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मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम को ग़ैर-हिंदी भाषी दर्शकों ने ज़्यादा तवज्जो नहीं दी

ट्रेंड से पता चलता है कि इस कार्यक्रम को दूरदर्शन पर देश के ग्रामीण क्षेत्र के हिंदी दर्शकों द्वारा ज़्यादातर देखा गया। पीएम मोदी के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होने अर्थात वर्ष 2016 के बाद दर्शकों की संख्या में काफ़ी कमी आई।
मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम को ग़ैर-हिंदी भाषी दर्शकों ने ज़्यादा तवज्जो नहीं दी

पीएम मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम के संबंध में प्रकाशित किया गया आंकड़ा आरटीआई से मिले जवाब पर आधारित है। अत्यधिक प्रचारित इस कार्यक्रम पर न्यूज़क्लिक द्वारा प्रकाशित किए गए रिपोर्ट की श्रृंखला की यह दूसरी और आख़िरी रिपोर्ट है।

भारत की जनता से संवाद करने के लिए अपने मासिक रेडियो प्रसारण 'मन की बात' कार्यक्रम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काफ़ी ज़्यादा भरोसा किया था लेकिन वास्तव में उनका ये कार्यक्रम विभिन्न टीवी न्यूज़ चैनलों पर हिंदी पट्टी से बाहर के दर्शकों को आकर्षित करने में विफ़ल हो गया।

भारत के टीवी चैनलों का व्यूअरशिप आंकड़ा बताने वाली एजेंसी ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बीएआरसी) के अनुसार डीडी नेशनल पर 29 नवंबर 2015 को प्रसारित इस कार्यक्रम की टीआरपी सबसे ज़्यादा 1,601 दर्ज की गई। ज्ञात हो कि डीडी नेशनल भारत सरकार के स्वामित्व वाला हिंदी भाषा का प्रमुख मनोरंजन टेलीविज़न चैनल है।

पिछले चार वर्षों में 20 मिनट के इस कार्यक्रम की शेष पांच शीर्ष टीआरपी 1,032 (27 दिसंबर, 2015), 975 (25 अक्टूबर, 2015), 1,290 (31 जनवरी, 2016) और 1,423 (28 फरवरी, 2016) दर्ज की गई थी। पिछले पांच वर्षों में 'मन की बात' कार्यक्रम के कुल 50 एपिसोड प्रसारित किए गए।

उच्च टीआरपी वाले ये सभी कार्यक्रम डीडी नेशनल द्वारा रविवार को हिंदी भाषा में प्रसारित किए गए थे। इस कार्यक्रम के बारे में कहा जाता है कि इसे ग्रामीण भारत के हिंदी पट्टी में सबसे ज़्यादा देखा गया। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को कहा था कि वे प्रधानमंत्री द्वारा लोगों को संबोधित किए जाने वाले इस मासिक कार्यक्रम को टीवी, रेडियो और एफ़एम पर बड़ी संख्या में देखें या सुनें और साथ ही लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें।

कई बीजेपी नेताओं ने कथित तौर पर पार्टी के कार्यकर्ताओं को रेडियो सेट बांटे थे ताकि वे प्रधानमंत्री को सुन सकें और दूसरों को भी सुना सकें। ऐसी रिपोर्टें आई थीं कि ये कार्यक्रम थोपा गया था और स्कूल के शिक्षकों और छात्रों को इस कार्यक्रम के लिए उपलब्ध कराए गए टीवी सेटों पर 'मन की बात' देखने के लिए कहा गया था।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के तहत भारत सरकार की सेवा प्रसारक संस्था प्रसार भारती से दिल्ली के अधिवक्ता तथा एक्टिविस्ट यूसुफ़ नक़ी को 2015 से 2018 तक का बीएआरसी डेटा मुहैया कराया गया। इसका विश्लेषण न्यूज़क्लिक द्वारा किया गया। विश्लेषण से पता चलता है कि इस कार्यक्रम ने डीडी नेशनल और डीडी न्यूज़ पर अच्छा प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम के लिए इनकी औसत टीआरपी किसी-किसी स्थान पर 257 थी।

ये कार्यक्रम केवल कुछ ही मौकों पर सफ़ल हुआ लेकिन ग़ैर-हिंदी भाषी दर्शकों और श्रोताओं को जोड़ने में विफ़ल रहा। दूरदर्शन के क्षेत्रीय चैनलों जैसे डीडी नॉर्थ ईस्ट, डीडी मलयालम, डीडी उड़िया, डीडी राजस्थान, डीडी बंगला, डीडी सह्याद्री (मराठी भाषा का चैनल), डीडी गिरनार (गुजराती भाषा का चैनल), डीडी कश्मीर (कश्मीरी भाषा का चैनल), डीडी पोधिगई (तमिल भाषा का चैनल) और डीडी पंजाबी पर इस विशेष कार्यक्रम ने काफ़ी ख़राब प्रदर्शन किया। इन चैनलों पर कुछ एपिसोड्स को छोड़कर इस कार्यक्रम की टीआरपी दो अंकों और यहाँ तक कि एक अंक में भी दर्ज की गई है।

दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री का गृह राज्य गुजरात होने के बावजूद ये कार्यक्रम गुजराती भाषा के दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका जिनकी संख्या काफ़ी कम रही।

प्राइवेट न्यूज़ चैनलों पर 'मन की बात’ कार्यक्रम का प्रदर्शन

चार साल के आंकड़ों से पता चलता है कि देश भर में प्राइवेट हिंदी, अंग्रेज़ी और क्षेत्रीय भाषा के न्यूज़ चैनलों के दर्शकों की प्रतिक्रिया प्रभावशाली नहीं है। कुछ एपिसोड को छोड़कर इस विशेष कार्यक्रम की उनकी टीआरपी ज़्यादातर एक और दो अंकों में दर्ज किए गए। कई ऐसे भी उदाहरण हैं जिसमें इस कार्यक्रम की टीआरपी शून्य दर्ज की गई थी।

ये कार्यक्रम ज़ी न्यूज़ पर भी असफ़ल हो गया जिसके बारे में माना जाता है कि इसका सत्तारूढ़ पार्टी से निकट संबंध है।
इन प्रवृत्तियों से यह भी पता चलता है कि शहरी और उप शहरी टीवी दर्शक जो पैसे देकर इन चैनलों को देखते हैं वे मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम को सुनने में बहुत दिलचस्पी नहीं रखते थे।

आंकड़ों के विश्लेषण से ये भी पता चलता है कि वर्ष 2016 के बाद जिस तरह प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम के व्यूअरशिप में गिरावट देखी गई उसी तरह सत्ता हासिल करने के दो साल बाद उनकी लोकप्रियता ग्राफ़ में भी भारी गिरावट देखी गई। वर्ष 2017 और 2018 में इस कार्यक्रम का व्यूअरशिप डाटा चाहे यह दूरदर्शन हो या प्राइवेट सभी न्यूज़ चैनल पर तीन अंकों के कुछ आंकड़ों (अधिकतम 300) को छोड़कर दो अंकों तक ही सीमित रहा।

आमतौर पर किसी भी टीवी कार्यक्रम को तब सफ़ल माना जाता है जब वह टीआरपी के 200 अंक को छू लेता है। जब ये संख्या 250 और उससे अधिक हो जाती है तो इसे सफ़ल कार्यक्रम माना जाता है।

'पीएम के दर्शकों के बारे में जानकारी हासिल करनी थी'

आरटीआई एक्टिविस्ट नक़ी से यह पूछे जाने पर कि उन्हें आरटीआई दाख़िल करने के लिए किस चीज ने प्रेरित किया तो उन्होंने न्यूज़़क्लिक को बताया कि “आरटीआई दाख़िल करने के पीछे कारण यह था कि मैंने यह जानना चाहा कि जब भारत के प्रधानमंत्री संबोधित करते हैं तो वे कितने श्रोताओं और टेलीविज़न दर्शकों को आकर्षित करते हैं। विशेष रूप से इस कार्यक्रम को मीडिया द्वारा जनता से सीधे जुड़ने के साधन के रूप में काफ़ी ज़्यादा प्रचारित किया गया था। मैं यह जानने के लिए भी उत्सुक था कि विभिन्न राज्यों में इसके प्रभाव और मोदी के लहर की वास्तविकता कैसी है।”

‘मन की बात’ - एक परिचय

मोदी ने आमतौर पर हर महीने ऑल इंडिया रेडियो, डीडी नेशनल और डीडी न्यूज़ पर राष्ट्र को संबोधित किया। 3 अक्टूबर 2014 को आधिकारिक रूप से शुरू होने के बाद इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश की आम जनता तक प्रधानमंत्री की आवाज़ पहुँचाना था।

इस कार्यक्रम के लिए रेडियो और टीवी को इसकी व्यापक पहुँच के कारण माध्यम के रूप में चुना गया। ये कार्यक्रम तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा पेश किए गए रेडियो संबोधन से प्रेरित था।

भारत की लगभग 90 प्रतिशत आबादी इस माध्यम से जुड़ी है। इसके अलावा देश के महानगरों में विभिन्न प्राइवेट एफ़एम रेडियो स्टेशनों और टीवी चैनलों को भी इस कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग प्रसारित करने की अनुमति दी गई थी।

गणतंत्र दिवस परेड के मौक़े पर भारत आए ओबामा 'मन की बात' कार्यक्रम के जनवरी एपिसोड में शामिल हुए थे जिसे 27 जनवरी 2015 को प्रसारित किया गया था। इस कार्यक्रम (इस सरकार का) का 50वां और आख़िरी एपिसोड कार्यक्रम 25 नवंबर 2018 को ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित किया गया था।

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