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मोदी बनाम मज़दूर: मज़दूरों की सुरक्षा वाले श्रम क़ानूनों का सत्यानाश

जिस वेतन संबंधी संहिता(वेज कोड) को लोकसभा में पारित किया गया है, वह न्यूनतम मज़दूरी की गणना के मानदंडों को नष्ट कर देती है। वो लंबे काम के घंटे का दरवाज़ा खोलती है और साथ ही मालिकों की जांच और दंड प्रणाली को भी कम करती है।
मोदी बनाम मज़दूर

30 जुलाई, 2019 को लोकसभा में मज़दूरी संबंधी संहिता के पारित होने के बाद, मज़दूरों के लिए बने मौजूदा सुरक्षात्मक ढांचे का विघटन सही मायनों में शुरू हो गया है। पारित संहिता को वास्तविक क़ानून में तबदील होने से पहले मंज़ूरी के लिए राज्यसभा जाना होगा। लेकिन जिस तरह से अलग-अलग पार्टियों में सत्ता में सरकार को लेकर गहमा-गहमी चल रही है, उससे लगता है कि उच्च सदन में भी यह संहिता आसानी से पारित हो जाएगी। पारित वेतन संहिता न्यूनतम मज़दूरी और बोनस से संबंधित चार मौजूदा श्रम क़ानूनों की जगह ले लेगी। व्यावसायिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की शर्तों और फ़ैक्ट्री अधिनियम सहित 13 अन्य क़ानूनों पर लंबित पड़े कोड की जगह लेगा, और इसके साथ बीड़ी और सिगार, सिनेमा, बिक्री संवर्धन, प्रवासियों, निर्माण श्रमिकों आदि जैसे श्रमिकों के विभिन्न वर्गों से संबंधित कामों को भी इस क़ानून के भीतर ले लेगा।

वेतन की तीन आवश्यक विशेषताओं को नई पारित संहिता के माध्यम से बदला जा रहा है। ये हैं: न्यूनतम मज़दूरी की गणना कैसे की जाएगी, कार्य दिवस क्या होगा और वे कौन से तरीक़े होंगे जिनसे क़ानून को इन पर लागू किया जाएगा। ये सब परिवर्तन वेतन संबंधित श्रम क़ानूनों की सुरक्षात्मक प्रकृति को प्रभावी ढंग से नष्ट करने में सक्षम हैं। पहले इन क़ानूनों के पीछे भावना यह होती थी कि श्रमिक एक वंचित तबके से हैं और जो सामाजिक और आर्थिक रूप से मालिकों कें शोषण के दबाव का मुक़ाबला करने में असमर्थ हैं और इसलिए उन्हें सुरक्षात्मक क़ानून की आवश्यकता है। जबकि मोदी द्वारा तैयार और पेश की गई नई संहिताओं में सुनिश्चित की गई नई सोच यह है कि इस तरह के संरक्षण की कोई ज़रूरत ही नहीं है, और इससे मालिकों को कम से कम मुआवज़ा या वेतन देकर असहाय श्रमिकों से अधिक से अधिक काम लेने में खुली छूट मिलेगी।

न्यूनतम वेतन की गणना कैसे की जाएगी?

नई पारित की गई संहिता के अनुसार, न्यूनतम मजदूरी की गणना और उस पर फैंसला केंद्र या राज्य सरकारों ("उपयुक्त सरकार") द्वारा किया जाएगा, जो कि कुछ कारकों पर विचार करेगी जिन्हे संहिता 6 की उप-धारा 6 में दिया गया हैं। शब्दांकन महत्वपूर्ण है, इसलिए यहां अनुभाग के पाठ पर (ज़ोर दिया गया है):

धारा 6 (6) इस धारा के तहत मज़दूरी की न्यूनतम दर निर्धारण के लिए उपयुक्त सरकार -

(ए) मुख्य रूप से अकुशल, कुशल, अर्ध-कुशल और अत्यधिक-कुशल या भौगोलिक क्षेत्र या दोनों की श्रेणियों के तहत काम करने के लिए श्रमिकों के आवश्यक कौशल को ध्यान में रखेगी; तथा

(ख) श्रमिकों की कुछ श्रेणी के लिए मज़दूरी की न्यूनतम दर तय करते वक़्त उनकी काम करने की कठोर स्थिति, तापमान या नमी, ख़तरनाक व्यवसायों या प्रक्रियाओं को सहन करना या भूमिगत कार्य जो कि सरकार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है को ध्यान में रखा जाएगा; तथा

(ग) मज़दूरी की न्यूनतम दर के ऐसे निर्धारण के मानदंड इस प्रकार निर्धारित किए जाएंगे।

ध्यान दें कि वेतन तय करने का प्राथमिक कारक कौशल या भौगोलिक क्षेत्र हैं - यही कारण है कि खंड (ए) कहता है ऐसा ‘करेगा’। इन दोनों कारकों पर विचार करना अनिवार्य है। अगले खंड में, यह कहता है कि सरकार (अनिवार्य नहीं), ख़तरनाक या भूमिगत काम की गंभीरता है को तय ‘कर’ सकती है। अंत में, क्लॉज (ग) में, यह कहा गया है कि मजदूरी तय करने के मानदंड 'निर्धारित' किए जा सकते हैं।

इस सब का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि न्यूनतम मज़दूरी मज़दूर के कौशल पर आधारित होगी, और शायद काम की कठिन परिस्थिति को भी ध्यान में रखा जा सकता है। बस।

इस एक नए प्रावधान के ज़रिये, मोदी सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी को तय करने के उस सिद्धांत को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है, जिसके आधार पर एक श्रमिक और उसके परिवार को जीवित रहने की आवश्यकता है (न्यूनतम मज़दूरी केवल जीवित रहने के लिए है, यह उचित मज़दूरी नहीं है)। 1957 में 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन (ट्रेड यूनियनों, मालिकों और सरकार के प्रतिनिधी इसमें शामिल हैं) ने इस तथ्य के आधार पर न्यूनतम मज़दूरी की गणना की एक विस्तृत विधि पर निर्णय लिया था कि प्रत्येक वयस्क मज़दूर को प्रति दिन कम से कम 2,700 किलो कैलोरी भोजन की आवश्यकता होगी इसके अलावा उसे कपड़े, आवास, अन्य उपभोग की वस्तुएं  (जैसे साबुन, ईंधन, किराया, परिवहन, आदि की ज़रूरत होगी। चार सदस्यीय परिवार (दो वयस्क और दो बच्चे) को इस गणना के लिए एक इकाई माना गया था। यही न्यूनतम मज़दूरी गणनाओं का आधार बन गया। 1992 में, सुप्रीम कोर्ट (रेप्टाकोस ब्रेट में) ने न्यूनतम मज़दूरी की गणना के इस तरीके की पुष्टि करते हुए कहा था कि बच्चों की शिक्षा, मनोरंजन और अवकाश, शादी जैसे अवसरों आदि के खर्च के प्रमुख तत्व को इस पद्धति में कवर नहीं किया गया हैं और इसलिए इस संबंध में उसने निर्देशित दिए थे। कोर्ट ने कहा कि इन पहलुओं को कवर करने के लिए वेतन की पहली गणना का 25 प्रतिशत इसमें जोड़ा जाना चाहिए और तब यह आदर्श वेतन बनेगा, इसलिए न्यूनतम मजदूरी दरों को तय करने के लिए पूरे देश में इसकी पुष्टि की गई और उसका उपयोग किया गया। इसकी हाल ही में 2016 में 46 वें ILC सम्मेलन में इसकी पुष्टि की गई थी जिसका उद्घाटन खुद मोदी ने किया था।

इस सब को अब खिड़की से बाहर फैंक दिया गया है। नया क़ानून स्वयं यह तय करता है कि वेतन निर्धारण के लिए किन कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए और लेकिन उनमें पहले की कोई भी कार्यप्रणाली या विधि शामिल नहीं है। यह तर्क दिया जा सकता है कि इस पद्धति को बनाए रखने के लिए सरकार का अधिकार खंड (ग) के तहत है। लेकिन फिर इसे क़ानून का हिस्सा क्यों नहीं बनाया गया?

कितने घन्टे का काम?

दुनिया भर के मज़दूरों के लिए सारे सुरक्षात्मक कानून यह सुनिश्चित करते हैं कि कार्यदिवस 8 घंटे का होगा, (यानी सप्ताह में 48 घंटे)। इससे आगे के घंटे के लिए किए गए किसी भी काम को ओवरटाइम काम माना जाएगा और प्रति घंटे की दर से समान्य का दोगुना भुगतान किया जाएगा। यद्यपि MWA ने इसे स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन इसके तहत बनाए गए नियमों ने आठ-घंटे के कार्य दिवस को स्पष्ट किया था। इसके अलावा, फैक्ट्रीज़ एक्ट जैसे अन्य कानून स्पष्ट रूप से स्पष्ट करते हैं कि कार्य दिवस आठ घंटे का होगा।

यह महत्वपूर्ण है क्योंकि मज़दूरी का भुगतान आमतौर पर कार्य दिवसों की संख्या के अनुसार किया जाता है, और अतिरिक्त काम के लिए दोगुनी दरों पर भुगतान करने की आवश्यकता होती है। एक श्रमिक को मिलने वाली मज़दूरी की मात्रा आंतरिक रूप से काम के घंटों की संख्या से जुड़ी होती है।

वेतन पर बनी संहिता में, पहले वाली (MWA में) परिभाषा का ही उपयोग किया गया है – जिसके मुताबिक उपयुक्त सरकार तय करेगी कि सामान्य कार्य दिवस क्या होगा। लेकिन मोदी सरकार की मंशा आठ घंटे के कार्य दिवस को बेअसर करने की है जो अन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों पर अन्य संहिता से ज़ाहिर होता है, जो फैक्ट्री अधिनियम अधिनियम प्रावधान (धारा 51 में) की जगह उपयुक्त सरकार 8 घंटे के कार्य दिवस को तय कर सकती है। यानि वह एक सामान्य कार्य दिवस के घंटे की संख्या तय करेगी। यहाँ कोड क्या कहता है:

धारा 25. (1) किसी भी मज़दूर को किसी भी संस्थान में या किसी भी वर्ग के संस्थान में काम करने की आवश्यकता या अनुमति नहीं दी जाएगी-

(ए) इस अवधि के बारे में उपयुक्त सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है;

(बी) दिन के ऐसे घंटे को उचित सरकार द्वारा खंड (क) में निर्दिष्ट अवधि के अधीन अधिसूचित किए जा सकते हैं; 

(ग) प्रत्येक दिन में काम की अवधि इतनी तय की जाएगी कि वह तय घंटों से आगे न बढ़े, इस तरह की अवधि के भीतर, ऐसी अवधि में ऐसे अंतराल के साथ, उचित सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है।

फिर से, आठ घंटे की कार्य दिवस की मौजूदा सीमा को आगे बढ़ाने के बजाय, संहिता काम के घंटे तय करने के लिए इसे सरकार पर छोड़ देती है। क्यूंकर? क्योंकि इस सन्हिता का उद्देश्य सामान्य कार्य दिवस में अधिक घंटे काम करने के लिए मजबूर करना है वह भी बिना श्रमिकों की अनुमति के और डबल ओवरटाइम दर का भुगतान किए बिना।

क़ानून को कैसे लागू किया जाएगा?

प्रमुख मामलों को नष्ट करने के बाद - मजदूरी और काम के घंटों की गणना – और नई संहिता के माध्यम से, मोदी सरकार यह सुनिश्चित करना चहती थी कि श्रमिकों की शिकायतों के आधार पर उद्योगपतियों को किसी भी सरकारी कानूनी मशीनरी द्वारा परेशान नहीं किया जाए। इसलिए, श्रम निरीक्षकों की वर्तमान मशीनरी जो उल्लंघन और अभियोग की जांच करती थी, को और नीचे कर दिया गया है। वास्तव में, उनका केवल नामकरण बदल दिया गया है। निरीक्षकों को अब निरीक्षक-एवम- सूत्रधार कहा जाएगा!

‘फ़ेसिलीटेटर’ क्यों? क्योंकि, नया कोड यही कहता है (इस पर भी ज़ोर दिया गया है): 

सेक्शन 51. (5) इंस्पेक्टर-कम-फ़ेसिलिटेटर के काम 

(ए) इस कोड के प्रावधानों के अनुपालन से संबंधित नियोक्ताओं और श्रमिकों को सलाह देना; 

(ख) उपयुक्त सरकार द्वारा उसे सौंपे गए प्रतिष्ठानों की जांच करे, जो समय-समय पर उपयुक्त सरकार द्वारा जारी निर्देशों या दिशानिर्देशों के अधीन होगा।

इसलिए, अब इंस्पेक्टर-कम-फ़ेसिलिटेटर को नियोक्ताओं और श्रमिकों दोनों को सलाह देनी होगी – उसे सिर्फ़ उल्लंघन की जाँच करने वाला नहीं बनना है। वास्तव में, जांच प्रक्रिया की एक विस्तृत प्रणाली दी गई है जो स्पष्ट करती है कि एक "वेब-आधारित निरीक्षण" प्रणाली को भी लाया जा सकता है। सरकार तय करेगी कि किन स्थानों का निरीक्षण "यादृच्छिक" आधार पर किया जाना चाहिए। इनमें से कई विधियां पहले से ही कई राज्यों में हैं लेकिन अब यह सब केंद्रीय कानून का हिस्सा बन जाएगी।

इन्सपेक्टर रिकॉर्ड का निरीक्षण भी कर सकते हैं, पूछताछ कर सकते हैं और उपयुक्त वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट करने के बाद जुर्माना भी लगा सकते हैं। लेकिन उन्हें इस कार्यवाही से पहले उल्लंघनकर्ताओं को  अपने तरीके से संशोधन या सुधार करने के लिए समय देना होगा। इसके अलावा, समझौता करने का नया प्रावधान - आपसी समझौता करना – को धारा 56 में दिया गया हैं। इसका मतलब है कि मालिक और श्रमिक एक आपसी समझौते पर पहुंच सकते हैं और मजदूरी या बोनस आदि पर विवाद का निपटारा कर सकते हैं। मालिक और श्रमिक के बीच अत्यधिक असमान संबंधों को देखते हुए, यह प्रभावी रूप से श्रमिकों को मजबूर करेगा कि वे अपने अधिकारों के खिलाफ जाकर समझौता स्वीकार करें।

इन तीन महत्वपूर्ण परिवर्तनों के अलावा, जो मजदूर-मालिक संबंध के संतुलन को निर्णायक रूप से मालिक के पक्ष में स्थानांतरित कर देगा, उसके मुताबिक नई संहिता में ऐसे कई प्राव्धान हैं जो श्रमिकों के विभिन्न वर्गों के कई छोटे अधिकारों को खत्म कए देगा।

संक्षेप में, मोदी सरकार ने शोषणकारी मालिकों से श्रमिकों के लिए उपलब्ध सभी सुरक्षा नियमों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। दो नई संहिता, और अन्य दो जो आने वाले हैं, वे पिछली शताब्दी में उनके संघर्षों के माध्यम से श्रमिकों द्वारा पाए गए सभी लाभों को प्रभावी ढंग से नष्ट कर देंगे।

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