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गालियां पौष्टिक जो होती हैं!

यह सरकार जी ने अपने दौरे में एक जनसभा को संबोधित करते हुए बताया कि उनको रोज़ बहुत सारी गालियां खानी पड़ती हैं और उनको गालियां खाने की आदत ही पड़ गई है। यही है उनकी उम्दा सेहत का राज़। वे रोज़ाना दो-तीन किलो गालियां तो खाते ही हैं। और ये गालियां पौष्टिक होती हैं।
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सरकार जी स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। अच्छा है, बहुत ही अच्छा है। हम तो सोचते रहे हैं कि उनके स्वास्थ्य का राज़ है सादा जीवन, उच्च विचार। वे भरपूर नींद लेते हैं। अगर देश में नहीं मिले तो विदेश में ले लेते हैं, और तो और हवाई जहाज में ही ले लेते हैं। मतलब कहीं भी ले लेते हैं। स्वस्थ जीवन के लिए किसी भी मानव के लिए छः से आठ घंटे की नींद आवश्यक होती है।

फिर सरकार जी पौष्टिक भोजन भी ग्रहण करते हैं। लाखों रुपए का तो मशरूम ही खा जाते हैं हर महीने। बाकी का पौष्टिक खाना अलग। व्यायाम और योग भी करते हैं। और कोई चिंता भी तो नहीं है। लोग मरें, चीन देश की धरती पर कब्जा करे, महंगाई बढे़, रोज़गार घटें, माथे पर कोई शिकन तक नहीं। ऐसा आदमी स्वस्थ जीवन नहीं जिएगा तो कौन जिएगा! ऐसे आदमी को गालों की लाली के लिए रूज़ की जरूरत नहीं पड़ेगी।

पर यह हमारा मानना है, सरकार जी का नहीं। हम तो यही सोचते हैं कि पौष्टिक आहार, व्यायाम, चिंतामुक्त जीवन और अच्छी नींद, स्वस्थ रहने के लिए ये ही जरूरी हैं और सरकार जी को ये सब उपलब्ध हैं। परन्तु सरकार जी यह नहीं मानते हैं। सरकार जी का मानना तो कुछ और ही है। सरकार जी मानते हैं कि उनके स्वस्थ जीवन की वजह है उनके द्वारा रोज़ खाई जाने वाली गालियां। गालियां पौष्टिक जो होती हैं।

गालियां पौष्टिक होती हैं, यह सरकार जी का ही कहना है। सरकार जी ने अपने तेलंगाना दौरे में एक जनसभा को संबोधित करते हुए बताया कि उनको रोज बहुत सारी गालियां खानी पड़ती हैं और उनको गालियां खाने की आदत ही पड़ गई है। यही है उनकी उम्दा सेहत का राज। वे रोजाना दो तीन किलो गालियां तो खाते ही हैं। और ये गालियां पौष्टिक होती हैं। सरकार जी ने उस दिन जनता के सामने जो भी कुछ कहा उसका लब्बोलुबाब यही था।

यह रिसर्च सरकार जी की लैब में ही हुई है कि गालियां पौष्टिक होती हैं। यह खोज सरकार जी की उसी लैब में हुई है जिस लैब में सरकार जी ने गंदे नाले वाली गैस पर चाय बनाने की, बादलों की ओट में हवाई जहाजों के रडार से छुपने की तथा अन्य कई वैज्ञानिक खोजें की हैं।

सरकार जी की लैब में हुई यह खोज अभी अधूरी ही है। यह तब तक अधूरी है जब तक इन प्रश्नों का उत्तर नहीं मिल जाता है कि गालियां पुराने जमाने से ही पौष्टिक होती आई हैं या फिर अभी 2014 के बाद ही पौष्टिक हुई हैं? और यह भी कि क्या सिर्फ वही गालियां पौष्टिक हैं जो सरकार जी खाते हैं या फिर सारी की सारी गालियां ही पौष्टिक हैं? इसके अलावा यह भी कि गालियां खाना ही पौष्टिक है या फिर गालियां देना भी पौष्टिक होता है?

एक बार को मान लेते हैं, रिसर्च के लिए ही मान लेते हैं कि ये गालियां खाना पुराने जमाने से ही पौष्टिक होता था। पुराने जमाने में भी गालियां खाने से लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहता था। दलित लोग, पिछड़े वर्गों के लोग, गरीब लोग तो पुराने जमाने से ही किलो या सेर के हिसाब से नहीं, मनों या क्विंटलों के हिसाब से गाली खाते रहे हैं परन्तु वे तो फिर भी पतले दुबले होते थे। इन सब वर्गों में शायद ही कोई स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट दिखाई देता था। अब देश का संविधान बन जाने के बाद इनको दी जाने वाली गालियां कुछ कम हुई हैं तो इन लोगों में भी कुछ स्वस्थ लोग दिखाई देने लगे हैं। वैसे सरकार जी के साथी इस संविधान को बदल कर पुराना संविधान लागू करना चाहते हैं जिससे कि दलित और पिछड़े गालियां खाते रहें और स्वस्थ रहें।

जैसे गालियां खाने वाले पुराने जमाने से मौजूद हैं वैसे ही गालियां देने वाले भी उसी समय से हैं। अगर कोई गालियां देता ही नहीं तो दूसरा गालियां खाता कहां से। पाया गया है कि गालियां देने वाले, गालियां खाने वालों के मुकाबले हमेशा से ही, और हमेशा ही अधिक तंदरुस्त रहे हैं। गालियां देने वाले ये सभी सवर्ण पंडित-पुजारी, सेठ-साहूकार हमेशा से ही मोटी तोंद वाले, गुलाबी गाल वाले होते हैं। दुर्बल तो ये कहीं से नहीं दिखते थे। इससे तो यही सिद्ध होता है कि गालियां देना, गालियां खाने से अधिक पौष्टिक होता है। सरकार जी की रिसर्च चाहे जो मर्जी कहे, परन्तु हमारी रिसर्च तो यही कहती है कि गालियां खाने से अधिक पौष्टिक गालियां देना होता था और होता है।

सरकार जी भी यह जानते हैं। सरकार जी हम से छुपा रहे हैं। असलियत में तो सरकार जी की रिसर्च भी यही कहती है कि गाली देने वाला अधिक मोटा ताजा होता है। गालियां देना, गालियां खाने से अधिक पौष्टिक होता है। इसीलिए तो सरकार जी जितनी गालियां खाते हैं, उससे कहीं अधिक, क्विंटलों अधिक गालियां देते हैं। हर सभा में देते हैं। देश में, विदेश में, सब जगह देते हैं। पिछली सभी सरकारों को देते हैं। सभी विपक्षियों को देते हैं। और यही है सरकार जी के अच्छे स्वास्थ्य का राज़।

सरकार जी जो यह फूल कर कुप्पा हुए हैं, ये जो गुलाबी गाल हैं, ये गालियां खाने से नहीं, गालियां देने से हुए हैं। सरकार जी अपने स्वास्थ्य के इस राज़ को जानते हैं। वह तो अपनी झूठ बोलने की आदत की वजह से ही गाली देने की नहीं, गाली खाने की बात कह रहे हैं। वरना तो सरकार जी हर समारोह में, चाहे वह किसी पानी के जहाज के जलावतरण का हो, या फिर किसी सड़क के उद्घाटन का, या फिर किसी विदेशी मेहमान के स्वागत का, पिछली सरकारों को पानी पी पी कर कोसते हैं। विपक्षियों को क्विंटलों गालियां सुनाते हैं। स्वर्ग सिधारे लोगों को भी गाली देने से नहीं बख्शते हैं। गाली खाना नहीं, गाली देना है सरकार जी के अच्छे स्वास्थ्य और गुलाबी गालों का राज़।

पर आप यह मत सोच लेना कि गाली देना आपके लिए भी पौष्टिक ही होगा। गाली देना हर एक के लिए पौष्टिक नहीं होता है। आपने गाली दी, और अगर सरकार जी को दी, भले ही सरकार जी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ही दी हो, आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होगा। आपके पीछे ईडी पड़ सकती है, सीबीआई पड़ सकती है। आप पर यूएपीए लग सकता है। आपकी जिंदगी जेल में सड़ सकती है।

सरकार जी मेरे, हमारे, हम सब के सरकार जी हैं। देश के सरकार जी हैं। वे सदैव स्वस्थ रहें। चाहे गाली खा कर रहें या गाली दे कर रहें। कैसे भी रहें, स्वस्थ रहें, बस यही कामना है।

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