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कश्मीर के हालात पर दिल्ली में रहने वाले कश्मीरी क्या सोचते हैं?

केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ शुक्रवार को जंतर मंतर पर बड़ी संख्या में कश्मीरी मूल के छात्रों, वकीलों औरनौकरीशुदा लोगों ने प्रदर्शन किया।
jammu and kashmir

नई दिल्ली: ‘अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने और जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन का फैसला केंद्र सरकार ने कर लिया हैलेकिन वास्तविकता में यह असंवैधानिक है। इस फैसले को लेने में जो सहमति वहां के लोगों की चाहिए थी,केंद्र सरकार ने उसे नजरअंदाज किया है। कश्मीर के लोगों को छोड़कर उनके बारे में फैसला लेने का अधिकार किसी को नहीं है। दुख की बात यह है कि वहां के लोगों को यह भी पता नहीं है उनके जीवन में आगे क्या होगा। यह हर तरह से गैरकानूनी और अमानवीय है। ये जो कुछ भी हुआ है यह बहुत दु:खद है।'

यह कहना था जंतर मंतर पर प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाली शारिका अमीन का। शुक्रवार को जंतर मंतर पर बड़ी संख्या में कश्मीरी मूल के छात्रवकीलनौकरीशुदा लोग केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ आयोजित प्रदर्शन में भाग लेने आए।  

इस दौरान ज्यादातर लोगों का कहना था कि सरकार ने जम्मू कश्मीर से आने वाली आवाजों को दबा दिया है। उन्हें नहीं पता कि उनके घर पर क्या हो रहा है। 

श्रीनगर के रहने वाले अबरार दिल्ली में रहकर एक साफ्टवेयर कंपनी में जॉब करते हैं। उनका कहना है, ‘आखिरी बार मैंने रविवार या पांच छह दिन पहले अपने घरवालों से बात की थी। उसके बाद से वो किस हालात में हैं हमें नहीं पता है। बड़ी संख्या में आर्मी और पुलिस वाले उन इलाकों में तैनात थे। अब बकरीद करीब है लेकिन हमें समझ नहीं आ रहा है कि घर जाएं या नहीं। अगर हम श्रीनगर एयरपोर्ट पहुंच भी गए तो घर से कौन लेने आएगा या घर जाने को मिलेगा यह भी कंफर्म नहीं है। बकरीद इतनी नजदीक है और हम लोग जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। हमें नहीं पता है कि इस बार परिवार के साथ ईद मना भी पाएंगे या नहीं।'

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कुछ ऐसा ही कहना बारामुला की रहने वाली महक का। प्रदर्शन में हिस्सा लेने आई महक ने बताया,' हमारी घरवालों से बात नहीं हो पा रही है। सारे तरफ भय का माहौल है। सरकार से मेरी मांग ये है कि कम से कम हम त्योहार के समय घरवालों से बात कर पाएं इसके लिए कम्युनिकेशन सेवा को बहाल किया जाय।'

महक आगे कहती हैं,' बहुत सारे लोग इस फैसले के बाद कश्मीरी लड़कियों की फोटो गूगल पर सर्च कर रहे हैं। उनसे शादी को लेकर घटिया घटिया मीम शेयर कर रहे हैं। क्या यही सही व्यवहार है उनका अपने देश के बेटियों के साथ। नरेंद्र मोदी भी बेटी बचाओबेटी पढ़ाओ का नारा दे रहे हैं। क्या इस तरह से बेटियां बचाई जा सकती हैंइस तरह की हरकत करने वाले लोग बेवकूफ हैं। इनके बारे में इससे ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है।'

सरकार की तरफ से बार बार ये दावा किया जा रहा है कि घाटी को छोड़कर बाकी जगहों पर लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया है लेकिन शुक्रवार को आयोजित प्रदर्शन में जम्मू कश्मीर के लगभग हर हिस्से के लोग शामिल हुए थे। 

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पुंछ के रहने वाले अंजुम ऋषि ने बताया,' प्रधानमंत्री ने गुरुवार शाम को जम्मू कश्मीर को लेकर राष्ट्र को संबोधित कियाजिसे पूरे देश और दुनिया ने सुना लेकिन जिनके लिए यह संबोधन थावहां के लोगों ने सुना या नहीं हमें नहीं पता है। आखिर जम्मू कश्मीर में भी किसान और मजदूर रहते हैंइतने लंबे समय तक सारी चीजें बंद रहेंगी तो उनका गुजारा कैसे होगाइस बारे में भी सोचना होगा। आरएसपुरा के किसानों के बारे में कौन सोचेगा। असंवैधानिक तरीके से आप वहां की जनता के बारे में फैसला ले ले रहे हैं और आप उन्हें उनके बच्चों से भी बात नहीं करने दे रहे हैं। ऐसा करके आप क्या साबित करना चाह रहे हैं। इससे आप सिर्फ पैनिक (डर) माहौल बना रहे हैं बस और कुछ नहीं।

जामिया में पढ़ाई करने वाले श्रीनगर के आदिल ने कहा,' सुप्रीम कोर्ट से लेकर राज्यपाल ने यह भरोसा दिलाया था कि सरकार कश्मीर में कोई संवैधानिक बदलाव नहीं करने जा रही है लेकिन यह फैसला ऐसे समय लिया गया जब कश्मीर में एक चुनी हुई सरकार भी नहीं थी। यह एक तरह से वहां के लोगों के साथ धोखा है। अब सरकार उन्हें बंधक बनाकर रखे हुए है। ऐसे में किसी भी परिवार के सदस्य से बात नहीं हो पा रही है। हमारी समझ में यह नहीं आ रहा है कि वहां पर क्या चल रहा है।'

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प्रदर्शन में आए ज्यादातर लोगों ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने और जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों विभाजित करने वाले कानून को असंवैधानिक और गैरकानूनी बताया। उनका यह भी कहना था कि जल्द से जल्द जम्मू कश्मीर में संचार की सुविधाओं को बहाल किया जाय ताकि वहां के वास्तविक हालात पता चल सकें और लोग अपने रिश्तेदारों व बाहर रहने वाले बच्चों से बात कर सकें। 

आपको बता दें कि जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा संबंधी अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने के प्रस्ताव संबंधी संकल्प और जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित करने वाले विधेयक को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार रात को मंजूरी दे दी थी।

राज्ससभा ने इस संकल्प को सोमवार को पारित किया था। मंगलवार को लोकसभा ने भी इसे मंजूरी दी थी। 

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