पीएम साहब कृपया ध्यान दें: 96 बीजेपी सांसदों के तीन या इससे अधिक बच्चे हैं
15 अगस्त को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बढ़ती जनसंख्या को लेकर कहा कि ये भारत के भावी पीढ़ियों के लिए ख़तरनाक है। उन्होंने छोटा परिवार रखने वाले ज़िम्मेदार नागरिकों की सराहना करते हुए कहा कि वे आत्म-प्रेरित हैं। उन्होंने कहा, “न केवल वे अपने परिवार के कल्याण में योगदान करते हैं बल्कि वे राष्ट्र की भलाई के लिए भी काम करते है। वे देशभक्ति भी ज़ाहिर करते हैं।”
लोक सभा के क़रीब 149 सदस्य मोदी की इस देशभक्ति की परीक्षा में असफल हो गए क्योंकि उनके पास तीन और इससे ज़्यादा बच्चे हैं। इन सांसदों में बीजेपी के 96 सांसद हैं या यूं कहें कि इनमें से लगभग एक-तिहाई (31.68%) सांसद बीजेपी के हैं जो दो बच्चों के मानदंड को पूरा नहीं करते हैं। ये नियम आम तौर पर परिवार और राष्ट्र के लिए आदर्श माना जाता है।
बीजेपी के इक्कीस सांसदों के चार और अन्य 12 सांसदों के पांच बच्चे हैं। ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक यूनाइटेड फ्रंट के नेता बदरुद्दीन अजमल के सात बच्चे और बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल के सदस्य पकौरी लाल के सात बच्चे हैं।
दोनों लेखकों ने इन विवरणों को लोकसभा की वेबसाइट से हासिल किया है। वेबसाइट पर प्रत्येक सांसद की प्रोफाइल पोस्ट की गई है। कुछ सांसदों ने अपनी वैवाहिक स्थिति को तो बताया लेकिन अपने बच्चों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया है। अन्य 190 सांसदों ने तो किसी भी प्रकार की अपनी व्यक्तिगत जानकारी नहीं दी है।
इन 190 सांसदों के बच्चों की संख्या के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हमने 2019 के लोकसभा चुनाव के समय दाख़िल किए गए इनके नामांकन पत्रों को खंगाला। इन हलफ़नामों में उम्मीदवारों पर आश्रित उन बच्चों की संख्या की सूची दी हुई है। हालांकि उन्हें उन बच्चों के नामों का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है जो उन पर आश्रित नहीं हैं।
हमने सरकारी पोर्टल, विधानसभा डायरेक्ट्री, सांसदों के मीडिया साक्षात्कार और स्टोरी और दो मामलों में कास्ट असोसिएशन वेबसाइटों जानकारी हासिल की। सांसदों के बारे में जानकारी को लेकर हमारी त्रुटि का मार्जिन उनमें से पांच या छह से अधिक नहीं होगा।
हमें इस पब्लिक डोमेन में 49 सांसदों के बारे में जानकारी नहीं मिली। जिन सांसदों ने अपने लोकसभा प्रोफाइल में बताया था कि वे शादीशुदा थे, लेकिन उनके हलफ़नामों में आश्रितों की सूची नहीं थे उसे 0 और 2 के बच्चों वाले सांसदों की श्रेणी में रखा गया था।
टेबल-I से पता चलता है कि लोकसभा के लगभग 28% सांसद के तीन या इससे अधिक बच्चे हैं। लगभग 6% अकेले हैं जिसका मतलब है कि उन्होंने कभी शादी नहीं की है।
* कुल 542 सांसदों का विवरण दिया गया है
** बिहार में 1एससी (अनुसूचित जाति) सीट खाली है
*** 49 सांसदों से संबंधित जानकारी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं थी
# अविवाहित ऐसे लोग हैं जिन्होंने शादी नहीं की है। अविवाहितों में तलाक़शुदा की गिनती नहीं है।
टेबल II से पता चलता है कि बीजेपी के लगभग 32% सांसदों के तीन या इससे अधिक बच्चे हैं। ये लोकसभा सांसदों का 18% हैं। पार्टी में अविवाहित सांसदों की संख्या आधे से थोड़ा कम है।
इसके विपरीत, कांग्रेस सांसदों में आठ यानी 15% सांसद ऐसे हैं जिनके पास तीन या इससे अधिक बच्चे हैं। हालांकि कांग्रेस वंशवाद के टैग को हटाने के लिए संघर्ष कर रही है। (टेबल III देखें)
* कुल 52 कांग्रेस सांसद
ये आंकड़े एक विशेष अर्थ भी प्राप्त करते हैं क्योंकि राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा जो टीवी पर चर्चाओं में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के चिंतक के रुप में शामिल होते हैं उन्होंने जुलाई में जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019, एक प्राइवेट बिल पेश किया। एक तरह से सिन्हा की चिंताएं प्रधानमंत्री के जैसी ही थी।
जनसंख्या विनियमन विधेयक उन लोगों के लिए कई प्रोत्साहनों का प्रस्ताव करता है जिनके दो से कम बच्चे हैं और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई है जिनके दो से अधिक बच्चे हैं। इस बिल के लागू होने के बाद तीन या इससे अधिक बच्चे होने की स्थिति में कार्रवाई करते हुए किसी को सांसद, विधायक या स्थानीय निकाय का सदस्य बनने से रोका गया है।
अगर सिन्हा के बिल को लागू कर दिया जाता है तो वर्तमान बीजेपी सांसदों में से एक-तिहाई सदस्य लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इस बिल के लागू हो जाने के बाद अयोग्य होने वाले ताक़तवर बीजेपी नेता जो चुनाव लड़ नहीं पाएंगे उनमें राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री रेणुका सिंह सरुता शामिल हैं।
सिन्हा के प्रस्ताव पर कार्रवाई की जाती है तो काफी हद तक ये क्षेत्रीय दलों को बुरी तरह प्रभावित करेगा। टेबल IV में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा अन्य दलों से संबंधित सांसदों को दिखाया गया है। इनमें से पैंतीस (24.5%) सांसदों के पास तीन या इससे अधिक बच्चे हैं।
* अन्य पार्टी के कुल 187 सांसद
क्षेत्रीय दलों में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) बहुत कम प्रभावित होगी। टेबल V से पता चलता है कि इस पार्टी के केवल दो सांसदों के पास तीन या इससे अधिक बच्चे हैं।
* एसआईटीसी के कुल 22 सांसद
यह द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) को भी बीजेपी से कम प्रभावित करेगा जैसा कि टेबल VI और टेबल VIII में दिखाया गया है।
* वाईएसआरसीपी के कुल 22 सांसद
एआईटीसी, वाईएसआरसीपी और डीएमके मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में सक्रिय है। इन तीन दलों के 'कुल प्रजनन दर (टीएफआर)’ 1.6 ही है जो बच्चों के जन्म होने के समय के अंत में एक महिला से जन्म होने वाले बच्चों की संख्या को मापता है।
16 अगस्त को सिन्हा ने हिंदुस्तान टाइम्स के लिए एक लेख लिखा जिसमें मोदी के भारत में "जनसंख्या विस्फोट" के बारे में चिंता व्यक्त की गई। इस लेख में सिन्हा ने जनसांख्यिकी पर बहस को सांप्रदायिक बनाने के ख़िलाफ़ आगाह किया।
फिर भी विडंबना यह है कि उन्होंने 2001 से 2011 के बीच 16.68% की दर से हिंदुओं के वृद्धि दर की बात कही इसके विपरीत इसी अवधि में मुसलमानों की संख्या 24.64% थी। सिन्हा ने इस लेख में छिपा दिया वह था 1991 और 2001 के बीच मुसलमानों की वृद्धि दर जो 29.5% थी और 2011 तक इसके वृद्धि दर में 4.9% की गिरावट दर्ज की गई थी।
टेबल VIII में 25 में से 9 मुस्लिम सांसदों के तीन या इससे अधिक बच्चे हैं। इसके विपरीत जनसंख्या की समस्या को लेकर मुस्लिमों के बारे में सिन्हा का कई बार बयान आया है।
* कुल 25मुस्लिम सांसद
टेबल IX में दिखाया गया है कि अनुसूचित जाति(एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 32.31% सांसदों के पास तीन या इससे अधिक बच्चे हैं। इनके लिए 131 निर्वाचन क्षेत्रों को आवंटित किया गया जहां से वे ही केवल चुनाव लड़ सकते हैं, इनका सभी सांसदों के मुक़ाबले थोड़ा ज़्यादा प्रतिशत है जिनके तीन या इससे अधिक बच्चे हैं (टेबलI के साथ टेबलIX की तुलना करें)
* एससी और एसटी के कुल 130 सांसद
** बिहार में एक एससी सीट खाली है
सांसदों और उनके बच्चों के बारे में उपरोक्त आंकड़े भारत के जनसंख्या विस्फोट से निपटने के लिए प्रस्तावित उपायों की घिसी-पिटी बात को रेखांकित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अशिक्षा और कम आय के कारण लोग अपने समानांतर धनी लोगों की तुलना में अधिक बच्चे पैदा करते हैं। समाजशास्त्रियों को दो प्रासंगिक प्रश्नों को समझना होगा: क्या सांसदों के पास अपनी रूढ़िवादी मानसिकता के कारण महानगरों में मध्यम वर्गीय परिवारों की तरह अधिक बच्चे हैं? या उनकी संपत्ति उन्हें बड़े परिवारों की मदद करने में सक्षम बनाती है जैसा कि कहा जाता है कि संयुक्त राज्य में हो रहा है।
जब सिन्हा ने अपना बिल पेश किया तो भारत की जनसंख्या वृद्धि की चुनौती से निपटने के लिए 1970 के दशक में स्थापित एक नागरिक संस्था, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ने चेतावनी दी कि "दो-बच्चे के नियम को अपनाने से लिंग के चयनात्मक प्रथाओं और जबरन नसबंदी के चलते महिलाओं पर बोझ बढ़ेगा। इससे जनसंख्या स्थिरीकरण के प्रयासों को झटका लग सकता है क्योंकि यह 1970 के दशक के मध्य में आपातकाल के दौरान हुआ था।”
दो-बच्चों के नियम को लागू करने की किसी भी स्थिति में चाहे वह ज़बरदस्ती का तरीका हो या चुनाव से रोकने का तरीक़ा, देशभक्ति के लिबास में लोकतांत्रिक नहीं हो सकता है।
(अजाज़ अशरफ दिल्ली के पत्रकार हैं। विग्नेश कार्तिक के.आर. किंग्स कॉलेज लंदन में किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट के डॉक्टरेट छात्र हैं।)
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