लोकसभा चुनाव के लिए कर्नाटक तैयार, बीजेपी फिर सांप्रदायिक तिकड़म पर उतरी
कर्नाटक, जैसा कि एक साल पहले राज्य की विधानसभा चुनावों के दौरान था, वर्तमान लोकसभा चुनावों में भी सत्ता कब्जाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए सपनों का एक राज्य बना हुआ है। इसे उनके लिए देश के दक्षिणी भाग में प्रवेश का द्वार माना जाता है। क्या राज्य के लोग - कार्यकर्ता, किसान, व्यापारी, आईटी कर्मचारी, महिलाएं, धार्मिक और यौन अल्पसंख्यक और राज्य में कई अन्य लोग भाजपा आरएसएस-निर्देशित भ्रम की केंद्र सरकार का फिर से नेतृत्व चाहते हैं?
राज्य भर में 18 अप्रैल और 23 अप्रैल, दो चरणों को होने वाले चुनाव में कुल 28 निर्वाचन क्षेत्रों में 61,130,704 मतदान करेंगे। पहले चरण में राज्य के दक्षिणी हिस्से के लोग अपना वोट डालेंगे और 23 अप्रैल, को उत्तरी हिस्से के मतदाता अपना वोट करेंगे। लोकसभा चुनाव का मतलब राज्य के मतदाताओं के लिए क्या है? यह वह प्रश्न है जिस पर न्यूज़क्लिक लेख की श्रृंखला के जरिये इस पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
शुरूआत के लिए, हम यहाँ निर्वाचन क्षेत्रों की सामान्य तस्वीर, उनके उम्मीदवार और इनमें से कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में ज्वलंत मुद्दे की तस्वीर पेश करते हैं।
28 निर्वाचन क्षेत्रों पर एक सरसरी नज़र:
उडुपी चिकमगलूर, हसन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मंड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु सेंट्रल, बेंगलुरु दक्षिण, चिकबल्लापुर और कोलार मिलाकर कर्नाटक के दक्षिणी भाग में चौदह संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हैं;चिक्कोडी, बेलगाम, बागलकोट, बीजापुर, गुलबर्गा, रायचूर, बीदर, कोप्पल, बेल्लारी, हावेरी, धारवाड़, उत्तर कन्नड़, दावणगेरे और शिमोगा राज्य के उत्तरी भाग के चौदह संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हैं।
कोलार को छोड़कर भाजपा कुल 27 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ रही है; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 21 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ रही है; जनता दल (सेक्युलर) [जद (एस)] 3 निर्वाचन क्षेत्रों में और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [सीपीआई (एम)] 1 निर्वाचन क्षेत्र चिक्काबल्लापुर में चुनाव लड़ रही है।
भाजपा और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता / प्रतिनिधि राज्य में अपने उम्मीदवारों के लिए बड़ी तेज़ी से प्रचार कर रहे हैं। राहुल गांधी पहले ही राज्य में पार्टी के लिए दो बार कलबुरगी और बेंगलुरु में चुनाव प्रचार कर चुके हैं और कोलार, चित्रदुर्ग और के.आर. नगर में रैलियों को संबोधित कर रहे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट के अनुसार, वह जद (एस) के निखिल गौड़ा के लिए भी प्रचार करेंगे। सी.पी.आई (एम) के राष्ट्रीय नेता अपनी उम्मीदवार कॉमरेड एस वरालक्ष्मी के समर्थन में, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के महासचिव तपन सेन- ने12 अप्रैल, 2019 को चेलूर, बागपल्ली और होसकोटे में जनसभा को संबोधित किया; सुभाषिनी अली- ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेन्स एसोसिएशन (AIDWA) की नेता और सी.पी.एम. की पोलित ब्युरो सदस्या वृंदा करात- आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार करेंगी।
विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दावणगेरे, हसन, तुमकुर, कोलार, कलबुरगी, विजयपुरा और धारवाड़ में प्रचार संभाला है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छह सभाओं को संबोधित करेंगे। राज्य में चुनावी रैलियां: उन्होंने 8 अप्रैल को चित्रदुर्ग और मैसूर में, और 13 अप्रैल को मंगलुरु और बेंगलुरु में रैली को संबोधित किया, माना जा रहा है कि वे 18 अप्रैल को चिक्कोडी और गंगावती में चुनावी सभा को संबोधित करेंगे। मनीकंट्रोल.कॉम की सूचना के अनुसार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 15 और 21 अप्रैल को कुछ हिस्सों में प्रचार करेंगे और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान करवार और हवेरी में रैलियों को संबोधित करेंगे। माना जा रहा है कि पार्टी निर्दलीय उम्मीदवार और अभिनेता सुमलाथा अंबरीश का समर्थन कर रही है, जो क्षेत्र के पूर्व सांसद अंबरीश की विधवा और अनुभवी अभिनेता हैं।
एच. डी. देवेगौड़ा, जद (एस) के "व्योवर्ध" नेता, तुमकुर से चुनाव लड़ रहे हैं, और उनके दोनों पोते प्रज्वल रेवन्ना (एचडी रेवन्ना के पुत्र, मौजूदा विधायक) और निखिल गौड़ा (वर्तमान मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के पुत्र) भी हसन और मांड्या से क्रमशः चुनाव लड़ रहे हैं। जद (एस) पर वंशवादी राजनीति चलाने के आरोप के बीच, और विभिन्न सीटों पर भाजपा के विभिन्न विवादास्पद उम्मीदवारों की वजह से कांग्रेस भ्रमित भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए, राज्य इन अभियानों पर नज़र गड़ाए हुए है।
अनंत कुमार हेगड़े जैसे उम्मीदवार, जो अपने नफरत भरे भाषणों और सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ाने के लिए बदनाम हैं, फिर उत्तर कन्नड़ से चुनाव लड़ रहे हैं; तेजस्वी सूर्य जो अभी तक अपने अपमानजनक भाषणों के लिए कुख्यात थे, एक युवा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) कार्यकर्ता है वे बेंगलुरु दक्षिण से चुनाव लड़ रहे ; और बी एन बचे गौड़ा- जो बी एस येदियुरप्पा की सरकार के दौरान राज्य के पूर्व श्रम मंत्री और सबसे अधिक ज्यादा मज़दूर विरोधी श्रम नीतियों के लिए बदनाम रहे हैं वे चिक्काबल्लापुर निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं से वीरप्पन मोइली भी चुनाव लड़ रहे हैं। प्रकाश राज, जो एक बहुभाषी अभिनेता हैं आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर मध्य बेंगलुरु से चुनाव लड़ रहे है।
एक तरफ, हमारे पास उम्मीदवारों का यह इतिहास है, सत्ता की भूखी पार्टियों की कहानियां हैं और दूसरी तरफ, हमारे पास राज्य के लोगों के ज्वलंत मुद्दों की कहानी हैं। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि कहानियों की निम्नलिखित श्रृंखला राज्य में इन मुद्दों को सामने लाने का एक प्रयास है। निम्नलिखित में हम उन मुद्दों का एक व्यापक दृष्टिकोण पेश कर रहे है जिन्हें हम संबोधित करेंगे।
लोगों की कहानी
देश में बढ़ती बेरोजगारी की दर; दलितों, महिलाओं, धार्मिक और यौन अल्पसंख्यकों पर अत्याचार में हो रही वृद्धि; केंद्र में वर्तमान भाजपा सरकार के तहत सबसे खराब सूखा पड़ने के बावजूद और सरकार किसान विरोधी नीतियों को अपना रही है जिससे राज्य में कृषि संकट बढ़ गया है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य में भाजपा की सांप्रदायिकता परियोजना पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। हालाँकि, ये मुद्दे मुख्यधारा की मीडिया और चुनाव अभियानों में नहीं उभर रहे हैं: क्योंकि वे नकली राष्ट्रवाद और हिंदूत्व के मुद्दों पर चर्चा करने में मशगूल हैं।
उदाहरण के लिए, डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल परियोजना (NRDWP) के लिए 2014-15 में 605.38 करोड़ रुपये कर्नाटक में और राज्य सरकार ने उसी वर्ष में 1,083 करोड़ आवंटित किए थे। वर्ष2018-2019 के वित्तीय वर्ष में, इस योजना के लिए केंद्र का शेयर घटकर 312.33 करोड़ रुपये और राज्य सरकार का शेयर बढ़कर 1,887.67 करोड़ रुपये हो गया। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल परियोजना (NRDWP) को 2009 में लॉन्च किया गया था। इस परियोजना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि हर ग्रामीण घर में पीने, खाना पकाने और अन्य घरेलू जरूरतों के लिए सुरक्षित और पर्याप्त पानी हो। केंद्र और राज्यों को 50:50 के पैटर्न में पैसा आवंटन करना था, लेकिन जैसा कि देखा जा सकता है, राज्य सरकार का खर्च केंद्र सरकार के खर्च से दोगुना है।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने 13 जून 2018 को बताया था कि केंद्र सरकार द्वारा राज्य में पेयजल परियोजनाओं के लिए धन के आवंटन में भारी कमी की गई है। ग्रामीण विकास और पंचायत राज (आरडीपीआर) मंत्री कृष्ण बायर गौड़ा ने कहा था, "भले ही केंद्र को परियोजना की लागत का 50 प्रतिशत वहन करना था, लेकिन इसके लिए स्वीकृत धन लागत का केवल 10 प्रतिशत को ही कवर करने के लिए पर्याप्त है।"
राज्य में एनआरडीडब्ल्यूपी के लिए यह फंड कट तब आया जब कर्नाटक सरकार ने 2018 के खरीफ सीजन के लिए 23 जिलों में 86 तालुका में सूखा प्रभावित घोषित किया, और 9 जिलों में 14 तालुक ‘गंभीर रूप से सूखा प्रभावित’ घोषित किए गए हैं।
राज्य सरकार ने सूखा राहत सहायता के लिए 2,434 करोड़ रुपये के मुआवज़े की मांग की है क्योंकि 175 तालुकाओं में से 100में फसल का भारी नुकसान हुआ है जिसकी भरपाई के लिए सरकार ने, हालांकि, केवल 949.49 करोड़ रुपये की राहत की घोषणा की है। भाजपा शासित महाराष्ट्र को दी जाने वाली राहत सहायता की तुलना में, जो 358 तालुकाओं में से 151 को सूखा प्रभावित घोषित कर चुकी है, कुछ भी नहीं है। कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) के अध्यक्ष दिनेश गुंडु राव के अनुसार,केंद्र सरकार ने उन्हे 4,714.28 करोड़ रुपये की सहायता की घोषणा की है। द न्यूज मिनट की रिपोर्ट में राव ने पीएम को लिखे पत्र में कहा है, "मैं आपको बताना चाहता हूं कि आपकी सरकार द्वारा पक्षपात की इस भावना को कर्नाटक के लोगों ने सही नहीं माना है।"
केंद्र सरकार ने - पर्याप्त सूखा राहत सहायता न देकर और NRDWP में अपना हिस्सा कम करके - राज्य सरकार के लिए इस गम्भीर स्थिति से निपटना मुश्किल बना दिया है।
हालांकि, भाजपा राज्य में इस मुद्दे पर चुप है और खुद का बचाव भी नहीं कर पा रही है, लेकिन वे वह कर रही हैं, जिसे वह सबसे अच्छा करती हैं। कर्नाटक में भाजपा का इतिहास हमें राज्य में सत्ता में आने के लिए रणनीति और पार्टी द्वारा अपनाए गए साधनों की झलक देता है। यह इतिहास बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा और बढ़े हुए भ्रष्टाचार से ग्रस्त है।
1985 में, कोलार ने भाजपा और आरएसएस द्वारा गणेश उत्सव को भव्य रूप से मनाने के निर्णय के बाद सांप्रदायिक तनाव देखा गया था; 1990 में कोलार में ईदुल मिलाद समारोह की तैयारी की वजह से एक दंगा हुआ था। आरएसएस के साथ बीजेपी ने घर-घर अभियान चलाया और स्थानीय लोगों को जुटाकर कोलार में ईद के जुलूस का विरोध किया था।
भाजपा और आरएसएस के सहानुभूतिवादियों ने 10 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखने का जश्न मनाया। इसके परिणामस्वरूप अर्सिकेरे, हुबली और धारवाड़ में कई दंगे हुए। 1990 में भाजपा की रथ यात्रा ने जुलूस के क्षेत्रों में फिर से सांप्रदायिक तनाव पैदा कर दिया था; यह तनाव 1992 तक बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भी जारी रहा। 1994 में, एक उर्दू समाचार चैनल के आसपास विवाद छिड़ गया। कन्नड़ पैरा संघ (कन्नड़ संगठन) ने राज्य में हिंदू कट्टरपंथी समूहों के साथ हाथ मिलाया और पहल का विरोध किया। इससे राज्य में फिर से सांप्रदायिक तनाव शुरू हो गया। 2004 के बाद से, बीजेपी मजबूत हो गई है और तब से आरएसएस के साथ मिलकर भाजपा राज्य में ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है।
पिछले पांच वर्षों के दौरान, केंद्र में भाजपा सरकार ने कर्नाटक राज्य की काफी उपेक्षा की है और इस बारे में वह बात करने की इच्छुक नहीं है, ऐसा देखा जा रहा है कि वे लोगों को फिर से ध्रुवीकरण करने की राजनीति का सहारा ले रहे हैं, इस बार पुलवामा घटना को केंद्र में हैं। न्यूज़क्लिक इस प्रकार कर्नाटक राज्य के लोगों की कहानियों को सामने लाएगा।
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