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सरकार जी का ऐलान: घर घर कार, हर घर कार!

सरकार जी ने 'घर घर कार और हर घर कार' की घोषणा की। लोगों को भी ठीक लग रहा था। उधर सरकार जी ने लोगों को कार में उलझा कर अगले ही पखवाड़े में तीन चार बार में पेट्रोल डीजल के दाम दस रुपए और बढ़ा दिए। दो बड़ी सरकारी कंपनियों को अपने मित्रों को बेच दिया। कुछ लाख लोगों की नौकरियां छूट गई। बड़े उद्योगपतियों का तीन लाख करोड़ का बैंक लोन माफ कर दिया। पर लोग मुफ्त में मिलने वाली कार के रंग और ब्रांड में ही उलझे रहे थे।
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साभार: cartoonistnituparna.org

यह कथा उस समय की है जब जम्बूद्वीप के भारत खंड में सरकार जी नाम के एक राजा का शासन होता था। बात शक संवत 1943, विक्रम संवत 2079, अर्थात सन् 2022 की है। उस समय हिजरी संवत भी होता था पर उस काल में हिजरी संवत की बात करना देशद्रोह माना जाता था। देश में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। आम जनता महंगाई से परेशान थी। गरीबी अपने चरम पर थी और बेरोज़गारी भी। ऐसे में राजा सरकार जी ने दीवाने खास की एक खास मीटिंग बुलाई।

दीवाने खास, अर्थात मंत्रीमंडल की मीटिंग। दीवाने खास की मीटिंग सरकार जी सलाह मशविरे के लिए नहीं बुलाया करते थे बल्कि कुछ खास ऐलान करने के लिए ही बुलाया करते थे। सरकार जी सलाह मशविरा तो अपने एक खास शागिर्द और कुछ व्यापारी दोस्तों के साथ ही कर लिया करते थे और सारे फैसले उनकी सलाह से ही करते थे। दीवाने खास की मीटिंग तो बस उन फैसलों को बताने के लिए ही बुलाई जाती थी या कई बार तो सिर्फ यह बताने के लिए कि एक खास फैसला ले लिया गया है।

तो उस दिन भी तय समय पर राजमहल के खास कक्ष में दीवाने खास की मीटिंग शुरू हुई। राजा सरकार जी के राज दरबार में बहुत सारे रत्न होते थे। राजा विक्रमादित्य और अकबर के समय में रत्नों की कमी होती थी इसलिए वे लोग नौ रत्नों से ही काम चला लेते थे। पर राजा सरकार जी के समय में रत्नों की कोई कमी नहीं थी इसलिए राजदरबार में रत्न ही रत्न भरे हुए थे। राजदरबार में ही नहीं, राज्य में भी चारों ओर रत्न बिखरे पड़े थे जो बात बात पर सरकार जी की जय जयकार करते थे।

हां तो, ठीक समय पर दीवाने खास की मीटिंग शुरू हुई। राजा सरकार जी पधारे। उनकी अद्भुत छवि देखते ही बनती थी। चकाचक सफेद ड्रेस और उस पर नीले रंग की जैकेट। सिर पर राजस्थानी मुकुट। सभी दरबारी सरकार जी को निहारते ही रह गए। सभी दरबारियों और मीटिंग को कवर करने आए मीडिया के लोगों के मुंह से एक साथ निकला, 'वाह! जी वाह!'।

सरकार जी ने मीटिंग शुरू की। सरकार जी ने दरबारियों को बताया कि हमने बहुत समय से जनता के लिए कोई घोषणा नहीं की है। अब हमारा मन कर रहा है कि जनता के लिए कोई नई घोषणा कर ही दें। अभी सरकार जी ने इतना ही कहा था कि सरकार जी उठ कर चले गए। सभी सभासद समझ गए कि सरकार जी का ड्रेस बदलने का समय हो गया है। सरकार जी दिन में चार पांच बार तो ड्रेस बदला ही करते थे। जल्दी ही सरकार जी नई ड्रेस पहन वापस लौटे। सभासदों को ही नहीं, पूरे देश की जनता को आश्चर्य होता था कि सरकार जी इतनी जल्दी ड्रेस कैसे बदल लेते हैं। सरकार जी ने अबकी बार नीले रंग की शानदार ड्रेस और उस पर केसरी जैकेट पहनी हुई थी। और सिर पर सिखों की पगड़ी जैसा मुकुट। इस बार भी सरकार जी खूब फब रहे थे। उन्हें देखते ही बनता था।

खैर, सरकार जी ने आगे बोलना शुरू किया। "हां तो, हमने बहुत समय से कोई नई घोषणा नहीं की है। हम कल दीवाने आम में आम जनता के लिए एक बहुत ही खास घोषणा करने वाले हैं। सभी दरबारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने अपने मंत्रिमंडल के सभी कार्यों को छोड़ कर अभी ही विभिन्न राज्यों के लिए निकल जाएं और हमारी दीवाने आम की मीटिंग के बाद सभी राज्यों में मीटिंग कर जनता को हमारी उसमें हुई नई घोषणा के बारे में समझाएं"।

सभी मंत्री सरकार जी के निर्देशानुसार रात में ही अपने अपने राज्यों के लिए निकल पड़े। किसी भी रत्न में इतना साहस नहीं था कि वह सरकार जी से उस घोषणा के बारे में कुछ भी पूछ सके। मंत्रियों को मंत्रीमंडलीय काम तो कुछ होता नहीं था। सभी मंत्रालयों का सारा कार्य सरकार जी स्वयं ही देखते थे और मंत्री अपने नहीं, दूसरों के मंत्रालयों के बारे में प्रेस कांफ्रेंस करते रहते थे। तो मंत्री इस काम से खुश थे कि चलो, कुछ तो करने को मिला। कम से कम, नाम तो अखबारों में छपेगा।

खैर अगले दिन दीवाने आम सजा। बहुत दूर दूर से सरकारी बसों में लाद कर लोग लाए गए। वैसे थोड़े बहुत लोग सरकार जी को देखने अपने आप भी पहुंच गए थे। सरकार जी दीवाने आम में सज धज कर पहुंचे। सरकार जी को पता था कि लोग उनकी बातों से अधिक उनके पहनावे में रुचि रखते हैं। आज सुबह उन्होंने केसरिया रंग की ड्रेस पहनी हुई थी और उस पर पीले रंग की जैकेट खूब सज रही थी। मुकुट के स्थान पर उन्होंने किसानों द्वारा पहने जाने वाला साफा बांधा हुआ था। उन्हें बताया गया था कि आम लोगों की इस सभा में किसानों को अधिक लाया जाएगा।

सरकार जी ने हमेशा की तरह जनता को बताया कि भाईयों और बहनों, किस तरह पिछले राजाओं ने देश को लूट खाया था। और वे अब किस तरह से जनता की सेवा कर रहे हैं। जनता की सेवा के लिए वे दिन रात मेहनत कर रहे हैं। और अब उन्होंने निश्चय किया है कि वे सन् 2025 की दीपावली तक हर घर में कार देंगे। सरकार जी ने बताया कि इस योजना को अभी इसी दीपावली से गुजरात से लॉन्च किया जाएगा। इस योजना का नाम होगा 'प्रधानमंत्री हर घर चौपहिया योजना'। दीपावली वाले दिन सरकार जी स्वयं अहमदाबाद में सौ लोगों को कार की चाबी सौंपेंगे। 2025 तक हर घर कार होगी। उसके बाद किसी को पैदल चलने की आवश्यकता नहीं होगी। किसी को पदयात्रा की इजाजत नहीं होगी। हर परिवार के पास अपनी कार होगी। सरकार द्वारा दी गई कार। सरकार जी द्वारा दी गई कार। सभा में नारे लगाए गए। 'घर घर कार'। 'हर घर कार'।

अगले दिन से सारे दरबारी जनता को यह समझाने में लग गए कि इतना ऐतिहासिक कार्य तो पहली बार किया जा रहा है। अब सरकार जी की कृपा से हर घर में कार होगी। अब पैदल चलने वाला भी कार चलाएगा। साईकिल सवार भी कार की सवारी करेगा। अब पदयात्रा की जरूरत नहीं रहेगी। अब होगी तो सिर्फ और सिर्फ रथयात्रा होगी।

कुछ लोग पूछ्ना चाहते थे कि कार में पेट्रोल कौन डलवाएगा। क्या कार की हालत भी उन गैस सिलेंडरों जैसी होगी जो आजकल घरों में खाली पड़े हैं। या फिर अपने गांव में लगे उन बिजली के खंबों की तरह से होगी जिन पर तार तो लग गए हैं पर बिजली एक ही बार आई है। या फिर उस ऐलान की तरह होगी जिसमें सरकार जी ने कहा था कि अब हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज की सवारी करेगा और उसके बाद लोगों की चप्पल भी छिन गई थी। पर पूछ नहीं सके क्योंकि सरकार जी से कुछ भी पूछना देशद्रोह हो चुका था।

जो लोग कुछ पूछ्ना चाहते थे, जिनके पास कोई प्रश्न था, जो सरकार जी को 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के, सबको घर देने के वायदे की याद दिलाना चाहते थे उन्हें देशद्रोही, अर्बन नक्सल, आतंकवादी घोषित कर दिया गया था। बाकी लोग कार की कल्पना में ही डूब गए थे। हर नुक्कड़, चौराहे, पान की दुकान, चाय के अड्डे पर बेरोज़गारी, महंगाई, गरीबी, भुखमरी की नहीं, कार की ही चर्चा होने लगी। किसी को लाल रंग की कार चाहिए थी तो किसी को सफेद। कोई यह जानना चाहता था कि क्या सरकार जी द्वारा दी गई कार ही लेनी होगी या फिर अपनी ओर से कुछ पैसे डाल अपनी पसंद की कार ले सकेंगे। अब हर तरफ बस कार की ही चर्चा थी।

जब से 'घर घर कार और हर घर कार' की घोषणा हुई थी तब से पहले से ही चरमराती सरकारी बस सेवा और भी चरमरा गई थी। राज्य सरकारों ने सार्वजनिक परिवहन पर खर्च करना ही बंद कर दिया था। लोगों को भी ठीक लग रहा था। ठीक ही तो है, जब सब के पास कार होगी तो फिर सरकारी बस का क्या काम? आखिर सरकार जी जो करते हैं, भले के लिए ही तो करते हैं। यह जो सार्वजनिक परिवहन ठप्प किया जा रहा है, वह भी भले के लिए ही तो है। ऐसे ही एंबुलेंस, जैसी भी, जितनी भी थीं, हटा लीं गईं थीं। अब मरीज अस्पताल सरकार जी द्वारा दी गई कार में ही तो आएगा। ऐसे में एंबुलेंस की क्या जरूरत। जितनी देर एंबुलेंस का इंतजार करेगा, उतनी देर में तो मर नहीं जाएगा!

गली मौहल्ले में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त ड्राइविंग स्कूल खुल गए, जो पंद्रह दिन में वर्ल्ड क्लास ड्राइविंग ट्रेनिंग विद लाइसेंस का वायदा कर रहे थे। युवक और युवतियां पढ़ाई-लिखाई छोड़, नौकरी की तैयारियों की कोचिंग छोड़, ड्राइविंग स्कूल के बाहर लाईनों में लग गए थे। वैसे भी सरकार जी के कार्यकाल में पढ़ाई-लिखाई का कोई लाभ तो था नहीं। हां, कोचिंग का धंधा खूब फल-फूल रहा था। बीए में एडमिशन के लिए भी बारहवीं पास कर कोचिंग लेनी पड़ रही थी। तो ड्राइविंग की भी कोचिंग शुरू हो गई।

उधर सरकार जी ने लोगों को कार में उलझा कर अगले ही पखवाड़े में तीन चार बार में पेट्रोल डीजल के दाम दस रुपए और बढ़ा दिए। दो बड़ी सरकारी कंपनियों को अपने मित्रों को बेच दिया। कुछ लाख लोगों की नौकरियां छूट गई। बड़े उद्योगपतियों का तीन लाख करोड़ का बैंक लोन माफ कर दिया। पर लोग मुफ्त में मिलने वाली कार के रंग और ब्रांड में ही उलझे रहे थे।

बताया जाता है कि सरकार जी इसी तरह से लोगों को उलझा कर, बिना कुछ भी सुलझाए, लम्बे समय तक शासन करते रहे। उनके शासनकाल में हुए फैसले आज भी शोध का विषय हैं।

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