Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

इस्लामोफ़ोबिया का सफ़ाया करना होगा

सोनभद्र, गुड़गांव और क्राइस्टचर्च तीनों जगह राजनीतिक आख्यान एक ही थाः चरम घृणा पर आधारित मुस्लिम-विरोधी आख्यान।
गुड़गांव में मुस्लिम परिवार पर हमला
Image Courtesy: Jansatta

सोनभद्र (उत्तर प्रदेश), गुड़गांव (हरियाणा) और क्राइस्टचर्च (न्यूज़ीलैंड) में पिछले दिनों घटी तीन घटनाओं में क्या समानता है? तीनों जगहों के बीच सैकड़ों-हज़ारों किलोमीटर का फ़ासला है। इनमें से दो जगहें तो अपने देश में हैं (दोनों के बीच अच्छी-ख़ासी भौगोलिक दूरी है), और क्राइस्टचर्च न्यूज़ीलैंड में है, जो भारत से दस हज़ार किलोमीटर से भी ज़्यादा दूर है। इन तीनों जगहों पर, तीन अलग-अलग तारीख़ में, दिल दहलाने वाली जो घटनाएं हुईं, वे इस्लामोफ़ोबिया के चरम हिंसक, बर्बर रूप को सामने रखती हैं। तीनों जगह राजनीतिक आख्यान एक ही थाः चरम घृणा पर आधारित मुस्लिम-विरोधी आख्यान।

इस्लामोफ़ोबिया—यानी, इस्लाम धर्म और उसके अनुयायी मुसलमानों के प्रति जानबूझकर पैदा किये गये डर, नफ़रत व दुश्मनी की भावना। यह राजनीतिक टर्म है और इसका स्पष्ट राजनीतिक मक़सद है। वह हैः इस्लाम व मुसलमान को मानवता के शाश्वत शत्रु के रूप में पेश करना और यह प्रचारित करना कि वे सभ्यता व संस्कृति के जानी दुश्मन हैं, बर्बर और हमलावर लुटेरे हैं, और सिर्फ़ सफ़ेद या गोरे लोगों की सभ्यता (यानी, पश्चिमी सभ्यता) ही दुनिया को बचा सकती है।

यहां यह बता देना ज़रूरी है कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवाद ने इस्लाम व मुसलमान का दानवीकरण करने की मुहिम शुरू की। इस मुहिम को वर्ष 2001 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में हुए हिंसक हमले के बाद आक्रामक रूप दिया गया, और वह इस्लामोफ़ोबिया की शक्ल में सामने आया।

अलग-अलग देश में इस्लामोफ़ोबिया के अलग-अलग रूप हो सकते हैं। पर सभी जगह सारतत्व एक ही हैः इस्लाम व मुसलमान के प्रति तीखी नफ़रत व ख़ौफ़ का भाव। (हमारे देश में आरएसएस व भाजपा और उनसे जुड़े संगठन इसके चैंपियन हैं।)

इसी के चलते क्राइस्टचर्च में दो मस्जिदों में शुक्रवार 15 मार्च 2019 को 50 मुसलमानों का क़त्लेआम हुआ, जिसने समूची दुनिया को हिला दिया। बंदूकधारी हत्यारा कट्टर श्वेत नस्लवादी फ़ासिस्ट है और आस्ट्रेलिया का नागरिक है। वह अपने को ‘श्वेत राष्ट्रवाद’ का प्रवक्ता कहता है। (अब अपने देश में ‘श्वेत राष्ट्रवाद’ का मिलान ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ उर्फ़ ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ और ‘रामज़ादा बनाम हरामज़ादा’ के नारे से करके देखिये! दोनों में किस कदर समानता है!)

इस ख़ौफ़नाक हादसे के बाद न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने जो क़दम उठाया, उसकी दुनिया भर में सराहना हुई है। उन्होंने हत्यारे को ‘आतंकवादी, अपराधी हत्यारा’ कहा, उसका नाम लेने से इनकार कर दिया और मारे गये 50 लोगों का नाम लिया, शोक सभा की,मारे गये लोगों की याद में स्मारक बनाने की घोषणा की, दोनों मस्जिदों में—जहां यह बर्बर हादसा हुआ—वह गयीं, शोक-संतप्त परिवारों से मिलीं, इस्लामोफ़ोबिया के खिलाफ़ कारगर कार्रवाई की शुरुआत की, और ज़ोर देकर बार-बार कहा कि इस्लाम और मुसलमान न्यूज़ीलैंड देश व इसकी संस्कृति का अविभाज्य व अनिवार्य अंग हैं—‘वे हम हैं, हम सब हैं। इस दौरान जेसिंडा अर्डर्न हिजाब बराबर पहने रहीं।

अब अपने देश लौटते हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र ज़िले व हरियाणा के गुड़गांव ज़िले में पिछले दिनों इस्लामोफ़ोबिया से जुड़ी दो नृशंस घटनाओं के प्रति दोनों राज्यों की भारतीय जनता पार्टी सरकारों का क्या रवैया रहा? चरम उदासीनता, चरम संवेदनहीनता, चरम ह्रदयहीनता! दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के होठ जैसे सिले हुए थे—दोनों मन-ही-मन जश्न मना रहे होंगे कि चलो, अच्छा हुआ! मुसलमानों पर हमले की इन घटनाओं के सिलसिले में कुछ गिरफ़्तारियों ज़रूर हुईं, पर सरकारी मशीनरी की पूरी कोशिश यह रही कि इन अपराधों को मुसलमानों के प्रति घृणा-आधारित अपराध मानने की बजाय उन्हें ‘दो गुटों के बीच झगड़ा’, ‘आपसी विवाद’, ‘पुरानी रंजिश का नतीज़ा’ बता दिया जाये। ऐसे मसलों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ख़ामोशी उनकी फ़ितरत बन चुकी है।

सोनभद्र ज़िले के ओबरा थाने के अंतर्गत परसोई गांव में 20 मार्च 2019 की रात हिंदुत्व फ़ासीवादियों ने 60 साल के मुहम्मद अनवर की कुल्हाड़ियों और लाठियों से निर्मम हत्या कर दी। मुहम्मद अनवर गांव में बने उस पक्के चबूतरे को तोड़े जाने का विरोध कर रहे थे, जिस पर 10-15 सालों से मुहर्रम के दौरान हिंदू-मुसलमान मिल कर ताज़िये रखते रहे हैं। गांव में पांच-छह महीने से राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़े लोग मुहिम चला रहे थे कि यह चबूतरा तोड़ दिया जाये और यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगाना शुरू किया जाये। अनवर के बेटे का कहना है कि पहले भी इस मामले की शिकायत पुलिस से की गयी थी, पर उस पर ध्यान नहीं दिया गया। मुहम्मद अनवर को तो मुसलमानन होने के नाते अपनी जान गंवानी पड़ी, लेकिन पुलिस के लिए यह ‘दो समुदायों के बीच विवाद’ से ज़्यादा कुछ नहीं है।

हरियाणा पुलिस का भी यही रवैया दिखायी पड़ा। गुड़गांव के पास भोड़सी के भूपसिंह नगर में एक मुसलमान परिवार के घर पर 21 मार्च 2019 को हिंदुत्व फ़ासीवादियों ने सिर्फ़ इसलिए हमला किया कि वह मुसलमान परिवार है। भाला, तलवार, लोहे के रॉड और लाठियों से लैस 25-30 हमलावर घर के अंदर ज़बरन घुस गये और क़रीब एक घंटे तक बर्बरता से मारपीट करते रहे और घर को तहस-नहस करते रहे। कई औरतें, बच्चे, मर्द घायल हुए। एक घंटे तक पुलिस नहीं पहुंची। मुसलमान परिवार के बच्चे घर के बाहर क्रिकेट खेल रहे थे। उधर से गुज़र रहे कुछ लंपट नौजवानों ने उनसे कहा कि तुम लोग यहां क्यों खेल रहे हो, पाकिस्तान जाओ और वहां खेलो। जब इस पर एतराज हुआ, मुसलमान परिवार पर हमला बोल दिया गया। पुलिस का कहा है कि यह ‘आपसी विवाद’ का मामला है।

इस्लामोफ़ोबिया का सफ़ाया करने के लिए मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है। हमारे राजनीतिक नेता इस संबंध में न्यूज़ीलैंड की नौजवान प्रधानमंत्री से कुछ सीख सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest