झारखंड: ‘विकास की बाढ़’ में बह गई नहर, सरकार की रिपोर्ट में चूहे ज़िम्मेदार!
आप मानें या न मानें, झारखंड की वर्तमान सरकार अपने करोड़ी प्रचार से जब दावा करती है कि सिर्फ उसके विकास राज में नामुमकिन भी मुमकिन है, तो हमेशा गलत नहीं होता है। ये अलग बात है कि जमीनी हकीकत में यह ‘मुमकिन’ किसके लिए और कैसा है!
इसका एक नमूना अभी अभी झारखंड प्रदेश में ऐसा दिखा है कि सरकार की बोलती ही बंद हो गयी है। 23 अगस्त के दिन पूरे राजकीय तामझाम के साथ मुख्यमंत्री रघुबर दास ने उत्तरी छोटानागपुर क्षेत्र की बहुप्रतीक्षित कोनार सिंचाई परियोजना का उद्घाटन किया।
हमेशा की तरह इस अवसर पर भी प्रधानमंत्री और अपनी सरकार की शान में कसीदा पढ़ते हुए उन्होंने कहाकि अब तक जितनी भी सरकारें बनीं हैं उनमें सिर्फ उनकी ही सरकार ने नामुमकिन को मुमकिन बनाया है!
इस उद्घाटन कार्यक्रम के बमुश्किल 12 घंटे ही बीते थे कि पानी छोड़ने से परियोजना नहर की मेड़ धराशायी हो गई। जिससे बागोदर क्षेत्र के कई गांवों के खेत पूरी तरह जलमग्न हो गए और उनमें लगीं सारी फसलें डूब गईं।
परियोजना के उद्घाटन वक्तव्य में मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की बखान करते हुए विशेष तौर से कहा था कि यह सिर्फ उनकी सरकार का कमाल है कि 42 साल से आधार में लटकी इस महत्वाकांक्षी सिंचाई परियोजना को उसने 5 साल में ही पूरा कर दिखाया है। इस अवसर पर उन्होंने परियोजना के अभियन्ताओं व निर्माण एजेंसी के भी तारीफ के पुल बांधे।
लेकिन उद्घाटन के चंद घंटों बाद ही नहर के बह जाने से अब हर तरफ से यही सवाल उठ रहा है कि 22 सौ करोड़ रुपये की लागत से बनी नहर परियोजना पानी छोड़ते ही क्यों धराशायी हो गयी?
इसका कहीं से कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दिया जा रहा है। अलबत्ता एक ‘मुमकिन’ और हो गया कि इस घटना की आनन–फानन हुई उच्च स्तरीय विभागीय जांच ने निष्कर्ष दिया है कि नहर की मेड़ टूटने के मुख्य जिम्मेदार चूहे हैं। जिन्होंने नहर की मेड़ में इतने बिल बना दिये कि अंदर उनमें पानी भर जाने से नहर भहरा गयी। इसे सही बताते हुए स्थानीय बागोदर भाजपा विधायक ने तो नहर टूटने के पीछे किसी गहरी साजिश होने का फतवा जारी कर दिया है।
आपको बता दें कि 40 वर्ष पूर्व झारखंड प्रदेश स्थित गिरिडीह–हजारीबाग व बोकारो समेत पूरे उत्तरी छोटनागपुर क्षेत्र के किसानों के लिए कोनार सिंचाई परियोजना की घोषणा हुई थी। जिसकी आरंभिक लागत 11 करोड़ रुपये थी लेकिन 2014 में जब भाजपा सरकार ने इस घोषणा को अमलीजामा पहनाया तो इसकी लागत राशि सीधे ‘21 सौ करोड़ रुपये पार’ पहुंच गयी।
ऐसे में यह सवाल उठना तो लाजमी ही है कि इतनी बड़ी लागत राशि वाली परियोजना का अंजाम ऐसा क्यों हुआ कि इसके बनते ही नहर से खेतों में पानी आने की बजाय बाढ़ आ गयी? जिससे बागोदर क्षेत्र अंतर्गत कुसुरजा व अन्य पंचायतों के दर्जनों गांवों के खेतों–मकानों में पानी भर गया और उनमें लगी धान, मक्का, मूंगफली इत्यादि फसलें पूरी तरह से नष्ट हो गईं।
मीडिया में कहा जा रहा है कि विपक्ष को बैठे बिठाये सरकार विरोध का मुद्दा मिल गया है। लेकिन क्या मामला सिर्फ इतना ही है? क्या एक सरकार जो हर समय खुद को भ्रष्टाचार से मुक्त और सबसे अधिक ईमानदार और पारदर्शी होने का ढिंढोरा पीट रही है, उसे कोनार सिंचाई परियोजना में घटित कांड लेकर क्या कहना चाहिए?
क्या यह सिर्फ महज मानवीय लापरवाही के कारण हुआ है? सन 2002 में भी जब झारखंड में भाजपा गठबंधन शासन था और इसी गिरिडीह इलाके में 4 करोड़ का पुल रातों रात भहराकर गिर गया था। तो बगोदर के तत्कालीन विधायक महेंद्र सिंह ने विधान सभा में इस मामले को उठाते हुए मामले की सही जांच व दोषी मंत्री–अधिकारियों को सजा देने की मांग की थी।
उस समय तो सरकार व भाजपा नेताओं ने उनपर ‘राजनीति’ करने और सरकार के विकास कार्यों को नहीं होने देने का आरोप लगाया था। वर्तमान बागोदर विधायक द्वारा नहर टूटने के पीछे गहरी साजिश होने की बात कहना, परियोजना घोटाले से लोगों का ध्यान गुमराह करने वाला है।
कोनार परियोजना नहर टूट कांड में फिलहाल पानी रोककर त्वरित मरम्मत का काम जारी है। सरकार व विभाग ने फिलहाल चार निचले स्तर के अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप लगाकर कार्रवाई करने और फसल क्षति के पीड़ित किसानों को कुछेक मुआवजा देने की घोषणा की है।
वहीं, राज्य के पूरे विपक्ष समेत बागोदर के स्थानीय पूर्व विधायक विनोद सिंह का खुला आरोप है कि सरकार आगामी विधान सभा चुनाव में लाभ लेने के लिए ही आनन फानन उद्घाटन और फीता काटना नहरों/पुलों के शिलापट्ट पर नाम खुदवा लेना जैसी कवायद कर रही है।
इसीलिए परियोजनाओं के पूरे हुए बगैर उसका उद्घाटन करने की जल्दबाजी में जानबूझकर जनता के लिए आफत बुला रही है? उन्होंने यह भी सवाल उठाया है कि 200 किमी लंबी बनने वाली इस प्रस्तावित परियोजना में बमुश्किल 60 किमी तक के आधे अधूरे निर्माण में ही इसका चुनावी उदघाटन कर दिया गया।
फिलहाल भक्ति में चाहे जितना भी बचाव किए जाए लेकिन कोनार–नहर बहने की घटना ने वर्तमान सरकार के कागजी विकास और योजनाओं में मची संगठित लूट भ्रष्टाचार को सबके सामने ला दिया है। जिसके खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़कों पर मुखर होने लगा है। फसल क्षति से पीड़ित किसानों को आविलम्ब मुआवज़ा समेत परियोजना घोटाले कि पूरी सही जांच और दोषियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज़ करने की मांग जोर पकड़ रही है।
आपको बता दें कि 12 सितंबर को राज्य के जिस नवनिर्मित विधान सभा का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा होने की चर्चा है, खबर है कि वह भी अभी पूरा नहीं बना है।
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