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मुद्दा : दो क़दम आगे बढ़ाती महिलाएं, चार क़दम पीछे धकेलता समाज

हम आज भी अपने अस्तित्व बचाने की ही लड़ाई में बहुत पीछे छूटते पर जा रहे हैं। इस अजीब और भयावह विरोधाभास से एक स्त्री समाज रोज़ गुजर रहा है।
women abuse
प्रतीकात्मक तस्वीर

अपने लंबे संघर्षों के बाद यदि हम यह आकलन करें आखिर हमने क्या खोया और क्या पाया तो एक तरफ तो यह आकलन हमें चांद की ऊंचाइयों तक ले जाता है और दूसरी तरफ हमें यह सोचने को मजबूर करता है कि हम आज भी अपने अस्तित्व बचाने की ही लड़ाई में बहुत पीछे छूटते पर जा रहे हैं। इस अजीब और भयावह विरोधाभास से एक स्त्री समाज रोज़ गुजर रहा है।

अभी कुछ दिन पहले ही दुनिया को अपनी ताकत दिखाते हुए हमने चंद्रयान का सफल लांच किया। इस अभियान की चर्चा इस रूप में भी हुई की इसमें देश की दो महिलाओं ने भी अपनी दमदार भूमिका निभाई। पूरे देश ने उन महिलाओं को हाथों हाथ लिया और गर्व प्रदर्शित किया तो वहीं हिमा दास के आगे देश नतमस्तक हुआ। लेकिन देश जब एक ओर महिलाओं के संघर्ष को सलाम करता है तो उसी समय इन सुखद समाचारों के बीच एक ख़बर यह भी आती है की डायन बता समाज के ही लोगों ने महिला को मैला पिलाया या भीड़ ने उसकी हत्या कर दी तो वहीं समाज में महिलाओं की सम्मानजनक स्थिति की सत्यता पर भी वह ख़बर जोरदार प्रहार करती है जब भीड़ द्वारा एक अकेली असहाय महिला को अपनी कुंठा और आक्रोश का शिकार बनाते हुए सबके सामने नग्न अवस्था में पीटने की तस्वीर सामने आती है। 

पिछले दिनों राजस्थान के राजसमंद से एक ऐसी खबर सामने आई जिसने महिला विरोधी समाज का चेहरा उजागर कर दिया। भीड़ द्वारा एक महिला को अर्द्धनग्न अवस्था में पीटते हुए गांव भर में घुमाया गया। जानकारी के अनुसार राजसमंद जिले के नाथद्वारा थाना इलाके के गांव उपली ओडन में एक युवती को युवक भगाकर ले गया थाजिसकी नाथद्वारा पुलिस थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करवाई गई। 

15 दिन तक युवक-युवती का पता नहीं चलने पर युवती के परिजनों ने बुधवार रात को आरोपी युवक की मां से उनका पता लगाने की बात को लेकर घर में घुसकर मारपीट की। उसके कपड़े फाड़ दिए और फिर उसको अर्धनग्न अवस्था में चोटी पकड़ घसीटते-पीटते हुए गांव में घुमाया। उस वक़्त महिला घर में अकेली थी। पति की मृत्यु हो चुकी है और बेटा घर पर मौजूद नहीं था। जब ये सबकुछ हो रहा था और महिला वहां मौजूद भीड़ से मदद की गुहार लगा रही थी तो लोग बजाय मदद के वीडियो बनाने और तमाशा देखने में मशगूल थे। इस घटना ने महिला को काफी मानसिक आघात पहुंचाया। पर केवल उसके लिए ही नहीं यह हमारे लिए भी  मानसिक आघात से कम नहीं कि किस कदर लोग इंसान बनने की बजाय भीड़ में तब्दील होते जा रहे हैं। दो घंटे तक महिला को बन्धक बनाकर मानसिक और शारारिक प्रताड़ना दी जाती रही लेकिन बचाने के लिए कोई आगे नहीं आया।

इसी तरह की अमानुषता पिछले कुछ समय में झारखंड में भी दिखाई डी जहां एक के बाद एक डायन बता महिलाओं को मैला पिलाने की घटनाएं सामने आईं। इधर महिलाओं को मैला पीने में मजबूर किया जा रहा था और उधर देश की राजधानी में एक सिरफिरे ने अपने पड़ोस में रहने वाली लड़की को इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्यूंकि उसने उसका प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था। वह लड़की पढ़ाई के साथ साथ अपने घर का खर्च चलाने के लिए नौकरी भी करती थी। उसके पिता हार्ट अटैक के कारण कुछ करने में असमर्थ थे इसलिए उसने परिवार की जिम्मेवारी अपने कन्धों पर ली लेकिन उसका संघर्ष एक पुरुषवादी अहम के आगे हार गया।

लड़के को उसका इनकार इतना नगवार गुजरा की बात हत्या तक पहुंच गई। पता नहीं हम आसमान के चांद को जीतने में कामयाब होंगे या नहीं पर हमारी धरती का समाज रह रहकर हमारे आगे कड़ी चुनौतियां पैदाकर हमें हराने की जुगत में लगा है और समाज से पहले जब बात परिवार पर आ जाती है तो संघर्षपीड़ा और गहन हो जाती है।  बिहार के शेखपुरा से एक ऐसी खबर सामने आई जिसने इस सच को एक बार फिर उजागर किया कि अभी भी लोग किस कदर लड़का लड़की के भेद में जकड़े हुए हैं।

शेखपुरा की उस लड़की ने फर्स्ट डिवीजन में हाई स्कूल पास किया लेकिन किडनी की बीमारी ने उसे मौत के मुंह में लाकर खड़ा कर दिया। उसकी दोनों किडनियां बेकार हो चली है लेकिन माता पिता इसलिए उसे किडनी नहीं देना चाहते क्योंकि वह लड़की है तो उनकी सोच यहां तक आकर खत्म हो जाती है कि बीमार लड़की पर अथाह पैसा और किडनी बरबाद करने से क्या फायदा। हालांकि परिवार गरीब है लेकिन यदि दोनों में से कोई किडनी देने को तैयार होता है तो मदद को हाथ आगे आने को तैयार हैं पर एक गरीब पिता इस हिसाब का जोड़ लगाकर आगे बढ़ने की शायद हिम्मत नहीं जुटा पा रहा कि आज किसी तरह उसे बचा भी ले तो उसकी एक किडनी वाली बेटी से कौन विवाह करेगा और हो सकता है इस एवज में कल को उसे दान दहेज भी अपनी हैसियत से बढ़कर देना पड़े। 

इसमें दो मत नहीं कि इन अंतर्द्वंदों के चलते दो कदम आगे बढ़ता स्त्री समाज चार कदम पीछे धकेल दिया जा रहा है। कहीं वह शीर्ष पर हैजिसे स्वयं समाज भी स्वीकार कर रहा है और कहीं उसकी हैसियत इतनी भर कि उससे इंसान होने तक का दर्जा छीन लिया जाय। इतने बड़े अस्वभाविक अंतराल को खत्म करने के लिए अभी अनगिनत संघर्षों का दौर बाकी है पर यह हमारे पिछले संघर्षों का ही नतीजा है कि इतना होने के बावजूद महिला समाज न केवल अपना अस्तित्व बचाए हुए है बल्कि इस पितृसत्तात्मक समाज के आगे चुनौतियां भी पेश कर रहा है और इन्हीं चुनौतियों का उदाहरण है कि तेजाब से जलाई जाने वाली लड़कियां अब अपना मुंह ढककर जीवन व्यतीत नहीं करती बल्कि दुनिया को अपना चेहरा दिखाकर हिम्मत के साथ जीती हैं।

बलात्कार पीड़ित अब चुप रहकर नहीं बल्कि चुप्पी तोड़कर अपने खिलाफ़ हुई हिंसा को बयां कर रही हैं।  बलात्कारी कितना भी दबंग और रसूख वाला क्यों न हो उनको अदालत में घसीट रही हैं। शारीरिक मानसिक और यौनिक हिंसा की शिकार लड़कियां और महिलाएं न केवल बोल रही हैं बल्कि मीडिया में साक्षात आकर अपने खिलाफ हुई हिंसा के विरुद्ध मुखर भी हैं। तो शर्त इतनी भर है कि हमें इसी सामाजिक ताने बाने के साथ रहते हुए भी इसी ताने बाने से अलग राहें गढ़नी होंगी ताकि एक स्त्री समाज कम से कम अपने विरुद्ध खड़ी गैरबराबरी की दीवार को पूरी तरह ध्वस्त करने का जश्न मना सके।

(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)

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