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ब्रह्मांड की समझ बेहतर बनाने के लिए हुए काम पर मिला 2019 का नोबेल पुरस्कार

संयुक्त पुरस्कार में जेम्स पीबल्स हिस्सेदार हैं, जिन्होंने ब्रह्मांड और आकाशगंगाओं के बनने पर ठोस अंदाजे लगाए। वहीं माइकल मेयर और डिडिएर क्यूलॉज को सूर्य जैसे तारे के चक्कर लगाने वाले एक्सोप्लानेट की पहली बार खोज के लिए नोबेल मिला।
Physics Nobel 2019
Image courtesy: Firstpost

इस बार के नोबेल पुरस्कार संयुक्त विजेताओं में एक खगोलभौतिकीविद हैं, जिन्होंने बिग बैंग के तत्वों के ब्रह्मांड में बिखरने से संबंधित एक सिद्धांत दिया। उनके साथ दो खगोलवेत्ताओं को भी पुरस्कार मिला है। इन्होंने यह दिखाया कि कैसे सूर्य की तरह, दूसरे तारों के आसपास भी ग्रह घूम रहे हैं। इन ग्रहों का नाम एक्सोप्लानेट है।

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर और खगोलभौतिकीविद जेम्स पीबल्स को शुरूआती ब्रह्मांड और आकाशगंगा के निर्माण पर किए काम के लिए नोबेल मिला है। उनके साथ जेनेवा यूनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर और खगोलभौतिकीविद माइकल मेयर और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की केवेंडिश लेबोरेटरी के एस्ट्रोफिजिसिस्ट डिडिएर क्यूलॉज को भी पुरस्कृत किया गया है। उन्होंने सबसे पहले सूर्य के जैसे ही एक तारे के आसपास चक्कर लगाने वाले ग्रह की खोज की थी।

ऐसा लगता है कि दोनों शोध के विषयों में काफी अंतर है। लेकिन दोनों में एक समानता है। दोनों ब्रह्मांड की बेहतर समझ बनाने और इसमें हमारे स्थान के विषय पर केंद्रित हैं। नोबेल चयन समिति में शामिल उल्फ डेनियलसन के मुताबिक,‘उन्होंने सच में ब्रह्मांड में हमारी जगह के बारे में बहुत जरूरी चीजें बताई हैं।’

पीबल्स के जीवन भर की शोध

जेम्स पीबल्स पिछले पांच दशकों से ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में लगे हैं। 1960 के दशक में अपनी शुरूआती शोध के वक्त ब्रह्मांड के बारे में ज्यादातर चीजें केवल अंदाजा ही थीं, चाहे वो ब्रह्मांड की उम्र हो या ब्रह्मांडीय दूरी। उस वक्त बहुत कम प्रेक्षण ऐसे थे, जिनमें ब्रह्मांड की प्रवृत्ति के बारे में सामान्य अंदाजा लगाया गया हो। उसके बाद से ही पीबल्स ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में एक ठोस गणितीय आधार का योगदान कर चुके हैं।

1964 में दो रेडियो अंतरिक्ष विज्ञानी, अर्नो पेंजियास और रॉबर्ट विल्सन ने बताया कि माइक्रोवेव किरणें पूरे ब्रह्मांड में फैली हैं। 1978 में उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया था। इस खोज ने उन्हें तब तक बहुत हैरान किया जब तक पीबल्स समेत दूसरे सिद्धांतवादियों की गणना से उनका सामना नहीं हुआ। जेम्स पीबल्स और उनके साथियों ने अंदाजा लगाया कि बिग बैंग से माइक्रोवेव्स ब्रह्मांड की पृष्ठभूमि में फैलीं। उनकी खोज से पता चला कि बिग बैंग के चार लाख साल के बाद ब्रह्मांड ठंडा होने लगा और हाइड्रोजन, हीलियम के अणु बनना शुरू हुए। जिन माइक्रोवेव की खोज हुई, वो ब्रह्मांड के ठंडे होने के बाद बचे अवशिष्ट हैं। यह एक अतुल्नीय सिद्धांत का अंदाजा था।  

यह माइक्रोवेव सभी दिशाओं में एक जैसी हैं, इनका तापमान शून्य से थोड़ा ही ऊपर है। पीबल्स ने गणना कर बताया कि जिस भी तरफ माइक्रोवेव्स एकसमान हों, वहां धीमा उतार-चढ़ाव होगा. यही उतार-चढ़ाव उस क्षेत्र को बताते हैं जहां पदार्थ इकट्ठें होंगे और तारों का निर्माण करेंगे, जो आकाशगंगाओं के समूहों को बनाएंगे। 1980 की शुरूआत में पीबल्स ने विचार दिया कि ब्रह्मांड ‘ठंडे गहरे पदार्थों’ से भरा है। यह अनजाने पदार्थ सामान्य पदार्थों से मेल नहीं करते। लेकिन इनके बेहद तेज गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से आकाशगंगाओं और उनके समूहों का निर्माण हुआ।

1990 के आसपास पीबल्स के अंदाजों को ठोस प्रेक्षण मिलने लगे। वैज्ञानिकों ने गणना कर बताया कि माइक्रोवेव के कुछ उतार-चढ़ावों और ‘कॉसमिक बैकग्राउंड’ नाम के नासा मिशन के आंकड़ों से पता चलता है कि पीबल्स सही थे। ब्रह्मांड न केवल फैल रहा है, बल्कि इसकी गति भी तेज हो रही है। इस खोज के लिए 2011 का नोबेल दिया गया था। पीबल्स की गणना में भी इस बात का अंदाजा लगाया गया था।  

एक्सोप्लानेट की खोज

खगोलविदों में लंबे समय तक यह विश्वास बना रहा कि सूर्य की तरह के दूसरे तारे भी हैं, जिनके पास खुद के चक्कर लगाने वाले ग्रह हैं। यह विचार सबसे पहले पच्चीस साल पहले आया, लेकिन इसके पुख्ता सबूत 1995 तक नहीं मिले। 1995 के अक्टूबर में माइकल मेयर और डिडएर क्यूलॉज ने ऐलान किया कि उन्होंने हमारी ही आकाशगंगा में गुरू की तरह गैसे से बने औऱ सूर्य जैसे तारे के चक्कर लगाते ग्रह की खोज की है। फ्रांस की प्रोवेंस ऑब्जर्वेटरी में खुद के बनाए औजारों से वे इस एक्साप्लानेट को देखने में कामयाब रहे। यह जिस तारे के चक्कर लगाता है, वह हमारे सूर्य की तरह ही है और 51 प्रकाश वर्ष दूर है।  

इस खोज से अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति आ गई और तबसे 4,000 से ज्यादा एक्सोप्लानेट की खोज हो चुकी है। लेकिन पहली बार इसकी खोज करना बेहद मुश्किल काम था। 51 पेगासी बी हमारे सौरमंडल के गुरू के जितना बड़ा है. अंदाजा लगाया गया कि यह अपने तारे के आसपास ज्यादा लंबा चक्कर लगाता होगा। लेकिन आश्चर्यजनक तौर पर पेगासी बी अपने तारे का चक्कर सिर्फ चार दिन में लगा लेता है। बाद में इस नतीजे पर पहुंचा गया कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह अपने तारे के बेहद पास है। यह शुरूआती बिंदु था, जिससे दूसरे सौरमंडलों के बारे में हमारी नई समझ बनी।

इन दोनों शोधों ने ब्रह्मांड की समझ के बारे में बड़े बदलाव किए हैं। जहां पीबल्स के काम से पता चला कि कैसे बिग बैंग के बाद ब्रह्मांड का विकास हुआ, वहीं क्यूलॉज की अज्ञात ग्रह की खोज ने सौरमंडलों के बारे में हमारी जानकारी का फलक बढ़ाया।

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