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क्यों बाइडेन पश्चिम एशिया को अपनी तरफ़ नहीं कर पा रहे हैं?

बाइडेन प्रशासन को रूस के ख़िलाफ़ पारंपरिक पश्चिम एशियाई देशों को लामबंद करने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है, जिससे इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव पर सवाल उठ रहा है।
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दशकों से, पश्चिम एशिया में अमेरिकी नीति सऊदी के नेतृत्व वाले खाड़ी देशों खासकर, इज़राइल, मिस्र और तुर्की के साथ समन्वय बनाए रखने पर निर्भर रही है। हालांकि, ओबामा प्रशासन के आने बाद से, पश्चिम एशिया में वाशिंगटन और उसके मुख्य क्षेत्रीय सहयोगियों के बीच संबंध खराब हो गए थे, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पश्चिम एशियाई संकटों का प्रबंधन करने और क्षेत्र में आम सहमति बनाने की क्षमता को धक्का लगा है।

रूस के यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद से वाशिंगटन को पश्चिम एशियाई देशों के साथ बने अशांत संबंध विशेष रूप से अब स्पष्ट हो गए हैं। हालांकि, सभी पश्चिम एशियाई देश जो कि अमेरिका के सहयोगी हैं- ने सऊदी के नेतृत्व वाले खाड़ी देशों, इज़राइल, मिस्र और तुर्की- ने यूक्रेन युद्ध शुरू पर मार्च में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में रूस की निंदा की है, इनमें भी केवल इज़राइल ने प्रतिबंधों को लागू किया है, वह भी बहुत ही न्यूनतम।

पश्चिम एशियाई क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोगियों द्वारा प्रतिबंध लगाने की अनिच्छा रूस के विरोध से बचने के उनके इरादे को दर्शाती है, जो इस क्षेत्र में सबसे  प्रभावशाली है, और वाशिंगटन के साथ उनके असंतोष को भी दर्शाता है और इस धारणा की पुष्टि करता है कि क्षेत्र में अमरीका का प्रभाव है घट रहा है

सऊदी अरब के साथ अमेरिका के संबंध 2015 में विशेष रूप से बिगड़ने लगे थे। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा लागू किए गए ईरान परमाणु समझौते ने रियाद में काफी चिंता पैदा कर दी थी, जबकि यमन में सऊदी अरब के हस्तक्षेप को, जो उसी वर्ष भी शुरू हुआ था, को केवल गुनगुना अमेरिकी समर्थन मिला था। ओबामा के उत्तराधिकारी, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2017 में व्हाइट हाउस में प्रवेश करने के बाद राष्ट्रपति के रूप में सऊदी अरब की अपनी पहली विदेश यात्रा पर जाने और देश में हथियारों की बिक्री बढ़ाने के लिए सऊदी समर्थक दृष्टिकोण अपनाया था।

हालांकि, राष्ट्रपति बाइडेन ने अपने 2020 के राष्ट्रपति पद के अभियान के दौरान सऊदी अरब के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया था। उन्होंने घोषणा की थी कि अगर वे चुने गए तो सऊदी अरब को एक "ख़ारिज़" मुल्क बना देंगे, और उन्होने यमन में सऊदी नीतियों की आलोचना की और देश से सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की 2018 की हत्या के लिए जवाबदेही का आह्वान किया था।

बाइडेन के राष्ट्रपति अभियान के दौरान अपनाया गया विदेश नीति रुख, राष्ट्रपति बनने के बाद भी जारी रहा। 2021 में कार्यालय में प्रवेश करने के हफ्तों बाद, बाइडेन ने खशोगी की हत्या पर 2018 की अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट जारी की थी - जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि तुर्की में खसोगी की हत्या "सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान" की बिना पर की गई थी, जिसे वे सऊदी शासन के प्रति खतरा मानते थे। सऊदी अरब को हथियारों की बिक्री पर रोक लगा दी गई थी, यमन में सऊदी अभियान को अमेरिकी समर्थन समाप्त करने की घोषणा की गई और यमन के ईरान समर्थित हौथी विद्रोहियों को अमेरिकी आतंकवाद सूची से हटा दिया गया था।

पश्चिम एशिया में अमेरिकी उपस्थिति को कम करने की बाइडेन की मंशा, ओबामा प्रशासन के बाद चले एक चलन का ही हिस्सा है, जिसने रियाद में अमरीकी रुख को लेकर चिंता पैदा कर दी थी। सद्दाम हुसैन, जिसने इराक से लेकर ईरान तक पर शासन किया, पश्चिम एशिया में खतरों को रोकने में सउदी ने लंबे समय तक अमेरिकी उपस्थिति पर भरोसा किया था, और पश्चिम एशिया में संयुक्त राज्य अमेरिका के बाइडेन के राजनयिक रुख ने खुद की सुरक्षा को लेकर सऊदी में भय को बढ़ा दिया था।  .

2021 में, 300 से अधिक हौथी ड्रोन और मिसाइल से सऊदी पर किए गए हमले, और हाल ही में हौथी विद्रोहियों ने संयुक्त अरब अमीरात पर भी हमले किए गए हैं। यूएई भी यमन में सऊदी के नेतृत्व वाले अभियान में शामिल हो गया है।

खाड़ी देशों की बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और इस बात का पक्का होना कि अमेरिका उन्हें संतोषजनक सहायता प्रदान को तैयार नहीं है, तो सुरक्षा गारंटरों के रूप में विविधता पैदा करने के अरब प्रयासों को बढ़ावा मिला है। उदाहरण के लिए, अगस्त 2021 में सऊदी अरब और रूस ने "दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य सहयोग विकसित करने के उद्देश्य से" एक सैन्य सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यूएई ने दिसंबर 2021 में दर्जनों फ्रेंच राफेल जेट और हेलीकॉप्टर खरीदने पर सहमति जताई थी और जनवरी 2022 में एक वायु रक्षा प्रणाली (रूसी डिजाइन पर आधारित) के लिए दक्षिण कोरिया के साथ अरबों डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे।

दिसंबर 2021 में यह भी पता चला था कि सऊदी अरब चीनी सहायता से अपनी मिसाइलों का निर्माण कर रहा है, जबकि संयुक्त अरब अमीरात में निर्माणाधीन एक संदिग्ध चीनी सैन्य अड्डे को नवंबर 2021 में अमेरिका के दबाव के बाद बंद कर दिया गया था।

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात दोनों के नेताओं ने हाल ही में यूक्रेन संकट पर चर्चा करने के लिए बाइडेन के आह्वान को उस वक़्त अस्वीकार कर दिया था जब रूस ने देश पर हमला किया था, जबकि रियाद ने फरवरी 2022 के मध्य में तेल उत्पादन बढ़ाने और तेल की कीमतों को कम करने में मदद करने के लिए अमेरिकी आह्वान को भी खारिज कर दिया था। और मार्च में 2022 में, सऊदी अरब और कतर ने पश्चिम एशिया में संकटों की उपेक्षा करते हुए यूक्रेन में रूस के प्रति दृढ़ प्रतिक्रिया के लिए पश्चिम की आलोचना की थी।

हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ इजरायल के संबंधों में भी उतार-चढ़ाव आया है। ओबामा और इजरायल के पूर्व राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू ने फिलिस्तीन के साथ-साथ ईरान के 2015 के परमाणु समझौते पर तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। ट्रम्प के तहत यूएस-इजरायल संबंधों को पुनर्जीवित किया गया, जिन्होंने अमेरिकी दूतावास को यरुशलम में स्थानांतरित कर दिया, गोलान हाइट्स पर इजरायल की संप्रभुता को मान्यता दी और ईरान के खिलाफ (ईरान परमाणु समझौते को रद्द करने सहित) अधिक सख्त दृष्टिकोण अपनाया था।

लेकिन ईरान परमाणु समझौते को फिर से लागू करने के बाइडेन प्रशासन के नए प्रयासों के साथ-साथ वेस्ट बैंक में इजरायल की बस्तियों के विस्तार पर चेतावनियों ने अमेरिका-इजरायल संबंधों को फिर से जटिल बना दिया है। ईरान और सीरिया पर रूस के प्रभाव ने भी इज़राइल को क्रेमलिन की निंदा करने के मामले में सतर्क कर दिया है, क्योंकि ऐसा न हो कि दोनों देशों के भविष्य के संकटों को कम करने के मामले में मास्को की सहायता की जरूरी हो जाए।

मिस्र में धारणा बनी हुई है कि मिस्र में व्यापक अरब स्प्रिंग के बाद राष्ट्रव्यापी विरोध का सामने करने के बाद 2011 में मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक का साथ अमेरिका ने छोड़ दिया था। उनके पतन के बाद, मोहम्मद मुर्सी के नेतृत्व में मुस्लिम ब्रदरहुड ने एक वर्ष से अधिक समय तक देश का नेतृत्व किया, जब तक कि व्हाइट हाउस द्वारा निंदा किए गए एक सैन्य तख्तापलट ने उन्हें 2013 में अपदस्थ नहीं कर दिया था।

2014 से देश का नेतृत्व करने वाले राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सीसी के तहत मिस्र के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंधों को वापस बनाने के लिए बाइडेन ने एक कठोर दृष्टिकोण अपनाया है। जबकि अमेरिका ने मिस्र को अपनी सैन्य सहायता बनाए रखी है, लेकिन देश में बढ़ती मानवाधिकारों की चिंताओं को लेकर उसने जनवरी 2022 में सैन्य सहायता में 130 मिलियन डॉलर की कटौती की है। अमरीका के इस कदम ने, यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया के मामले में मिस्र के उत्साह को कुंद कर दिया था। 

यूक्रेन को लेकर रूस के साथ बढ़ते तनाव से मिस्र की खाद्य सुरक्षा पर भी गंभीर परिणाम होंगे। यूक्रेन और रूस दोनों मिस्र के लिए प्रमुख खाद्य निर्यातक हैं, और 2010-2011 में अनाज की कीमतों में बढ़ोतरी ने सार्वजनिक निराशा को बढ़ाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई जो अरब स्प्रिंग या बगावत में समाप्त हुई थी। रूस पर प्रतिबंध लगाकर काहिरा अपनी नाजुक खाद्य स्थिति को और अधिक खतरे में नहीं डाल देगा। इसके अलावा, 2014 से मिस्र और रूस के बीच बढ़ते सैन्य और ऊर्जा संबंधों ने भी दोनों देशों के बीच सकारात्मक संबंधों को मजबूत करने में मदद की है।

पिछले दशक में अमेरिका-तुर्की संबंधों में गिरावट भी तेजी से स्पष्ट हो गई है। राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन को अपनी घरेलू नीतियों पर अमेरिकी आलोचना का सामना करना पड़ा है, जबकि तुर्की में कई लोगों ने अमेरिका पर तख्तापलट के प्रयास में शामिल होने का आरोप लगाया है जिसने 2016 में एर्दोआन को सत्ता से लगभग हटा दिया था।

2018 में, ट्रम्प प्रशासन ने दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बाद तुर्की के एल्यूमीनियम और स्टील निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिए थे। अगले वर्ष, 2019 में, तुर्की रूस की एस-400 वायु रक्षा प्रणाली को खरीदने के लिए सहमत हो गया था, जिससे तुर्की को अमेरिका के साथ एफ-35 ज्वाइंट स्ट्राइक फाइटर प्रोग्राम से हटा दिया गया था, और दिसंबर 2020 में तुर्की पर अधिक अमेरिकी प्रतिबंध लगाए दिए गए थे।

तुर्की ने रूस के साथ अपने आर्थिक संबंधों को ऊर्जा सौदों, पर्यटन संबंधों और व्यापार के माध्यम से भी बढ़ाया है। रूस तुर्की का सबसे बड़ा आयातक है, और तुर्की के जेट विमानों ने उस वक़्त रूसी बमवर्षक को मार गिराया था जब 2015 में वे सीरिया के ऊपर से उड़ान भर रहे थे, बावजूद इसके आर्थिक संबंध विकसित होते रहे हैं, जबकि रूस के अनुसार वह रहा था - लीबिया, सीरिया और पूर्व सोवियत संघ के देश में छद्म युद्धों में उनका विरोधी पक्ष रहा है।

अब तक, तुर्की ने रूस पर लगे प्रतिबंधों का विरोध किया है, और रूस को अलग-थलग करने के  पश्चिम आह्वान से बचाने को कहा है और इसके बजाय, रूस-यूक्रेन संघर्ष में संवाद पर ध्यान केंद्रित करने पर ध्यान दिया है। स्पष्ट रूप से, इस क्षेत्र में प्रमुख अमेरिकी सहयोगियों, विशेष रूप से तुर्की और सऊदी अरब के साथ, रूस के तनावपूर्ण संबंधों ने क्रेमलिन को यूक्रेन पर अपने आक्रमण करने के लिए अधिक क्षेत्रीय झटके को रोकने में पश्चिम एशिया में अपनी शक्ति का लाभ उठाने से नहीं रोका है।

2011 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मिस्र के मुबारक को बर्खास्त करने के साथ-साथ ईरान के साथ बाइडेन प्रशासन के मौजूदा तालमेल ने पहले से ही अस्थिर क्षेत्र में अमेरिकी विदेश नीति की द्विध्रुवी प्रकृति को फिर से रेखांकित किया है। इसकी तुलना में, सीरियाई गृहयुद्ध में सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के लिए रूस के समर्थन ने दिखाया है कि क्रेमलिन अपने सहयोगियों को लगातार समर्थन देने के लिए तैयार है, भले ही वे स्वयं तीव्र दबाव में क्यों न हो। 

यह विश्वास कि अमेरिका अपने पारंपरिक पश्चिम एशियाई सहयोगियों को सार्थक समर्थन नहीं दे सकता है, इसका मतलब है कि उनके सहयोगी स्वाभाविक रूप से रूस को परेशान करने के मामले में काफी सावधान हैं, जिसने हाल के वर्षों में पश्चिम एशिया में अपनी अधिक सुसंगत रणनीति के कारण अपने क्षेत्रीय प्रभाव को काफी बढ़ा दिया है। उनके सामने पेश करने के लिए आमिरका के पास कुछ भी नया नहीं है, इस क्षेत्र में बाइडेन प्रशासन अमेरिकी सहयोगियों को अपने दूर जाने के ज़ोखिम को बढ़ा रहा है।

जॉन पी. रुएहल वाशिंगटन, डीसी में रहने वाले एक ऑस्ट्रेलियाई-अमेरिकी पत्रकार हैं। वह सामरिक नीति के मामले में योगदान करने वाली संपादक हैं और कई अन्य विदेशी मामलों के प्रकाशनों में योगदान देते हैं।

यह लेख Globetrotter में प्रकाशित हो चुका है 

(नोट: न्यूज़क्लिक ने इस लेख में शैली से संबंधित कुछ बदलाव किए हैं)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

Why Biden Can’t Woo West Asia

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