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नाटो को बंद कर देना चाहिए 

शीत युद्ध के दिनों वाला 70 साल का बूढ़ा संगठन उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) जो 4 दिसम्बर को लंदन में आपस में मिला, एक थका हुआ सैन्य अवशेष है जिसे कई वर्षों पहले ही शालीनता के साथ अपनी विदाई ले लेनी चाहिए थी।
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डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान जिन तीन सबसे बेहतरीन शब्दों का उच्चारण किया था, वे हैं "नैटो कबाड़ है।" उनकी प्रतिद्वन्द्वी हिलेरी क्लिंटन ने पलटवार करते हुए कहा था कि नैटो "दुनिया के इतिहास में सबसे मज़बूत सैन्य गठबंधन है।“ अब जब आज ट्रम्प सत्ता में हैं, तो व्हाइट हाउस ने वही घिसा-पिटा राग अलापना शुरू कर दिया है कि नैटो "इतिहास में सबसे सफल गठबंधन साबित हुआ है, जो अपने सदस्य देशों को सुरक्षा, समृद्धि और स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है।" लेकिन ट्रम्प ने जो पहली बार कहा था, उस समय वे सटीक थे। एक सुदृढ़ गठबंधन बनने के साथ एक स्पष्ट उद्देश्य रखने के बजाय, यह 70 वर्षीय संगठन जिसकी मुलाक़ात 4 दिसंबर को लंदन में हुई, शीत युद्ध के दिनों का एक कबाड़ सैन्य अवशेष बनकर रह गया है जिसे कई साल पहले ही शालीनता के साथ ख़ुद को सेवानिवृत्त घोषित कर देना चाहिए था।

बुनियादी तौर पर नैटो की स्थापना 1949 में साम्यवाद के उदय को रोकने की कोशिश के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके 11 अन्य पश्चिमी मित्र देशों द्वारा की गई थी। छह साल बाद, साम्यवादी राष्ट्रों ने वारसा संधि के जरिये अपने गठबंधन की स्थापना की, जिसके चलते इन दो बहुपक्षीय संस्थानों ने समूचे विश्व को ही शीत युद्ध के युद्ध-क्षेत्र में तब्दील कर दिया। 1991 में जब यूएसएसआर का पतन हो गया तो वॉरसॉ संधि भी भंग हो गई, लेकिन नैटो ने ख़ुद को और अधिक विस्तारित करने का काम किया। जहाँ मूल रूप में इसके मात्र 12 सदस्य देश थे, वहीं अब यह संगठन बढ़कर 29 सदस्य देशों का हो गया है। अगले साल उत्तर मैसेडोनिया के रूप एक और देश, जो इससे जुड़ने का इच्छुक है, यह संख्या बढ़कर 30 होने जा रही है। 2017 में कोलंबिया को इस साझेदारी में जोड़ते हुए, नैटो ने अपना विस्तार उत्तरी अटलांटिक से परे जाकर भी कर दिया है। डोनाल्ड ट्रम्प ने अभी हाल ही में यह सुझाव दिया था कि ब्राज़ील एक दिन पूर्ण सदस्य बन सकता है।

अपने पूर्व के वायदे के अनुसार नैटो को ख़ुद को पूरब की ओर विस्तारित नहीं करना था। लेकिन शीत-युद्ध की समाप्ति के बावजूद इसने ख़ुद को रूस की सीमाओं की ओर विस्तारित कर पश्चिमी शक्तियों और रूस के बीच तनाव को बढ़ाने का काम किया है, जिसमें सैन्य शक्तियों के बीच कई क़रीबी झड़प शामिल हैं। इसने हथियारों के लिए एक नई दौड़ में भी अपना योगदान दिया है, जिसमें परमाणु हथियारों को और परिष्कृत करने से लेकर शीत युद्ध के बाद के नैटो के सबसे बड़े  "युद्ध के खेल" शामिल है।

एक तरफ़ “शांति को बनाये रखने” का दावा करते हुए, आम नागरिकों पर बमबारी करने और युद्ध अपराधों का नैटो का इतिहास काफ़ी पुराना रहा है। 1999 में नैटो ने संयुक्त राष्ट्र की मंज़ूरी के बिना युगोस्लाविया में सैन्य अभियान में लगा रहा। कोसोवो युद्ध के दौरान इसके ग़ैर-वाजिब हवाई हमलों में सैकड़ों नागरिक हताहत हुए। अपनी "नॉर्थ अटलांटिक" की सीमा से कहीं दूर छिटककर नैटो ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मिलकर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान पर हमले में अपनी हिस्सेदारी दी, जहाँ यह अभी भी दो दशकों के बाद भी दलदल में फँसा हुआ है। 2011 में  नैटो शक्तियों ने लीबिया पर अवैध हमले किये, और उसे एक बर्बाद राज्य में तब्दील कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भारी संख्या में लोगों को वहाँ से पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा। इन शरणार्थियों की ज़िम्मेदारी अपने कन्धों पर लेने के बजाय, नैटो देशों ने इन असहाय प्रवासियों को भूमध्य सागर पर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया, और इस प्रकार हज़ारों बेगुनाहों को मरने दिया।

लंदन में, नैटो यह प्रदर्शित करना चाहता है कि वह नए-नए युद्धों को लड़ने के लिए तैयार है। यह मात्र 30 दिनों के भीतर, ज़मीन पर 30 बटालियन, 30 एयर स्क्वाड्रन और 30 नौसैनिक जहाज़ों को तत्परता से तैनात करने की पहल कर सकने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करेगा। इसके साथ ही यह चीन और रूस के साथ भविष्य में होने वाले ख़तरों से निपटने के लिए हाइपरसोनिक मिसाइलों और साइबरवार के लिए भी तैयार है। लेकिन एक सुगठित और दक्ष युद्ध के लिए तत्पर होने से कहीं बहुत दूर, नैटो असल में कई विभाजनों और विरोधाभासों से उलझन में है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • फ़्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रॉन ने यूरोप के लिए खड़े होने की अमेरिकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े किये हैं और नैटो को “मानसिक तौर पर मृत” घोषित किया है। उन्होंने फ़्रांस के परमाणु संपन्न छतरी तले यूरोपियन सेना का प्रस्ताव भी पेश किया है।

  • तुर्की ने सीरिया में अपने आक्रमण के जरिये नैटो के सदस्य देशों को नाराज़ कर रखा है, जहाँ पर इसने उन कुर्दों को अपना निशाना बनाया है जो आईएसआईएस के ख़िलाफ़ जारी लड़ाई में पश्चिमी मित्र देशों के सहयोगी के रूप में लड़ रहे थे। तुर्की ने बाल्टिक सुरक्षा की योजना के प्रश्न पर वीटो करने की धमकी दी है, जबतक कि मित्र देश इसके सीरिया पर आक्रमण को अपना समर्थन नहीं देते हैं। तुर्की ने नैटो सदस्यों और खासकर ट्रम्प को रूस से S-400 मिसाईल सिस्टम खरीदकर आगबबूला कर दिया है। 

  • ट्रम्प की कोशिश है कि नैटो द्वारा चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जाये, जिसमें उन चीनी कंपनियों के माल के इस्तेमाल पर रोक लगे, जो 5G मोबाइल नेटवर्क के निर्माण के क्षेत्र में काम कर रही हैं- जिसे अधिकतर नैटो देश स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं। 

  • क्या रूस वास्तव में नैटो का दुश्मन है?  फ़्रांस के मैक्रॉन रूस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते दिख रहे हैं। उन्होंने पुतिन को वार्ता के लिए आमंत्रित किया है, जिसमें यूरोपीय संघ क्रीमियन आक्रमण के मुद्दे को पीछे छोड़ नई पहल कर सकें। डोनाल्ड ट्रम्प ने जर्मनी द्वारा रूसी गैस पाइप लाने के नोर्ड स्ट्रीम 2 परियोजना की सार्वजानिक तौर पर कड़ी आलोचना की है। लेकिन हाल के एक जर्मन चुनाव में पाया गया कि 66% लोग रूस के साथ घनिष्ठ संबंध चाहते हैं।

  • इंग्लैंड की समस्या कहीं अधिक विकराल हैं। ब्रेक्सिट संघर्ष पर ब्रिटेन को दोषी ठहराया गया है और 12 दिसम्बर को इस विवादास्पद प्रश्न पर वहाँ राष्ट्रीय चुनाव होने जा रहे हैं। इस बात से बाख़बर होने के नाते कि ट्रम्प जनता के बीच अलोकप्रिय हैं, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने उनसे नज़दीक दिखने की हर कोशिश से अपना पीछा छुड़ाते नज़र आ रहे हैं। इसके अलावा जॉनसन के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी जेरेमी कोर्बिन खुद नैटो के अनिक्छुक समर्थक हैं। जहाँ एक ओर उनकी लेबर पार्टी नैटो के प्रति निष्ठावान है, वहीं कोर्बिन अपने लम्बे राजनैतिक जीवन में युद्ध के ख़िलाफ़ अभियान चलाने के रूप में विख्यात रहे हैं। कोर्बिन ने नैटो को “विश्व की शांति और सुरक्षा के लिए ख़तरा" बताया है। जब पिछली बार 2014 में इंग्लैंड ने नैटो प्रमुखों की अगवानी की थी तो कोर्बिन ने एक नैटो विरोधी रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ही “यह वह समय था जब नैटो को अपनी दुकान का शटर गिरा देना चाहिए था, हार मान लेना था, घर चले जाना चाहिए था और गायब हो जाना चाहिए था।”

  • एक और जटिलता स्कॉटलैंड में भी है, जो नैटो के परमाणु निवारक के हिस्से के रूप में एक बेहद अलोकप्रिय त्रिकोणीय परमाणु पनडुब्बी के बेस के रूप में है। नई लेबर सरकार को स्कॉटिश नेशनल पार्टी के समर्थन की आवश्यकता होगी। लेकिन उसकी नेता, निकोला स्टर्जन इस बात पर जोर देकर कहती हैं कि उनकी पार्टी के समर्थन की पूर्व शर्त ही यह है कि इस परमाणु बेस को बंद करने पर लेबर दल अपनी प्रतिबद्धता को दोहराये।

  • यूरोपीय ट्रम्प को नहीं झेल पा रहे हैं (एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि ट्रम्प पर सिर्फ 4% यूरोपियन भरोसा करते हैं!) और उनके नेता भी ट्रम्प पर विश्वास नहीं रखते। मित्र देशों के नेताओं को अपने हितों की सूचना भी राष्ट्रपति के ट्वीट के ज़रिये प्राप्त होती है। समन्यव की इस कमी का खुलासा अक्टूबर में तब हो चुका था जब ट्रम्प ने नैटो सहयोगियों की उपेक्षा कर उत्तरी सीरिया से अमेरिकी विशेष सेना को वापस बुलाने का आदेश दिया था। यह नोट करने योग्य तथ्य है कि यह सैन्य बल फ़्रांसीसी और ब्रिटिश कमांडोज़ के साथ मिलकर आईसीस के आतंकवादियों से निपटने के अभियान में लगी थी।

  • अमेरिका की इस ग़ैर-भरोसेमंद चरित्र के कारण यूरोपियन कमीशन ने यूरोपियन “सुरक्षा संघ” बनाने की योजना पर विचार रखे हैं, जो सैन्य ख़र्चों और ख़रीद में समन्वय करेगा। इसका अगला क़दम हो सकता है कि नैटो से अलग हटकर सैन्य अभियान में हिस्सेदारी का हो। पेंटागन ने यूरोपीय संघ के देशों की इस बात की शिकायत की है कि वे संयुक्त राज्य अमेरिका से हथियारों की ख़रीद-फ़रोख्त के बजाय आपस में ही यह लेन-देन कर रहे हैं, और इस सुरक्षा संघ को उसने “पिछले तीन दशकों से उत्तर अटलांटिक सुरक्षा क्षेत्र में बढ़ते एकीकरण से नाटकीय रूप से पीछे हटने” वाला क़दम क़रार दिया है।

  • क्या अमेरिकी वास्तव में एस्टोनिया के लिए युद्ध में जाना चाहते हैं? संधि के अनुच्छेद 5 में कहा गया है कि एक सदस्य देश के खिलाफ हमले को “उन सभी के खिलाफ हमला समझा जाए”, जिसका अर्थ यह है कि यह अमेरिका को बाध्य करता है कि वह 28 अन्य राष्ट्रों की ओर से युद्ध में जाए, जिसे शायद ही युद्ध-से थके अमेरिकियों द्वारा पसंद किया जाए। आज अधिक से अधिक अमेरिकी चाहते हैं कि उनकी विदेश नीति में कम से कम आक्रामकता नज़र आए, और जो सैन्य रौबदाब के स्थान पर शांति, कूटनीति और आर्थिक स्तर पर अधिक से अधिक मेलजोल को प्रोत्साहित करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करे। 

एक और मसला है जो विवाद का विषय बना हुआ है, वह यह है कि आख़िर नैटो का ख़र्च कौन उठाएगा? पिछली बार जब नैटो नेतृत्व आपस मिला था, तो राष्ट्रपति ट्रम्प ने सारे अजेंडे को ही उलटकर नैटो देशों को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया था कि वे अपने हिस्से का पैसा नहीं दे रहे हैं, और लंदन की बैठक में यह संभावना थी कि ट्रम्प नैटो अभियान पर अमेरिकी ख़र्च में प्रतीकात्मक कटौती की घोषणा कर दें। 

ट्रम्प की मुख्य चिंता इस बात को लेकर है कि नैटो के सदस्य देश 2024 तक रक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पादों का 2 प्रतिशत ख़र्च करने के नैटो के लक्ष्य के लिए कदम उठाते हैं। यह एक ऐसा लक्ष्य है जो यूरोपीय लोगों के बीच में अलोकप्रिय है और उनका मानना है कि उनके टैक्स के रूप में दिए गए डॉलर का सदुपयोग गैर-सैन्य चीजों पर खरीद की प्राथमिकता दी जाय. फिर भी, नैटो के सेक्रेटरी-जनरल जेन्स स्टोल्टेनबर्ग इस बात को डींग हांकेंगे कि यूरोप और कनाडा ने 2016 के बाद से अपने सैन्य बजट में 100 बिलियन डॉलर जोड़े हैं, जिसका श्रेय शायद डोनाल्ड ट्रम्प लेना चाहें- और यह कि पहले से कहीं अधिक नैटो सदस्य अब 2 प्रतिशत के लक्ष्य को पूरा कर रहे हैं। चाहे भले ही 2019 की नैटो रिपोर्ट यह दर्शाती हो कि सिर्फ सात सदस्यों अमेरिका, ग्रीस, एस्टोनिया, इंग्लैंड, रोमानिया, पोलैंड और लाटविया ने ऐसा किया हो।

एक ऐसे युग में जहाँ समूचे विश्व की जनता चाहती है कि युद्ध से भरसक बचा जाए और इसके बजाय जलवायु संकट पर ध्यान केन्द्रित किया जाए जो प्रथ्वी पर जीवन के भविष्य के लिए ख़तरा बनता जा रहा है, उनके लिए नैटो एक कालदोष है। आज यह भूमण्डल के कुल सैन्य ख़र्चों और हथियारों की ख़रीद-फ़रोख्त के मामले में तीन-चौथाई हिस्सा रखता है। युद्ध की किसी भी संभावना को रोकने के बजाय, यह सैन्यीकरण, वैश्विक तनाव और युद्ध को एक वास्तविक सच्चाई में बदलने के लिए तत्पर दिखता है। इस शीत युद्ध के अवशेष को संयुक्त राज्य अमेरिका के यूरोप पर अपना दबदबा बनाए रखने के हथियार के रूप में इस्तेमाल पर रोक लगनी चाहिए। या इसे रूस या चीन के ख़िलाफ़ या स्पेस में एक नए युद्ध की शुरुआत के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इसके विस्तार की नहीं बल्कि इसके विखंडन की आवश्यकता है। सत्तर साल के सैन्यवाद से लोग उकता चुके हैं। 

मिडिया बेन्जामिन CODEPINK for Peace की सह-संस्थापिका हैं और आप कई पुस्तकों की लेखिका हैं, जिनमें इनसाइड ईरान: द रियल हिस्ट्री एंड पॉलिटिक्स ऑफ़ द इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ ईरान और किंगडम ऑफ़ द अनजस्ट बिहाइंड द यू.एस.-सऊदी कनेक्शन प्रमुख हैं।

सूत्र: इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट

यह लेख मूल रूप से Local Peace Economy द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जो इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट का एक प्रोजेक्ट है।

साभार: पीपल्स डिस्पैच

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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