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माणिक सरकार के भाषण पर रोक, राज्यों के अधिकार पर एक और हमला

दूरदर्शन ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार का स्वतंत्रता दिवस पर दिए जाने वाले भाषण को प्रसारित करने से इनकार  कर दिया है।
माणिक सरकार के भाषण पर रोक, राज्यों के अधिकार पर एक और हमला

दूरदर्शन ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार का स्वतंत्रता दिवस पर दिए जाने वाले भाषण को प्रसारित करने से इनकार  कर दिया है। मुख्यमंत्री कार्यालय का कहना है कि भाषण प्रसारित होने से पहले उन्हें भाषण में बदलाव करने को कहा गया जिसे मुख्यमंत्री ने नकार दिया। माणिक सरकार ने प्रसार भारती के इस रवैये को अलोकतांत्रिक, असहिष्णुता और निरंकुशता से प्रेरित बताया है ।

यह भाषण 12 अगस्त को रिकॉर्ड किया गया था और  इसे 15 अगस्त की सुबह प्रसारित किया जाना था। प्रसारण से पहले ही प्रसार भारती के डायरेक्टर जनरल ने चिट्ठी के माध्यम से कहा कि "मुख्यमंत्री के संदेश को उच्च अधिकारियों द्वारा करीब से देखा और समझा गया है, और इस अवसर की पवित्रता,  कोड ऑफ़ ब्रोडकास्टिंग  और ब्रोडकास्टिंग  की जिम्मेदारियों  की वजह से इसे मौजूदा फॉर्मेट में  प्रसारित  नहीं जा सकता। " साथ ही चिट्ठी में यह भी कहा गयाकि " दूरदर्शन /प्रसार भारती को ख़ुशी होगी ,अगर मुख्यमंत्री इस भाषण में कुछ बदलाव कर सकें और इसके कंटेंट को इस अवसर के और लोगों की भावनाओं के हिसाब से बदल सकें '' 
 

इस पुरे मसले की माणिक सरकार की पार्टी माकपा ने कड़े शब्दों में निंदा की है ।  माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि दूरदर्शन आरएसएस /बीजेपी की  निजी सम्पत्ति नहीं है और उनका त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के भाषण प्रसारित करने से मना  करना साफ़ तौर पर अलोकतांत्रिक और गैर कानूनी है।

 
इस भाषण में माणिक सरकार ने कहा है कि “भारत हमेशा से धर्म निरपेक्षता और उदारता के लिए जाना जाता रहा है पर हाल में इस एकता को तोड़ने की कोशिशें चल रही है ।“  गौ-रक्षा के नाम पर चल रही मुहिम और साम्प्रदायिता के मुद्दे को उठाते हुए उन्होंने कहा है कि देश को एक धर्म  का राष्ट्र बनाने की कोशिश की जा रही हैं।  उन्होने कहा है कि साफ़ तौर पर दलित और मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। इसके अलावा उन्होंने आरएसएस और बीजेपी पर तंज़ कसते हुए कहा कि जिन लोगों के नायक  न सिर्फ आज़ादी के आंदोलन से दूर रहे बल्कि जिन्होंने अंग्रेज़ों का साथ दिया ,वो आज खुद को विभिन्न नामों से सजा रहे हैं और देश की एकता को तोड़ने की कोशिश में हैं। 

ये कहा जा सकता है कि आरएसएस /बीजेपी द्वारा सेंसरशिप की ये कोशिश इमरजेंसी के समय की याद दिलाती है।  उनकी इस कोशिश को उनकी भारत  को विपक्ष मुक्त करने की मुहिम से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। ये समझना भी ज़रूरी है की भाजपा की जन विरोधी नीतियों को चुनौती सिर्फ वामपंथी ही दे सकते हैं और इसी वजह से वामपंथी ताकतों को दबाये जाने की लगातार कोशिशें जारी हैं।

 

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