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हमें अपनी धर्मनिरपेक्षता पर गर्व था लेकिन हमसे वो दर्जा भी छीन लिया गया: मृदुला मुखर्जी

प्रसिद्ध इतिहासकार मृदुला मुखर्जी ने न्यज़क्लिक से बातचीत में संशोधित नागरिकता क़ानून की ख़ामियों के बारे में बताया। वे कहती हैं, “मौजूदा सरकार के पास पूर्वोत्तर के मामलों का कोई अनुभव नहीं है।”
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Image Courtesy: Telegraph India

मृदुला मुखर्जी प्रख्यात इतिहासकार और प्रतिष्ठित नेहरू मेमोरियल संग्रहालय एवं पुस्तकालय के पूर्व निदेशक हैं। पूर्वोत्तर में संशोधित नागरिकता क़ानून को लेकर जारी प्रदर्शन के बारे में न्यूज़़क्लिक से बातचीत करते हुए वे कहती हैं, “मौजूदा सरकार को पूर्वोत्तर का कोई अनुभव नहीं है। उन्होंने पहले कभी ऐसी स्थिति को नहीं संभाला है, ख़ासकर वहां जहां नस्लीय भेदभाव काफ़ी ज़्यादा है।”

कुछ लोग कहेंगे कि विभाजन की विरासत हमें संशोधित नागरिकता क़ानून के माध्यम से परेशान कर रही है। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में यहां तक दावा किया है कि वर्ष 1947 में भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर था और वह तीनों पड़ोसी देशों में सताए अल्पसंख्यकों (मुसलमानों को छोड़कर) को शरण देने के लिए 1955 के नागरिकता क़ानून में संशोधन के लिए पेश कर रहे थे। इन पड़ोसियों में पाकिस्तान और बांग्लादेश विभाजन का कष्ट उठा रहे हैं?

सीएबी को भारत के विभाजन से जोड़ने का गृह मंत्री का प्रयास पूरी तरह जुमलेबाज़ी है। विभाजन से सीएबी का कोई लेना-देना नहीं है। विभाजन के शिकार लोग अपने अपने देश में कई दशक पहले चले गए और वे सभी अपने-अपने देश में अच्छी तरह से बसे हुए हैं।

फिर भी नए क़ानून के मद्देनज़र अखिल भारतीय एनआरसी (एनआरआईसी) लाखों भारतीय नागरिकों को परेशान कर रही है?

भारतीय नागरिकों के लिए एक राष्ट्रव्यापी राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) बनाने के उनके दावे के बारे में मेरी अपनी समझ यह कहती है कि यह केवल जुमलेबाज़ी है; और विभिन्न समुदायों को विभाजित करने और ध्रुवीकरण करने के उनके एजेंडे का हिस्सा। उनका उद्देश्य लोगों को धमकाना और डराना है। उनका वास्तविक उद्देश्य बड़ी संख्या में बंगाली हिंदुओं को वैधता प्रदान करने का एक तरीक़ा खोजना है जो असम में एनआरसी से बाहर कर दिए गए हैं। मैं विभिन्न अनुमानों को सुन रही हूँ और पढ़ रही हूं कि असम एनआरसी में कुल 19 लाख लोग या इतने ही जिन्हें बाहर किया गया उनमें से कितने हिंदू हैं। एक अनुमान है कि 12लाख हिंदुओं को बाहर रखा गया है जिनमें से दो-तिहाई बंगाली बोलने वाले हिंदू हो सकते हैं [बांग्लादेश या पश्चिम बंगाल के हिंदू]।

क्या इसीलिए बीजेपी अचानक एनआरसी से नज़र घुमा ली है?

असम में एनआरसी के कवायद में हज़ारों लोग शामिल थे और यह भारतीय जनता पार्टी[बीजेपी] के लिए उलटा पड़ गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाहर हुए लोगों में से अधिकांश हिंदू हो गए हैं। बीजेपी अपने बयान में हमेशा कहती रही है कि असम में अधिकांश घुसपैठिए मुस्लिम हैं। लेकिन असमिया लोग इस बात पर हमेशा क़ायम रहे कि उनकी लड़ाई बंगाली मुसलमानों या बंगाली हिंदुओं के ख़िलाफ़ नहीं है। वे बंगाली घुसपैठियों के दलदल में फंसना नहीं चाहते हैं चाहे वह बांग्लादेश से आए हों या पश्चिम बंगाल से।

असम का मुद्दा 1920 के दशक का है। यह उस समय कम आबादी वाला क्षेत्र था और जहां श्रम की कमी थी और समृद्ध क्षेत्र था। असम सात बहनों अर्थात साथ राज्यों में शामिल था और यह ब्रिटिश रेजीडेंसी का हिस्सा था। झारखंड के लोगों को यहां काम करने के लिए अंग्रेज़ ले गए थे। असम में हमेशा पलायन का इतिहास रहा है। सत्तर के दशक में असम आंदोलन शुरू हुआ और तब तक प्रवासियों की आबादी बढ़ने लगी थी और राज्य के भीतर प्रवासी विरोधी भावना तेज़ होने लगी थी।

लेकिन आम आदमी अब पूछ रहा है कि पूरे देश में एनआरसी को वास्तव में कैसे लागू किया जाएगा जैसा कि गृह मंत्री दावा करते हैं?

बीजेपी की राजनीति एनआरआईसी को भारतीय मुसलमानों के सिर पर लटकाए रखने की है। मुझे लगता है कि वे इसे एक राज्य या किसी अन्य राज्य में आज़मा सकते हैं। लेकिन यह सोचना कि वे 133 करोड़ की आबादी पर एनआरसी को लागू कर सकते हैं, यह एक असंभव काम है। ऐसा करने का मतलब यह होगा कि प्रत्येक भारतीय को पंजीकरण प्रक्रिया से होकर गुज़रना होगा। इसके व्यावहारिक पहलुओं को लागू करना बहुत मुश्किल है। उन्होंने कभी यह नहीं बताया कि वे इतने बड़े पैमाने पर कैसे करेंगे। उनका उद्देश्य केवल भारतीय राजनीति का ध्रुवीकरण करना है।

वास्तव में उन शरणार्थियों की संख्या क्या है जो भारत में पलायन करके चले आए हैं और केवल इन तीन पड़ोसी देशों जैसे अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से शरणार्थी क्यों हैं जिन्हें ख़ास धर्मों से संबंधित माना जाता है?

सरकार का दावा है कि दो से तीन लाख लोगों ने भारत में शरण ली है। ये लोग कौन हैं? वे कहां हैं? जांच ब्यूरो द्वारा संयुक्त संसदीय समिति को दिया गया आंकड़ा लगभग 31,000 प्रवासियों का है जिनमें से लगभग 24,000 हिंदू और 5,000 सिख हैं।

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान जो लगभग बीस साल था वहां सिखों सहित सभी लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। कई सिख परिवारों ने उस समय देश छोड़ दिया था। लेकिन इन सभी मुद्दों को नौकरशाही स्तर पर नियंत्रित किया जा सकता है, इसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा क्यों बनाया जाए...। कर्नाटक सरकार अवैध प्रवासियों के चलते चली गई और लगभग 500 बांग्लादेशियों को बैंगलोर में बसा हुआ पाया गया। क्या इन सभी लोगों को हिरासत में रखने के लिए भेजा जाएगा? उनके बच्चों का क्या होगा? ज़्यादा आंतरिक प्रवास वाले देश में, यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि इन सभी लोगों पर नज़र कौन रखेगा। 1,000 लोगों को रखने के लिए 40 करोड़ रुपये की लागत से एक हिरासत केंद्र बनाया जा रहा है। इस कार्य की लागत को राष्ट्रीय स्तर पर देखें।

ऐसी धारणा है कि बदले हुए नागरिकता क़ानून और एनआरआईसी का उद्देश्य वास्तव में पश्चिम बंगाल का ध्रुवीकरण करना है।

हां, इसमें कोई शक नहीं है। वे पश्चिम बंगाल को सांप्रदायिक बनाना चाहते हैं। पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह के चलते बड़ी संख्या में शरणार्थी हुए जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों थे और पाकिस्तान सेना द्वारा किए गए अत्याचारों से बचने के लिए भारत में चले आए। बीजेपी का मानना है कि [पश्चिम बंगाल] में बसने वाले कुछ लाख हिंदुओं को नागरिकता प्रदान करके वे एक कृतज्ञ नागरिक को तैयार करेंगे जो उसका स्थायी वोटबैंक होगा। भारत-बांग्लादेश सीमा पर किसी न किसी कारण से दोनों देशों के लोगों का निरंतर इधर उधर आना जाना होता रहता है। लेकिन यह कहना बिल्कुल अलग बात है कि पश्चिम बंगाल बांग्लादेशी घुसपैठियों को शरण दे रहा है। राजनीतिक और आर्थिक कारणों से यहां पलायन हुआ है।

संशोधित नागरिकता क़ानून के क्रियान्वयन को लेकर आप आगे क्या देखती हैं?

मुझे यह बताना चाहिए कि त्रिपुरा और असम दोनों वास्तव में पूरा पूर्वोत्तर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बहुत संवेदनशील क्षेत्र है। वहां की स्थिति को शांत करने में सात दशक लग गए। यह बारूद के ढेर पर बैठने जैसा है। आप इन राज्यों के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते।

क्या मोदी सरकार ने अपने कार्यों की ख़ामियों को स्वीकार नहीं किया?

पूर्वोत्तर में बहुत सारे विशिस्ट संस्कृति के समूह हैं जो एक दूसरे के ख़िलाफ़ दुश्मनी को गंभीरता से महसूस करते हैं। ये हटेंगे नहीं। समस्या यह है कि मौजूदा सरकार के पास पूर्वोत्तर का कोई अनुभव नहीं है, वे पहले कभी ऐसी स्थिति से निपटे नहीं है, ख़ासकर जहां नस्लीय विभाजन काफ़ी गहरा है। असम जल रहा है। त्रिपुरा में स्थानीय लोग बंगाली [बोलने वाले] लोगों से नाराज़ हैं। त्रिपुरा लगभग बांग्लादेश में घुसा हुआ है...। अगर आप देश की चिंता नहीं करते तो आप ख़ुद को राष्ट्रवादी देश कैसे कह सकते हैं? वे [मोदी सरकार] देश की रक्षा नहीं कर रहे हैं। वे वास्तविक जन आंदोलनों को नहीं समझते हैं क्योंकि वे कभी किसी का हिस्सा नहीं रहे हैं।

वे यह कह कर कांग्रेस पर आरोप लगाते हैं कि वह भारत के विभाजन के लिए ज़िम्मेदार है?

यह सच्चाई का एक तरह से मज़ाक़ है। फूट डालो और राज करो की अंग्रेज़ों की यह लंबे समय की नीति थी। उन्होंने धार्मिक आधार पर भारत के भीतर विभाजन को बढ़ावा दिया। मुस्लिम लीग विभाजन चाहती थी। कांग्रेस पार्टी ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी और इसने सांप्रदायिक ताक़तों और मुस्लिम लीग के विभाजनकारी एजेंडे से लड़ा। लेकिन कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं था क्योंकि उस पर विभाजन थोपा गया था। मुस्लिम लीग को वीटो दिए जाने के साथ और सांप्रदायिक हिंसा फैलने के कारण इसे स्वीकार करना पड़ा। इसके अलावा, दो-राष्ट्र सिद्धांत को पहली बार 1937 में हिंदुत्व विचारधारा के संस्थापक वीडी सावरकर ने उजागर किया था।

क्या आप कह रही हैं कि बीजेपी अपनी ही बयानबाज़ी का शिकार हुई है?

नया नागरिकता विधेयक लाने के लिए पिछले पांच वर्षों में उनके लिए कुछ भी बड़ा नहीं हुआ। साथ ही, हमारे पड़ोसी देशों की अर्थव्यवस्था और सामाजिक संकेतक बताते हैं कि वे हमसे बेहतर कर रहे हैं। वहां के लोग भारत क्यों आना चाहेंगे? पिछले एक दशक के दौरान कोई पलायन नहीं हुआ है। बीजेपी सरकार के सामने मुद्दा यह था कि वह असम में अपने नागरिकता क़ानून को कैसे संबद्ध कर सकती है। असम की एनआरसी रिपोर्ट ने उन्हें पीछे धकेल दिया क्योंकि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि इतने बड़ी संख्या में बंगाली हिंदुओं को बाहर कर दिया जाएगा। उन्हें अपने ही झूठ पर विश्वास था। एनआरसी कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने एक ईमानदार काम किया जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें बाहर निकाल दिया गया।

अगर वे उन सभी हिंदुओं को हिरासत में रखते हैं तो वे इसे कैसे जायज़ ठहराएंगे? इसलिए वे नागरिकता को लेकर संशोधित क़ानून लाए हैं। लेकिन शुरू से ही गृह मंत्री श्री अमित शाह से मेरा सवाल है: हमें संख्या बताइए। कृपया हमें उनके पत्र दिखाइए, शरणार्थियों से नागरिकता मांगने के लिए प्राप्त आवेदनों की संख्या दिखाइए। इन सभी विवरणों को पब्लिक डोमेन में रखिए। यह सब बेमतलब की बात है। वे [संघ और बीजेपी] मिथक और झूठ फैलाने में विशेषज्ञ हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि यह होने जा रहा था। वे पूरे देश को दांव पर लगा रहे हैं। कश्मीर और असम हमेशा दो संकटग्रस्त क्षेत्र रहे हैं। इन्हें यहां [भारत में शामिल] रखने के लिए बहुत कुछ किया गया है।

मुझे इस बात पर भी ज़ोर देना चाहिए कि असम में एनआरसी के लिए भारी संख्या में दस्तावेजों की ज़रूरत पड़ी। यदि कोई उपनाम ग़लत लिखा गया था तो व्यक्ति को पंजीकृत नहीं किया गया। मेरा कहना है कि हमारे पास पहले से ही भारत की जनगणना थी, राशन कार्ड, मतदाता पहचान (आईडी) कार्ड और आधार हैं; लोगों की गणना करने के कई तरीक़े थे। आधार ने अपना काम किया था क्योंकि इसके लिए आवेदक को अपना विशिष्ट आधार नंबर प्राप्त करने के लिए एक आईडी प्रूफ़ की आवश्यकता थी। अभी जो हो रहा है वह हास्यास्पद है। अगर आपके पास दस्तावेज़ नहीं हैं तो आप एक विदेशी नागरिक बन जाते हैं।

बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने भारत की अपनी यात्रा रद्द कर दी है। क्या कारण हो सकता है?

हम हास्यास्पद बन चुके हैं। इससे पहले, हमें अपनी धर्मनिरपेक्षता पर गर्व था कि हम एक विविध और जीवंत लोकतंत्र थे। इस जगह को हमसे छीन लिया गया है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Mr Shah, Show Us Numbers of Refugees Seeking Citizenship: Mridula Mukherjee

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