जनसंख्या विस्फोट पर नरेंद्र मोदी की चिंता और संघ का एजेंडा

भारत के 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को लाल किले से संबोधित किया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने जनसंख्या विस्फोट को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। पीएम ने कहा कि हमें जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
नरेंद्र मोदी ने लाल किले से कहा, 'बढ़ती जनसंख्या देश के लिए चिंता का विषय है, जागरूकता के माध्यम से ही, हम इसे नियंत्रित कर सकते हैं।' उन्होंने देशवासियों से छोटे परिवार की अपील की। उन्होंने कहा कि छोटा परिवार रखना भी देशभक्ति है।'
पीएम ने आगे कहा, ‘हमारे यहां बेतहाशा जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है। यह जनसंख्या विस्फोट हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए अनेक संकट पैदा करता है। यह बात माननी होगी कि देश में एक जागरूक वर्ग है, जो इस बात को भली भांति समझता है। वह अपने घर में शिशु को जन्म देने से पहले भली भांति सोचता है कि मैं उसके साथ न्याय कर पाऊंगा।’
हालांकि देश के संसाधनों पर तेजी से बढ़ती जनसंख्या का जिस तरह से दबाव बढ़ रहा है उसके चलते निसंदेह प्रधानमंत्री के इस अभियान का पूरे देश को स्वागत करना चाहिए। लेकिन आपको यह भी जानना चाहिए कि जनसंख्या को नियंत्रित करना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पुराना एजेंडा रहा है। जिसे वह मुसलमानों के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है।
संघ का पुराना एजेंडा
नवभारत टाइम्स के मुताबिक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल में जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण कर नीति को सभी पर समान रूप से लागू करने का प्रस्ताव भी पास किया जा चुका है। संघ के प्रस्ताव में कहा गया कि अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल सभी स्वयंसेवकों सहित देशवासियों का आह्वान करता है कि वे अपना राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर, जनसंख्या में असंतुलन उत्पन्न कर रहे सभी कारणों की पहचान करते हुए जनजागरण के जरिए देश को जनसंख्या के असंतुलन से बचाने के सभी कानून सम्मत कोशिश करें।
पिछले साल सितंबर में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तीन दिन की लेक्चर सीरीज के बाद कई सवालों के जवाब दिए। इस दौरान उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण से जुड़े सवाल का भी जवाब दिया।
उनसे पूछा गया कि क्या जनंख्या नियंत्रण का कानून आना चाहिए? जिसके जवाब में संघ प्रमुख ने कहा कि जनसंख्या के बारे में जो नीति है उस पर फिर से विचार करना चाहिए कि वह अगले 50 साल के हिसाब से हो। जो भी नीति बनती है उसे सब पर समान रूप से लागू किया जाए किसी को छूट न हो। जहां समस्या है वहां पहले उपाय हो।
जहां बच्चों में पालन करने की क्षमता नहीं है, ज्यादा बच्चे पैदा हो रहे हैं तो पहले वहां लागू हो। कानून के साथ ही सबका मन बनाना पड़ेगा। डेमोग्राफिक असंतुलन मतांतरण की वजह से भी होता है और घुसपैठ की वजह से भी। यह देश की संप्रुभता को चुनौती देता है इसका कड़ाई से बंदोबस्त होना चाहिए।
मुसलमानों की आबादी बढ़ने की दर में हिंदुओं की तुलना में अधिक गिरावट
आपको बता दें कि आरएसएस और भाजपा से जुड़े कई नेता इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। कुछ दिनों पहले इस को लेकर बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह भी ट्वीट कर चुके हैं। गिरिराज सिंह ने ट्वीट कर कहा था कि जनसंख्या विस्फोट देश में आर्थिक और सामाजिक समरसता और संतुलन बिगड़ रहा है। उन्होंने कहा कि देश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर देश में ऐसा कानून लागू किया जाना चाहिए जिसमें दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों का वोटिंग अधिकार छीन लिया जाना चाहिए।
राज्य सभा में बीजेपी सांसद और आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा ने 'जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019' प्राइवेट मेम्बर बिल भी पेश किया था। हालांकि इस बिल की आलोचना भी हुई। कुछ लोगों का कहना था कि इससे ग़रीब आबादी पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तो कुछ का कहना है कि ये बिल मुसलमान विरोधी है।
दक्षिणपंथी नेताओं द्वारा हमेशा यह भ्रम फैलाया जाता रहा है कि भारत में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और उनके नेताओं द्वारा समय-समय पर हिंदुओं को भी ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह दी जाती है।
हालांकि 2011 के जनगणना के मुताबिक वास्तविकता यह है कि भारत में पिछले 10 सालों में हिंदुओं और मुसलमानों की आबादी बढ़ने की रफ़्तार में गिरावट आई है। साल 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर 16.76फीसदी रही जबकि 10 साल पहले हुई जनगणना में ये दर 19.92 फीसदी पाई गई थी।
वहीं, पिछली जनगणना के मुताबिक भारत में मुसलमानों की आबादी 29.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी जो अब गिरकर 24.6फीसदी हो गई है।
ये कहा जा सकता है कि भारत में मुसलमानों की दर अब भी हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक है, लेकिन यह भी सच है कि मुसलमानों की आबादी बढ़ने की दर में हिंदुओं की तुलना में अधिक गिरावट आई है। आंकड़े बताते हैं कि हिंदुओं की वृद्धि दर में 3.16 प्रतिशत की कमी आई तो मुसलमानों की वृद्धि दर में 4.90 प्रतिशत की कमी आई।
सात राज्यों को छोड़कर घट रही प्रजनन दर
अगर आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि देश में प्रजनन दर में लगातार कमी आ रही है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के अन्तर्गत आने वाले सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के साल 2017 के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि देश में कुल प्रजनन दर 2.2% है, वहीं कुल प्रतिस्थापन दर (रिप्लेसमेंट रेट) 2.1% है।
गौरतलब है कि कुल प्रजनन दर किसी महिला द्वारा पैदा किए गए बच्चों को प्रदर्शित करती है, वहीं रिप्लेसमेंट रेट देश की कुल जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए किसी महिला द्वारा पैदा किए गए बच्चों की संख्या को प्रदर्शित करता है।
आंकड़ों के अनुसार, देश के सात राज्यों, जिनमें उत्तर प्रदेश (3.0), बिहार (3.2), मध्य प्रदेश (2.7), राजस्थान (2.6), असम(2.3), छत्तीसगढ़ (2.4) और झारखंड (2.5) को छोड़कर अन्य राज्यों में प्रजनन दर में कमी आयी है। इन राज्यों में प्रजनन दर देश की कुल प्रजनन दर के औसत से ज्यादा है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, इन राज्यों में देश की 45% जनसंख्या निवास करती है।
गुजरात और हरियाणा में कुल प्रजनन दर 2.2 है, जो कि देश की औसत प्रजनन दर के बराबर ही है। वहीं देश के दक्षिणी राज्यों में हालात काफी बेहतर हैं।
बता दें कि केरल (1.7), तमिलनाडु (1.6), कर्नाटक (1.7), महराष्ट्र (1.7), आंध्र प्रदेश (1.6) और तेलंगाना (1.7) में प्रजनन दर औसत से कम है। वहीं पश्चिम बंगाल (1.6), जम्मू कश्मीर (1.6) और ओडिशा (1.9) में भी प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत के मुकाबले कम है।
गौरतलब है कि देश की प्रजनन दर में लगातार कमी देखी जा रही है। साल 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, साल 1971 से लेकर साल 1981 के बीच देश की प्रजनन दर 5.2 से घटकर 4.5 हो गई थी।
वहीं साल 1991 से लेकर साल 2017 के बीच प्रजनन दर 3.6 से घटकर 2.2 हो गई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अनपढ़ महिलाओं में प्रजनन दर 2.9 है, वहीं पढ़ी-लिखी महिलाओं में यह आंकड़ा 2.1 है।
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