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उत्तराखंड : 'अटल आयुष्मान योजना' के कई हज़ार दावेदार लाभ से वंचित

इस योजना का लाभ लेने के लिए मरीज के पास गोल्डन कार्ड होना अनिवार्य है। आकंड़ों की मानें तो उत्तराखंड की आबादी के केवल 33 प्रतिशत लोग ही अभी तक गोल्डन कार्ड बनवाने में सफल हो पाए हैं।
अटल आयुष्मान योजना
अटल आयुष्मान योजना

आयुष्मान भारत योजना की तर्ज पर उत्तराखंड में शुरू हुई अटल आयुष्मान योजना में त्रिवेंद्र सरकार द्वारा प्रदेश के कुल 23 लाख परिवारों को दायरे में लेने का दावा किया जा रहा है। लेकिन हक़ीक़त इससे कोसों दूर नज़र आती है। इस योजना का लाभ लेने के लिए मरीज के पास गोल्डन कार्ड होना अनिवार्य है। आकंड़ों की मानें तो उत्तराखंड की आबादी के केवल 33 प्रतिशत लोग ही अभी तक गोल्डन कार्ड बनवा पाए हैं।

केंद्र सरकार ने 23 सितंबर 2018 को आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की थी। केंद्र के मानकों के अनुसार प्रदेश के 5.37 लाख परिवार ही मुफ्त इलाज के लिए दावेदार हैं। लेकिन प्रदेश सरकार ने आयुष्मान योजना का दायरा बढ़ाकर 25 दिसंबर 2018 से प्रदेश के सभी 23 लाख परिवारों के लिए निशुल्क सुविधा का ऐलान कर दिया।

अटल आयुष्मान योजना के तहत कार्ड धारकों को प्रति परिवार पांच लाख तक मुफ्त इलाज की सुविधा दी गई है। लेकिन गंभीर बीमारियों और दुर्घटनाओं को छोड़कर शेष बीमारियों के इलाज के लिए कार्ड धारक को पहले सरकारी अस्पताल में भर्ती होना अनिवार्य है। सरकारी अस्पताल में इलाज उपलब्ध न होने की स्थिति में मरीज को दूसरे सूचीबद्ध निजी अस्पतालों में रेफर करने की व्यवस्था है।

अटल आयुष्मान के तहत उत्तराखंड में करीब 17.65 लाख परिवारों के इलाज का खर्च प्रदेश सरकार करेगी, जबकि आयुष्मान भारत के तहत केंद्र 5.37 लाख पात्र परिवारों के इलाज पर होने का खर्च का भुगतान करेगा।

लेकिन इस मामले में एक पेच ये है कि जिन लोगों के राशन कार्ड 2015 के बाद बने हुए हैं, उनके आवेदन स्वीकार नहीं हो रहे हैं। इस कारण प्रदेश के हज़ारों लोग इस सुविधा से वंचित हैं। इसमें ऐसे परिवार शामिल हैं, जो नौकरी या कारोबार करने कई सालों तक उत्तराखंड से बाहर रहे और अब वापस प्रदेश में लौटकर राशन कार्ड बनवाएं हैं, या जिनके आपदाओं के चलते पुराने राशन कार्ड खो गए।

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वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंंड की आबादी एक करोड़ 86 हज़ार है। समाचार पत्र अमर उजाला की खबर के अनुसार अब तक 32 लाख 87 हजार 704 लोगों के ही गोल्डन कार्ड बने हैं। जो प्रदेश की कुल आबादी का 33 प्रतिशत है। परिवारों की संख्या के आधार पर 60 प्रतिशत परिवारों को कार्ड दिए गए हैं।

पटेल नगर निवासी अखिल सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनका राशन कार्ड 2016 का है। जब वह गोल्डन कार्ड बनाने के लिए जन सेवा केंद्र गए तो पंजीकरण में उनका राशन कार्ड नंबर स्वीकार नहीं हुआ है। उन्हें बताया गया कि योजना के तहत वर्ष 2015 से पहले के राशन कार्ड स्वीकार्य हैं।

श्रीनगर की निशा रावत का कहना है कि कई बार कोशिश करने के बाद भी अभी तक उनका गोल्डन कार्ड नहीं बन पाया है। बार-बार उन्हें जनसेवा केंद्र के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। निशा का कहना है कि सरकार ने योजना का ऐलान तो कर दिया लेकिन इसे कैसे लागू करना है। इसकी तैयारी नहीं की।

इस संबंध में राज्य अटल आयुष्मान योजना के निदेशक डॉ. अभिषेक त्रिपाठी ने मीडिया को बताया कि आयुष्मान योजना में गोल्डन कार्ड बनवाने के लिए राशन कार्ड और आधार कार्ड होना जरूरी है। योजना में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने 2015 से पहले के राशन कार्डों का डाटा लिया है। इसके बाद बने राशन कार्ड स्वीकार नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति राज्य का स्थायी निवासी है तो उसे अन्य प्रमाण देने पर योजना का लाभ मिल सकता है।

देहरादून के बीपिन सिंह बताते हैं कि उनका परिवार पहले रूद्रप्रयाग के इलाके में रहता था लेकिन जब 2013 में त्रासदी आई तो उनका परिवार देहरादून में आ गया लेकिन बाढ़ में उनके कागज़ात खो गए, बाद में यहां राशन कार्ड बना लेकिन अब ये योजना में स्वीकार्य नहीं है।

अभी प्रदेश में ऐसे कई हज़ार लोग हैं जो इस योजना के दावेदार तो हैं लेकिन उनका गोल्डन कार्ड नहीं बन पा रहा है। ऐसे में उन लोगों के स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए निश्चित ही प्रदेश सरकार को कारगर कदम उठाने होंगे।

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