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मोदी सरकार के बचाव के लिए आरबीआई- क्योंकि ये चुनाव का समय है!

इस साल केंद्र सरकार को आर.बी.आई. ने रिकॉर्ड 66,000 करोड़ रुपये दिए हैं, मोदी सरकार ने पिछले पांच वर्षों में केंद्रीय बैंक से दिमाग चकरा देने वाली राशि यानी 9 लाख करोड़ रुपये चूसे हैं।
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: NDTV

18 फरवरी को, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने केंद्र सरकार को “अंतरिम लाभांश” के रूप में 28,000 करोड़ रुपये देने का फैसला किया 2018-19 में यह अपने कुल हस्तांतरण का रिकॉर्ड 68,000 करोड़ है। RBI ने अगस्त 2018 में 2017-18 के लिए लाभांश के रूप में 40,000 करोड़ रुपये पहले ही हस्तांतरित कर दिए थे। इसने पिछला रिकॉर्ड तोड़ दिया है, वह भी वर्तमान सरकार के तहत, 2015-16 में किए गए 65,896 करोड़ रुपये के मुकाबले में। अंतरिम लाभांश अतिरिक्त एक प्रकार का स्थानांतरण है - इसे अगले वित्तीय वर्ष के आरबीआई के खातों में दिखाया जाएगा। आरबीआई का वित्तीय वर्ष जुलाई से जून है जबकि सरकार का वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च तक चलता है।

इसके साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार ने RBI से धन हासिल करने के लिए कई तरह के रिकॉर्ड बनाए हैं। इसके पांच साल के शासनकाल में, सरकार को RBI से 2.93 लाख करोड़ का बतौर इनाम मिला है। पिछले पांच वर्षों (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन -2 के तहत) जो महज 1.08 लाख करोड़ रुपये का हस्तांतरण देखा गया था। (18 फरवरी को RBI वार्षिक रिपोर्ट और RBI बोर्ड की घोषणा के आधार पर नीचे दिया गया चार्ट देखें)

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भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 47 के अनुसार, आरबीआई केंद्र सरकार को अपना लाभ हस्तांतरित करने के लिए कानून के तहत बाध्य है, जो कहता है कि: “बुरे और संदिग्ध ऋणों का प्रावधान करने के बाद, परिसंपत्तियों के अवमूल्यन, कर्मचारियों और योगदान और सेवा-निवृत्ति लाभ और ऐसे सभी मामलों के लिए धन, जिनके लिए प्रावधान इस अधिनियम के तहत या जो आमतौर पर बैंकरों द्वारा प्रदान किए जाते हैं, के लिए किया माना गया है, इसके मुनाफे का बकाया केंद्र सरकार को भुगतान किया जाएगा। "

केंद्रीय बैंक की मुख्य आय सरकारी प्रतिभूतियों और बांडों से अर्जित ब्याज से प्राप्त होती है। जैसा कि धारा 47 में लिखा गया है, यह अतिरिक्त को पीछे छोड़ते हुए अपनी शुद्ध आय से विभिन्न प्रावधानों के लिए आवश्यक राशि को स्थानांतरित करता है।

पहले की सरकारें इस मुनाफे को पाने के लिए उत्सुक नहीं थीं। पिछले वर्षों की RBI की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि हस्तांतरित राशि उन वर्षों में लाभ का लगभग आधा थी। लेकिन मोदी सरकार जोर देकर कह रही है कि लगभग पूरी राशि जो आरबीआई के पास अतिरिक्त मूल्य के रूप में है, उसे हस्तांतरित कर दिया जाए। कानूनी तौर पर, ऐसा करना उसके अधिकार के भीतर है। लेकिन इसकी एक पीछे की कहानी भी है।

अगर मौजूदा वित्त वर्ष का ही मामला लें, जो मार्च 2019 में समाप्त हो जाएगा। इस महीने की शुरुआत में पेश किए गए 2019-20 के अंतरिम बजट ने भविष्यवाणी की थी कि सेवा एवं वस्तु कर (GST) से राजस्व में 1 लाख करोड़ रुपये की कमी होगी। कॉरपोरेट टैक्स में 50,000 करोड़ रुपये की रियायतों के कारण टैक्स द्वारा अर्जित खजाने को भी लुटा दिया जाएगा। दूसरी तरफ, सरकार ने किसानों को आय में समर्थन देने के कार्यक्रम के खाते में 2018-19 के लिए संशोधित अनुमानों में 20,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च को पहले ही शामिल कर लिया है। इस राशि को बजट में शामिल नहीं किया गया था, और मानदंडों के एक विचित्र तरीके से, सरकार ने बजट में इसकी तस्करी की थी तब जबकि वित्तीय वर्ष के सिर्फ दो ही महीने बचे हैं।

इन सब हरकतों के परिणामस्वरूप, और ऐसी अन्य, अवसरवादी नीतियां - या सर्वथा विनाशकारी नीतियों की वजह से- सरकार बड़े राजस्व घाटे में फंस गयी है, अर्थात, इसका खर्च इसकी आय से बहुत अधिक है। अपने आप में, इसमें कुछ भी गलत नहीं है जब तक कि इसका इस्तेमाल लोगों के लाभ के लिए खर्च किया जाता है। लेकिन मोदी सरकार के मामले में, राजस्व में कमी इसलिए है क्योंकि यह कॉरपोरेट्स को रियायतें दे रही है और खर्च में बढ़ोतरी इसलिए है क्योंकि कुछ ही महीनों पहले लुभावनी योजनाओं को लाया जा रहा है, जो एक आम चुनावी वादे से ज्यादा कुछ नहीं है।

इसीलिए आरबीआई को खाली किया जा रहा है। वास्तव में, 1 फरवरी को पेश किए गए अंतरिम बजट पर करीबी नज़र डालने से पता चलता है कि सरकार ने पहले ही RBI से बढ़े हुए लाभांश के तथ्य को ध्यान में रख ऐसा किया था कि 2018-19 के लिए संशोधित अनुमान में, इसने RBI के लाभांश और अतिरिक्त 74,140 करोड़ रुपये का बजट रखा था, जिसमें राष्ट्रीयकृत बैंक और वित्तीय संस्थान शामिल हैं, हालांकि मूल बजट अनुमान 54,817 करोड़ रुपये का था।

इस सबसे ऐसा लगता होता है कि मोदी सरकार की लापरवाही के लिए कम से कम आंशिक रूप से ही सही लेकिन आरबीआई द्वारा उसे सब्सिडी दी जा रही है। दुर्भाग्य से, यह लापरवाही देश के लोगों की मदद नहीं कर रही है। बल्कि यह कॉरपोरेट जगत की मदद कर रही है, वह भी चुनाव से पहले आम लोगों को कुछ लुभावनी योजनाओं के साथ।

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