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कश्मीरी अवाम के हक़ में खड़े हुए वाम दल और नागरिक समाज

जम्मू-कश्मीर पर सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ वाम दलों के आह्वान पर दिल्ली समेत देशभर में प्रदर्शन। जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता और अनुच्छेद 370 को बहाल करने की मांग।

 
वाम दलों के आह्वान पर दिल्ली समेत देशभर में प्रदर्शन

जम्मू-कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के फ़ैसले के खिलाफ बुधवार, सात अगस्त को राजधानी दिल्ली समेत देश भर में वाम दलों के आह्वान पर विरोध प्रदर्शन किया गया और जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता और अनुच्छेद 370 को बहाल करने की मांग की गई।

दिल्ली में सीपीआई (एम)सीपीआईसीपीआई (एम-एल)आरएसपीफारवर्ड ब्लॉक व कम्युनिस्ट गदर पार्टी ने मंडी हाउस से संसद मार्ग तक मार्च किया। मार्च के अंत में जंतर मंतर पहुँचकर सभा की गई।
मार्च का नेतृत्व सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरीसीपीआई महासचिव डी. राजासीपीआई (एमएल)- लिबरेशन महासचिव दीपंकर भट्टाचार्यआरएसपी के नेता आर एस डागरसीजीपीआई के बिरजू नायक समेत वामपंथी दलों के अन्य राष्ट्रीय नेताओं ने किया। इसके अलावा नागरिक समाज और कई जन संगठनों ने भी इस प्रतिरोध मार्च में हिस्सा लिया। 
सभी ने एक स्वर में कहा कि सरकार के इस कदम ने लोकतंत्र और संविधान को एक बड़ा आघात पहुंचाया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) का मानना है कि पाकिस्तानी हमलावरों का मुकाबला करते हुए कश्मीर का अवाम भारत सरकार के इस पवित्र और स्पष्ट वचन के साथ भारत मे शामिल हुआ था कि उसे विशेष दर्जा और स्वायत्तता दी जाएगी। इसका ही बाद में आर्टिकल 370 के रूप में संविधान में प्रावधान किया गया। मोदी सरकार ने इस वचन से हटकर जम्मू और कश्मीर की जनता के साथ विश्वासघात किया है।

सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि सरकार ने आज जम्मू कश्मीर की हैसियत को ही खत्म कर दिया है। जम्मू कश्मीर के लोगों और बाकी भारत के बीच रिश्तों कोजैसा कि सरकार ने तीन साल पहले वादा किया था,  सभी संबंधितों के बीच पारस्परिक राजनीतिक संवाद के जरिये मजबूत किया जाना चाहिए। बजाय ऐसा करने के इस तरह का एकतरफा कदम उठाया। हम सब मानते हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। इस कदम से केवल जमीन का जुड़ाव हुआ है लेकिन क्या इससे दिलो का जुड़ाव हो सकेगा। सत्ताधारी दल कश्मीर को तो अभिन्न हिस्सा मानता है लेकिन कश्मीरियों को नहीं। 

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सीपीएम की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने सभा को संबोधित करते हुए कहा की 1947 में कई कुर्बानी के बाद कश्मीर भारत का हिस्सा बना था। कश्मीरियों ने अपने आपको भारत के साथ जोड़ा था लेकिन बीते चार दिनों से उन्हें बंद कर रखा है। उनका संपर्क भारत के अन्य हिस्सों से खत्म कर दिया है। ये सरकार कह रही है उसने कश्मीर को देश से जोड़ दिया है लेकिन सच्ची यह है की संघ और भाजपा देश के टुकड़े करने में लगी है।

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आगे उन्होंने कहा की आज कश्मीरियो की आवाज और उनके प्रतिरोध को सरकार ने हज़ारो की संख्या सैनिको को तैनात करके कुचल रही है। ये मुद्दा कश्मीर का नहीं देश का है, इसलिए हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके लिए बोलें और संघर्ष करें। 
सीपीआई के महासचिव डी राजा ने कहा देश में एक तरफ दलित, अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर हमले हो रहे हैं। दूसरी तरफ देश की अर्थव्यवस्था गड्ढे में जा रही है, उसके सभी क्षेत्रो में लगातर गिरावट आ रही लेकिन सरकार उन सभी पर चर्चा नहीं कर रही है, कश्मीर का मुद्दा सरकार ने लोग के बंटवारे के लिए उठाया है। लेकिन वो भूल गए हम पहले अंग्रेजों से लड़े थे अब इन बीजेपी वाले से भी लड़ेंगे।  
सीपीआई-एमएल के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि ये केवल जम्मू कश्मीर के लिए नहीं पूरे देश के लिए खतरनाक है। अनुच्छेद 370 जो कश्मीर और भारत के बीच पुल था उसे जला दिया है। उद्योगपति जो इस सरकार के सहयोगी है वो वहां केवल जमीन देख रहे हैं, लेकिन आज भी वहां ज़िन्दा कौम है और वो इसका प्रतिरोध करेगी। 
सभा में मौजूद अन्य वक्ताओं ने भी मोदी सरकार के इस कदम की भर्त्सना की। कहा कि यह पूरी तरह अवैधानिक और असंवैधानिक है। यह सिर्फ़ जम्मू और कश्मीर तक सीमित मुद्दा नहीं है। यह लोकतंत्रधर्मनिरपेक्षता और खुद संविधान पर आक्रमण है। यह समय संविधान और संघीय ढांचे पर हमलों के विरुध्द जनता को लामबंद करने का समय है। 
कश्मीरी छात्रों का दर्द

नेताओं के साथ-साथकई कश्मीरी छात्रों ने राज्य के हालत पर अपनी चिंता व्यक्त की,  दिल्ली में काम कर रहे तबिंदा ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "हम तीन दिनों से नहीं सोए हैंहम अपने परिवारों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं।" हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि उन्हें क्या बताया जा रहा है और अगर उन्हें यह भी पता है कि हमारे संवैधानिक अधिकार और जम्मू-कश्मीर राज्य को भाजपा सरकार द्वारा कुछ ही मिनटों में राज्य से हितधारकों के परामर्श के बिना हटा दिया गया है।

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प्रदर्शन में शामिल कश्मीरी छात्रों ने कहा कि इस तानाशाहीपूर्ण कदम को उठाने के पहले जम्मू कश्मीर में हज़ारों की तादाद में सैना भेजनेमुख्य राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को गिरफ़्तार करनेजनता की आवाजाही प्रतिबंधित करने जैसे काम किये गए। यही इस बात का सबूत है कि मोदी सरकार बिना जनता की सहमति के जबरदस्ती अपना हुकुम थोप रही है। आज हम और हमारा परिवार पूरी तरह से भयभीत है। 
देश के अन्य हिस्सों में भी प्रदर्शन

दिल्ली के आलावा देश कई अन्य राज्यों में भी विरोध प्रदर्शन किया गया।

मध्य प्रदेश में हुए विरोध प्रदर्शन में सीपीएम राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने कहा कि एक सार्वभौमिक सच्चाई है कि भारत का वास उसकी विविधताओं में है। भाजपा-आरएसएस के शासक नेता किसी भी तरह की विविधता और संविधान के संघीय ढांचे को बर्दाश्त नही करते। वे जम्मू कश्मीर के साथ अधिकृत इलाके जैसा बर्ताव कर रहे हैं। संविधान के साथ खिलवाड़ करते हुए वे जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख को दो अलग अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बदल रहे हैं। यह राष्ट्रीय एकता और भारत के राज्यों के संघीय गणराज्य होने की धारणा पर सबसे बड़ा हमला है।
जसविंदर सिंह ने कहा कि जम्मू और कश्मीर के विखण्डन को रोका जाए। संविधान की धारा 370 की हिफाजत की जाए 
 
बिहार में भी सभी वामपंथी दलो ने संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन किया। कश्मीर और संविधान को बचने की बात कही
 

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जयपुर केंद्र के फैसले के खिलाफ सीपीएम ने सीकर, जयपुर सहित कई  अन्य जिलों में रैली निकाली। कलेक्ट्रेट पर प्रधानमंत्री का पुतला जला कर किया विरोध जताया। सीकर में लोगों को सम्बोधित करते हुए सीपीएम जिला सचिव किशन पारीक ने कहा कि मोदी सरकार ने तानाशाही तरीके से फैसला लेते हुए भारत के संघीय ढांचे पर गम्भीर चोट पहुंचाने का काम किया है।
वक्ताओं ने आर्टिकल 370 बहाल करने की मांग करते हुए कहा कि कश्मीरियों का दिल जीतने की जरूरत है। ताकत का गलत इस्तेमाल समस्या को सुलझाने के बजाय ओर ज्यादा उलझाने का करेगा सभा को सीपीएम के पूर्व विधायक पेमाराममंगल सिंहभगवान सिंह बगड़िया व अब्दुल कयूम कुरैशी के अलावा अन्य वक्ताओं ने सम्बोधित किया। 

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 तेलंगाना वाम दलों ने जम्मू-कश्मीर पर लिए गए फैसले के  विरोध में प्रदर्शन किया। वाम कार्यकर्ताओं ने मोदी सरकार के फ़ैसले को अवैध और असंवैधानिक  बताया।

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उत्तर प्रदेश में भी वाम दलों ने विरोध प्रदर्शन किया।  कानपुर में सीपीएम की पोलित ब्यूरो सदस्य और कानपूर से पूर्व सांसद सुभाषनी अली ने भी भाग लिया और सभा को संबोधित किया। 

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केरल में भी वाम दलों ने प्रदर्शन कर जम्मू-कश्मीर के अवाम की आवाज़ बुलंद की।

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सभी ने जम्मू कश्मीर की स्वायत्ता बहाल करने और कश्मीरी अवाम की आवाज़ सुने जाने की मांग की। 

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