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जियो यूनिवर्सिटी को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा देने की हर ओर हो रही आलोचना

सवाल केवल यह नहीं है कि जियो यूनिवर्सिटी को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा क्यों दिया जो अभी कागज़ पर भी नहीं है? सवाल यह भी है कि क्या इंस्टीटयूट ऑफ एमिनेन्स (IoEs) का दर्जा मिल जाने से भारत के शिक्षण संस्थान वाक़ई में विश्व स्तर के बन पायेंगें?
जियो यूनिवर्सिटी

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सोमवार को देश के छह शिक्षण संस्थानों को उत्कृष्ट संस्थान दर्जा दिया। इन छह संस्थानों में से तीन सार्वजनिक शिक्षण संस्थान व तीन निजी शिक्षण संस्थान हैं। इसे लीला कहें या कुछ और कि इंस्टीटयूट के बिना बने हुए ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जियो यूनिवर्सिटी को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा दे दिया।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सोमवार को जिन छह नामों को इंस्टीटयूट ऑफ एमिनेन्स (IoEs) में शामिल किया उनमें सार्वजनिक इंस्टीटयूट- आईआईटी दिल्ली, आईआईटी बंबई, आईआईएससी बैंगलुरू हैं वहीं निजी छेत्र के मनिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, बीआईटीएस पिलानी व जियो इंस्टीटयूट हैं।

मंत्रालय के जियो इंस्टीटयूट को उत्कृष्ट संस्थानों की श्रेणी में शामिल करना अपने आप में चौंकाने और हैरान करने वाला फैसला लग रहा है क्योंकि जो इंस्टीटयूट अभी कागजों पर भी अस्तित्व में नहीं है उसे उत्कृष्ट संस्थान कैसे मान लिया गया। किसी भी संस्थान को उत्कृष्टता का दर्जा वहाँ मौजूद संसाधनों और सहुलियतों के साथ और भी कई पैमानों के बल पर मिलता है और बनने से पहले इन सबका निर्धारण कैसे किया जा सकता है? 

यह प्रस्तावित इंस्टीटयूट रिलायंस कंपनी का है क्या इसलिए यह उत्कृष्टता के पैमाने तक पहुँच कर ही रहेगा। इंस्टीटयूट के बनने से पहले यह कैसे कहा जा सकता है कि यह उत्कृष्ट संस्थान ही बनेगा। हार्वर्ड विश्वविद्यालय, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय या येल विश्वविद्यालय बनने से पहले ही उत्कृष्ट और विश्वस्तरीय नहीं हो गए थे।

YASVANT SINHA

आलोचनाओं के बाद मंत्रालय ने इस पर सफाई देते हुए कहा है कि जियो इंस्टीटयूट को ग्रीनफील्ड कैटेगरी के तहत चयनित किया गया है। इस कैटेगरी में आने के लिए शिक्षण संस्थान बनाने के लिए ज़मीन की उपलब्धता, शिक्षित और सक्षम टीम की उपलब्धता, संस्थान का निर्माण कराने के लिए निधि, तमाम योजनाबद्ध सूचनाओं का एक प्रस्तावित खाका देना होता है। मंत्रालय के अनुसार यह सारी शर्तें रिलायंस कंपनी ने पूरी की है तभी उसे इंस्टीटयूट ऑफ एमिनेन्स (IoEs) के तहत शामिल किया गया है।

MHRD

 

मंत्री प्रकाश जावडेकर ने इस फैसले को मील का पत्थर बताया है और कहा है कि इंस्टीटयूट ऑफ एमिनेन्स हमारे देश के लिए महत्वपुर्ण है। हमारे देश में 800 विश्विद्यालय हैं लेकिन विश्व के शीर्ष 100 में या शीर्ष 200 संस्थानों में हमारे देश का कोई भी संस्थान नहीं है। इस फैसले से हमें देश के विश्विद्यालयों को विश्व स्तर का बनाने में सहयोग मिलेगा।

Minister Tweet Screenshot

इंस्टीटयूट ऑफ एमिनेन्स (IoEs) के अंतर्गत आने वाले संस्थानों को श्रेणीबद्ध सवायत्तता से भी आगे पूर्ण सवायत्तता यानी की ऑटोनमी दी जाएगी। जिसके तहत आने से शिक्षा संस्थानों को स्वयं फैसले लेने, पाठयक्रम का निर्धारण करने, विदेशी छात्रों की फीस का निर्धारण करने, विदेशी संस्थानों से सहभगिता बनाने की छूट होगी। उत्कृष्ट संस्थानों को विश्व स्तरीय बनाने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाएगा।

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प्रत्येक सार्वजनिक इंस्टीटयूट को पाँच साल के लिए 1000 करोड़ रू की वित्तिय सहायता भी प्रदान की जाएगी।

(PIB

 

गौरतलब है कि 2016 में वित मंत्री ने अपने बजट भाषण में यह कहा था कि देश के उच्च शिक्षा संस्थानों को विश्व स्तर का बनाने के लिए हमारी सरकार वचनबद्ध है। देश के सामान्य वर्ग को कम खर्च में इस योजना से विश्व स्तर की शिक्षा मिल पाएगी। 10 सार्वजनिक और 10 निजी संस्थानों को विश्व स्तर का बनाने और विश्व स्तरीय सुविधा मुहैया कराने के लिए जल्द ही एक विस्तृत योजना तैयार की जाएगी।

इसकी रूपरेखा तैयार कर कागजों में उतारते हुए भी दो साल से अधिक का समय लग गया। जहाँ 2016-17 में 20 शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने की बात हुई थी वहीं यह आँकड़ा 2018-19 तक आते-आते 6 हो गया। तब वित मंत्री ने टॉप 200 में लाने की बात की थी और अब टॉप 500 में लाने की बात हो रही है वो भी आने वाले 10 सालों के बाद। तब हर साल इस श्रेणी में आने वाले प्रत्येक संस्थानों को 500 करोड़ देने की बात की गई थी और अब देखा जाए तो 1000 करोड़ पाँच साल में मिलेगा, यानी की प्रत्येक वर्ष 200 करोड़।

जहाँ मंत्रालय और मंत्री इसे मील का पत्थर बता रहे हैं उन्हें यह भी बताना चाहिए कि 2017-18 के बजट में विश्व स्तर की शिक्षा के लिए 50 करोड़ का जो बजट निर्धारित किया गया था उसका क्या हुआ। आँकड़ों पर गौर करें तो प्रत्येक साल विश्व स्तर की शिक्षा पर 600 करोड़ का खर्च करने की  बात  मंत्रालय कर रहा है लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि 2018-19 में विश्व स्तर की शिक्षा का बजट केवल 250 करोड़ है। मंत्रालय को यह स्पष्ट करना चाहिए कि यह मील का पत्थर कैसे पूरा होगा।

 

शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान करने वाली बात इस सरकार में छलावा सी लगती है। जहाँ एक तरफ मंत्रालय उत्कृष्ट शिक्षण संस्थानों को ये सारे अधिकार और स्वायत्ता देने की बात करता है वहीं यह सरकार कहती है कि देश के आईआईटी में गौ-मूत्र और पंचगव्य पर शोध होना चाहिए। जिन मामलों में यह संस्थानों को यूजीसी के नियमों व बंधनों से आज़ाद करना चाहती है दरअसल किसी भी शिक्षण संस्थान को उत्कृष्ट प्रदर्शन करने की यह पहली शर्त है और तब तक देश में मौजूद तक़रीबन 960 विश्वविद्यालयों में से किसी से भी उत्कृष्ट प्रदर्शन के बारे में सोचना भर भी बेमानी होगा।

 HRD Ministry

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सवाल यह नहीं है कि छह शिक्षण संस्थान को विश्व स्तरीय बनाने से क्या फायदा होगा? बल्कि सवाल यह है कि क्या छह शिक्षण संस्थान को भविष्य में विश्वस्तरीय बनाने से क्या देश में उच्च शिक्षा का सपना संजोए भारतीयों का भविष्य उज्जवल हो पाएगा। सरकार प्रत्येक वर्ष मानव संसाधन विकास मंत्रालय के बजट में वृद्धि के बजाए कम करने की ही सोचता रहता है। जहाँ सरकार 1000 करोड़ का वित्तिय अनुदान देकर संस्थानों को विश्व स्तर का बना देने कि बात कर रही है वहीं आप अगर आप विश्वस्तरिय तुलना करें तो यह बजट उनके आगे कहीं नहीं ठहरता। मानव संसाधन विकास मंत्रालय हमें सपने दिखा रहा है कि हमारे देश के शिक्षण संस्थान जल्द ही विश्व के शिक्षण संस्थानों के बराबर आ जाएगा लेकिन यह सपना कैसे पूरा होगा यह सोच का विषय है क्योंकि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी)  के अनुसार शिक्षा के छेत्र में खर्च करने का विश्वस्तरिय पैमाना देश की जीडीपी का 6.3 प्रतिशत होना चाहिए इस संदर्भ में हमारा बजट कहीं नहीं ठहरता।

देश के शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरिय बनाने का जुमला ठीक वैसा ही लग रहा है, जैसा कि सरकार में आने से पहले भाजपा ने विदेश से कालेधन वापस लाने, देश को कालाधन मुक्त बनाने और लोगों के अकाउंट में 15 लाख देने का वायदा।

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