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अब ट्यूनीशिया के लोकतंत्र को कौन बचाएगा?
ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति धीरे-धीरे एक तख़्तापलट को अंजाम दे रहे हैं। कड़े संघर्ष के बाद हासिल किए गए लोकतांत्रिक अधिकारों को वे धीरे-धीरे ध्वस्त कर रहे हैं। अब जब ट्यूनीशिया की अर्थव्यवस्था खस्ता हालत में है और विपक्ष भी बिखरा हुआ है, तो क्या कोई राष्ट्रपति को रोक पाएगा?
कैथरीन स्काएर, तारक गुईज़ानी, सौम्या मारजाउक
30 Apr 2022
tunisia

हनीन हब्बीसी को महसूस हो रहा है कि उन्हें धोखा दिया गया है. राजधानी ट्यूनिश के पास स्थित एक छोटे से शहर बार्दो में रहने वाले 38 साल के सरकारी कर्मचारी ने देश के मौजूदा राष्ट्रपति काएस सईद के पक्ष में मतदान किया था, दो साल पहले ही सईद ने चुनाव लड़ा था।

वह कहती हैं, "हम उनके बारे में कुछ नहीं जानते थे, इसके बावजूद मैंने उनका मजबूती से बचाव किया।" बता दें सईद पेशे से वकील रहे हैं, पिछली बार उन्होंने बिना राजनीतिक दल के चुनाव लड़ा था और भ्रष्टाचार से संघर्ष का वायदा किया था।

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लेकिन सईद के हालिया कदम ने हब्बीसी को निराश किया है। 22 अप्रैल को सईद ने घोषणा करते हुए कहा कि वे अब देश के चुनाव आयोग- ISIE (स्वतंत्र उच्च चुनाव प्राधिकरण) की कमान संभाल रहे हैं। आईएसआई की स्थापना इसलिए की गई थी, ताकि राष्ट्रीय मतपत्र वैधानिक रहें। लेकिन पिछले हफ़्ते सईद ने कहा कि वे आयोग के ज़्यादातर सदस्यों को बदलेंगे।

अबू धाबी में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में मध्य-पूर्व की राजनीति में सहायक प्रोफ़ेसर मोनका मार्क्स कहती हैं, "उन्होंने आयोग के नाम से स्वतंत्र शब्द हटा दिया है। अब ISIE द्वारा आयोजित किए जाने वाले कई चुनाव निष्पक्ष नहीं रहेंगे और इससे सईद की तानाशाही को मजबूती मिलेगी।"

ट्यूनीशिया की स्थानीय रहवासी हब्बीसी भी इससे सहमत होते हुए कहती हैं, "राष्ट्रपति का कदम, तानाशाही की तरफ बढ़ता हुआ कदम है। हम अपना कड़वा इतिहास याद करना नहीं चाहते।" यहां हब्बीसी ट्यूनीशिया के पूर्व तानाशाह जाइन अल-आबिदीन बेन अली की तरफ इशारा कर रही थीं।

नई तानाशाही का ख़तरा

अब कई ट्यूनीशियाई लोगों को डर है कि मौजूदा राष्ट्रपति तानाशाही की तरफ बढ़ रहे हैं। सईद ने 2021 जुलाई में ट्यूनीशिया की संसद को भंग कर दिया था, जिसके बाद से वे देश का ज़्यादातर नियंत्रण अपने हाथ में ले चुके हैं। उन्होंने तर्क दिया कि सांसदों में आपसी लड़ाई, राजनीतिक कसमकस, भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट, कोविड महामारी के चलते हुए नुकसान के कारण देश में चीजें दोबारा तय किया जाना जरूरी है।

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हब्बीसी की तरह कई ट्यूनीशियाई लोगों ने सईद के कदम का पहले स्वागत किया, जबकि दूसरे लोग पहले ही यह शंका जता रहे थे कि वे नए तानाशाह साबित हो सकते हैं।

पिछले 10 महीनों में यह डर सही साबित होते नज़र आ रहे हैं, हालांकि अब भी कई लोग सईद के कदमों को तख़्तापलट कहने से हिचकिचा रहे हैं। बल्कि यह एक सतत् तख़्तापलट था, जो अलग-अलग हिस्सों में लागू किया गया।

ट्यूनिश में साउथ मेडिटेरेनियन यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और कार्नेगी मिडिल ईस्ट सेंटर में नॉन-रेसिडेंट स्कॉलर हमजा मेद्देब कहते हैं, "हम यह लोकतंत्र को फिसलते देख रहे हैं. अंत में यह एक तरह की तानाशाही में तब्दील हो सकता है। संभव है कि आज ऐसा ना हो, लेकिन आने वाले हफ़्तों में ऐसा हो सकता है।

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पिछली गर्मी के बाद से सईद देश की न्यायपालिका की कमान अपने हाथ में ले चुके हैं, देश की संसद को भंग कर प्रधानमंत्री को हटा चुके हैं, उसके बाद उन्होंने एक नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया, साथ ही अपने विरोधियों को जेल में भेज रहे हैं या दंडित कर चुके हैं। 

अब सवाल उठता है कि जब किसी भी तरह की राजनीतिक शक्ति रखने वाले संस्थान सईद के नियंत्रण में आ चुके हैं, तो ट्यूनीशिया के लोकतंत्र को बचाने के लिए कौन बचा है? मेद्देब और मार्क्स का कहना है कि ट्यूनीशिया का विपक्ष बंटा हुआ है, इसमें कई सारे राजनीतिक दल एक-दूसरे से भिड़े हुए हैं। देश की सबसे बड़ी पार्टी एन्नाहादा 2011 की क्रांति के बाद से संसद में सबसे अहम ताकत रही है। नतीज़तन स्थानीय लोग देश की खस्ता हालत के लिए सेंटर-राइट स्थिति वाली, धार्मिक पार्टी को जिम्मेदार मानते हैं। इसके चलते दूसरे दलों का एन्नाहादा के साथ काम करना मुश्किल हो गया है। भले ही यह सारी पार्टियां सईद के किए-धरे का विरोध कर रही हों।

लेकिन इस हफ़्ते एन्नाहदा उन पांच राजनीतिक दलों में से एक बना, जिन्होंने सईद के शासन का विरोध करने के लिए गठबंधन बनाया है। "द न्यू नेशनल साल्वेशन फ्रंट", जिसमें राजनीतिक विरोधी और नागरिक समाज समूहों के साथ-साथ स्वतंत्र राजनेता भी शामिल हैं, उसने कहा कि वे अगले चुनाव तक ट्यूनीशिया में एक अंतरिम सरकार का गठन करना चाहते हैं, यह चुनाव दिसंबर में होने हैं।

मंगलवार को ट्यूनिश में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में नए गठबंधन को संगठित करने वाले वामपंथी राजनेता अहमद नजीब चेब्बी ने पत्रकारों से कहा, "हम वैधानिकता और लोकतंत्र की तरफ वापस जाना चाहते हैं।"

क्या आम ट्यूनीशियाई प्रतिक्रिया देंगे?

ट्यूनिश में 46 साल के शिक्षक मुराद अब्देल्लाऊई कहते हैं कि यह भी संभव है कि आम ट्यूनीशियाई एक बार फिर सड़कों पर आकर प्रदर्शन करे। "मेरा मानना है कि ट्यूनीशियाई लोग अब भी विभाजित हैं। कुछ लोगों को लगता है कि राष्ट्रपति सही कर रहे हैं, जबकि दूसरे लोगों को लगता है कि यह असंवैधानिक है। लेकिन ये लोग निश्चित तौर पर बड़े स्तर के प्रदर्शनों की अपील कर दबाव बनाने की कोशिश करेंगे।"

#Tunisia #Future of 🗣#Democracy
77.9% of registered voters polled were worried about the future of democracy and human rights in the country (the rate was 42% on 3rd august few days after 25 july 2021) #InsightsTN #Poll 10-16feb2022 pic.twitter.com/ugCSbJ3Abh

— Insights TN (@InsightsTn) April 11, 2022

हाथरिया बेनाशिया को डर है कि एक बार फिर "सड़कों पर विद्रोही भीड़" आ जाएगी। उत्तरी ट्यूनीशिया के एक कस्बे सिलियाना में रहने वाली 75 साल की पेंशनभोगी बेनाशिया कहती हैं, "मुझे शुरू से ही सईद का भाषण पंसद नहीं है। मैं निश्चित तौर पर कह सकती हूं कि वे धीरे-धीरे बेन अली के तंत्र की तरह ही व्यवस्था को ले जा रहे हैं।" 

जब पिछली गर्मी में पहली बार सईद ने सत्ता अपने हाथ में ली थी, तो सर्वे में पता चला था कि ज़्यादातर स्थानीय लोगों को लगा था कि वे सही और जरूरी चीज कर रहे हैं। लेकिन स्थानीय बाज़ार शोध फर्म, इनसाइट टीएन के मुताबिक़ अब यह स्थिति बदल चुकी है। अगस्त 2021 में 49.8 फ़ीसदी लोगों ने उनका समर्थन किया था। लेकिन इस साल फरवरी में यह आंकड़ा गिरकरह 23.2 फ़ीसदी पर आ गया है।

क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय कर सकता है हस्तक्षेप?

देश के बाहर से भी ट्यूनीशिया पर दबाव आ रहा है। जो देश सैन्य और आर्थिक सहायता के ज़रिए ट्यूनीशिया को मदद करते हैं, वे पिछले साल सईद द्वारा सत्ता अपने हाथ में लेने के दौरान सावधान हो गए थे।

ट्यूनीशिया के राजनीतिक विश्लेषक सेइफेद्दीन फरजनी ने अमेरिका स्थित संगठन "डेमोक्रेसी फॉर द अरब वर्ल्ड" के लिए लिखा, "अमेरिका ने अब तक सईद के तख़्तापलट को तख़्तापलट नहीं कहा है, क्योंकि इससे अमेरिका को ट्यूनीशिया को दी जाने वाली मदद रोकनी पड़ती। कई पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों ने ट्यूनीशिया के लोकतंत्र को धीरे-धीरे खत्म करने की सईद की कोशिशों पर बड़ी चुप्पी साध रखी है।"

ट्यूनीशियाई विशेषज्ञ मार्क कहते हैं कि अब यह स्थिति धीरे-धीरे बदल रही है, क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय संघ के कूटनीतिज्ञ और राजनेता सईद से समावेशी और लोकतांत्रिक तत्वों का सुधारों में समावेश करने के लिए कह रहे हैं।

1/3 STATE DEPARTMENT PRESS BRIEFING
March 31, 2022
Spokesperson Ned Price

The United States is deeply concerned by the 🇹🇳 President's decision to unilaterally dissolve the parliament & reports that 🇹🇳 authorities are considering legal measures against members of parliament. pic.twitter.com/TgdL4d7dku

— U.S. Embassy Tunis (@usembassytunis) March 31, 2022

अगर सईद इन आवाज़ों को सुनने के लिए तैयार हुए, तो ऐसा ट्यूनीशियाई अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत के चलते होगा।

सईद द्वारा सत्ता हथियाए जाने के पहले से ही ट्यूनीशिया रुकी हुई अर्थव्यवस्था से जूझ रहा था, जिस स्थिति को कोविड महामारी ने और भी खराब कर दिया। अब यूक्रेन युद्ध के चलते ईंधन और बुनियादी खाद्यान्नों की कीमत भी बढ़ रही है।

फिलहाल देश का सार्वजनिक कर्ज, देश के सभी नागरिकों की आय के बराबर है। दिवालिया होने से बचने के लिए ट्यूनीशिया अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ बातचीत कर रहा है। यह बातचीत तीसरे बिलियन डॉलर वाले पैकेज के लिए की जा रही है। इस साल के मध्य तक एक समझौते होने के आसार हैं।

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वित्तीय मदद

लेकिन वित्तीय मदद से सईद के व्यवहार पर अंकुश भी लगाने में मदद मिल सकती है।

ECFR (यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस) में वरिष्ठ नीति अध्येता एंथनी ड्वार्किन लिखते हैं, "अगर सईद एक समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया को लगातार खारिज करते रहते हैं, तो यूरोप और ट्यूनीशिया के दूसरी बाहरी साझेदारों को मदद जारी रखने या फिर आईएमएफ के समझौते का विरोध करने में से एक विकल्प चुनना होगा।

मेद्देब का मानना है कि सिर्फ़ एक चीज से ट्यूनीशिया का लोकतंत्र वापस नहीं आ जाएगा, इसके लिए कई चीजों का मिश्रण जरूरी होगा। वे कहते हैं, "आर्थिक तत्वों से तब तक बदलाव नहीं आएगा, जब तक एक संयुक्त और मजबूत विपक्ष का निर्माण नहीं होता, जो लोगों को समझा सकता है कि वे आर्थिक चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।"

मार्क्स मानती हैं कि सबसे आर्थिक तत्व सबसे अहम हो सकता है। पिछले प्रदर्शनों में, जिनमें बेन अली को सत्ता से हटाने वाले प्रदर्शन भी शामिल थे, उनमें ट्यूनीशियाई लोगों ने स्वतंत्रता और सम्मान की मांग की थी। वह कहती हैं, "कई लोगों के लिए सम्मान का मतलब होता है कि वे अपने सामने खाने की थाली पेश कर सकें और उनके परिवारों को बढ़िया जिंदगी हासिल हो सके। इसलिए अर्थव्यवस्था हमेशा एक केंद्रीय चिंता रहेगी।"

लेकिन राष्ट्रपति सईद के पास अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ज़्यादा योजना नहीं है। इसलिए ट्यूनीशियाई लोगों को इकट्ठा होने और एक योजना बनाने की जरूरत है।

मार्क्स कहती हैं, "मेरे लिए एक अहम सवाल यह है कि क्या ट्यूनीशियाई आबादी का एक हिस्सा, सईद द्वारा अपनी ताकत को पूरी तरह मजबूत करने से पहले यह समझ पाएगा कि सईद अर्थव्यवस्था को लेकर बेबस हैं और उनके खिलाफ़ खड़ा हो पाएगा। यहां समय को लेकर बड़ा सवाल है। लेकिन दुखद तौर पर मुझे स्थिति बहुत सकारात्मक नहीं दिखाई दे रही है।"

संपादित: एंड्रियास इल्मर

साभार: डीडब्ल्यू

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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