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ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा से भी ज़्यादा भाजपा दिखने की राजनीति और थके-हारे नेताओं का संसदीय बोर्ड

हर रोज़ की भागदौड़ में कुछ ऐसी ख़बरें छूट जाती हैं, जिन्हें जानना ज़रूरी होता है। इसी लिए वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन सप्ताह के अंत में आपके लिए लाते हैं ऐसी ही ख़बरों का ब्योरा, अपनी पैनी नज़र के साथ— ख़बरों के आगे-पीछे।
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फ़ाइल फ़ोटो।

लगता है आम आदमी पार्टी ने तय कर लिया है कि उसे भाजपा ब्रांड हिंदुत्व की राजनीति ही करनी है। इसीलिए अब वह मुस्लिम विरोधी राजनीति में भाजपा सहित तमाम हिंदुवादी संगठनों से बत लेने का प्रयास कर रही है। दिल्ली में रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों के मामले में आम आदमी पार्टी ने जो रुख अख्तियार किया है वह हैरान करने वाला है। पार्टी के विधायक और प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने भाजपा से आगे बढ़ कर इस बात का विरोध किया कि केंद्र सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को फ्लैट देकर उसमें रखने जा रही है। असल में बुधवार को केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्री हरदीप पुरी ने एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने कहा कि बक्करवाला में बने ईडब्ल्यूएस फ्लैट्स मे रोहिंग्याओं को रखा जाएगा। हालांकि थोड़ी देर बाद ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया कि उनको वहां रखने का सरकार का कोई इरादा नहीं है और वे जहां हैं वहीं रहेंगे। लेकिन भारद्वाज ने इसे बड़ा मुद्दा बनाते हुए आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने ही इन घुसपैठियों को यहां रखा है और अब वह उन्हें बसाने जा रही है। गौरतलब है कि रोहिंग्या शरणार्थियों का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवता का मामला माना जा रहा है लेकिन आम आदमी पार्टी उनको घुसपैठिया मान कर तत्काल बाहर निकालने के पक्ष में है।

इसी तरह 15 अगस्त को बिलक़ीस बानो का मामला आया। गुजरात में 2002 के नरसंहार के समय गर्भवती बिलक़ीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनकी तीन साल की बच्ची सहित परिवार के एक दर्जन लोगों की हत्या कर दी गई थी। उस मामले में दोषी ठहराए गए लोगों को गुजरात सरकार ने समय से पहले ही जेल से रिहा कर दिया गया। कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया और सवाल उठाए लेकिन अरविंद केजरीवाल सहित सभी आप नेताओं ने चुप्पी साधे रखी। यह आप की भाजपा से भी ज्यादा भाजपा बनने की राजनीति है।

थके-हारे नेताओं का संसदीय बोर्ड

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने के बाद पार्टी में एक मार्गदर्शक मंडल बनाया गया था, जिसमें पार्टी के वयोवृद्ध नेताओं को जगह दी गई। हालांकि उसमें नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह भी हैं लेकिन माना यह गया कि रिटायर नेताओं को इस मंडल मे जगह मिलेगी। पार्टी ने 75 साल की उम्र में नेताओं को सक्रिय राजनीति से रिटायर करना भी शुरू किया, लेकिन हाल ही में पार्टी के संसदीय बोर्ड का जिस तरह से गठन हुआ है उससे लगता है कि दोनों सिद्धांतों को पार्टी ने अपनी सुविधा के हिसाब से स्थगित कर दिया है। मार्गदर्शक मंडल में तो कोई नहीं जा रहा है उल्टे संसदीय बोर्ड को रिटायर नेताओं से भर दिया गया है। पिछले दिनों 79 वर्षीय बीएस येदियुरप्पा ने सक्रिय राजनीति से रिटायर होने का ऐलान किया लेकिन फिर भी भाजपा ने उनको संसदीय बोर्ड में जगह दे दी। इसी तरह 76 वर्ष के हो चुके मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया भी अब संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं।

संसदीय बोर्ड में 70 वर्षीय पूर्व आईपीएस इकबाल सिंह लालपुरा को भी जगह मिली है, जो कि सक्रिय राजनीति से लगभग रिटायर हो चुके हैं। भाजपा को पंजाब की राजनीति मे पैर जमाना है और उसे एक सिख चेहरे की जरूरत है, जो कि किसान आंदोलन के बाद ज्यादा महसूस की जा रही है। इसलिए लालपुरा को जगह मिल गई।

हरियाणा की सुधा यादव भी रिटायर नेता हैं। उन्होंने पहली और आखिरी बार 1999 में लोकसभा चुनाव जीता था। उसके बाद वे 2004 और 2009 में लोकसभा का चुनाव हार गईं। बाद में किसी चुनाव में टिकट नहीं मिला लेकिन अब सीधे संसदीय बोर्ड में जगह मिल गई।

ईडी और सीबीआई के बाद अब जूता भी!

ऐसा लग रहा है कि विपक्षी नेताओं छवि खराब करने में अब केंद्रीय एजेसियां अकेले कामयाब नहीं हो पा रही है। ईडी और सीबीआई की जांच पर अब विपक्षी पार्टियां घबराने, डरने या शरमाने की बजाय इसे अपनी उपलब्धि बताने लगी हैं। इसीलिए अलग-अलग राज्यों में विपक्षी नेताओं पर जूता चलवाने का अभियान शुरू करवाया गया है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के दो नेताओं पर जूते चले हैं। जूता फेंकने वाले लोग भाजपा से जुड़े बताए गए हैं। इसी तरह तमिलनाडु में भी एक नेता पर जूता चला है और उस मामले में भी भाजपा के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है।

पिछले दिनों ममता बनर्जी की सरकार के मंत्री पार्थ चटर्जी गिरफ्तार हुए और उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर पर ईडी ने छापा मारा तो 50 करोड़ से ज्यादा की नकदी बरामद हुई। उसके एक दिन बाद जब पार्थ चटर्जी को मेडिकल जांच के लिए ले जाया जा रहा था तब एक महिला ने उन पर जूता फेंका। इसके कुछ दिन बाद तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेता अनुब्रत मंडल को सीबीआई ने गिरफ्तार किया तो उन पर भी अदालत मे जूता फेंका गया। बंगाल से बहुत दूर तमिलनाडु में भी जूता चला है। वहां किसी गिरफ्तार व्यक्ति पर नहीं, बल्कि राज्य के वित्त मंत्री पलानिवेल त्यागराजन की गाड़ी पर पांच लोगों ने जूता फेंका। इनमे से एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, जो भाजपा का कार्यकर्ता है।

ऐसा लग रहा है कि आम लोगों के बीच के बीच नेताओ के प्रति अपमान का भाव जगाने के लिए सुनियोजित तरीके से यह काम हो रहा है।

हिमाचल में धर्मांतरण कानून क्यों?

हिमाचल प्रदेश देश के उन राज्यों में है, जहां सबसे ज्यादा हिंदू आबादी की तुलना में दूसरे धार्मिक समुदायों के लोगों की संख्या बहुत कम है। इस सूबे की कुल आबादी में 95 फीसदी से ज्यादा आबादी हिंदुओं की है और बची हुई करीब पांच फीसदी आबादी में भी बौद्ध और सिख बड़ी संख्या में हैं। यानी मुस्लिम आबादी बहुत कम है। इसलिए सवाल है कि ऐसे राज्य में धर्मांतरण रोकने के कानून की क्या जरूरत है? कहीं से ऐसी खबरें भी नहीं आ रही हैं कि राज्य में सामूहिक धर्मांतरण हो रहा है। वहां दशकों से तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय काम कर रहा और बौद्ध धर्म का बड़ा केंद्र भी वहां है। फिर भी हिंदुओं के किसी समूह के बौद्ध बनने की कोई खबर नहीं है। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों की देखा-देखी हिमाचल प्रदेश में भी सामूहिक धर्मांतरण रोकने के कानून को और सख्त बनाया गया है। यह कानून 2019 में पारित हुआ था और 2020 में इसे लागू किया गया था, लेकिन डेढ़ साल से भी कम समय में इसमें संशोधन करके सामूहिक धर्मांतरण कराने वालों को 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। ऐसा लग रहा है कि अगले दो-तीन महीने मे होने वाले चुनाव को देखते हुए यह पहल की गई है। यह एक प्रतीकात्मक पहल है, जिसका मकसद धारणा के स्तर पर लोगों को यह दिखाना है कि भाजपा हिंदुओ की रक्षा के लिए कितनी सतर्क है।

तमिलनाडु में अजब-ग़ज़ब राजनीति

तमिलनाडु में दिलचस्प राजनीति हो रही है। राज्य की मुख्य विपक्षी अन्ना डीएमके के दोनों खेमों- ई. पलानीस्वामी और ओ. पनीरससेल्वम के बीच चल रहे संघर्ष में पहला राउंड पलानीस्वामी ने जीता था। 11 जुलाई को हुई पार्टी की जनरल काउंसिल ने उन्हें अंतरिम महासचिव चुन लिया गया था। इससे पहले कोऑर्डिनेटर और ज्वाइंट कोऑर्डिनेटर का पद समाप्त कर दिया गया था। पहले दोनों खेमों के बीच समझौते के तहत ये दो पद बनाए गए थे। लेकिन बाद में ये पद समाप्त कर पनीरसेल्वम को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मद्रास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से भी पनीरसेल्वम को राहत नही मिली थी लेकिन अब अचानक कोर्ट ने उनको राहत देते हुए 11 जुलाई को हुई जनरल काउंसिल की बैठक के फैसलों पर रोक लगा कर 25 जून की यथास्थिति बहाल कर दी है। यानी कोऑर्डिनेटर और ज्वाइंट कोऑर्डिनेटर के पद बहाल हो गए हैं और पनीरसेल्वम का भी पहले की तरह पार्टी में हिस्सा हो गया है।

हालांकि पता नहीं यह स्थिति कब तक रहेगी लेकिन ऐसा लग रहा है कि पनीरसेल्वम को भाजपा की मदद मिल रही है।

जयललिता की सहेली वीके शशिकला भी सक्रिय हैं। वैसे तो वे दोनों नेताओं से नाराज हैं लेकिन उनकी प्राथमिकता पलानीस्वामी को कमजोर करने की है। दूसरी ओर भाजपा की योजना पनीरसेल्वम की मदद से अन्ना डीएमके के बड़े हिस्से को साथ लेकर अपने को मजबूत करने की है।

बिहार के घटनाक्रम से कांग्रेस को फ़ायदा

फौरी तौर पर तो यही लगता है बिहार में हाल ही के राजनीतिक घटनाक्रम का सबसे बड़ा फायदा राष्ट्रीय जनता दल को हुआ है लेकिन हकीकत यह है कि इस घटनाक्रम की बड़ी लाभार्थी कांग्रेस है। यह सही है कि बिहार विधानसभा में राजद सबसे बड़ी पार्टी है और अगले चुनाव में उसको विजेता माना जा रहा था। अभी बनी नई सरकार में भी उसे सबसे ज्यादा हिस्सेदारी मिली है। लेकिन महज 19 विधायकों वाली कांग्रेस को बैठे बिठाए सत्ता में हिस्सेदारी मिल गई है। महाराष्ट्र की सत्ता से वह बाहर हुई तो बिहार की सत्ता में शामिल हो गई, लेकिन असली फायदा उसको बिहार से बाहर दूसरे राज्यों में हुआ है। जैसे पड़ोसी राज्य झारखंड में कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की मुहिम पर अस्थायी रूप से रोक लगी है। कांग्रेस के विधायक अगले चुनाव में भी संभावना देखने लगे हैं। उन्हें लग रहा है कि बिहार में महागठबंधन बनने का लाभ झारखंड में भी होगा और भाजपा कमजोर होगी। इसलिए वे पाला बदलने से पहले सौ बार सोचेंगे। इसी तरह जिन राज्यों में इस साल या अगले साल चुनाव है वहां यह मैसेज गया है कि कांग्रेस अब भी विपक्ष की राजनीति की एक ताकत है।

राजद नेता तेजस्वी यादव के दिल्ली आकर सोनिया गांधी से मिलने और भाजपा से अलग होने के तुरंत बाद नीतीश कुमार के सोनिया गांधी से फोन पर बात करने के बाद यह मैसेज बहुत दूर तक गया है। विपक्षी राजनीति में कांग्रेस को एक ताकत के तौर पर स्वीकार किया जा रहा है। इसके अलावा बिहार के घटनाक्रम से धारणा के स्तर पर यह मैसेज गया है कि भाजपा को सत्ता से हटाया जा सकता है या रोका जा सकता है। कांग्रेस को इसका भी लाभ होगा।

अब कांग्रेस के साथ काम करेंगे योगेंद्र यादव

चुनाव विश्लेषक से आम आदमी पार्टी के नेता और फिर किसान नेता बने योगेंद्र यादव ने पिछले लोकसभा चुनाव के बाद कहा था कि कांग्रेस 'आइडिया ऑफ इंडिया’ की रक्षा नहीं कर सकती, इसलिए उसे मर जाना चाहिए। लेकिन अब तीन साल बाद उन्हें फिर से कांग्रेस में उम्मीद की किरण नजर आने लगी है और वे उसके साथ जुड़ने जा रहे हैं। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अगले महीने सात सितंबर से कन्याकुमारी से कश्मीर तक 'भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू कर रहे हैं। इसी यात्रा के माध्यम से योगेंद्र यादव भी कांग्रेस से जुड़ रहे हैं। वे अपनी पार्टी 'स्वराज इंडिया’ को बनाए रखते हुए कांग्रेस के साथ काम करेंगे। बताया जा रहा है कि उन्होंने खुद ही कांग्रेस से संपर्क कर इस यात्रा से जुने की पेशकश की है, जिसे कांग्रेस ने मंजूरी दे दी है। इस यात्रा में वे क्या भूमिका निभाएंगे यह अभी तय नहीं है। गौरतलब है कि योगेंद्र यादव पहले भी राहुल गांधी की सलाहकार मंडली में रह चुके हैं। यह तब की बात है जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी। उस दौरान सरकार ने उन्हें यूजीसी का सदस्य और एनसीईआरटी यानी राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद तथा शिक्षा का अधिकार कानून पर बनी सलाहकार समिति का सलाहकार नियुक्त किया था। बाद में वे थोड़े समय अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में भी रहे थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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