विज्ञान और वैज्ञानिक संस्थाएं मोदी शासन में क्या अस्तित्व बचा पाएंगी?
इस वर्ष इंडियन साइंस कांग्रेस का आयोजन जालंधर में किया गया। इसमें साइंस कांग्रेस को फिर अपमान झेलना पड़ा जैसा पिछले कुछ वर्षों से होता आ रहा है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक वेंकटरमन रामकृष्णन ने अपने मुंबई सत्र में चर्चा के दौरान इसे एक सर्कस करार दिया। उन्होंने वक्ताओं के प्राचीन भारत में विमान और जेनेटिक इंजीनियरिंग आदि जैसे बयान को अतार्किक बताया। दीनानाथ बत्रा स्कूल से विज्ञान को लेकर निरर्थक बयान देने की शुरू हुई परंपरा अब भी जारी है। इस साइंस कांग्रेस में प्रत्येक वर्ष चौंकाने वाले दावे किए गए।
हमें आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए कि अक्षय ऊर्जा में डिग्री प्राप्त एक इंजीनियर केजे कृष्णन का दावा है कि वह आइंस्टीन, हॉकिंग और न्यूटन से बेहतर है। उनका यह मानना है कि गुरुत्वाकर्षण तरंगों को "नरेंद्र मोदी तरंग" कहा जाना चाहिए, और गुरुत्वाकर्षण लेंस को "हर्षवर्धन" लेंस कहा जाना चाहिए। चौंकाने वाली बात यह है कि क्या आंध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर और रसायनशास्त्री जीएन राव को कौरवों के टेस्ट-ट्यूब बेबी होने और रावण के पास कई प्रकार के विमान होने की बात करनी चाहिए थी।
जो सबसे ज़्यादा निंदनीय है वह यह कि इस तरह के पूरे बकवास तर्क को बच्चों के सामने विज्ञान के रूप में गंभीरता से बताया गया। वे दोनों 'मीट द साइंटिस्ट्स ऑफ द चिल्ड्रन साइंस कांग्रेस' सत्र में बोल रहे थे। निस्संदेह बच्चों में आलोचनात्मक तर्क की अधिक विकसित भावना होती है ऐसे में वे वक्ताओं के तर्कहीन तथा तथ्य से परे विचार को नकार देंगे। हम अभी भी दोषपूर्ण तर्क के साथ रह सकते हैं लेकिन हम क्या करते हैं, जब लोग वैज्ञानिक होने का दावा करते हैं, वे न केवल अप्रमाणिक सिद्धांत बल्कि अप्रमााणिक तथ्य भी प्रस्तुत करते हैं? नरेंद्र मोदी सरकार के संरक्षण में सत्य के बाद की दुनिया विज्ञान के इस प्रकार के चर्चा में प्रवेश कर रही है?
'मोदी तरंग’ का विचार देने वाले केजे कृष्णन तमिलनाडु के अलियार में वर्ल्ड कम्यूनिटी सर्विस सेंटर में एक वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक बताए जाते हैं। वर्ल्ड कम्यूनिटी सेंटर की वेबसाइट खंगालने पर पता चला कि विभिन्न लोगों के नाम की तरंगों का वर्णन करना केंद्र की एक पहचान है। इस केंद्र के संस्थापक वेथाथिरी "महर्षि" ने भी"वेथाथिरी तरंगों" की खोज की है। ये केंद्र कुंडलिनी योग सिखाता है, पाठ्यक्रम और अन्य सामग्री बेचता है, और कई अन्य धार्मिक "गुरुओं" के केंद्रों की तरह एक व्यावसायिक उद्यम है।
सवाल यह नहीं है कि धोखाधड़ी करने वाले वैज्ञानिक और नीमहकीम हैं, असल मुद्दा यह है कि देश की सबसे बड़ी वैज्ञानिक सभा इस तरह की निरर्थक मेजबानी कैसे करता है? भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के एक भाग के रूप में स्थापित साइंस कांग्रेस की संस्कृति स्वतंत्र भारत द्वारा आधुनिक राष्ट्र के रूप में इसके मत के आधार के रूप में समर्थित स्व-इच्छुक नीमहकीम को कैसे एक मंच प्रदान करता है? सवाल यह है कि साइंटिस्ट तथा साइंस एक्टिविस्ट के कई संगठन बन गए हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के विजयराघवन यह कहते हैं कि आंध्र विश्वविद्यालय के चांसलर, वाइस चांसलर जीएन राव के ख़िलाफ़ औपचारिक शिकायत दर्ज करें।
ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क ने अपने बयान में कहा:
...पुराण-विद्या को विज्ञान के साथ जोड़ा जा रहा है, जो न केवल आधारहीन और अवैज्ञानिक है बल्कि प्राचीन भारत की वास्तविक वैज्ञानिक/तकनीकी उपलब्धियों को भी नज़रअंदाज़ करता है। यह विशेष रूप से निंदनीय है कि इन अवैज्ञानिक विचारों को चिल्ड्रेन साइंस कांग्रेस में मौजूद युवा और उनके शिक्षकों को बताया जा रहा है।
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री द्वारा भारतीय विज्ञान कांग्रेस में किए गए दावे (गणेश प्लास्टिक सर्जरी के प्रतीक हैं), वर्ष 2018 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन (स्टीफन हॉकिंग को उद्धृत करते हुए कहा कि मास इनर्जी इक्वीवैलेंस का संबंध वेदों से है) और अन्य आमंत्रित वक्ता (वर्ष 2015 में आनंद बोडास ने कहा कि प्राचीन भारत में विमान परिचालन होता था; वर्ष 2016 में पांडे ने पर्यावरणविद् के रूप में शिव को बताया, शर्मा ने कहा शंख बजाने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है) के दावे वैज्ञानिक सोच को विकसित करने की आवश्यकता के संबंध में संविधान के निर्देशित सिद्धांतों की भावना के ख़िलाफ़ हैं। इसके अलावा भारतीय विज्ञान कांग्रेस का निर्दिष्ट विचार "आम लोगों के बीच वैज्ञानिक सोच को बढ़ाना" है।
इंडियन साइंस कांग्रेस के इस दुरुपयोग को रोकने के लिए ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क ने राष्ट्रपति, पीएमओ के वैज्ञानिक सलाहकार, तीन भारतीय विज्ञान अकादमियों और इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन से मांग की है कि वर्ष 2014 से छद्म विज्ञान और तर्कहीनता फैलाने के लिए इंडियन साइंस कांग्रेस के निरंतर दुरुपयोग को रोकने के लिए क़दम उठाएं…
सार्वजनिक आक्रोश और वैश्विक निंदा से नाराज़ इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन ने सभी आमंत्रित वक्ताओं से ब्योरा मांगते हुए प्रस्ताव पारित किया है कि उन्हें कोई तर्कहीन और अवैज्ञानिक दावा नहीं करना चाहिए, और आमंत्रित वक्ताओं के भाषणों का संक्षिप्त विवरण मांगा है।
इंडियन साइंस कांग्रेस उन कई सार्वजनिक संस्थानों में से एक है जिसे मोदी सरकार द्वारा कमज़ोर या नष्ट किया गया है। तीस के दशक में जर्मनी में नाजी से सहानुभूति रखने वाले सैंकड़ों वैज्ञानिकों ने यहूदी षड्यंत्र के रूप में सापेक्षता के सिद्धांत की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया था। आइंस्टीन ने जवाब दिया: काश यह सच होता तो एक वैज्ञानिक पर्याप्त होता। विज्ञान को रक्षा की आवश्यकता नहीं है; इसकी वैधता को भाषणों या बयानों के माध्यम से अस्वीकार या स्थापित नहीं किया जा सकता है। लेकिन वैज्ञानिक संस्थान करते हैं। दुर्भाग्य से इंडियन साइंस कांग्रेस ने विज्ञान के रूप में राजनीतिक शक्ति द्वारा समर्थित निरर्थक बयानों की अनुमति दे कर अपने अस्तित्व और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है।
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