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क्या केरल कोविड-19 संक्रमण संभालने में विफल रहा? आंकड़ों से जानिए सच!

केरल में पिछले चार दिनों में लगातार कोविड-19 के मामले 20,000 से अधिक दर्ज किए जा रहे हैं जोकि वर्तमान में पूरे भारत के मुक़ाबले लगभग आधे दैनिक मामले हैं, जिसके चलते संदेह किया जा रहा है कि राज्य महामारी को कितनी प्रभावी ढंग से संभाल पा रहा है।
क्या केरल कोविड-19 संक्रमण संभालने में विफल रहा? आंकड़ों से जानिए सच!
Image Courtesy: PTI

भारत में कोविड-19 का पहला मामला 30 जनवरी, 2020 को केरल में पाया गया था। तब से, केरल में 33.7 लाख से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं और करीब 16,701 मौतें हो चुकी हैं। इन बीते 19 महीनों के दौरान विभिन्न समयों में भारत में रिपोर्ट किए गए दैनिक मामलों के चार्ट में राज्य अब सबसे ऊपर है। आज की तारीख में, केरल राज्य, जिसमें देश की आबादी का लगभग 2 से 3 प्रतिशत हिस्सा रहता है, उसमें कुल दैनिक मामलों का लगभग 50 प्रतिशत भार है।

राज्य में रिपोर्ट की गई कोविड की प्रजनन दर (आर-वैल्यू) के मुताबिक देश में सबसे अधिक यानि 1.11 है, जिसके कारण शोधकर्ताओं का सुझाव है कि राज्य में मामलों की संख्या अल्पावधि में बढ़ने की संभावना है। यह उसी समय हो रहा जब अप्रैल-मई 2021 में पूरे भारत में दूसरी लहर के बाद मामलों में काफी गिरावट आ चुकी है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उपरोक्त स्थिति के चलते राज्य में महामारी को संभालने में राज्य की कामयाबी पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जो केरल के दो विपक्षी दल हैं, ने राज्य में सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार पर हमला बोल दिया है और इसके लिए मामलों की बढ़ती संख्या का हवाला दिया जा रहा है। केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने केरल सरकार पर कोविड-19 के प्रबंधन के संबंध में महामारी की आड़ में 'फर्जी प्रचार' के माध्यम से राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है; और केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा है कि केरल देश को तीसरी लहर के खतरे की तरफ धकेल रहा है, जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि मामलों में वृद्धि चिंताजनक है।

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के निदेशक डॉ. एसके सिंह की अध्यक्षता में छह सदस्यीय, उच्च स्तरीय, बहु-अनुशासनात्मक टीम को केरल में “राज्य के चल रहे प्रयासों में सहायता करने के लिए नियुक्त किया है, समिति ने कहा है कि कोविड प्रबंधन में स्थिति चिंताजनक हैं। इस बीच, राज्य सरकार ने मामलों में वृद्धि को रोकने और स्थिति का जायजा लेने के लिए दो दिवसीय 'पूर्ण लॉकडाउन' की घोषणा की है।

डेटा क्या दर्शाता है?

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा आयोजित राष्ट्रव्यापी सीरो-सर्वेक्षण का चौथा दौर और देश भर में कोविड-19 के प्रसार की सीमा को जाँचने के लिए डिज़ाइन किया गया था, इस सर्वे का अनुमान है कि भारत की करीब 67.6 प्रतिशत आबादी सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ एंटीबॉडी यानि प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित कर चुकी है। अध्ययन के अनुसार, मध्य प्रदेश में सबसे अधिक सेरो-पोजीटिविटी या सेरोप्रवलेंस 79 प्रतिशत है, इसके बाद राजस्थान में यह 76.2 प्रतिशत और बिहार में करीब 75.9 प्रतिशत है। यानि 11 राज्यों की करीब-करीब दो-तिहाई से अधिक आबादी में एंटीबॉडी पाए गए हैं, जबकि केरल में सबसे कम सेरोप्रवलेंस 44.4 प्रतिशत पाई गई है। 

आईसीएमआर के चौथे दौर के सीरो-सर्वेक्षण को देश भर के उन्हीं 70 जिलों में किया गया, जहां पहले तीन राउंड हो चुके थे। पिछले दौर के परिणाम यह भी बताते हैं कि बाकी राज्यों की तुलना में केरल में कोविड-19 का प्रसार लगातार कम रहा है। मई के पहले दौर में, केरल की सीरो-पोजिटिविटी 0.33 प्रतिशत थी जो राष्ट्रीय औसत 0.73 प्रतिशत मुकाबले काफी कम थी।  अगस्त में यह 0.88 प्रतिशत (राष्ट्रीय स्तर पर 6.6 प्रतिशत) थी और दिसंबर तक यह 11.6 प्रतिशत थी जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 21 प्रतिशत थी। 

यह भी ध्यान रखना चाहिए कि केरल अन्य राज्यों की तुलना में आज भी लगातार अधिक कोविड जांच/परीक्षण कर रहा है। राष्ट्रीय परीक्षण औसत 3.3 लाख प्रति मिलियन के मुकाबले, केरल 7.6 लाख प्रति मिलियन जांच कर रहा है, जो राष्ट्रीय औसत का लगभग 2.3 गुना है।

आईसीएमआर के सीरो-सर्वेक्षण से अनुमानित मामलों की तुलना और मामलों की रिपोर्ट की संख्या की तुलना करते हुए, स्वास्थ्य अर्थशास्त्री रिजो एम जॉन का अनुमान है कि केरल हर छह मामलों में से कम से कम एक की पहचान करने में सक्षम रहा है (राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 30 से अधिक मामलों में एक का है)। जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश में ये आंकड़े क्रमशः 134 में एक और 100 मामलों में एक के आसपास हैं। इससे पता चलता है कि केरल न केवल अधिक लोगों की जांच कर रहा है, बल्कि इसकी जांच की रणनीति (जो बीमारी के प्रसार को ट्रैक करने और ट्रेस करने पर अधिक जोर देती है) किसी भी अन्य राज्य की तुलना में अधिक मामलों को पकड़ रही है। नतीजतन, इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि केरल उच्च मामलों की रिपोर्ट कर रहा है।

चूंकि सीरो-सर्वेक्षण के परिणाम भी वैक्सीन से पैदा हुई एंटीबॉडी के लिए जिम्मेदार हैं और रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर गैर-टीकाकरण वाले लोगों के बीच सेरोप्रवलेंस 62.3 प्रतिशत रहा है, इस मामले में केरल में टीकाकरण की दर को देखना उचित होगा। राज्य कोविड-19 डैशबोर्ड की रिपोर्ट कहती है कि यह राष्ट्रीय स्तर पर 25.6 प्रतिशत के मुकाबले 37 प्रतिशत से अधिक आबादी को कम से कम एक खुराक के साथ टीका लगाया जा चुका है। राज्य में पूरी तरह से टीका लेने वालों की संख्या 16 प्रतिशत से अधिक (जो राष्ट्रीय स्तर पर 7.3 प्रतिशत) है, और केरल 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की एक बड़ी संख्या को कवर करने में कामयाब रहा है, जो समूह कोविड-19 के संकर्मण के बाद गंभीर रूप से बीमार होने के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। केरल ने टीकों की बर्बादी से बचने और 'अतिरिक्त खुराक' का इस्तेमाल करके ऐसा किया है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य टीको के 'नकारात्मक नुकसान' को रोक पाया है। 

इस प्रकार, राज्य में न केवल अन्य राज्यों की तुलना में सेरोप्रवलेंस या सेरो-पोजिटिविटी कम है, बल्कि तुलनात्मक रूप से इसका एक बड़ा हिस्सा टीकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। यह सब इंगित करता है कि राज्य अब तक कोविड-19 के प्रसार को धीमा करने, या 'वक्र’ को समतल करने' में सफल रहा है।

मौतों के बारे में स्पष्टीकरण?

केरल में 30 जुलाई तक कोविड-19 के कारण 116 मौतों की सूचना मिली थी, जो बाद में पूरे भारत में 4.23 लाख मौतों में से कुल संख्या 16,701 हो गई थी। यह राज्य की जनसंख्या के अनुरूप अधिक है और इसका कारण यह है कि केरल में मृत्यु दर (सीएफआर) केवल 0.5 प्रतिशत से भी कम है। इसका मतलब यह है कि 200 लोगों में से केवल एक व्यक्ति ने कोविड -19 के कारण दम तोड़ दिया है, जो कोविड के लिए पॉज़िटिव पाए गए थे। यह राष्ट्रीय सीएफआर से लगभग 2.6 गुना कम है, जो कि 1.3 प्रतिशत है। महाराष्ट्र, एकमात्र अन्य ऐसा राज्य जिसने केरल की तुलना में अधिक मामले दर्ज किए हैं, वहां सीएफआर 2.1 प्रतिशत है। यहाँ इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि केरल में अन्य राज्यों के विपरीत ज्यादा उम्र वाली आबादी अधिक है और रिपोर्ट की गई मौतों में से लगभग तीन-चौथाई 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोग हैं।

हालाँकि, कोविड-19 के कारण हुई मौतों की रिपोर्ट की तस्वीर का यह केवल एक हिस्सा दिखाती है। दुनिया भर में, विभिन्न देशों में इससे 'अधिक मौतों' की सूचना मिली है, जो पहले की समान अवधि की तुलना में महामारी की अवधि में हुई मौतों की संख्या में अंतर को मापती है। देश भर के पत्रकारों ने महामारी की अवधि के दौरान रिपोर्ट की गई मृत्यु दर का पता लगाने के लिए भारत के नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) से डेटा का इस्तेमाल किया है और इसकी तुलना हाल के गैर-महामारी के वर्षों से की गई है। केरल सहित आठ राज्यों के डेटा का इस्तेमाल करते हुए, द हिंदू ने अनुमान लगाया है कि महामारी की अवधि (अप्रैल 2020 से मई 2021) के दौरान भारत में दर्ज की गई अधिक मौतें आधिकारिक कोविड-19 की मृत्यु का 8.22 गुना थी; यह वायरस के कारण सबसे अधिक दर्ज की गई मृत्यु वाले देशों में इसे सबसे ऊपर लाकर खड़ा कर देता है। केरल एकमात्र ऐसा राज्य था जिसका डेटा उपलब्ध था, जहां अधिक मौतों की संख्या न केवल कम (4,178) थी, बल्कि यह आधिकारिक तौर पर कोविड-19 के कारण मरने वालों की संख्या से भी कम थी। यह इस तथ्य के बावजूद है कि आबादी की बढ़ती उम्र का मतलब है कि केरल में मृत्यु दर पिछले कुछ वर्षों में थोड़ी बढ़ी है।

इस प्रकार केरल का कम गिनती करने का कारक लगभग 0.42 है जो 8.22 के औसत से काफी नीचे है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार सहित अन्य बड़े राज्यों में महामारी की अवधि के दौरान 100,000 से 200,000 अतिरिक्त मौतें हुई हैं। इसके चलते शोधकर्ताओं का सुझाव है कि महामारी की अवधि के दौरान भारत में अधिक मौतें आधिकारिक कोविड- की मौत के कई गुना होने की संभावना है। जबकि आधिकारिक कोविड-19 मौतों यानि 4.23 लाख (0.42 मिलियन) की तुलना में मौतों का अनुमान 2.2 से 4.9 मिलियन के बीच है। हालाँकि, केरल भारत के सभी राज्यों में सबसे अलग लगता है। जैसा कि सुबिन डेनिस ने नोट किया है, यहां तक कि अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों की तुलना में, केरल ने इस अवधि के दौरान अपने रोकथाम उपायों के परिणामस्वरूप हजारों मौतों को टाल दिया है।

सम्पूर्ण प्रदर्शन

डेटा पत्रकार रुक्मिणी एस के अनुसार, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) का डेटा, जो तभी से सरकारी वेबसाइट से गायब हो गया था,  वह गंभीर बीमारियों और सर्जरी सहित नियमित स्वास्थ्य सेवाओं को हासिल करने वाले गंभीर रोगियों की संख्या में गिरावट का संकेत देता है। एचएमआईएस, अधिकतर भारत में ग्रामीण इलाकों की सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और सहायक नर्सों/दाइयों के व्यापक नेटवर्क के जरिए डेटा का संग्रह करता है, उसके भीतर भी तपेदिक यानि टीबी के इलाज के लिए पंजीकृत रोगियों की संख्या में तेजी से गिरावट नज़र आती है। टीबी एक बड़ी जानलेवा बीमारी है, और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि अकेले 2019 में भारत में इस बीमारी से लगभग 4,45,000 मौतें हुई हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी इंडिया टीबी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में टीबी के मामलों की अधिसूचना जनवरी और दिसंबर 2020 के बीच 24 प्रतिशत कम हो गई थी क्योंकि लॉकडाउन और कोविड-19 नियंत्रण के उपायों के चलते सभी संसाधनों को कोविड इलाज़ की तरफ मोड दिया गया था। यूरोपियन रेस्पिरेटरी जर्नल का अनुमान है कि भारत में इस कारण तपेदिक से अगले पांच वर्षों में अतिरिक्त 95,000 मौतें होंगी।

महामारी की शुरुआत में, केरल में रिपोर्ट किए गए मामलों में गिरावट आई थी। हालांकि, अगस्त 2020 में इसकी पहचान हो जाने के बाद, राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने उन मामलों का पता लगाने के लिए अक्टूबर और दिसंबर के बीच एक 'कैच-अप' अभियान चलाया था, ऐसे मामले जो लॉकडाउन के दौरान बिना जांच के हो सकते थे। इस अभियान के तहत 6 लाख से अधिक लोगों की जांच की गई और 'लापता' मामलों की पहचान की गई थी। इसके लिए राज्य ने 2017 में आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से पंचायत स्तर पर जो भेद्यता मानचित्रण अध्ययन किया था, उसे प्रयोग किया गया। राज्य सरकार की एक नई एडवाइजरी के तहत सांस की समस्या वाले कोविड-19 रोगियों को ठीक करने के लिए टीबी स्क्रीनिंग अनिवार्य की गई थी। 

ऐसे समय में जब पूरे देश में स्वास्थ्य सेवाएं बाधित थीं और दूसरी लहर के चरम पर पहुँचने के दौरान कुछ राज्यों में आउट पेशेंट रोगी विभाग पूरी तरह से बंद हो गए थे, केरल अकेला ऐसा राज्य था जो कोविड-19 मामलों की प्रभावी ढंग से पहचान/जांच कर रहा था और इलाज़ कर रहा था ताकि इसके प्रसार को बेहतर ढंग से नियंत्रित किया सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि अन्य बीमारियों के लिए भी स्वास्थ्य सेवाएं अधिक सुलभ हों। केरल में सामाजिक सुरक्षा जाल और बड़े पैमाने के जन-कार्यक्रमों जैसे सामुदायिक रसोई की स्थापना, मासिक राशन और किराना किट का प्रावधान और पीपुल्स रेस्तरां (जिन्हें जन-होटल कहा जाता है) के माध्यम से सुनिश्चित किया गया कि सब्सिडी भोजन से राज्य में लोगों को भूखा न रहना पड़े और भूख के कारण बीमार न हों, जैसा कि कई अन्य राज्यों में हुआ था। केरल पहला राज्य था जिसने महामारी के दौरान सभी को मुफ्त राशन और भोजन किट के वितरण की घोषणा की थी और उसे पूर्ण रूप से लागू किया था। आंगनबाडी कार्यकर्ताओं ने बच्चों को समय पर भोजन किट और भत्तों को मुहैया कराने के अलावा बच्चों को पोषक तत्वों की आपूर्ति भी सुनिश्चित की थी।

इस सबका मतलब यही है कि केरल की स्वास्थ्य व्यवस्था इस अवधि के दौरान अन्य राज्यों की तरह चरमराई नहीं थी। राज्य ने अन्य राज्यों के विपरीत 'ऑक्सीजन की कमी से मौतें' नहीं होने दी (कुछ ऐसा दावा जिसमें केंद्र सरकार कह रही है कि इस तरह की मौतों की सूचना उन्हे नहीं दी गई है)। आज भी, केरल में अस्पताल के बिस्तरों, गहन देखभाल इकाइयों (आईसीयू) और वेंटिलेटर के इस्तेमाल की दर 50 प्रतिशत से कम है। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने 'कोविड-19 का मुकाबला करने के लिए राज्य सरकार की प्रभावी योजना' की सराहना की है और 'राज्य के खिलाफ अभियान' को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Is Kerala’s Response to Covid-19 Failing? Data Tells the Real Story

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