मध्यप्रदेश और राजस्थान: किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा
मध्यप्रदेश (एमपी) और राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अपने चरम पर है, दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाली मौजूदा सरकारों के खिलाफ किसानों में भारी गुस्सा देखा जा सकता है। हालिया ख़बरों की मानें तो इसका मुख्य कारण है कि किसानों को खरीफ फसलों की बिक्री के लिए मंडियों में जो कीमत दी जा रही है वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम है।
धान को छोड़कर अधिकतर फसल केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बड़े उत्साह के साथ घोषित एमएसपी से नीचे की कीमतों पर बिक रही हैं। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत विपणन और निरीक्षण निदेशालय (डीएमआई) द्वारा संचालित एग्मार्कमार्क पोर्टल द्वारा रिपोर्ट किए गए नवीनतम आँकड़ों पर नज़र डालें।
एमपी में, जहाँ सोयाबीन एक प्रमुख फसल है, इसकी कीमतों में लगातार गिरावट आई हैं क्योंकि बम्पर फसल होने के बाद जब फसल बाज़ार में आई और अक्टूबर में 3,399 रूपए प्रति क्विंटल की एमएसपी की तुलना में सिर्फ 2,987 रुपये प्रति क्विंटल बिक्री दर्ज की गई थी। किसानों को इससे 12 प्रतिशत का घाटा हुआ है।
एमपी में एक और प्रमुख फसल अरहर (तूर) दाल की होती है, इस दाल की भारत भर में भारी मात्रा में खपत होती है। मोदी सरकार ने इसकी एमएसपी 5,675 रुपये प्रति क्विंटल तय की थी। यह राज्य में 2,938 रुपये प्रति क्विंटल की औसत की कीमत पर बिकी है –यानि किसानों को एमएसपी के मुकाबले 48 प्रतिशत का घाटा हुआ है।
उरद एक अन्य प्रमुख दाल है जो एमपी में प्रति क्विंटल 3,422 रुपये बिकी और अक्टूबर में पड़ोसी राज्य राजस्थान में 2,905 रुपये प्रति क्विंटल बिकी थी, जबकि एमएसपी 5,600 रुपये प्रति क्विंटल थी। किसानों को यहाँ एमएसपी में 39 प्रतिशत और राजस्थान में 48 प्रतिशत का घाटा हुआ है।
यहाँ तक कि मोटा अनाज, जिसे बारिश से सराबोर भूमि पर सबसे गरीब किसानों द्वारा बोया जाता है, का भी अच्छा दाम नहीं लग रहा। बाजरा (मोती बाजरा) के लिए एमएसपी 1,950 रुपये प्रति क्विंटल तय की गयी थी, लेकिन सितंबर में यह सिर्फ 1,216 रुपये प्रति क्विंटल पर बिकी, जो बाद में अक्टूबर में बढ़कर 1,538 रुपये हो गयी थी, लेकिन यह भी एमएसपी से 21 प्रतिशत कम है। राजस्थान में, अक्टूबर में यह 1,337 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ने से पहले सितंबर में इसे 1,337 रुपये के दाम पर बेचा गया था, जो एमएसपी से लगभग 26 प्रतिशत नीचे था।
यही स्थिति ज्वार का भी हुआ, यह एक बहुत पौष्टिक अनाज है। यह राजस्थान में 1,829 रुपये प्रति क्विंटल और एमपी में 1,558 रुपये पर बिका जो 2,430 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी के मुकाबले काफी कम था। इस हिसाब से किसानों का नुक्सान एमपी में 36 प्रतिशत और राजस्थान में 25 प्रतिशत का रहा।
किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि घोषित एमएसपी अभी भी पूर्ण उत्पादन की लागत + 50 प्रतिशत मुनाफे के वादे को पूरा नहीं करती है, जैसा कि मोदी ने 2014 के चुनाव अभियान में वायदा किया था। यदि आप इसकी उस मानक से तुलना करेंगे तो किसानों का नुकसान दोगुना दर्ज़ किया जाएगा।
इनमें से अधिकतर नुकसान राज्यों में अपेक्षित खरीद की मशीनरी की अनुपस्थिति की वजह से हुए हैं। जैसा कि न्यूजक्लिक द्वारा पहले बताया जा चुका है, कि कुल उत्पादित गेहूं का केवल 45 प्रतिशत हिस्सा ही एमपी सरकार द्वारा खरीदा गया था, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार पिछले साल उत्पादित धान का सिर्फ 46 प्रतिशत ही खरीद सकी थी। यदि इन दो प्रमुख फसलों की इतनी खेदजनक स्थिति है, तो आप कल्पना कर सकते हैं कि छोटी फसलों के साथ क्या हो रहा है।
यह लोगों से बीजेपी के अलगाव की कहानी है जो एक कठिन चुनावी लड़ाई का सामना करने के बावजूद, और एक आम चुनाव से कुछ महीने दूर, वह परेशान किसानों को कोई सांत्वना/सहायता देने में असमर्थ रही है जो पिछ्ले चार वर्षों से सड़कों पर बेहतर कीमतों के लिए लड़ रहे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में शायद किसान उन्हें इस आपराधिक उपेक्षा के लिए सबक सिखाएंगे।
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