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ओलंपिक में लोवलिना बोर्गोहैन और असम की बॉक्सिंग का उदय

अपने पहले ओलंपिक में लोवलिना बोर्गोहैन पदक से सिर्फ़ एक जीत दूर हैं। आज बोर्गोहैन और जमुना बोरो असम बॉक्सिंग की नई पोस्टर गर्ल हैं, लेकिन उनके पीछे प्रशिक्षण केंद्रों में मौजूद दूसरी प्रतिभाएं भी कतार में मौजूद हैं। यह प्रशिक्षण केंद्र आज असम के गांवों से प्रतिभावान युवाओं को आकर्षित करने का केंद्र बन गए हैं।
लोवलिना बोर्गोहैन

प्रणामिका बोरा को साफ़-साफ़ तारीख़ याद है। सिर्फ़ तारीख़ ही नहीं, उन्हें स्कोर, विपक्षी खिलाड़ी, मैच के पल-पल का हाल, यहां तक कि उद्घोषक (एनाउंसर) का नाम तक याद है। ज़्यादातर एथलीट्स को अपने करियर की प्राथमिक चीजें ही याद रहती हैं। लेकिन यह प्रणामिका के खुद के करियर से जुड़ी याद नहीं है। यह उस घटना की याद है, जिसके बारे में प्रणामिका का मानना है कि उसने असम में बॉक्सिंग को पूरी तरह बदल दिया। यह घटना है 5 अगस्त, 2012 को ओलंपिक में मैरीकॉम का मैच।

अब SAI बॉक्सिंग कोच के तौर पर अपनी सेवाएं देने वाली प्रणामिका कहती हैं, "जब मैं बॉक्सिंग करती थी, तब ओलंपिक में जाने जैसे लक्ष्य नहीं होते थे। हम कभी ओलंपिक का सपना भी नहीं देखते थे, क्योंकि बॉक्सिंग तो तब ओलंपिक में शामिल भी नहीं थी। हम अपने सपनों को वास्तविकता की ज़मीन पर रखते थे।" (अब क्यों अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के ‘प्रगतिशील और दूरदृष्टि’ रखने वाले सदस्यों को बॉक्सिंग को शामिल करने में इतना लंबा वक़्त लगा, वह एक अलग कहानी है, जो कभी और सुनाते हैं)। प्रणामिका इस दिन को इसके मजबूत असर, खासकर उनके राज्य असम में इसके प्रभाव के चलते याद रखती हैं।

वह कहती हैं, "जब मैं बड़ी हो रही थी तब एक लड़की के बॉक्सिंग में होने को सही ठहराना कठिन होता था। आपके माता-पिता नहीं चाहते थे कि आप एक ऐसे खेल में जाएं, जो बहुत ज़्यादा शारीरिक हो। उस वक़्त माहौल उतना खुला नहीं था, जितना आज है।"

वह आगे कहती हैं, "आजकल के बच्चों के पास फोन पर इंटरनेट है, वह सबकुछ देख सकते हैं। वह देखते हैं कि बड़े कार्यक्रमों और मंचों पर लड़किया लड़ रही हैं, पदक जीत रही हैं। यह लोगों के सोचने के तरीके को प्रभावित करता है। अगर बच्चे अपने माता-पिता को यह सब दिखाते हैं, तो वे भी अलग तरीके से सोचते हैं। फिर अगर बॉक्सर बड़े-बड़े पोस्टर्स पर है, तो दिलचस्पी तो बढ़ेगी ही।"

अगर आप लंदन ओलंपिक के तुरंत बाद असम की यात्रा करते, तो आपको बड़े-बड़े विज्ञापन बोर्ड (बिलबोर्ड) दिखाई पड़ते। इनमें पांच बार की विश्व चैंपियन और ओलंपिक में कांस्य पदक विजेता एम सी मैरीकॉम की हंसती हुई तस्वीर दिखाई देती थी। मैरीकॉम का राज्य सरकार ने भी सम्मान किया, उनका उपयोग महिलाओं के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं में पोस्टर के तौर पर किया। भले ही आज यह विज्ञापन सामान्य दिखाई देते हों, लेकिन उस वक़्त नहीं थे। मामले पर मतभिन्नता थी। असम के बौद्धिक जगत के लोगों को मणिपुर की एक लड़की का पोस्टर गर्ल के तौर पर इस्तेमाल सही नहीं लगा। लेकिन वहां से 500 किलोमीटर दूर इम्फाल में सब चीज सही लग रही थी।

सबको यह जानकर खुशी होगी कि उन विज्ञापनों ने अपना काम कर दिखाया। 2012 में लंदन ओलंपिक के बाद असम में बॉक्सिंग कोच में लोगों की दिलचस्पी में तेज उछाल आया। यहां तक की प्रतिभा खोज कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, ताकि भविष्य के खिलाड़ियों को खोजा जा सके। गोलाघाट की एक छोटी सी लड़की जो मुय थाई सीख रही थी, उसे स्कूल बॉक्सिंग ट्रायल से खोजकर महाराष्ट्र के अकोला में असम राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा गया। जिस इंसान ने उस लड़की को खोजा, वे गुवाहाटी के सम्मानित बॉक्सिंग कोच पदम बोरो थे। आज वह लड़की असम की पहली बॉक्सर बनी, जिसने ओलंपिक में हिस्सा लिया। उसने विभाजित मत के ज़रिए अपना पहला मैच जीता। लोवोलिना बोर्गोहैन अब अपने पहले ओलंपिक में पदक जीतने से सिर्फ़ एक जीत दूर हैं। लेकिन जैसा प्रणामिका बोरा कहती हैं कि अपनी सपनों को ज़मीन पर रखना जरूरी होता है। आसमान का सपना देखिए, लेकिन यह भी याद रखिए कि यह आपके ऊपर गिर सकता है।

पदम कहते हैं, "हमने उसे उसकी शारीरिक क्षमताओं के चलते चुना था। चूंकि उसे कॉम्बेट स्पोर्ट का अनुभव था, इसलिए उसका संतुलन अच्छा था, उसका धैर्य मजबूत था। मैने उससे थोड़ा शैडो बॉक्सिंग करने को कहा, मैंने देखा कि वह आसानी से आगे-पीछे हो पा रही थी। हमारे लिए इतना काफी था।"

लोवलिना को तुरंत SAI गुवाहाटी में स्थानांतरित कर दिया गया। पदम कहते हैं, "वह अकेली नहीं थी, वहां दूसरा लड़कियां भी थीं, जमुना बोरो थीं, वह भी उसी दौरान आई थीं। मुझे लगता है कि प्विलाओ बासुमात्राय भी उसी दौरान आई थीं।"

इतना ही नहीं, अब भी कई लड़कियां आ रही हैं। अगर बोर्गोहैन और जमुना बोरो असम में बॉक्सिंग की नई पोस्टर गर्ल हैं, तो अनकुशिता बोरो भी ज़्यादा पीछे नहीं हैं। उन्हें ऊपरी असम से प्रणामिका ने चुना था। पिछले साल गुवाहाटी में खेलो इंडिया यूथ गेम्स में तब किशोर रहीं अंकुशिता बॉक्सिंग इवेंट के लिए पोस्टर गर्ल बन गई थीं। जब तक अंकुशिता ने स्वर्ण पदक नहीं जीत लिया, तब तक असम का मीडिया हर कदम, हर अभ्यास सत्र में और हर सार्वजनिक जगह पर उनके पीछे रहता था। यह सही है कि एक किशोरी के साथ व्यवहार में मीडिया को अपनी हद तय करनी चाहिए, लेकिन यह प्रणामिका की उस बात की पुष्टि भी करता है, जिसमें वह कहती हैं कि असम में बॉक्सिंग ने जनता का ध्यान खींचने में कामयाबी पाई है।

हर खेल में आदर्श खिलाड़ियों की जरूरत होती है। एक ऐसा जो रास्ता दिखाता है। वह आगे कहती हैं, "ऐसा नहीं है कि पहले असम में महिला बॉक्सर नहीं थीं। कल्पना चौधरी और मैंने खुद ने अलग-अलग वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है (कल्पना ने 2005 में विश्व चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीता था)। लेकिन तब बात अलग थी। सुविधाएं, कोचिंग....."

जैसा पदम जोर देकर कहते हैं कि अब पूरे राज्य में SAI केंद्रों में बॉक्सिंग पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। हर एक में कई कोच शामिल हैं और जरूरी उपकरण उपलब्ध करवाए गए हैं। यह सबकुछ SAI के कार्यक्रम के ज़रिए आता है। वह कहते हैं, "राज्य से कोई विशेष सहायता नहीं है। हम वित्त के लिए SAI पर निर्भर करते हैं, हम उस पैसे के ज़रिए ही विकास करते हैं। अगर राज्य चाहते हैं, तो वे दूसरे तरीके से हमारी मदद कर सकते हैं, लेकिन अब तक ऐसा नहीं किया गया है।"

प्रणामिका भी बताती हैं कि कैसे SAI प्रशिक्षकों के ग्रामीण असम में पहुंच बनाने से राज्य में अचानक बॉक्सिंग में उछाल आया है। वह कहती हैं, "टीवी ने मदद की है। अख़बारों ने मदद की है। पहले गांवों में अख़बार नहीं थे, अब हैं। हम उनमें ट्रायल के लिए विज्ञापन जाी करते हैं और माता-पिता उन्हें देखते हैं। उनका सपना, "मेरा बेटी मैरी बनेगा" अब पहुंच की हद में दिखाई देता है। 

पद्म बोरो कहते हैं, "अब बच्चे व्यक्तिगत खेल खेलना चाहते हैं। उन्हें महसूस हुआ है कि इन खेलों में उपलब्धि हासिल करने के ज़्यादा मौके होते हैं, नौकरी पाने, यहां तक कि उच्च स्तर पर चुने जाने के भी ज़्यादा मौके होते हैं। टीम वाले एक खेल में आप अच्छे हो सकते हैं, लेकिन आपको अक्सर एक टीम के तौर पर ही आंका जाता है। लेकिन व्यक्तिगत खेलों में सिर्फ़ आप अकेले होते हैं।।।।"

लोवलिना के सामने रिंग में चाइनीज़ ताइपे की चेन-निएन-चिन होंगी। लोवलिना पहले भी 2018 में नई दिल्ली में वर्ल्ड चैंपियनशिप में चेन निएन-चिन का सामना कर चुकी हैं। तब लोवलिना सेमीफाइनल में चेन से हार गई थीं, आखिर में चेन ने ही स्वर्ण पदक जीता था। चेन भी अब वापसी को बेताब हैं। रियो ओलंपिक में वे पहले ही दौर में बाहर हो गई थीं।

पद्म कहते हैं, "यह अलग मुकाबला है। चेन के पास ओलंपिक में खेलने का पुराना अनुभव है और उनके ऊपर जीत का अतिरिक्त दबाव भी होगा, क्योंकि ज़्यादातर लोगों का अंदाजा उनके ही जीतने के बारे में होगा। लेकिन लोवलिना और उनके प्रशिक्षक चेन से निपटने के लिए रणनीति बनाकर तैयार रहेंगे।"

नतीजा चाहे कुछ भी हो, इन नौ सालों ने उस राज्य में बदलाव की बहार ला दी है, जो अपने आलस और फुरसत की जिंदगी जीने के लिए मशहूर है। प्रणामिका का मानना है कि आगे बड़ी चीजें आने वाली हैं। वह कहती हैं, "अब सब बदल जाएगा। मुझे लगता है कि बच्चे कहेंगे कि मुझे लोवलिना जैसा बनना है, आशा है कि हमें इस खेल में और भी ज़्यादा भागीदारी देखने को मिलेगी। जितनी ज़्यादा प्रतिभाएं होंगी, वह विकास के लिए उतना ही बेहतर होगा।"

अब बिलबोर्ड आ चुके हैं। शायद जब लोवलिना टोक्यो से वापस आएंगी, तो उन्हें कुछ बेहतर किया जाएगा। 

इस खेल को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Olympian Lovlina Borgohain and Assam Boxing’s Sudden Revelation

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