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पेगासस का खुलासा भारत की ताक़त को कमज़ोर करता है  

हमारा देश जो ख़ुद को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में परिभाषित करता है, वह अपने नागरिकों की ग़ैर-क़ानूनी निगरानी करने के गुनाह की उपेक्षा नहीं कर सकता।
पेगासस का खुलासा भारत की ताक़त को कमज़ोर करता है  

भारत का सत्तारूढ़ निज़ाम जो विश्व गुरु बनने के सपने देख रहा है वह इजरायल की "साइबर-इंटेलिजेंस" कंपनी एनएसओ ग्रुप की सहयोगात्मक जांच से हुए ताजा खुलासे से तेजी से निगरानी के एक बुरे भँवर में धंसता नज़र आ रहा है। ताज़ा निष्कर्षों के अनुसार, 50,000 फोन नंबरों की सूची लीक हुई हैं जिसमें से 1,000 फोन नंबर से अधिकर ग्यारह देशों- यानी भारत, मैक्सिको, अजरबैजान, कजाकिस्तान, हंगरी, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, बहरीन, मोरक्को, रवांडा और टोगो से हैं।

इसके अलावा, भारत को हाल ही में इनमें से कई देशों के साथ अन्य सूचियों में भी शामिल किया गया है, जो देश को धार्मिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र सूचकांकों में बहुत नीचे की तरफ धकेलता है। पिछले साल इन रैंकिंग में भारत समेत कई देश फिसल कर नीचे आ गए थे। इस खबर ने सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं को बहुत परेशान कर दिया, क्योंकि वे जोर देकर कह रहे थे कि भारत अभी भी पूरी तरह से स्वतंत्र और एक जीवंत लोकतंत्र है। जब भी आलोचक भारत में हो रही घटनाओं की तुलना इन ग्यारह देशों में से कई देशों के साथ करते हैं, खासकर खाड़ी के किसी भी देश से, तो भाजपा का कद थोड़ा बढ़ जाता है।

समस्या यह है कि भारत सरकार इन ताज़ातरीन नवीनतम खुलासों का खंडन करने में अधिक व्यस्त है जबकि उसे देश में फोन हैक होने के आरोपों के बारे में सबसे ज्यादा चिंतित होना चाहिए था। इस तरह का इनकार आंशिक रूप से दर्शाता है कि यह दस अन्य देश जो या तो "आज़ाद नहीं" है या फिर "आंशिक रूप से आज़ाद" हैं जैसे देशों के साथ पेगासस सूची में स्थान क्यों साझा कर रहा है, ऐसा एक अमेरिकी संगठन फ्रीडम हाउस द्वारा जारी रैंकिंग के अनुसार पाया गया है। निजता पर ऐसे हमलों से लोकतंत्र कमजोर होता है, इसलिए सरकार को ही इसकी जांच करनी चाहिए। (जैसे कि सरकार ने अप्रैल में भारत को वैश्विक रैंकिंग में अच्छा स्थान दिलाने के लिए एक बेहतर अभ्यास शुरू करने का फैसला किया था।)

इन लीक फोन नंबरों के 1,000 मालिकों में कुछ ऐसे अपराधी भी शामिल हैं, जिन्हें सरकार शायद वैध रूप से ट्रैक कर सकती थी, लेकिन 1,000 नए नंबरों में से 67 ऐसे भारतीयों के नंबर  हैं, जो सरकार की नीतियों का विरोध करते हैं और उपरोक्त अपराधियों जैसा उनमें कुछ भी नहीं – जैसे कि पत्रकार, असंतुष्ट नागरिक, शिक्षाविद, एक्टिविस्ट्स, विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के राजनेता, यहां तक कि सत्ताधारी दल के कुछ (वर्तमान और पूर्व) मंत्री भी इस सूची में शामिल हैं। एक राजनीतिक सलाहकार जो विपक्षी दलों को चुनावी रणनीतियां बनाने में मदद करता है का भी नाम इसमें शामिल है।

इनकार करने से, भारतीय अधिकारी इस बात को साबित कर रहे हैं कि उनके आलोचक सही हैं। सबसे पहले तो एक्टिविस्ट्स और असंतुष्टों के फोन हैकिंग की जांच से इनकार करना निज़ाम के व्यवहार को दर्शाता है जो नागरिक अधिकारों की जरूरत या उनकी रक्षा को स्वीकार नहीं करते हैं। यह अभी निश्चित नहीं है कि किस एजेंसी ने भारत में पेगासस सॉफ्टवेयर खरीदा है, लेकिन एनएसओ का दावा है कि उसके सभी खरीदार और उसके सभी ग्राहक "सरकारें" है। इसे माने तो इसकी खरीदार या तो भारत सरकार है या फिर इसकी कोई आधिकारिक एजेंसियों में से एक है जिसने आक्रामक सॉफ़्टवेयर टूल किट की खरीद की, जो नागरिकों की जासूसी करती है, यह एक ऐसा आरोप है जिसकी पुष्टि या खंडन एक गंभीर जांच से ही की जा सकती है।

इसके अलावा, यदि जासूसी करने की जरूरत सरकारों का एक व्यक्तिपरक फैंसला है, तो भारत और दस अन्य देशों को शासन और अधिकारों के बारे में रिकॉर्ड की रिपोर्ट डेटा पर आधारित हैं। भाजपा के लिए सबसे सबसे कम पसंदीदा देश, सऊदी अरब को, जो पेगासस का इस्तेमाल कर नागरिकों की जासूसी करता है उसे फ्रीडम हाउस ने "आज़ाद देश नहीं" है के रूप में वर्गीकृत किया है। कजाकिस्तान, जिसे स्वतंत्र देश न होने का दर्जा दिया गया है, का हाल के दिनों में असंतोष और नागरिक अधिकारों को दबाने का इतिहास रहा है। इन्ही कुछ कारणों के चलते, मेक्सिको भी "आंशिक रूप से मुक्त" देशों में आता है, एक ऐसा क्लब जिसमें भारत पिछले साल ही शामिल हुआ था। पेगासस प्रोजेक्ट की ताज़ा सूची में शामिल 11 देशों में से हंगरी भी आंशिक रूप से स्वतंत्र देश है क्योंकि सत्ता में बहस और विरोध को दबाने की उसकी अपनी दक्षिणपंथी सरकार है। और अगर स्वीडिश इंस्टीट्यूट वी-डेम के अनुसार रवांडा एक "चुनावी निरंकुशता" है, तो भारत भी है, जो हाल ही में इस पायदान पर फिसल गया है। (साथ ही, प्रोजेक्ट पेगासस सूची में लगभग सभी ग्यारह देश इज़राइल के काफी करीब हैं। कुछ ने हाल ही में इसके साथ राजनयिक संबंध शुरू किए थे, जबकि अन्य, जैसे भारत, ने हाल के वर्षों में आपसी संबंधों को मज़बूत किया था।)

सबूतों, आरोपों या आलोचना के समाने भारत का एक ही सामान्य बचाव है कि वे देश में नियमित रूप से चुनाव होते हैं। मार्च में विदेश मंत्री ने कथित तौर पर यही कहा था: “आप जो कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन इस देश में, कोई भी चुनाव पर सवाल नहीं उठा सकता है। क्या आप उन देशों में ऐसा कह सकते हैं?" वह जिन देशों का जिक्र कर रहे हैं, वे यूके, यूएस और अन्य पश्चिमी देश हैं जहां लोकतंत्र और स्वतंत्रता पर कई रिपोर्टें उत्पन्न होती हैं और जहां लोकतांत्रिक आवाजों का दमन जोर पकड़ रहा है।

हालाँकि, "हम भारत में चुनाव कराते हैं" यह तर्क तीन कारणों से त्रुटिपूर्ण है। वी-डेम रिपोर्ट कहती है कि विश्व की 68 प्रतिशत आबादी अब चुनावी निरंकुशता में जी रही है, जो प्रवृत्ति पिछले तीन दशकों में मजबूत हुई है। इसका मतलब यह है कि विश्व गुरु बनने की बात तो दूर, भारत कम-से-कम मुक्त देश होने की विश्वव्यापी प्रवृत्ति को थामने में असमर्थ रहा है।

दूसरा, चुनाव के बावजूद पहले की तुलना में कम स्वतंत्र होने का मतलब किसी का भी सरकार पर सवाल नहीं उठाना या आलोचना नहीं करना है, भले ही अर्थव्यवस्था डूब रही हो, आवेशपूर्ण नीतियां विचार-विमर्श की जगह ले रही हों और आर्थिक और सामाजिक जीवन में कुप्रबंधन व्याप्त हो। यदि लोगों को विरोध करने की अनुमति नहीं है, तो लोग उन देशों में बेहतर हो सकते हैं जो समान रूप से या अधिक दमनकारी हैं। यह तर्क इस बात के समान है कि जो देश बेहतर बिजली और पानी की आपूर्ति करते हैं, जो बेहतर सड़कों और इमारतों वाले देश हैं, या जो साफ-सुथरे या अधिक सुरक्षित हैं, लेकिन जहां नागरिक शासन के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकते हैं, वे भारत से बेहतर हैं। दूसरे शब्दों में, यह आम लोगों को आराम और स्वतंत्रता के बीच एक गलत विकल्प देता है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि न केवल लोग, बल्कि नेता-यहां तक कि जो नेता आज भारत में हैं उन्होने देश के लोकतंत्र की हद तय कर दी है। भाजपा नेता कभी भी खुले तौर पर यह नहीं कहते कि भारत को नागरिकों की स्वतंत्रता से समझौता करना चाहिए। हालांकि कुछ लोगों ने कहा है कि भारत में "बहुत अधिक" लोकतंत्र है, अधिकांश नेता गर्व व्यक्त करते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसलिए, जब धार्मिक स्वतंत्रता पर अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग (USCIRF) की रिपोर्ट ने पिछली गर्मियों में कहा था कि भारत को "सीपीसी" या विशेष चिंता वाले देश की सूची में होना चाहिए, तो भारतीय निज़ाम  इनकार और आक्रोश के मोड में चला गया था।

विदेश मंत्री एस॰ जयशंकर ने उक्त आरोपों के संदर्भ में कहा था, "जब आप शासन के वैध साधनों का इस्तेमाल करके और जमीन पर काम करके अच्छी तरह से शासन करना शुरू करते हैं, तो इसे स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में चित्रित किया जाता है," उक्त बातें भाजपा शासन के दौरान भारतीय लोकतांत्रिक स्वतंत्रता में आई कमी के आरोप के बारे में कही गई थी। ऐसा तब भी हुआ जब अमेरिकी किसान संगठनों और यूके की संसद के सदस्यों ने भारत में किसान आंदोलन के प्रति सरकार के जायज रुख न अपनाने पर सरकार की आलोचना की थी। जब इस वसंत ऋतु में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक वैश्विक युवा-उन्मुख आंदोलन भारत में तैयार हुआ था, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देकर कहा था कि भारतीय "चाय और योग" को कमजोर करने की विश्वव्यापी साजिश चल रही है, जिसमें भारत के विपक्षी दल भी शामिल हैं। (आदतन, जो लोग सत्ता पक्ष के करीबी हैं अक्सर एक ही बात कहते हैं कि ऐसे असंतुष्टों को "पाकिस्तान चले जाना चाहिए। विडंबना यह है कि आज की तारीख में दोनों देश इस मामले में एक ही स्थान पर हैं।)

भारत के राजनीतिक ढांचे में भाजपा जिस किस्म के गर्व का दावा करती है, उसे देखते हुए आंतरिक लोकतांत्रिक मानदंडों पर लड़खड़ाना एक स्व-घोषित मिशन का लड़खड़ाना है। भारतीयों को यह बताने के लिए कि देश नियमित चुनाव कराने के बावजूद लोकतंत्र के आम मानदंडों पर खरा नहीं उतरता है, के लिए किसी "पश्चिमी देश की रिपोर्ट" की जरूरत नहीं है। भारतीय खुद इस बात को साल दर साल अपनी सरकारों को बताते रहे हैं। अब यह कहना बहुत बुरा लगता है, क्योंकि भारत सभी त्रुटियों के बावजूद बहु-जातीय लोकतंत्र होने के रिकॉर्ड और प्रतिष्ठा का दावेदार रहा है, जिसे अब मिटाया जा रहा है।

इस लेख को अंग्रेजी में इस लिंक के जरिय पढ़ा जा सकता है

Pegasus Revelations Undermine Soft Power of India

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