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ख़बरों  के आगे-पीछे : एजेंसियों की साख पर इसलिए उठते हैं सवाल

कौन सी केंद्रीय एजेंसी या संवैधानिक संस्था कब क्या करेगी? कब किस विपक्षी नेता के यहां छापा पड़ेगा? कब कौन विपक्षी नेता जेल जाएगा? इस तरह की सारी बातें भाजपा के कुछ नेताओं को पहले से पता होती है या कम से कम वे यह जाहिर करते हैं कि उन्हें सब कुछ पहले से पता है।
CBI and ED

कौन सी केंद्रीय एजेंसी या संवैधानिक संस्था या न्यायपालिका कब क्या करेगी? कब किस विपक्षी नेता के यहां छापा पड़ेगा? कब कौन विपक्षी नेता जेल जाएगा? कब किस विपक्षी नेता के खिलाफ अदालत का फैसला आएगा? किस विपक्षी नेता की विधानसभा की सदस्यता जाएगी? इस तरह की सारी बातें भाजपा के कुछ नेताओं को पहले से पता होती है या कम से कम वे यह जाहिर करते हैं कि उन्हें सब कुछ पहले से पता है। ऐसा नहीं है कि अपनी इस जानकारी को वे छिपा कर रखते है और गिने-चुने लोगों के साथ निजी बातचीत में ही जाहिर करते है। वे बाकायदा सोशल मीडिया में पोस्ट लिख कर जानकारी को सार्वजनिक करते हैं।

ऐसे नेताओं मे मुख्य रूप से चार नाम हैं- गोड्डा झारखंड के सांसद निशिकांत दुबे, पश्चिम बंगाल में भाजपा विधायक दल के नेता शुभेंदु अधिकारी, दिल्ली में कपिल मिश्रा और महाराष्ट्र में मोहित कंबोज। ये नेता जो कहते हैं, वैसा ही होता भी है। जैसे मोहित कंबोज का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था कि 30 जून को महाराष्ट्र सरकार गिर जाएगी। उनकी यह भविष्यवाणी सही हो गई। अब उन्होंने कहा है कि एनसीपी के एक बड़े नेता जेल जाएंगे। उनका इशारा अजित पवार की ओर है। कंबोज ने दावा किया है कि उन्होंने पहले ही कहा था कि नवाब मलिक, संजय राउत और संजय पांडेय जेल जाएंगे तो तीनों जेल गए।

निशिकांत दुबे ने ट्विटर पर ऐलान किया हुआ है कि दुमका और बरहेठ सीट पर उपचुनाव होगा। इसका मतलब है कि उनको पता था कि दुमका के विधायक बसंत सोरेन और बरहेठ के विधायक हेमंत सोरेन की सदस्यता जाने वाली है। इसी तरह दिल्ली में कपिल मिश्रा ने मनीष सिसोदिया के यहां छापे के बाद कहा 'एक और विकेट गिरा, अब बड़े विकेट की बारी है।’ पश्चिम बंगाल में शुभेंदु अधिकारी ने तृणमूल सरकार के मंत्रियों की गिरफ्तारी की भविष्यवाणी की थी और गिरफ्तारी शुरू भी हो गई। सवाल है कि इन नेताओं को जांच एजेंसियों की कार्रवाई और अदालतों के फैसलों की जानकारी पहले से कैसे होती है? क्या इन नेताओं को पहले से जानकारी होना केंद्रीय एजेंसियों और न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा नहीं करता है?

दलाई लामा को भारत रत्न देगी सरकार?

भारत सरकार अगले साल 26 जनवरी पर अन्य नागरिक सम्मानों की घोषणा के साथ ही तिब्बतियों के सर्वोच्च धर्मगुरू दलाई लामा को भारत रत्न देने की घोषणा कर सकती है। इसका आधार तैयार किया जा रहा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद कई साल तक नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई नहीं दी थी। ऐसा वे चीन से अच्छे संबंध बनाए रखने के मकसद से करते थे लेकिन पिछले दो साल से प्रधानमंत्री मोदी उनको जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं। इसका मतलब है कि भारत ने चीन को लेकर अपनी नीति में बदलाव किया है। अब भारत यह संकेत दे रहा है कि अगर चीन उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान नहीं करेगा तो भारत भी वन चाइना पॉलिसी पर सवाल उठा सकता है। इसीलिए तिब्बत पर बने भारतीय सांसदों के एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने दलाई लामा को भारत रत्न देने का प्रस्ताव दिया है। पिछले साल इस प्रतिनिधिमंडल को लेकर चीन ने सवाल उठाया था। इस बार संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने यह सुझाव भी दिया है कि संसद का साझा सत्र बुलाया जाए और दलाई लामा उसे संबोधित करे। ये दोनों प्रस्ताव सरकार को भेजे गए हैं, जिन पर सरकार को फैसला करना है। अगर भारत ऐसा करता है तो यह बहुत बड़ी बात होगी।

नीतीश और केजरीवाल पर मीडिया क्यों मेहरबान?

सरकार के ढिंढोरची की भूमिका निभा रहे मीडिया में इन दिनों एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 2024 के लिए प्रधानमंत्री पद के विपक्ष का चेहरा बनाया जा रहा है तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के इस दावे को उछाला जा रहा है कि 2024 का चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल होगा। सवाल है कि आखिर इस प्रचार का किसे फायदा और किसे नुकसान हो रहा है? इस प्रचार का सीधा फायदा भाजपा को और नुकसान कांग्रेस को हो रहा है। राजनीति में कोई भी नैरेटिव बहुत लंबे समय तक नहीं चलता है। इसलिए अभी नीतीश और केजरीवाल को लेकर जो नैरेटिव बन रहा है उसकी उम्र गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव तक है, जो अगले दो-तीन महीने में होने वाले हैं। इन दोनों राज्यों में भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है। हिमाचल में तो हर पांच साल पर सत्ता बदलते रहने का रिवाज भी है। पिछले दिनों हुए लोकसभा की एक और विधानसभा की चार सीटों के उपचुनाव में भाजपा की हार के बाद कांग्रेस के लिए अच्छी संभावना देखी जा रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी वहां पहुंची है कांग्रेस का खेल बिगाड़ने। इसी तरह गुजरात में पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बहुत कड़ी टक्कर देकर लगभग बराबरी का मुकाबला बना दिया था। लेकिन इस बार पिछले कुछ महीनों से आम आदमी पार्टी की सक्रियता ने कांग्रेस को कमजोर किया है। स्थानीय निकाय चुनावों में भी उसने कांग्रेस का नुकसान किया है। इसीलिए ऐसा लगता है कि जान-बूझकर कांग्रेस पर से फोकस हटा कर मीडिया में नीतीश कुमार और केजरीवाल के प्रचार से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले कांग्रेस नहीं बल्कि ये दोनों नेता हैं। इससे अपने आप दोनों राज्यों में कांग्रेस की संभावना कम होगी।

अब क्या करेंगे नकवी और शाहनवाज?

लगता है कि भाजपा ने अब किसी भी मुस्लिम चेहरे को सरकार या संगठन कोई बडी जिम्मेदारी नहीं मिलेगी। मुख्तार अब्बास नकवी को जब इस बार राज्यसभा में नहीं भेजा गया तो उन्हें केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद एक अन्य घटनाक्रम में सैयद शाहनवाज हुसैन ने भी सारे पद गंवा दिए। बिहार में जनता दल यू के गठबंधन तोड़ देने से भाजपा वहां सत्ता से बाहर हो गई और शाहनवाज का मंत्री पद चला गया। उसके तुरंत बाद दिल्ली में भाजपा ने केंद्रीय चुनाव समिति में बदलाव किया और शाहनवाज को उसमें से बाहर कर दिया गया। सो, भाजपा के दोनों मुस्लिम चेहरों के पास अब कोई जिम्मेदारी नहीं है। सवाल है कि ये दोनों अब क्या करेंगे? क्या भाजपा इन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाएगी? जानकार सूत्रों के मुताबिक इसकी संभावना कम है कि भाजपा अब किसी मुस्लिम को राज्यपाल का पद देगी। अभी इकलौते मुस्लिम राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान हैं, जिनका कार्यकाल सितंबर 2024 तक है। ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने परोक्ष रूप से आगामी चुनाव को 80 बनाम 20 का बनाना तय कर लिया है। अब केंद्र सरकार में कोई मुस्लिम मंत्री नहीं है। संसद के दोनों सदनों में भाजपा के करीब चार सौ सांसदों में एक भी मुस्लिम नहीं है। भाजपा के संसदीय बोर्ड, चुनाव समिति और महासचिवों में भी कोई मुस्लिम नहीं है। यहां तक कि किसी राज्य में उसका कोई मुस्लिम विधायक भी नहीं है। अगले चुनाव में किसी मुस्लिम को टिकट नहीं देकर भाजपा अपना चुनावी एजेंडा और स्पष्ट करेगी।

अधिकारियों पर सरकार का अविश्वास!

सरकार और नौकरशाही के रिश्तों को लेकर दो बातें कही जाती हैं। एक सरकार ऐसी होती है, जो मानती है कि कोई भी अधिकारी है वह उसका है और उसके हिसाब से काम करेगा। दूसरी सरकार होती है, जिसको लगता है कि हमें अपना अधिकारी रखना चाहिए। ऐसा लग रहा है कि मौजूदा सरकार दूसरी थ्योरी पर चल रही है। उसे सभी अधिकारियों पर भरोसा नही है इसलिए वह आजमाए हुए अधिकारियों को ही बनाए रखना चाहती है। कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को एक साल का और सेवा विस्तार मिलने के बाद यह बात और प्रमाणित हुई है। वे अगस्त 2023 तक सर्वोच्च नौकरशाह रहेंगे। उसके अगले साल चुनाव है तो फिर सेवा विस्तार मिल जाए तो हैरानी नहीं होगी। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला भी सेवा विस्तार पर है। उन्हें अगस्त 2021 में एक साल का सेवा विस्तार दिया गया था जो इस महीने खत्म हो रहा है लेकिन अभी तक उनके उत्तराधिकारी की घोषणा नही हुई है। हो सकता है कि उन्हें फिर सेवा विस्तार मिल जाए या कोई दूसरी अहम पोस्टिंग मिल जाए। जैसे इंटेलीजेंस ब्यूरो यानी आईबी के निदेशक रहे अरविंद कुमार के साथ हुआ। उन्हें पहले आईबी निदेशक के तौर पर सेवा विस्तार मिला और उसके बाद रिटायर हुए तो विजिलेंस कमिश्नर बना कर सीवीसी में बैठा दिया गया। दूसरी खुफिया एजेंसी रॉ के प्रमुख सामंत गोयल भी सेवा विस्तार पर है और देश की सबसे चर्चित एजेंसी ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय मिश्रा भी सेवा विस्तार पर है। उनके सेवा विस्तार का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सरकार उन्हें एक-एक साल के दो सेवा विस्तार दे चुकी है। हाल में दिल्ली पुलिस कमिश्नर पद से रिटायर हुए गुजरात काडर के राकेश अस्थाना भी सेवा विस्तार पर ही थे। उनकी जगह नया अधिकारी भी सरकार तमिलनाडु काडर से ले आई है।

जैन को अभी भी मंत्री क्यों बनाए हुए हैं केजरीवाल?

खुद को कट्टर ईमानदार बताने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल में बंद अपने एक मंत्री सत्येंद्र को अभी तक बरखास्त नहीं किया है। उनके विभाग जरूर उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को दे दिए गए हैं। सत्येंद्र जैन की स्थिति जेल में बंद बिना विभाग के मंत्री की है। लेकिन कट्टर ईमानदार नेता ने हवाला कारोबार करने के आरोप में गिरफ्तार मंत्री के मामले में अब दूसरे आयाम भी जुड़ गए है, जिसे लेकर अदालत में एक याचिका भी दायर हुई थी। हालांकि अदालत ने उस पर विचार करने से इनकार कर दिया। लेकिन उस याचिका में बहुत जायज सवाल उठाए गए थे। याचिकाकर्ता ने कहा था कि सत्येंद्र जैन मानसिक रूप से अस्थिर हो गए हैं और कानून कहता है कि मानसिक रूप से अस्थिर किसी व्यक्ति को मंत्री नहीं बनाया जा सकता है। हालांकि अदालत ने कहा कि वह जैन को मानसिक रूप से अस्थिर मान कर उन्हें मंत्री पद से नहीं हटा सकती है। भले अदालत ने उनको हटाने से इनकार कर दिया हो लेकिन यह हकीकत है कि जैन ने हवाला मामले में ईडी की पूछताछ मे कहा था कि उनकी याददाश्त चली गई है। वे कई बातें भूल गए हैं। अगर उनको भूलने की बीमारी है तब भी वे कैसे मंत्री रह सकते हैं। अव्वल तो जेल जाने के बाद उनको मंत्री रखने का कोई औचित्य नहीं है लेकिन जब वे खुद ही कह रहे हैं कि वे बातें भूल रहे हैं तब तो उनको कतई मंत्री पद पर नहीं रखना चाहिए।

शराब नीति की गड़बड़ी पर शिक्षा का परदा

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के यहां सीबीआई ने शराब नीति को लेकर छापा मारा है लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित लेकर आम आदमी पार्टी के तमाम नेता मीडिया को बता रहे हैं कि सिसोदिया कितने अच्छे शिक्षा मंत्री हैं। केजरीवाल ने उन्हें दुनिया का सबसे अच्छा शिक्षा मंत्री बताया तो भगवंत मान ने उनको भारत का अब तक का सबसे अच्छा शिक्षा मंत्री कहा। सवाल है कि जब कार्रवाई शराब नीति को लेकर हो रही है तो बेस्ट शिक्षा मंत्री होने का ढिंढोरा पीटने की क्या जरूरत है? आम आदमी पार्टी के नेता क्यों नहीं बता रहे कि नई शराब नीति में कुछ भी गड़बड़ी नहीं हुई? दिल्ली की नई शराब नीति पिछले साल नवंबर में लागू हुई थी और पिछले महीने जब उप राज्यपाल ने इसकी जांच सीबीआई को सौंपी तो दिल्ली सरकार ने कई तरह की बातें करते हुए नई शराब नीति को वापस लेने की घोषणा कर दी। सवाल है कि जब नीति सही है तो उसे लागू क्यों रहने दिया गया? इसमें गड़बड़ी और पैसे की लेन-देन की जांच सीबीआई और ईडी कर रही है और उसका जो भी नतीजा निकले वह अपनी जगह है। लेकिन पैसे की गड़बड़ी से इतर भी देखें तो दिल्ली सरकार की नई शराब नीति बहुत खराब थी। हो सकता है कि सिसोदिया देश-दुनिया के बेस्ट शिक्षा मंत्री हो, पर कार्रवाई तो नई शराब नीति को लेकर हो रही है।

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