रेल के निजीकरण के खिलाफ हल्ला बोल, दिल्ली में प्रदर्शन
रेलवे के परिचालन के लिए ट्रेनों को निजी हाथों में सौंपने के मोदी सरकार के 100 दिन के एजेंडे के विरोध में आज, बुधवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया गया। ऐक्टू और IREF के नेतृत्व में भारतीय रेलवे के तमाम कर्मचारियों ने मोदी सरकार की निजीकरण की नीतियों खिलाफ नारेबाजी की और भारतीय रेल के निजीकरण को रेलवे और देश दोनों के लिए खतरनाक बताया।
सभी ने कहा कि मोदी सरकार ने दोबारा सत्ता में आने के बाद सबसे पहले गरीब जनता की सवारी भारतीय रेल के निजीकरण का ऐलान किया है। भारतीय रेलवे में 100 दिन का एक्शन प्लान दरअसल जनता से उसका सस्ता जन-परिवहन छीनने की तैयारी है। इस रास्ते से सरकार मुनाफे का निजीकरण तथा घाटे का सरकारीकरण कर रही है। जिसकी शुरुआत भारतीय रेल की सात कोच-फैक्ट्रियों के निजीकरण से की जा चुकी है। इसी के खिलाफ दिल्ली समेत कई राज्यों में कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया।
इस प्रदर्शन में रेलवे कर्मचारियों के अलावा अन्य वर्ग के मज़दूर भी शामिल हुए। सभी ने एक स्वर में इसका विरोध किया। एक्टू राज्य सचिव श्वेता ने कहा की सरकार बड़े ही शातिर तरीके से घाटे का सरकारीकरण और मुनाफे का निजीकरण कर रही है। सरकार उन ट्रेनों और रूट को निजी हाथों में दे रही है जो फायदे में हैं।
कृष्ण कुमार जो उत्तर रेलवे में कर्मचारी यूनियन के महासचिव हैं, ने कहा कि सरकार ने पहले रेलवे को बदनाम किया, जानबूझकर बर्बाद किया और उसके बाद उसको निजी हाथों में बेच रही है। पहले रेलवे में 12 लाख से ज्यादा कर्मचारी थे जो घटकर अब केवल 10 लाख रह गए हैं। इसी तरह से चला तो आने वाले वर्षों में यह संख्या घटाकर केवल 7 लाख रह जाएगी, जबकि दूसरी तरफ इस दौरान रेल पर सवारियों का भार बढ़ा है। इन सबके बावजूद आज भी रेलवे सार्वजनिक परिवहन में सबसे बेहतर काम कर रही है। सरकार को इसे निजी हाथो में बेचने की बजाय इसमें और निवेश करना चाहिए।
आगे उन्होंने कहा की सरकार अगर नहीं मानी तो संघर्ष और तेज़ होगा।
एक्टू के राज्य अध्यक्ष संतोष राय ने कहा कि रेलवे आज भी देश कि लाइफ लाइन है। देश में अधिकतर आम लोग इसी से सफर करते हैं। सरकार इसे भी पहुंच से दूर कर रही है। इससे न लोगों के जीवन पर असर पड़ेगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर असर होगा। क्योंकि आज हमारे देश में बेरोजगरी अपने 45 साल के शीर्ष पर है। रोजगार सृजन की नज़र से रेलवे देश का सबसे बड़ा क्षेत्र है लेकिन अब इसके निजी हाथों में जाने से यह भी ख़त्म हो जाएगा।
आगे उन्होंने कहा कि यह अभी नहीं हुआ है। इस सरकार ने पिछले कार्यकाल में ही बता दिया था। पहले तो रेलवे के अलग बजट को खत्म किया गया और अब रेलवे को ही खत्म कर रही है।
इस प्रदर्शन को निर्माण मज़दूर के यूनियन बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन ने भी समर्थन दिया। यूनियन के उपाध्यक्ष वीरेंद्र ने कहा कि अधिकतर निर्माण मज़दूर प्रवासी होते हैं। और वो आने जाने के लिए रेल का ही प्रयोग करते है। लेकिन अब सरकार उसे निजी लोगों को बेच रही है। जिसके बाद इसकी दरों में भारी वृद्धि होगी जैसा कि हमने पहले मेट्रो में देखा है।
इसके आलावा किसानों के संगठन अखिल भारतीय किसान महासभा ने अपनी एकजुटता जाहिर की।
उत्तर रेलवे में लोको पायलट ओम प्रकाश भारती ने कहा कि सरकार जानबूझकर मुनाफे की रेलवे को घाटे में दिखाती है जबकि सच्चाई यह है कि वो कभी घाटे में नहीं रही है। ये सरकारों का इसे बेचने का एक तरीका है। लेकिन हम इसको होने नहीं देंगे चाहे जो हो जाए। सरकार नहीं मानी तो आने वाले दिनों में हम पूरे देश में रेल का चक्का जाम करेंगे।
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