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क्या धार्मिक कट्टरता और जातीय हिंसा मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां हैं?

मोदी के पिछले कार्यकाल में कथित गोरक्षक और कट्टरपंथियों ने जमकर बवाल काटा था। 23 मई को मिली जीत के बाद ऐसी छुटपुट घटनाएं फिर से सामने आने लगी हैं।  
फाइल फोटो
Image Courtesy: Amar Ujala

मध्य प्रदेश के सिवनी में कथित तौर पर गोमांस ले जाने के शक में गोरक्षकों द्वारा एक मुस्लिम महिला सहित तीन लोगों की बेरहमी से पिटाई करने के मामले में पाँच लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, वीडियो में गोरक्षक पीड़ितों से जबरन जय श्रीराम के नारे लगवाते देखे जा सकते हैं। यह घटना 22 मई की है लेकिन 24 मई को वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने इसका संज्ञान लिया।

वीडियो में साफ़तौर पर देखा जा सकता है कि इन गोरक्षकों ने डंडों से युवकों की पिटाई की। इन गोरक्षकों ने एक-एक कर युवकों को पेड़ से बांधा और बेरहमी से इनकी पिटाई की। डुंडा सिवनी पुलिस स्टेशन के प्रभारी गणपत उइके ने बताया कि इस मामले में शुभम बघेल, योगेश उइके, दीपेश नामदेव, रोहित यादव और श्याम देहरिया को गिरफ़्तार किया गया है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 23 मई को एक बड़ी जीत के साथ जब देश की बागडोर दोबारा संभालने जा रहे हैं तो ये खबर सोशल मीडिया पर सबसे ज़्यादा वायरल हो रही है। इसका कारण यह नहीं है कि ये पहली बार हो रहा है, बल्कि मोदी के पिछले कार्यकाल में ऐसी अनेकों घटनाओं से देश की जनता को दो-चार होना पड़ा था। कथित गोरक्षकों की गुंडागर्दी ने देश के अल्पसंख्यकों और दलितों के भीतर भय का माहौल बना दिया था। 

नि:संदेह जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरे कार्यकाल का मौक़ा एक बड़ी जीत के साथ मिला है तो उनके सामने बड़ी चुनौतियाँ भी हैं। इस तरह की घटनाएँ सामने आने के बाद ये कहा जा सकता है कि उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती भारत के विचार को बचाने और संविधान की भावना को सुरक्षित रखने की है।

दरअसल ऐसा भी नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका अंदाज़ा नहीं है। 23 मई को मिली जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया था, 'सबका साथ + सबका विकास + सबका विश्वास = विजयी भारत। हम साथ बढ़ते हैं। हम साथ तरक़्क़ी करते हैं। हम साथ मिलकर एक मज़बूत और समावेशी भारत बनाएंगे। एक बार फिर भारत की जीत हुई! विजयी भारत।' 

यानी उन्होंने साथ मिलकर एक मज़बूत और समावेशी भारत बनाने की बात कही थी, लेकिन ऐसी घटनाओं के दोबारा शुरू होने के साथ कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या ये गोरक्षक ही मोदी के विजयी भारत का निर्माण कर रहे हैं? क्या इस सरकार में सबका विश्वास है? क्या मोदी के कट्टर हिंदू वोट बैंक के रूप में सामने आए ये गोरक्षक अब मोदी की पकड़ से आज़ाद हो गए हैं? क्या पिछले कार्यकाल में उनके लिए परेशानी का सबब रहे ये गोरक्षक इस बार भी उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती रहेंगे?  

आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त, 2016 में कथित गोरक्षकों के लिए कहा था, ‘गोरक्षा पर जो लोग दुकानें खोलकर बैठे हैं उन पर ग़ुस्सा आता है। कुछ लोग पूरी रात एंटीसोशल एक्टिविटी करते हैं और दिन में गोरक्षा का चोला पहन लेते हैं। 70-80 फ़ीसदी लोग फ़र्जी गोसेवक हैं।’ उन्होंने गोरक्षकों से ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने की अपील भी की थी, लेकिन वो पूरी तरह बेअसर साबित हुई थी। 

इस बार भी भाजपा मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमें संविधान में पूरा विश्वास है और हम उसकी भावना की रक्षा करेंगे। इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि इस चुनाव से न सिर्फ़ भ्रष्टाचार का मुद्दा ग़ायब था बल्कि सेक्यूलरिज़्म भी ग़ायब था। इससे पहले तमाम जातिवादी और भ्रष्ट लोग सेक्यूलरिज़्म का बिल्ला लगाकर अपनी स्वीकार्यता प्राप्त कर लेते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया। 

इस पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में प्रोफ़ेसर एडजंक्ट और वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी कहते हैं, 'इसमें कोई दो राय नहीं कि अल्पसंख्यक वोटों के दम पर खड़ा सेक्यूलरिज़्म का विमर्श इस चुनाव में और पराजित हुआ है। कहा जा रहा है कि तीन तलाक़ संबंधी विधेयक के बाद अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं ने मोदी में एक रक्षक की छवि देखी है। इस नाते उन्होंने 2019 में वोट भी दिया है। लेकिन देखना है कि अल्पसंख्यक समुदाय में असुरक्षा पैदा किए बिना और बहुसंख्यकों से उनका सौहार्द बिगाड़े बिना मौजूदा सरकार किस तरह उनमें सुधार करने वालों को प्रोत्साहित करती है। अल्पसंख्यकों की रक्षा एक जटिल प्रक्रिया है और इसे गोरक्षकों के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता। मेरे ख़याल से यही उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।'

वो आगे कहते हैं, 'अल्पसंख्यकों की कट्टरता को घटाने का मतलब बहुसंख्यक समाज की कट्टरता को बढ़ाना क़तई नहीं है। मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती संविधान में दिए गए धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को बचाने की है। जिस संगठन से भाजपा निकली है उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस मूल्य से विशेष चिढ़ है और मोदी उसी प्रेरणा से इस पर हमला भी करते हैं। लेकिन जब वे संविधान की रक्षा की बात करते हैं तो इस मूल्य को किसी भी तरह से बचाना उनका धर्म हो जाता है।'

इसी तरह की एक दूसरी घटना उत्तर प्रदेश के बिजनौर में सामने आई है। बिजनौर के गाँव बसावनपुर में भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा को कुछ शरारती तत्वों ने खंडित कर दिया है। अमर उजाला के मुताबिक़ अनुसूचित जाति के लोगों में इस घटना को लेकर ज़बरदस्त आक्रोश है। उन्होंने चार लोगों पर प्रतिमा खंडित करने का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई है। पुलिस ने नामज़द दो लोगों को हिरासत में ले लिया है।

23 मई को मिली जीत के बाद मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधन के दौरान जाति व्यवस्था पर प्रहार करते हुए कहा कि अब देश में दो ही जातियाँ हैं। एक है ग़रीबों की जाति और दूसरी है ग़रीबी से मुक्त करने वालों की जाति। बाक़ी सारी जातियों को इस चुनाव में जनता ने अप्रासंगिक कर दिया। 

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के गठबंधन को बेअसर करके और बिहार में राजद केंद्रित महागठबंधन को परास्त करके मोदी और भाजपा ने यह दिखा दिया है कि वह सवर्णों के साथ ही पिछड़ों और दलितों को भी साध लेती है। 

इसके लिए अगर उसने सुप्रीम कोर्ट से कमज़ोर किए गए अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को पहले जैसी मज़बूती दी तो इससे नाराज़ सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देकर उनमें भी जनाधार क़ायम रखा। 

इस पर अरुण कुमार त्रिपाठी कहते हैं, 'मोदी को इस दूसरे कार्यकाल में यह देखना होगा कि उन्हें मिले समर्थन और अन्य योजनाओं के माध्यम से हिंदी इलाक़े की जाति व्यवस्था की जकड़बंदी टूटे और यह जातिगत समरसता सिर्फ़ वोट की राजनीति तक सीमित न रह जाए। इस सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियों में यह भी है।' 

वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराज भाजपा की जीत को ‘भारत की जीत’ बताने पर सवाल उठाते हैं। वो कहते हैं, 'मोदी की जीत देश के ज़्यादा सांप्रदायीकरण, निर्णय लेने के ज़्यादा केंद्रीकरण, ज़्यादा मनमानेपन से भरे नीति-निर्माण, कॉरपोरेटों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए ज़्यादा गुंजाइश, आज़ाद मीडिया के प्रति ज़्यादा दुश्मनी भरा भाव और निश्चित तौर पर विरोध के प्रति ज़्यादा असहिष्णुता के लिए मंच तैयार करनेवाली है।'

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