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#पारदर्शिता_??? : बीजेपी को मिले कुल चंदे में 553 करोड़ अज्ञात स्रोत से आए

पिछले पांच सालों में केवल 2016-17 को छोड़कर बीजेपी का अज्ञात स्रोतों से प्राप्त चंदा ज्ञात स्रोतों से ज्यादा रहा है।
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर। चित्रांकन : विकास ठाकुर

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लगातार अमीर होती जा रही है, सत्ता में आने के बाद से वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2017-18 तक बीजेपी की कुल संपत्ति में 95 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2017-18 में बीजेपी को 553 करोड़ रुपये अज्ञात स्त्रोतों से मिले। इसके साथ ही ज्ञात स्त्रोतों मिले चंदे में से 92 फ़ीसदी कॉर्पोरेट से था।

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बीजेपी को वित्तीय वर्ष 2017-18 में विभिन्न स्रोतों से आय 1027 करोड़ हुई जो 2013-14 में 673 करोड़ रुपये थी, इस अवधि में बीजेपी की आय में 52 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई। इसके साथ ही बीजेपी की कुल संपत्ति इस अवधि में 90 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ी जो कि अन्य राष्ट्रीय दलों की संपत्ति में हुई बढ़ोतरी से कहीं ज्यादा है।

बीजेपी को 2017-18 में हुई कुल आय 1027 करोड़ में से 96 प्रतिशत स्वैच्छिक योगदान के तहत मिला है। तथा बीजेपी को मिले कुल चंदे में से 56 प्रतिशत यानी 553 करोड़ रुपये अज्ञात स्त्रोतों से मिले जिसमें 210 करोड़ रुपयों के इलेक्टोरल बांड भी शामिल हैं। बांड स्कीम में राजनीतिक चंदा देने वालों का नाम गुप्त रखने की व्यवस्था है, इसलिए यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि सत्ताधारी दल को इलेक्टोरल बांड के रूप में 210 करोड़ रूपये किसने दिए। जबकि बीजेपी ने 20 हजार रुपयों से अधिक का चंदा देने वाला का ब्योरा इलेक्शन कमीशन को देते हुए बताया है कि उसे 437 करोड़ रुपये मिले हैं जो कि कुल मिले चंदे का मात्र 44 प्रतिशत है।

पिछले पांच सालों में केवल 2016-17 को छोड़कर बीजेपी का अज्ञात स्त्रोतों से प्राप्त चंदा ज्ञात स्त्रोतों से ज्यादा रहा है। एडीआर रिपोर्ट 2016-17 के मुताबिक बीजेपी को इस वर्ष 1194 चंदों से 532 करोड़ से अधिक का दान मिला जिसमें से 531 कॉर्पोरेट दान दाताओं से 515.43 करोड़ यानी करीब 97 फ़ीसदी कॉर्पोरेट चंदा मिला। बीजेपी को अज्ञात स्त्रोतों से मिले चंदे का वर्षवार विवरण चार्ट में देख सकते है।

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बीजेपी को वर्ष 2013-14 से 2017-18 की अवधि में कुल 4105 करोड़ रूपये का चंदा मिला जिसमे से मात्र 40 प्रतिशत यानी 1652 करोड़ रुपये मिले चंदा का ब्योरा पार्टी ने इलेक्शन कमीशन को दिया और बताया की वह कहाँ से मिला हैं, इसमें से अधिकांश चंदा कॉर्पोरेट से मिला है। और इस पांच साल की अवधि में बीजेपी को 2453 करोड़ रुपये यानी कुल मिले चंदे का 60 प्रतिशत अज्ञात स्त्रोतों से मिला जिसके बारे यह नहीं पता कि कहां से मिला और किसने कितना चंदा दिया।

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चंदे के स्रोत का पता कैसे लगाया जा सकता है :

प्रावधानों के मुताबिक चंदे से स्रोत का पता लगाना संभव होता है लेकिन इसमें एक ख़ामी की वजह से ये व्यावहारिक तौर पर मुश्किल है। 20 हज़ार रुपये से कम के चंदे के बारे में चुनाव आयोग को बताना ज़रूरी नहीं है| हालांकि राजनीतिक पार्टी को इसके बारे में इनकम टैक्स रिटर्न में बताना होता है, लेकिन 20 हज़ार रुपये से कम के चंदे के स्रोत के बारे में इसमें भी जानकारी देना जरूरी नहीं होता है। मोटे तौर पर ये देखा गया है कि राजनीतिक पार्टियां अपने चंदे का अधिकतम हिस्सा अज्ञात स्रोतों से आया हुआ बताती हैं।

भारत में कोई भी राजनीतिक दल सभी से चंदा ले सकते हैं, मतलब व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट से भी।  हाल ही में जारी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्‍स (एडीआर) ने अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है कि बीजेपी को 2017-18 में 20 हजार रुपये से अधिक के चंदे में मिले 437 करोड़ रुपयों में 92 प्रतिशत कॉर्पोरेट से मिलने वाला चंदा है और व्यक्तिगत चंदा बहुत ही कम है।

अब सवाल यह है कि आखिर कॉर्पोरेट बीजेपी को इतना ज्यादा चंदा क्यों देता है, इस सवाल का उत्तर साफ़ है की वो चाहते हैं कि बीजेपी उनके हित को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ बनाये और यही वजह है की कॉर्पोरेट की पहली पसंद बीजेपी है। बीजेपी जब से सत्ता में आई है वह कॉर्पोरेट की उम्मीदों पर खरी उतरी है और उसकी ज्यादातर नीतियाँ और निर्णय कॉर्पोरेट परस्त रहे हैं। जनपक्षीय नीतियों से बीजेपी ने अपना मुहँ मोड़ा हुआ है। सरकार ने चुनावी फंडिंग को साफ़-सुथरा और पारदर्शी बनाने के लिए इलेक्टोरल बांड स्कीम शुरू की परन्तु वह बिल्कुल भी कारगार नहीं हुई क्योंकि इसमें चंदा देने वाला का नाम गुप्त रहता है बल्कि बांड से कॉर्पोरेट और राजनीतिक दलों के बीच साठगांठ और मजबूत होगी|

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बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए मार्च 2013 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी की केन्द्रीय चुनाव कैंपेन कमेटी का चेयरमैन नियुक्त किया था और सितम्बर 2013 में नरेंद्र मोदी को एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया था। बीजेपी ने 2013-14 में अगले वर्ष के लोकसभा चुनाव व उसी वर्ष 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए 286 करोड़ रुपये खर्च किये और कांग्रेस ने 347 करोड़ रुपये खर्च किये।

2014 में बीजेपी ने लोकसभा और 8 राज्यों के चुनाव में 924 करोड़ रुपये खर्च किये। कांग्रेस ने 582 करोड़ रुपये खर्च किये। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है की 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 30,000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, इसका मतलब है कि हरेक चुनावी क्षेत्र में 50 से 55 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।

कई अध्ययन और एजेंसियों के अनुसार भारत में लोकसभा चुनाव में पैसे का अहम सोर्स कॉर्पोरेट फंडिंग बन गया है। देश में ऐसी परम्परा सी बन गयी है कि बड़ी कम्पनिया चुनाव के स्पेशल फण्ड रखने लग गयी हैं। कॉर्पोरेट को चुनाव में फंडिंग करने से यह फायदा होता है की नीतियाँ उनके हिसाब से बनती है, इसका ताजा उदहारण हम चुनाव के बाद अंबानी-अडानी और दूसरे कॉर्पोरेट को सुविधाएँ मुहैया कराने और उनके हित को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ बनाने में देख सकते है।

2015 में बीजेपी ने अपने चुनाव व प्रोपोगंडा के लिए 359 करोड़ रुपये खर्च किये, इस वर्ष देश में  दो राज्यों दिल्ली और बिहार में चुनाव हुए जिसमें दिल्ली में आप तथा बिहार में जेडीयू-आरजेडी गठबंधन की सरकार बनी परन्तु बाद में बीजेपी ने नीतीश कुमार के साथ सरकार बनाई।

2016-17 में बीजेपी ने 2014 के बाद से सबसे ज्यादा चुनाव व प्रोपेगंडा के लिए खर्च किया क्योंकि इस साल पांच राज्यों तथा अगले साल सात राज्यों में चुनाव होने थे। बीजेपी 2016-17 में 607 करोड़ रुपये खर्च किये तथा कांग्रेस ने 150 करोड़ रुपये।

इसके साथ ही बीजेपी ने 2017-18 के दौरान अपनी कुल आय 1027.34 करोड़ रुपये की घोषित की थी, जिसमें से उसने 758.47 करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं| इस कुल खर्च का 75 फ़ीसदी (567 करोड़) बीजेपी ने चुनाव के नाम पर खर्च किया है। बीजेपी ने यह खर्चा 2017 में हुए सात राज्यों के चुनाव के दौरान किया, जिसमे से उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के बड़े चुनाव थे। सात में से 6 राज्यों में बीजेपी ने अपनी सरकार बनाई। केवल पंजाब में कांग्रेस ने अपनी सरकार बनाई। इसके साथ ही मार्च 2018 तक 6 संसदीय सीटों पर उपचुनाव भी हुए जिसमे बीजेपी अपनी 4 सीटें हार गयी| चुनावी खर्चे की धनराशि विज्ञापन, कैंडिडेट को वित्तीय सहायता, मीटिंग, मोर्चा/रैली/आन्दोलन, प्रेस कांफ्रेंस तथा यात्रा आदि पर खर्च की।

बीजेपी और घटकों के द्वारा लोकसभा चुनाव से यह बोला गया कि एक गरीब का बेटा और एक चाय वाला प्रधानमंत्री क्यों नही बन सकता है? ऐसा बोलकर बीजेपी ने जनता की भावनाओं को ठेस पहुचाई क्योकि बीजेपी के द्वारा चुनाव आयोग को दी गयी ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि बीजेपी ने चुनाव में बहुत ज्यादा धनबल का इस्तेमाल किया है और पैसे के बल पर मोदी लहर बनाई, परन्तु अभी स्थिति थोड़ी बदली हुई नजर आ रही है क्योंकि हाल ही में हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत कुल 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव व उपचुनावों के नतीजे यह बताते हैं कि पैसों के दम पर बनी मोदी लहर अब थकी हुई सी नजर आ रही है।

अंत में यही कि अगर बीजेपी का चुनाव में ज्यादा खर्चे का यही रवैया रहा तो यकीनन आने वाला लोकसभा चुनाव, चुनावी खर्चे के अपने सारे रिकॉर्ड तोड़ देगा।

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