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मोदी जी को क्लीन चिट: ...पर सबूत कहां है?

मोदी जी सीएम रहकर विकास का गुजरात मॉडल कायम करने के सहारे, पीएम बनकर नये इंडिया का विश्व गुरु मॉडल ज़माने तक भी पहुंच गए, पर मोहतरमा की सुईं वहीं की वहीं अटकी हुई थी--न्याय दो, सज़ा दो, जांच कराओ!
मोदी जी को क्लीन चिट:  ...पर सबूत कहां है?

न्याय जी को गुस्सा तो आना ही था। बिना बात के लोग यूं ही बेचारों का कीमती टाइम खोटा करने के लिए चले आते हैं। कोई फरियाद सी फरियाद नहीं और सबूत तो रत्तीभर नहींबस मुंह उठाए चले आते हैंन्याय मांगने। अब जाकिया जाफरी का ही किस्सा ले लो। कहां 2002 की शुरुआत और कहां आधा 2022। सवा बीस साल तो कहीं गए नहीं हैं। पर मोहतरमा तब से लगाकर आज तक एक ही रट लगाए हुए हैं कि बीस साल पहले गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ कोई नरसंहार हुआ था। कि नरसंहार के पहले ही दिनअहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी नाम के मोहल्ले में मुसलमानों को घेर कर उनका कत्लेआम हुआ था।

कि इस कत्लेआम में दूसरे सड़सठ लोगों के साथ उनके शौहरएहसान जाफरी भी मारे गए थे। कि एहसान जाफरी कांग्रेस के सांसद रह चुके थेशायरी भी करते थेउनकी बहुत से असरदार लोगों से भी वाक्फियत थी। कि एहसान जाफरी ने हत्यारी भीड़ के घेरे में अपनी और अपने मोहल्लेवालों की जिंदगी के आखिरी दस-बारह घंटों मेंइन सारे असरदार वाकिफों से बचाने की गुहार लगायी थी। पर सब मार दिए गए। जाफरी साहब और बाकी सड़सठ लोग तो एक मोहल्ले में ही मार दिए गए। सरकारउसकी पुलिसफौजसब के होते हुएकोई बचाने नहीं आया और मार दिए गए। हमें न्याय दिलाओ। सरकारपुलिसफौजकिसी का होना काम कैसे नहीं आयाकोई तो दोषी हैउसे सजा दिलाओ। सीएम को भी छोड़ो मतजांच कराओ!

मोदी जी सीएम रहकर विकास का गुजरात मॉडल कायम करने के सहारेपीएम बनकर नये इंडिया का विश्व गुरु मॉडल जमाने तक भी पहुंच गएपर मोहतरमा की सुईं वहीं की वहीं अटकी हुई थी--न्याय दोसजा दोजांच कराओ!


बीस साल में साबरमती में कितना पानी बह गया। बाकी छोड़ दो तो मोदी जी के पास ही क्लीन चिटों का ढेर लग गया। पुलिस की क्लीन चिट। सरकारी जांच की क्लीन चिट। निचली अदालत की क्लीन चिट। अटल जी के राजधर्म का पालन करने का उपदेश देने के बाददिल्ली के ताज की क्लीन चिट। भगवा पार्टी की क्लीन चिट। चुनाव दर चुनाव गुजराती पब्लिक की क्लीन चिट। और जब इन कई-कई क्लीन चिटों के बाद भी नरसंहार की दुर्गंध नहीं दबी और मोदी की विदेश यात्राओं की राह नहीं खुलीतो खुद सबसे ऊंची अदालत की बनवाई एसआइटी की भी क्लीन चिट। पर मोहतरमा ने अपनी तरफ से क्लीन चिट देना तो दूर रहाकिसी क्लीन चिट को पढक़र भी नहीं दिया। उल्टे एसआइटी की क्लीन चिट के खिलाफ ही अदालतों के दरवाजे खटखटाने लगीं। निचली अदालतफिर जिला अदालतफिर हाई कोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट। वही फरियाद--क्लीन चिट हटाओसाजिश की जांच कराओ!
 

न्याय जी को गुस्सा कोई यूं ही नहीं आ गया। सच पूछिए तो न्याय जी ने तो बहुत ही जब्त किया। जब्त क्याशुरू-शुरू में तो बहुत रहम किया। उनका दिल है ही मोम जैसा नरमजरा सी गरमी से पिघलने वाला। न्याय जी ने पीडि़ता मानकर तरस खाया। न्याय जी ने विधवा जानकर तरस खाया। न्याय जी ने बेसहारा मानकर तरस खाया। पर तरस भी कब तक। बंदा सीएम के झंडे गाढ़कर पीएम बन गयापर मोहतरमा की रट वही की वही बनी रही--क्लीन चिट रद्द करोजांच कराओन्याय दिलाओ! पुचकार के समझायाफटकार के भी समझा कर देख लियापर मोहतरमा की वही रट--जांच कराओसजा दिलाओ!
चलो वहां तक फिर भी ठीक था। एक विधवा बुढिय़ा की बड़बड़ से किसे फर्क पड़ता है। पर न्याय जी का माथा तब ठनकाजब उन्हें लगा कि विधवा बुढिय़ा अकेली नहीं है। उसको भी कोई सहारा देने वाला है। विरोधियों के टूल किट का मामला न भी सहीपर न्याय जी की हमदर्दी तो वेस्ट हो गयी। न्याय जी के सुर में सख्ती आ गयी। क्लीन चिट क्लीन नहीं हैयह साबित करने के लिए षडयंत्र का सबूत है तुम्हारे पास। षडयंत्र का कोई प्रामाणिक दस्तावेज। षडयंत्र की बैठक की कोई वीडियो रिकार्डिंग। कोई प्रेस कान्फ्रेंस जिसमें षडयंत्र का एलान किया गया हो। सिर्फ दो-दो चार करने से नहीं चलेगा कि उनके हाथ में ताकत थीताकत बचाने में विफल रहीजरूर षडयंत्र था। सबूतकोई ठोस सबूत है तुम्हारे पास। पर बुढ़िया फिर भी नहीं घबरायी और पुलिस अधिकारियों की गवाहियां दिखाने लगीजिनमें षडयंत्र के आरोप थे। और एक गृहमंत्री का बयान भीजिसको बाद में सरकार से हटा दिया गया और अंतत: रास्ते से ही हटा दिया गया।

न्याय जी ने नजर डाले बिना ही इन सबूतों के सबूत होने के दावे को खारिज कर दिया। पर रुखाई से हीएक बार फिर पूछा कि है कोई ठोस सबूत षडयंत्र काजिससे कोई इंकार नहीं कर सके। है ऐसा कोई ठोस सबूतषडयंत्र का! इसके बाद भी जब माफी मांगने के बजाएबुढिय़ा ने क्लीन चिट रद्द करने की अपनी रट नहीं छोड़ीतब न्याय जी को गुस्सा आ गया।
न्याय जी के गुस्से कामोदी जी के उस 19 साल के दु:ख से कोई कनेक्शन नहीं हैजो शाह जी ने तभी से देखा थापर देश-दुनिया को अब दिखाया हैसबसे ऊंची अदालत से रफाल के बाद एक और मामले में पक्की क्लीन चिट मिलने के बाद। न्याय जी को गुस्सा आयान्याय के टैम की बर्बादी पर। बीस साल हो गए और डेढ़-दो हजार मौतों का मामला है कि समेटने ही नहीं दिया जा रहा है। और कब तक इन मौतों का रोनारोते रहोगे भाई! फिर भीएक अकेली बुढ़िया का मामला होता तो न्याय जी फिर भी माफ कर देते। पर यहां तो पीछे से मदद करने वाले भी थे। यानी मोदी जी की क्लीन चिट के खिलाफ टूल किट का खेल। बस फूट पड़ा गुस्सादूसरे-दूसरे स्वार्थों के लिए झगड़ा लगाए रखने वालों के खिलाफ। न्याय मांगने पर लगा दी कड़ी फटकारन्याय की पुकार का दुरुपयोग करने के लिए। फिर भी आखिर में न्याय जी का दिल पसीज ही गया। धमका भर के छोड़ दिया कि न्याय के साथ ऐसे खेल खेलने वालों को तो सजा दिलानी चाहिए। खुद सजा नहीं दी--थैंक यू न्याय जी। अब तीस्ता का मामलागुजरात सरकार खुद देख ले।
और हां सॉरी मोदी जीपक्की वाली क्लीन चिट के लिए आपको इतना इंतजार करना पड़ाजबकि षडयंत्र का कोई ठोस वाला सबूत तो था ही नहीं।

(यह एक व्यंग्य आलेख है। लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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