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भारत की कोरोना वैक्सीन ज़रूरतों और आपूर्ति के बीच के अंतर को समझिये

हमारे यहाँ वैक्सीन की एकाधिकार वाली मूल्य नीति लागू हो चुकी है। इस मूल्य नीति से नागरिकों, राज्य और जल्द ही अर्थव्यवस्था की कीमत पर वैक्सीन के निर्माता को मुनाफ़ा हासिल होगा। 
भारत की कोरोना वैक्सीन ज़रूरतों और आपूर्ति के बीच के अंतर को समझिये

अनुमानों के मुताबिक़ भारत की 69 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी 18 साल की उम्र से ऊपर है। मतलब यह आबादी वैक्सीन लगवाने की योग्यता रखती है। इस पूरे समूह को वैक्सीन लगाने के लिए भारत को 187.8 करोड़ डोज (हर व्यक्ति को 2) की जरूरत पड़ेगी। टीकाकरण की मौजूदा दर के हिसाब से यह काम आज से 18 महीने बाद नवंबर 2022 तक ही हो पाएगा। अगर सरकार दिसंबर 2021 तक सभी वैक्सीन लगने योग्य नागरिकों की आबादी के 60 से 100 फ़ीसदी हिस्से का टीकाकरण करना चाहती है, तो उसे तुरंत वैक्सीन की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर ख़त्म करना होगा। इसके लिए आगे हर महीने 7 से 17 करोड़ वैक्सीन की जरूरत है। 

दुर्भाग्य से सरकार की नई वैक्सीन नीति इस समस्या की तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती। बल्कि वैक्सीन आपूर्ति की कमी को ध्यान में रखकर देखें, तो ऐसे समय में जब ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का टीकाकरण किए जाने की जरूरत है, सरकार की नई नीति एक संकट साबित होगी। इस बीच भारत में वैक्सीन उत्पादन पर एकाधिकार प्राप्त कंपनी 'सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया (SII)' ने वैक्सीन की प्रति खुराक कीमत 400 रुपये करने की घोषणा की है। इस हिसाब से वैक्सीन लगने योग्य पूरी आबादी के टीकाकरण पर 70,000 करोड़ रुपये का ख़र्च आएगा। जबकि अभी केंद्र सरकार 150 रुपये प्रति खुराक के हिसाब से वैक्सीन खरीद रही है, इस हिसाब से पूरे कार्यक्रम पर 26,000 करोड़ रुपये के ख़र्च की गणना की गई थी। 

वैक्सीन की ज़रूरत (मांग नहीं)

जब से महामारी शुरू हुई है, तबसे यह स्पष्ट है कि संक्रमित लोगों की रोकथाम बहुत जरूरी है। ताकि स्वास्थ्य ढांचे को बिखरने से बचाया जा सके। इस तरह के प्रबंधन के लिए वैक्सीन हमारा सबसे बेहतर विकल्प है। भारत और दुनिया में तेजी से वैक्सीन विकसित होना, फिर इसका तेजी से परीक्षण किया जाना तारीफ़ करने लायक बात है।

अब मौजूदा स्वास्थ्य ढांचे में, दूसरी अहम स्वास्थ्य सेवाओं और शिशु टीकाकरण कार्यक्रम को प्रभावित किए बिना, दुनियाभर की आबादी (जिसका आर्थिक स्तर बहुत भिन्न है) के टीकाकरण और बड़ी संख्या में वैक्सीन निर्माण की चुनौती है। चूंकि अपर्याप्त टीकाकरण से वायरस के दोबारा सामने आने का ख़तरा है, इसलिए यहां महज़ 'वैक्सीन की मांग' नहीं हो रही है, बल्कि हमें 'वैक्सीन की जरूरत' है। मतलब वैक्सीन की कीमत उसका वितरण प्रभावित नहीं कर सकती। किसी को भी टीकाकरण पर सोचते वक़्त इस आयाम को ध्यान में रखना चाहिए। 

पहले भारत की टीकाकरण जरूरतों और राज्यों में इसके वितरण को देखते हैं। ध्यान रहे कि कई संभावित कारक वैक्सीन वितरण और आवंटन में काम करते हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की गणना के हिसाब से भारत की 69 फ़ीसदी आबादी 18 साल से ऊपर है। मतलब यह आबादी वैक्सीन लगवाने की योग्यता रखती है। आबादी का यह अनुपात राज्यों में अलग-अलग है। उदाहरण के लिए बिहार में 60 फ़ीसदी आबादी 18 साल से ऊपर है, जबकि तमिलनाडु में यह आंकड़ा 76 फ़ीसदी है। 

अगर हम मानें कि हर व्यक्ति को दो खुराक लगेंगी, तो वैक्सीन लगवाने की योग्यता रखने वाली आबादी के 100 फ़ीसदी टीकाकरण के लिए भारत को 187.8 करोड़ वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी। इस आबादी के 60 फ़ीसदी हिस्से के टीकाकरण के लिए 150.2 करोड़ और 60 फ़ीसदी के लिए 112.7 करोड़ वैक्सीन खुराकों की जरूरत होगी। 19 अप्रैल, 2021 तक अखिल भारतीय स्तर पर 12.4 करोड़ वैक्सीन खुराक दी जा चुकी हैं। इनमें से 91 फ़ीसदी कोविशील्ड थीं, जिनका निर्माण SII ने किया था। वहीं 9 फ़ीसदी वैक्सीन भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सिन थीं। तो 60 से 100 फ़ीसदी आबादी को लगाने के लिए अभी 100.2 करोड़ से 112.7 करोड़ वैक्सीन खुराक की जरूरत बरकरार है। सूची 1 में आबादी के अलग-अलग हिस्सों के टीकाकरण के लिए प्रति महीने जरूरी वैक्सीन की संख्या का जिक्र है।

सूची 1: भारत में वैक्सीन की मासिक ज़रूरत

भारत की वैक्सीन लगाए जाने योग्य आबादी में 12 फ़ीसदी हिस्से को 19 अप्रैल 2021 तक कम से कम एक खुराक मिल चुकी है। लेकिन यहां भी राज्यों में बहुत अंतर है। सूची में सबसे ऊपर छत्तीसगढ़ है, जो अपनी वैक्सीन योग्य आबादी के 23 फ़ीसदी हिस्से को कम से कम 1 खुराक लगवा चुका है। हिमाचल प्रदेश और केरल में यह आंकड़ा 21 फ़ीसदी और 20 फ़ीसदी है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश और असम में सिर्फ़ 6 फ़ीसदी लोगों को ही कम से कम एक खुराक मिल पाई है। 

राज्यों में कितनी आबादी को वैक्सीन लगवाई जा चुकी है, उसका अनुपात कई तत्वों का नतीज़ा है। जैसे- राज्य में वैक्सीन योग्य लोगों की संख्या कितनी है, टीकाकरण की दर क्या है, वैक्सीन को तेजी से लगवाने के लिए स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर (अधोसंरचना) कैसा है, कितनी वैक्सीन आवंटित हुई है और कितनी वैक्सीन बर्बाद हुई। राज्यों को किस हिसाब से केंद्र द्वारा वैक्सीन आवंटित की जा रही है, इसका आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। इसके बारे में सिर्फ़ मीडिया में कुछ अनुमान हैं।

वैक्सीन आपूर्ति की ज़रूरत

भारत में मौजूदा दर के हिसाब से 100 फ़ीसदी वैक्सीन योग्य आबादी का टीकाकरण अक्टूबर, 2022 तक ही हो पाएगा। मतलब अगले साल के अंत तक। जून 2022 तक हम 80 फ़ीसदी और फरवरी, 2022 तक 60 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण कर पाएंगे। 

इसमें भी राज्यों के हिसाब से अंतर है। वैक्सीन लगाए जाने की मौजूदा दर के हिसाब से सिर्फ़ 11 राज्यों और पूर्वोत्तर राज्यों (असम को छोड़कर) में 31 दिसंबर तक 60 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण हो पाएगा। जिन राज्यों में अभी बड़े पैमाने पर कोरोना फैला है, उनमें से सिर्फ़ केरल, कर्नाटक, राजस्थान, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में ही 2021 के अंत तक वैक्सीन लगने योग्य आबादी के 60 फ़ीसदी हिस्से को वैक्सीन लग पाएगी।

राज्यों द्वारा अपनी आबादी के 80 फ़ीसदी हिस्से के टीकाकरण के लिए जितना समय लिया जाएगा, उसका उल्लेख चित्र 1 में किया गया है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और तमिलनाडु तो अगले साल के अंत तक, मतलब दिसंबर 2022 तक यह लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएंगे। 

सूची 2: राज्यों में वैक्सीन लगने योग्य आबादी के 80% हिस्से के टीकाकरण में लगने वाला समय

जरूरत और आपूर्ति में अंतर

भारत में योग्य आबादी के 80 से 100 फ़ीसदी हिस्से का दिसंबर 2021 तक टीकाकरण पूरा करने के लिए मौजूदा दर को तुरंत प्रभाव से 66 से 112 फ़ीसदी बढ़ाना होगा। 

यहां भी राज्यों के हिसाब से काफ़ी अंतर है। उदाहरण के लिए बिहार में मौजूदा टीकाकरण दर को 115 से 270 फ़ीसदी बढ़ाने की जरूरत है, तब जाकर दिसंबर 2021 तक राज्य में 60 से 100 फ़ीसदी लोगों का टीकाकरण हो पाएगा। ध्यान रहे बिहार में मौजूदा सत्ता ने अपने चुनावी अभियान में सभी को कोरोना वैक्सीन मुफ़्त में उपलब्ध कराए जाने का वायदा किया था।

अलग-अलग मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ SII की निर्माण क्षमता 7 से 10 करोड़ खुराक प्रति महीने बनाने की है। इसमें मौजूदा और प्रस्तावित क्षमताएं शामिल हैं। इसी तरह भारत बॉयोटेक की निर्माण क्षमता 60 लाख खुराक प्रतिमाह बनाने की है, जो मई तक 1.5 करोड़ हो जाएगी। 

अगर हम यहां 15 फ़ीसदी निर्यात प्रतिबद्धताओं को शामिल कर लें और अखिल भारतीय स्तर पर वैक्सीन की 6.5 फ़ीसदी बर्बादी को गणना में शामिल कर लें, तो भारत में वैक्सीन की जरूरत और आपूर्ति में अंतर कुछ इस तरह है:

  • दिसंबर 2021 तक वैक्सीन लगने योग्य आबादी के 100 फ़ीसदी टीकाकरण के लिए 11.6 करोड़ से 17.2 करोड़ खुराक प्रति महीने की जरूरत
  • दिसंबर 2021 तक वैक्सीन लगने योग्य आबादी के 80 फ़ीसदी टीकाकरण के लिए 7.2 करोड़ से 12.5 करोड़ खुराक प्रति महीने की जरूरत
  • दिसंबर 2021 तक वैक्सीन लगने योग्य आबादी के 60 फ़ीसदी टीकाकरण के लिए 2.8 करोड़ से 7.8 करोड़ खुराक प्रति महीने की जरूरत

अगर रूसी वैक्सीन स्पुतनिक V भी वायदे के मुताबिक़ उपलब्ध हो जाती है, तो वैक्सीन की 65 करोड़ खुराक और उपलब्ध हो जाएंगी। यह भारत की वैक्सीन लगवाने योग्य आबादी के 60 से 100 फ़ीसदी हिस्से के टीकाकरण की जरूरत का 37 से 66 फ़ीसदी हिस्सा है। ध्यान रहे एक व्यक्ति के लिए दो खुराक जरूरी हैं। लेकिन अब तक यह साफ़ नहीं हो पाया है कि यह वैक्सीन कब उपलब्ध हो पाएंगी, क्योंकि अब तक इनका उत्पादन चालू भी नहीं हुआ है।

वैक्सीन नीति पर फिर से विचार करने की ज़रूरत

वैक्सीन की मौजूदा कमी और सभी भौगोलिक क्षेत्रों, व सामाजिक-आर्थिक वर्गों में समानता के साथ, ज़्यादा से ज़्यादा आबादी के टीकाकरण की जरूरत को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा हाल में घोषित वैक्सीन नीति में दोबारा परीक्षण करने की आपात जरूरत है। 

भले ही यह देर से हुआ, लेकिन राज्य सरकारों को अपने टीकाकरण कार्यक्रम गठन में छूट दिया जाना स्वागत योग्य है। लेकिन निर्माता द्वारा तय की गई कीमतों पर वैक्सीन हासिल करने की छूट दिया जाना घातक सिद्ध होगा। इससे बड़े स्तर पर कीमतें बढ़ जाएंगी (जैसा हाल में SII द्वारा की गई घोषणा से भी पता चलता है)। इसके चलते आबादी का एक बड़ा हिस्सा वैक्सीन तक पहुंच से वंचित रह जाएगा। 

सीरम इंस्टीट्यूट के CEO के प्रकाशित साक्षात्कारों से पता चलता है कि वैक्सीन की हर खुराक के लिए 150 रुपये की दर पर भी कंपनी मुनाफ़ा कमा रही है। वैक्सीन के इस मूल्य पर 100 फ़ीसदी टीकाकरण की कीमत 26,000 करोड़ रुपये होगी, जो 2021-22 के केंद्रीय बजट में टीकाकरण के लिए आवंटित राशि से कम है। 400 रुपये प्रति खुराक की कीमत पर पूरे कार्यक्रम की कीमत 70,000 करोड़ रुपये पहुंच जाएगी। जब SII पहले ही 150 रुपये प्रति खुराक की कीमत पर मुनाफ़ा कमा रहा है, तो कंपनी को ऊंची कीमत घोषित करने की अनुमति देने का तर्क क्या है? SII का इस क्षेत्र में एकाधिकार बन गया है। 19 अप्रैल 2021 तक भारत में जितने वैक्सीन लगाए गए, उनमें से 91 फ़ीसदी कोविशील्ड थे।

इस पूरे क्षेत्र में एकमात्र दूसरा खिलाड़ी भारत बायोटेक है, जिसकी क्षमताएं SII से बहुत कम हैं। अगर सरकार बाज़ार के रास्ते जाना चाहती, तो उसे कोवैक्सिन के उत्पादन को बढ़ावा देना था। ताकि प्रतिस्पर्धा में संतुलन रखकर कीमतों को कम रखा जा सकता। इसके उलट, अब हमारे सामने निर्माता द्वारा घोषित कीमत है। खुले बाज़ार के पैरोकार जिस "खोजे गए" प्रतिस्पर्धी मूल्य की बात करते हैं, SII द्वारा घोषित वैक्सीन की कीमत वह तो कतई नहीं है। 

हमारे पास यहां एकाधिकार वाला मूल्य है। इसके ज़रिए राज्य और नागरिकों के हितों की कीमत पर निर्माता को बहुत ज़्यादा मुनाफ़ा होगा। अगर यह वैक्सीन निर्माण में कमी लाता है, तो अर्थव्यवस्था को भी नुकसान होगा। 

वैक्सीन आपूर्ति में कमी और कुछ राज्यों में वैक्सीन लगाए जाने की धीमी दर से पहले ही सार्वभौमिक टीकाकरण के लक्ष्य को पाने की प्रक्रिया धीमी हो रही है। नई नीति और इसके चलते उपजी ऊंची कीमतों से टीकाकरण की दर और भी ज़्यादा धीमी होने की संभावना है। 

केंद्र सरकार द्वारा वैक्सीन निर्माण में बड़े निवेश के साथ-साथ राज्यों के लिए एक समतावादी और पारदर्शी वैक्सीन आवंटन नीति बनाने की जरूरत है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार कहते रहे हैं कि वैक्सीन दर को बढ़ाकर महामारी को प्रबंधित किया जा सकता है। इसके लिए ऐसे वैक्सीन कार्यक्रमों को गठित किए जाने की जरूरत है, जो कामगार वर्ग में अभियान चलाकर और वैक्सीन तक पहुंच सुलभ बनाकर टीकाकरण को बढ़ावा दें। 

यहाँ जरूरत है: 

1) नियंत्रित कीमतों पर केंद्र सरकार द्वारा बड़े स्तर पर वैक्सीन का उपार्जन 

2) स्वास्थ्य विशेषज्ञों और राज्य सरकारों के साथ विमर्श के बाद एक पारदर्शी आवंटन योजना का निर्माण, जिसके तहत सभी राज्यों में समतावादी तरीके से आपूर्ति दर सुनिश्चित की जा सके 

3) स्थानीय सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली योजनाएं, जिनसे कामगार वर्ग में टीकाकरण को बढ़ावा दिया जा सके, ताकि सभी आर्थिक वर्ग के लोगों में समानता के साथ वैक्सीन की पहुंच करवाई जा सके।  

लेखक NIAS बेंगलुरु में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Understanding the Wide Gap Between India’s Need and Supply of Covid Vaccines

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