता है। यह सही बात है। लेकिन इससे कई लोगों द्वारा कही जा रही एक बात सही साबित हो जाती है, कुछ मंत्रियों को छोड़कर, कैबिनेट के ज़्यादातर मंत्री मोदी के अभामंडल में दब जाते हैं। इस हफ़्ते प्रधानमंत्री नई शिक्षा नीति को समर्थन देने के चलते ख़बरों में थे। इससे पहले उन्होंने महाराष्ट्र में कोरोना जांच सुविधा केंद्र का उद्घाटन किया। उन्होंने स्मार्ट इंडिया हैकेथॉन का नेतृत्व भी किया था। कल हो सकता है मोदी नवीकरणीय ऊर्जा पर कुछ बोल दें। क्या कोई नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री का नाम बता सकता है? मेरे पोल में तो कोई नहीं बता पाया। आप कहेंगे कि आरके सिंह राज्यमंत्री हैं, सब उन्हें जान नहीं सकते। तब यह बताइए कि केमिकल और फर्जिलाइज़र मिनिस्टर कौन है। इसका प्रभार डीवी सदानंदर गौड़ा के पास है, मेरे पोल में भी कोई नहीं बता पाया। केवल चार लोगों जलशक्ति मंत्री का सही नाम बताया और तीन लोग ही सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्री थावरचंद गहलोत का नाम बता पाए।

मोदी अपनी सरकार के ऊपर इतने ज़्यादा हावी है कि हम उन्हीं मंत्रियों को पहचान पाते हैं, जो मोदी युग के पहले से ही प्रसिद्ध थे। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं। रोड ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी भी पूर्व बीजेपी अध्यक्ष हैं। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद एक प्रसिद्ध वकील, पूर्व बीजेपी प्रवक्ता और 2014 के पहले भी कई बार मंत्री रह चुके हैं। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पार्टी की प्रवक्ता थीं, इसी से उन्हें पहचान मिली। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार नकवी और सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी लोकप्रिय प्रवक्ता थे। मोदी युग में तुलनामत्मक तौर पर गुमनामी में रहने के बावजूद वे जनता की याददाश्त से मिटे नहीं हैं।

बिहार के सारण से सांसद राजीव प्रताप रूडी को पार्टी प्रवक्ता होने के दौरान ही पहचान मिली थी। अब उन्हें कौशल विकास मंत्री के तौर पर पहचाना गया, लेकिन निर्वतमान महेंद्रनाथ पांडे को तो कोई पहचान ही नहीं पाया। जैसे ही पत्रकारों को बताया गया कि वे मंत्री हैं, पत्रकारों ने उनका लंबा राजनीतिक करियर बताना शुरू कर दिया। खासकर उत्तरप्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर उनके कार्यकाल के बारे में बताया। एक पत्रकार ने कहा कि उन्हें संगठन के आदमी के तौर पर पहचाना जाता है, उनके द्वारा लिए गए मंत्री पद से नहीं।

एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, "ऐसे पत्रकार जो बीजेपी की तरह दुनिया के प्रति नज़रिया नहीं रखते, वे 2019 में पार्टी की जीत से झटके में रह गए और शांत हो गए हैं। अब वे परवाह नहीं करते कि कौन से मंत्री के पास कौन सा प्रभार है।"

फिर इस सरकार में अनुराग ठाकुर जैसे लोग भी हैं, जो अपने पोर्टफोलियो से ज़्यादा अपने भड़काऊ भाषणों के लिए जाने जाते हैं। कुछ मंत्री सरकार के फ़ैसलों के पक्ष में प्रतिक्रिया देने के लिए जाने जाते हैं, यह वह फैसले होते हैं, जिनमें से ज़्यादातर की घोषणा प्रधानमंत्री ने की थी।  उद्योग और रेलवे मंत्री पीयूष गोयल, रविशंकर प्रसाद और सीतारमण इसी तरह के नेता हैं। राहुल गांधी से उनकी "मुर्गा लड़ाई" से एक नई तरह की रिपोर्टिंग ईज़ाद हुई है, जिसमें "राहुल गांधी पर पलटवार" किसने किया, यह बताया जाता है। असल बात बताऊं तो गोयल को रेलवे मंत्री के तौर पर भी जाना जाता है, खासतौर पर कोविड संकट के चलते।

एक बरगद का पेड़ पृथ्वी से बहुत सारे संसाधन खींच लेता है, इसी तरह सरकार और कई मंत्रियों की ऊर्जा मोदी की कद बढ़ाने में लगी रहती है।

तो क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि जिन मंत्रियों को आसानी से नहीं पहचाना जा सकता, वे काम नहीं कर रहे हैं या फिर उनका पोर्टफोलियो अहम नहीं है? कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 2014 के बाद से अब तक ग्रामीण विकास, संसदीय कार्यमंत्री, खनन, स्टील, श्रम और शहरी विकास जैसे 6 पोर्टफोलियो धारण किए हैं। जब भारत की आय "दोगुनी" हो जाएगी, तो उनका नाम घरों-घर पहचाना जाना चाहिए।

सरकार भले ही किसानों के पक्ष में कितनी ही भाषणबाजी कर रही हो, पर ग्रामीण चीजों के प्रति सरकार की लगातार जारी उदासीनता पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। बतौर मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इसी का शिकार बने हैं। इसी कारण से पत्रकार जनजातीय मंत्री का नाम नहीं बता पाए, जबकि अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। यही चीज सामाजिक न्याय, श्रम और जल संसाधन जैसे दूसरे मंत्रालयों के साथ है।

पत्रकार कहते हैं, "दरअसल यह इस सरकार की खुद की करनी है कि मीडिया उनके मंत्रियों को नहीं पहचानती।" पत्रकार उस नियम की तरफ इशारा कर रहे हैं, जिसके ज़रिए मुलाकात के लिए बिना लिखित वक़्त के मीडिया के लोगों को सरकारी ऑफिसों में जाने की अनुमति नहीं है। यह पत्रकार आगे कहते हैं, "सरकारी अधिकारी खुले तौर पर मीडिया के साथ संबंधों को दिखाना नहीं चाहते, तो शायद ही कोई मीडियाकर्मी उस बिल्डिंग में जाता होगा, जहां मंत्री मौजूद होते हैं।"

कुछ नेता जानते हैं कि उनका राजनीतिक करियर लगभग खत्म हो जाएगा, फिर भी पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे लोगों ने बीजेपी ज्वाइन कर ली। सचिन पॉयलट भले ही इंकार कर रहे हों, पर वो भी इसी तरह का कदम उठा सकते हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, "पहचान की कमी को यह लोग बर्दाश्त कर सकते हैं, क्योंकि सत्ताधारी पार्टी में जाने से इन्हें अपनी सीट जीतने की निश्चित्ता मिलती है और किसी मंत्रालय के मिलने की भी संभावना होती है।"

यह वैसा ही है, जैसे बरगद का पेड़ कुछ प्रकाश को अपने भीतर से गुजरने देता है, ताकि कुछ पौधे विकास कर सकें।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

 

Modi is a Banyan Tree Under Which Nobody Grows

 

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