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मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर

साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
dollar and rupee
Image courtesy : Mint

भारतीय रुपया का हाल यह है कि रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। खबर लिखने तक एक डॉलर के मुकाबले भारत का रुपया गिरकर 77.39 रुपए तक पहुंच चुका है। कहने वाले कह देंगे कि रूस और यूक्रेन की लड़ाई की वजह से दुनिया की माल सपलाई टूट चुकी है। जितने सामान की मांग है उतनी सपलाई नहीं हो पा रही है। इसलिए डॉलर के बदले पहले से ज्यादा रुपया देना पड़ रहा है। यह बात एक हद तक ठीक है। लेकिन इसके अलावा भी कुछ बातें है, जिस पर गौर करना चाहिए।  

साल 2013 में डॉलर के मुकाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुकाबले रुपया तभी मजबूत होगा जब देश में मजबूत नेता आएगा। उस समय कहा जा रहा था कि यह बताना मुश्किल है कि डॉलर के मुकाबले रुपया ज्यादा गिर रहा है या कांग्रेस पार्टी? कांग्रेस पार्टी और रूपये के गिरने में होड़ लगी है। 2018, 2019, 2020 और 2021 में लगातार रुपया कमज़ोर होता गया– 2.3 प्रतिशत से लेकर 2.9 प्रतिशत तक कमज़ोर हुआ। चार साल से भारत का रुपया कमज़ोर होता जा रहा है। अब यह कमजोर होकर सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। यानी यह बात समझने वाली है कि डॉलर के मुकाबले रूपये की कमजोर होने की कहानी रूस और यूक्रेन की लड़ाई के बाद ही शुरू नहीं हुई है, बल्कि यह तबसे चली आ रही है जब से तथाकथित मजबूत नेता यानि नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं। तब से लेकर अब तक डॉलर के मुकाबले रुपया गिरते गया है। भाजपा के मुताबिक मजबूत नेता के आजाने के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपया में मजबूती होनी चाहिए थी लेकिन यह पहले से ज्यादा मजबूत होने की बजाए कमजोर हो गया। रूपये के गिरने से जुड़े जरूरी कारणों के पड़ताल के साथ उन बातों को भी में ध्यान रखना जरूरी है कि मौजूदा वक्त की सरकार ने तब कहा था जब वह विपक्ष में थी।

जानकारों का कहना है कि जब तक रूस और यूक्रेन की लड़ाई चलती रहेगी और डॉलर के मुकाबले रुपया वैसे ही गिरता रहेगा। जब लड़ाई खत्म हो जाएगी उसके बाद भी रुपया लंबे समय तक गिरेगा। यह तब तक गिरता रहेगा जब तक दुनिया की टूटी हुई माल सप्लाई फिर से मुकम्मल नहीं हो जाती। रही बात रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की तो वह रुपया का गिरना नहीं रोक पाएगी क्योंकि आरबीआई को पता है कि आने वाले दिनों में भी कच्चे तेल की कीमतों भी बढ़ती रहेंगी। स्टील सहित कई सामानों की कीमत बढ़ती जाएँगी। कीमतों में होने वाली इस बढ़ोतरी को ध्यान में रखकर बाजार के लोग सामान इकट्ठा करने की कोशिश में लगे होंगे। और अगर आरबीआई डॉलर के मुकाबले रुपया का विनिमय दर नियंत्रित करती है तो विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बाहर निकलेगा। विदेशी मुद्रा भंडार में बहुत अधिक कमी के हालात से आरबीआई बचना चाहती है।

भारत की अर्थव्यवस्था अगर पहले से मजबूत होती तो इस तरह के मार से गुजरती तो आम लोगों पर उतना ज्यादा असर नहीं पड़ता जितना एक कमजोर अर्थव्यवस्था होने के चलते पड़ रहा है। कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा की वजह से डॉलर की मांग बढ़ेगी। यानी सरकार को एक बैरल कच्चे तेल के लिए पहले के मुक़ाबले ज्यादा पैसा देना पड़ेगा। डॉलर लेने के लिए रुपया की मारामारी बढ़ेगी। आर्थिक जानकार भी यही बात कहते हैं कि रुपया डॉलर के मुकाबले गिरता क्यों है? इसके कई कारण हैं? लेकिन एक कारण जो साफ-साफ सामने दिखता है, वह यह है कि जब रुपया रखने वालों के पास डॉलर खरीदने के लिए मारामारी बढ़ जाती है, तो डॉलर की रुपए के मुकाबले कीमत बढ़ जाती है। सामान्य अर्थशास्त्र की भाषा में कहें तो जब डॉलर की सप्लाई कम और डिमांड ज्यादा होती है, तो डॉलर की कीमत बढ़ जाती है। रूस से आयात पर प्रतिबंध लगने के बाद तो कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की सप्लाई कम हो जाएगी लेकिन डिमांड जस की तस बनी रहेगी। यानी प्रति बैरल कीमतों में इजाफा लंबे समय तक चलता रहेगा। भारत की पहले से बर्बाद अर्थव्यवस्था से बन रहे रुपए की कीमत आगे और भी कमजोर होती रहेगी।

जब देश के बाहर से तेल महंगा आएगा तब तेल की कीमतें बढ़ेंगी। यह सब महंगा होने का मतलब है कि रोजमर्रा के कई सामान और सेवाएं महंगी होंगी। यानी कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमत रुपया की कमजोरी से लेकर आम आदमी के लिए महंगाई का कहर बनकर गिरती रहेंगी।

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भारत की अर्थव्यवस्था चालू खाता घाटे वाली व्यवस्था है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था से कमजोर अर्थव्यवस्था है। भारत में आयात, निर्यात से अधिक होता है। यानी भारत से कॉफी, मसाले जैसे सामान और तकनीकी सेवाओं का जितना निर्यात होता है, उससे कई गुना अधिक आयात होता है। भारत में विदेशी व्यापार हमेशा नकारात्मक रहता है। कच्चे तेल की कीमत बढ़ने की वजह से यह और अधिक नकरात्मक होगा। एक डॉलर के मुकाबले रुपया और अधिक गिरेगा।

रुपया कमजोर होने की वजह से कम मुनाफे की उम्मीद कर विदेशी निवेशक लगातार भारतीय बजार से अपना निवेश किया हुआ पैसा बाहर निकाल रहे हैं। केवल मार्च में फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट स्टॉक मार्केट से अब तक तकरीबन 14721 करोड़ रुपया बाहर निकाल चुके हैं। आगे और भी विदेशी निवेश की बिकवाली होगी। इसलिए डॉलर और रुपए का अंतर और अधिक बढ़ेगा।

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खाने के तेल का भी बड़ा हिस्सा विदेशों से मंगवाया जाता है। फर्टिलाइजर में इस्तेमाल होने वाले रसायन भी विदेशों से आते हैं। इसलिए डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट की मार उन किसानों पर भी पड़ेगी जिन किसानों के लिए डॉलर किसी सपने के सरीखे है। यही हाल इलेक्ट्रॉनिक सामानों के साथ भी होने वाला है। सप्लाई साइड की कमी दुनिया के बाजार को महंगा करेगी। ऐसे में भारत की सरकार और व्यापारियों को विदेशी बाजार से सामान और सेवा लेने के लिए ज्यादा पैसा देना पड़ेगा।

कुल मिलाकर बात यह है कि जब डॉलर रुपए से अधिक मजबूत होता है, तब 1 डॉलर के लिए पहले से ज्यादा रुपये देना पड़ता है तो इसका असर उन पर भी पड़ता है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी डॉलर में लेन-देन नहीं किया होता है। अपने ही देश में वह सारे सामान और सेवा उपलब्ध नहीं हो पाते जिनकी जरूरत जिंदगी को चलाने के लिए जरूरी है। इसके लिए दूसरे देशों पर भी आश्रित होना पड़ता है। दूसरे देश डॉलर में व्यापार करते हैं। डॉलर का महंगा होने का मतलब है फैक्ट्रियों में उत्पादन का महंगा होना। कामकाज की लागत का बढ़ना। लागत के बढ़ने का मतलब महंगाई का होना। लोगों की आमदनी का कम होना और रोजगार की स्थिति पैदा ना होना।

इन सबका जवाब जनकल्याणकारी आर्थिक नीतियां है।  उन नीतियों को जमीन पर प्रभावी से उतारना है। यह सब करने के बजाए झूठ बोला जाता है। मजबूत नेता के मजबूत रुपया होने का तर्क दिया जाता है।  सच के आधे हिस्से के साथ झूठ को मिलाकर गोलबंदी करने की कोशिश की जाती है। चलते चलते नरेंद्र मोदी के झूठ का एक उदहारण देखिये: नरेंद्र मोदी ने कहा था कि साल 1947 में एक डॉलर के मुकाबले एक रुपया था। जबकि इसका कोई प्रमाण नहीं है कि साल 1947 में एक डॉलर के मुकाबले कितना रुपया था? लेकिन इस झूठ को सच की तरह बरतकर यह फैलाया गया कि कांग्रेस का कामकाज इतना बुरा रहा है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होकर 68 रूपये पर पहुंच गया।  

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