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योगी के दावों की खुली पोल : 3 सालों में यूपी में 'समग्र शिक्षा अभियान' के तहत 9,103 करोड़ रुपये ख़र्च ही नहीं किए गए

शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने लोकसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था कि राज्य सरकार द्वारा 6,561 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं किया गया, जबकि शिक्षा मंत्रालय के परियोजना अनुमोदन बोर्ड का दावा है कि सीएम योगी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा एसएसए योजना के तहत जारी फंड की राशि 9,103 करोड़ रुपये ख़र्च ही नहीं की गई।
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'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: The Wire

लखनऊ: न्यूज़क्लिक ने समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) की पड़ताल में पाया कि 2019-20 और 2022-23 के बीच सरकारी स्कूलों में एसएसए के तहत शिक्षा और बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता में सुधार के लिए आवंटित धन का लगभग 33.4% हिस्सा जो कि करीब 9,103 करोड़ रुपये के बराबर है उसे योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाला उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खर्च नहीं किया गया।

2019 से 2022 तक शिक्षा मंत्रालय के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (पीएबी) की बैठकों के विवरण के अनुसार और लोकसभा के सवाल के जवाब के आधार पर ये बात सामने आई है कि यूपी सरकार ने पिछले तीन वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए कुल 27,234 करोड़ रुपये में से 18,130 करोड़ रुपये का ही इस्तेमाल किया। ये रकम राज्य के 75 जिलों में स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधार करने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए जारी किया गया था। इन स्कूलों में प्राथमिक स्कूलों में 1.28 करोड़ से अधिक छात्र हैं वहीं उच्च प्राथमिक स्कूलों में 52.53 लाख से अधिक छात्र हैं।

लोकसभा में शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार ने 2019-20 में 5,609 करोड़ रुपये जारी करने का प्रस्ताव रखा था लेकिन सरकार ने 4,986 करोड़ रुपये ही जारी किया। 2020-21 में सरकार ने 5,533 करोड़ रुपये मंजूर किए लेकिन 4,572 करोड़ रुपये जारी किया। 2019-2021 की तुलना में जारी की गई रकम की रफ्तार काफी धीमी थी क्योंकि राज्य सरकार को 5,123 करोड़ रुपये के प्रस्तावित फंड में से केवल 2,045 करोड़ रुपये दिए गए थे। तीन साल तक केंद्र सरकार ने निर्धारित राशि का आवंटन नहीं किया।

स्रोत- अतारांकित प्रश्न संख्या 2335 सत्रहवीं लोकसभा के नौवें सत्र का है जिसका उत्तर 01 अगस्त 2022 को दिया गया।

आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले तीन वर्षों में आवंटित फंड और जारी किए गए फंड के बीच का अंतर लगभग 4,663 करोड़ रुपये है। फंड के धीमी रफ्तार से जारी होने से राज्य के खर्च पर भी असर पड़ा है।

केंद्र सरकार की समग्र शिक्षा अभियान योजना के तहत फंड जारी करने की बेरुखी को सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों की दयनीय स्थिति का मुख्य कारण बताया जा रहा है। सरकार ने प्राथमिक शिक्षा की प्रगति और विकास के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन, मुफ्त किताबें, मुफ्त दो जोड़ा यूनिफॉर्म आदि सहित कई कार्यक्रम और योजनाएं शुरू की हैं। लेकिन इन योजनाओं के लिए समय पर उपयुक्त फंड जारी करने को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे है।

सीएम योगी और पीएम मोदी ने अक्सर एक-दूसरे की तारीफ की है और हर मौके का इस्तेमाल लोगों को यह बताने के लिए किया है कि उत्तर प्रदेश "डबल इंजन वाली सरकार के दोहरे लाभ" का एक बेहतर उदाहरण बन गया है और यह 'डबल इंजन' सरकार बस वही है जिसकी जरूरत देश के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य को थी। लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि यूपी सरकार केंद्र द्वारा जारी किए गए फंड को खर्च करने में सक्षम नहीं है और उसके पास बड़ी राशि है जिसको खर्च नहीं किया है।

ये आंकड़े सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा किए गए उन बड़े-बड़े दावों की पोल खोलती है जिसमें वे कहते थे कि राज्य के प्राथमिक स्कूल बुनियादी सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के मामले में कॉन्वेंट स्कूलों को पीछे छोड़ रहे हैं।

पिछले 3 वर्षों में यूपी सरकार द्वारा 9,103 करोड़ रुपये ख़र्च नहीं किए गए

मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों यानी 2019-20 से 2021-22 के बीच भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा 9,103 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं किया गया।

2019-20 में सरकार द्वारा 2,535 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं किया गया इस तरह खर्च न की गई राशि 2020-21 में बढ़कर 2,657 रुपये हो गई। वहीं 2021-22 में खर्च न की गई राशि काफी बढ़ गई जो बढ़कर 3,911 करोड़ रुपये हो गई। यह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सरकार के कार्य और प्राथमिकता के बारे में काफी कुछ बयां करता है।
स्रोत- विभिन्न वर्षों की पीएबी बैठक की रिपोर्ट।

न्यूक्लिक ने पिछले तीन वर्षों के लिए दो स्रोतों अर्थात लोकसभा और पीएबी की बैठकों से आंकड़ा इकट्ठा किया है। दोनों सरकारी दस्तावेज खर्च न की गई राशि को दर्शाते हुए अलग-अलग दावे करते हैं। शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने लोकसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था कि राज्य सरकार द्वारा 6,561 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं किया गया जबकि पीएबी का दावा है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने एसएसए योजना के लिए 9,103 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं किया है।

समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) का उद्देश्य और ज़मीनी हक़ीक़त

समग्र शिक्षा, स्कूली शिक्षा के लिए एक एकीकृत योजना की कल्पना 2018-19 से पूर्ववर्ती केंद्र प्रायोजित योजनाओं जैसे सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) और शिक्षक शिक्षा (टीई) को मिलाकर की गई थी। यह स्कूल शिक्षा क्षेत्र के लिए प्री-स्कूल से लेकर बारहवीं कक्षा तक का एक व्यापक कार्यक्रम है और इसका उद्देश्य स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है। यह योजना अन्य चीजों के साथ-साथ उच्च प्राथमिक विद्यालयों को माध्यमिक विद्यालयों में अपग्रेड करके और माध्यमिक विद्यालयों को उच्च माध्यमिक विद्यालयों में अपग्रेड करके और कम्पोजिट स्कूल की स्थापना के लिए नए विद्यालयों की स्थापना के लिए सहायता प्रदान करती है। यह योजना मौजूदा स्कूलों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में मदद कर सकती है। इस योजना के फंड में केंद्र का 65 प्रतिशत तथा राज्य का 35 प्रतिशत योगदान है।

दिलचस्प बात यह है कि नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो चुका है और बच्चे स्कूल जाने लगे हैं लेकिन सरकार ने अभी तक उन्हें किताबें और वर्दी नहीं दी है। इसके लिए फंड की कमी का हवाला दिया जाता है।

एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि टेंडर को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में देरी और टेंडर की संख्या कम होने के कारण प्रकाशक समय पर पुस्तकों का प्रकाशन नहीं कर सके। हालांकि, "सरकार छात्रों को किताबें उपलब्ध कराने की पूरी कोशिश कर रही है"।

सरकारी स्कूल के एक शिक्षक ने कहा, "हमें सरकार से नई किताबें नहीं मिली हैं। इसलिए, हमने पिछले सत्र के बच्चों से किताबें ले ली हैं।"

बारिश भले ही अब तक कम हुई हो लेकिन मानसून की शुरुआत ने राज्य के सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे के सवालों को फिर से तेज कर दिया है। कुछ स्कूलों को छोड़कर अधिकांश सरकारी स्कूलों में नए भवन बन गए हैं जहां कक्षाएं ली जाती हैं, लेकिन ढहती हुई संरचनाएं नए भवन के इर्द गिर्द खड़ी रहती हैं जो अक्सर खेलने और परिसर में घूमने वाले छात्रों के लिए खतरा बनी रहती है।

कई स्कूल भवनों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं और ऐसा लगाता है कि छत किसी भी समय गिर सकती हैं। खासकर बारिश के दौरान छात्रों और शिक्षकों के लिए बेहद ही असुरक्षित हो जाती है। नाम न छापने की शर्त पर बोलने वाले एक शिक्षक ने सवाल किया कि अगर राज्य सरकार के पास जर्जर भवनों की मरम्मत और पेयजल और स्वच्छता की सुविधा प्रदान करने और पुस्तकों के लिए धन नहीं हो है तो वह इन बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 9,103 करोड़ रुपये की शेष राशि को क्यों नहीं खर्च करती है।

सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी के एक शोधकर्ता प्रोतिवा कुंडू ने न्यूज़क्लिक को बताया, "यूपी में, समग्र शिक्षा अभियान फंड का इस्तेमाल कम होना ज्यादातर लंबित सिविल कार्यों के कारण होता है। माध्यमिक विद्यालयों के निर्माण और अपग्रेड करने और कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय का विस्तार के लिए आवंटित धन का इस्तेमाल नहीं हुआ क्योंकि समग्र के दिशानिर्देशों के तहत स्वीकृत निर्माण की निर्धारित दर बहुत कम है। इसलिए, राज्य के लिए इतनी कम लागत के साथ निर्माण कार्य करना मुश्किल है। महामारी के दौरान अन्य सिविल कार्य भी रुके हुए थे जिससे फंड का इस्तेमाल कम हुआ। जबकि महामारी के समय से डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दिया गया था, स्कूलों के विद्युतीकरण, स्मार्ट क्लास का निर्माण के लिए आवंटित धन का इस्तेमाल काफी हद तक नहीं हुआ।”

स्कूलों में बुनियादी ढांचे और शिक्षकों की कमी

अधिकांश सरकारी स्कूलों विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्कूलों में कंप्यूटर की उपलब्धता, पुस्तकालयों में किताबें, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) प्रयोगशालाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। यह तब है जब केंद्र सरकार ने एसएसए के तहत एक बड़ी राशि दी है।

उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों जैसे कि प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 73,711 शिक्षकों की कमी है। अगर हम प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों दोनों की कमी को शामिल करें तो इसकी संख्या करीब 1,26,028 हो जाती है। ये आंकड़े 17 जून, 2021 को आयोजित उत्तर प्रदेश के समग्र शिक्षा की वार्षिक कार्य योजना और बजट (एडब्ल्यूपी एंड बी) 2021-22 की बैठक में सामने आए थे।

2022 में शिक्षा मंत्रालय की परियोजना अनुमोदन बोर्ड की बैठकों के विवरण के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 1.26 लाख से अधिक शिक्षण पद खाली हैं। सरकारी स्कूलों में रिक्त पद प्राथमिक स्तर-कक्षा 1 से 8 तक हैं, हालांकि एसएसए योजना इस स्तर पर शिक्षा के यूनिवर्सलाइजेशन पर जोर देने का समर्थन करती है।

राज्य भर के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों की तुलना में माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की रिक्तियां इस सच्चाई के बावजूद अपेक्षाकृत कम थीं कि मुफ्त प्रारंभिक शिक्षा 'शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’ के तहत कानून द्वारा गारंटीकृत है और यह एक मौलिक अधिकार है।

यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (यूडीआईएसई) डैशबोर्ड के अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 29% सरकारी स्कूलों और 50% सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पुस्तकालयों की कमी है। इसके अलावा, यह पाया गया कि 25% सरकारी और 18% सहायता प्राप्त स्कूलों में बिजली नहीं हैं और केवल 4,062 सरकारी स्कूलों में इंटरनेट कनेक्शन है।

स्कूल की बदतर स्थिति को एनुएल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) 2021 भी बयां करती है। इसमें कहा गया है कि शिक्षा की गुणवत्ता खराब है। महिला शिक्षा पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की स्थिति का निर्धारण करने वाला कारक है। पांच साल से कम उम्र के 35 फीसदी से ज्यादा बच्चे अविकसित हैं। वे गरीबी की दलदल में फंसे रहेंगे और जीवन भर दूसरों पर निर्भर रहेंगे।

उत्तर प्रदेश में लगभग 1.53 लाख शिक्षा मित्र या एडहोक पैरा शिक्षक प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा मित्रों को सहायक शिक्षकों के रूप में फिर से नियुक्त करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने के लिए पिछले पांच वर्षों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। साथ ही राज्य में संविदा शिक्षकों ने ये सवाल उठाया है कि जब उनसे "पूरी ड्यूटी" (12 महीने) की उम्मीद की जाती है तो केवल 11 महीने के मानदेय का भुगतान क्यों किया जाता है और वह भी समय पर नहीं दिया जाता है। संविदा शिक्षक संघ का दावा है कि राज्य सरकार के उदासीन रवैये ने इन शिक्षकों के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

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