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उत्तर प्रदेश में सपा-आरएलडी के गठबंधन के बाद बीजेपी को नहीं मिलेगा स्पष्ट बहुमत - विशेषज्ञों का दावा

अखिलेश और जयंत की साझेदारी से जाट और मुस्लिम क़रीब आ सकते हैं और इससे बीजेपी का संतुलन ख़राब हो सकता है।
Akhilesh Yadav

लखनऊ: मंगलवार को समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के बहुचर्चित गठबंधन पर मुहर लग गई। सूत्रों के मुताबिक़ आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी की अखिलेश यादव के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 30-36 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए सहमति लग गई है। इन सीटों में मुजफ्फरनगर, मेरठ, मथुरा, बुलंदशहर, अलीगढ़ और बागपत की सीटें शामिल हैं।

प्रधानमंत्री द्वारा विवादित कृषि कानूनों द्वारा अचानक लिए जाने के बाद इस बैठक में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हालातों पर चर्चा की। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के साथ फोटो साझा करने से पहले कहा कि गठबंधन की औपचारिक घोषणा जल्द की जाएगी। 

अखिलेश यादव ने छोटी और जाति आधारित पार्टियों के साथ गठबंधन का इशारा भी किया है, उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी का बड़ी पार्टियों के साथ जुड़ने का अनुभव अच्छा नहीं रहा है (2019 में बहुजन समाज पार्टी और 2017 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में पार्टी चुनाव लड़ी थी।) बीजेपी के जीतने के बाद कांग्रेस और एसपी ने अपने अलग-अलग रास्ते पकड़ लिए थे। 

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि गन्ना पट्टी में आरएलडी की मजबूत पकड़ है, खासकर यह जयंत चौधरी की किसान आंदोलन में सक्रियता से यह और भी ज़्यादा मजबूत हुई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक वक़्त बेहद प्रभावशाली रही आरएलडी, अब अपनी ज़मीन को दोबारा तेजी से बनाने का प्रयास कर रही है, इसके लिए वह किसान आंदोलन की लहर को इस्तेमाल करने की कोशिश में है। पार्टी का मुख्य वोटर समाज जाट इस आंदोलन के केंद्र में है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के असंतोष में आरएलडी को चुनावों में अपने अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद नज़र आती है। 

मेरठ में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार वसीम अकरम त्यागी का कहना है कि एसपी और आरएलडी का गठबंधन जाटों और मुस्लिमों को एकसाथ ला सकता है, जिससे इलाके में बीजेपी का संतुलन खराब हो सकता है। 

उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, "2013 के मुजफ्फरनगर दंगों ने हिंदुओं, खासकर जाटों और मुस्लिमों के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संबंधों को खराब कर दिया था। इससे जाट वोटर बीजेपी और मुस्लिम मतदाता समाजवादी पार्टी की तरफ भी खिसक गए और इलाके में ध्रुवीकरण बढ़ गया। लेकिन किसान आंदोलन के बाद, खासकर उन इलाकों में जहां जाट प्रभुत्वशाली हैं, वहां बीजेपी नेता जाने से बच रहे हैं। जयंत के उभार के चलते बीजेपी का नुकसान हो रहा है।"

2017 के चुनाव और गठित पर त्यागी कहते हैं, "सिवलखास विधानसभा को ही देखिए, जो मेरठ संभाग के तहत आती है, जहां जाट प्रभुत्वशाली स्थिति में हैं। 2017 में बीजेपी इस सीट को 6000 मतों से जीतने में कामयाब रही थी। इसी तरह बीजेपी सिर्फ़ 150 वोटों से मीरापुर विधानसभा भी जीती थी, जो मुजफ्फरनगर जिले में पड़ती है। दोनों ही सीटों पर एसपी दूसरे पायदान पर रही थी। नए गठबंधन और जाटों के बीजेपी से दूर होने से अखिलेश यादव को फायदा होगा।" 

त्यागी ने यह भी कहा कि अगर जाट प्रत्याशी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्वतंत्र होकर लड़ते हैं,  तो वे जीतने की स्थिति में नहीं होंगे। लेकिन वे मत हस्तांतरण में अहम भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने कहा, "टिकैत बंधुओं को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रभाव है और लोग उनके खिलाफ़ एक शब्द नहीं सुन सकते। इसी तरह बीजेपी के पाले में रहे जाट अब जयंत के पाले में आ रहे हैं और अपने ट्रेक्टर महापंचायत में भेज रहे हैं।" 

त्यागी का कहना है कि मुजफ्फरनगर दंगों के पहले मुस्लिम-जाट एकता को इस तथ्य से समझा जा सकता है, कि जाटों ने कई मुस्लिम नेताओं को चुना, जिनमें मुस्ताक चौधरी को एमएलसी बनाया जाना और महमूद मदनी को राज्यसभा सदस्य बनाया जाना शामिल है। त्यागी कहते हैं,"किसान आंदोलन के बाद और चूंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बन चुका है, लोगों में एक बदलाव देखा जा रहा है, बीजेपी से 75 फ़ीसदी जाट नाराज़ हैं और वे एसपी-आरएलडी के गठबंधन की तरफ देख रहे हैं। बीजेपी के लिए अब स्पष्ट बहुमत संभव नहीं है।"

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एक दूसरे राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि राकेश और नरेश टिकैत ने जाटों और मुस्लिमों को 8 साल बाद मुजफ्फरनगर महापंचायत में साथ ला दिया, इसमें उन्होंने 2013 को जख़्मों पर मलहम लगाने की बात भी कही है। मुस्लिम और जाट मतदाताओं की एकजुटता और बीजेपी के खिलाफ़ नाराज़गी, समाजवादी पार्टी के पक्ष में जा सकती है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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