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नियामगिरी : कंपनी ‘विकास’ के बढ़ते अंधेरे के ख़िलाफ़ आदिवासियों का प्रतिवाद

तमाम सत्ताधारी राजनीतिक दलों की संगठित चुप्पी के बावजूद प्रदेश की राजधानी भुवनेश्वर में विभिन्न सामाजिक व मानवाधिकार संगठनों, वामपंथी दलों तथा जन संगठनों द्वारा इस दमन–हत्याकांड के खिलाफ प्रतिवाद किया जा रहा है।
वेदांता गोलीकांड के विरोध में प्रदर्शन
फोटो साभार

पहली नज़र में शायद ही यकीन हो कि लोकतन्त्र के जिस महापर्व में मतदाताओं का वोट पाने के लिए राजनीतिक दलों व उनके प्रत्याशियों को तमाम पापड़ बेलने पड़ते हैं, चुनाव से कुछ दिन पूर्व ही उनपर ही गोली चलवा दी जाए। इतना ही नहीं इस कांड में “फिर एक बार ....” के नाम पर वोट मांग रहे केंद्र के सत्ताधारी दल और उसके खिलाफ खड़े तथाकथित विपक्षी दल की राज्य सरकार, दोनों की भूमिका भी एक जैसी ही रही।

प्राप्त खबरों के अनुसार ऐसा कारनामा हुआ गत 18 मार्च को ओडिशा राज्य के नियामगिरी पहाड़ी क्षेत्र स्थित लांजीगढ़ वेदांता लिमिटेड ईस्टर्न इंडियन अल्युमीना रिफायनरी कंपनी के अपने ही परिसर में। जहां कंपनी की वादाखिलाफी और मनमानी के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से आवाज़ उठा रहे स्थानीय गांवों के आदिवासी–दलितों पर कंपनी गार्डों और ओडिशा पुलिस ने बेवजह फायरिंग कर एक निर्दोष की जान ले ली तथा कइयों को घायल कर दिया। हैरानी की बात है कि चुनाव के समय इतनी संवेदनशील घटना होने पर भी केंद्र में सत्तारूढ़ दल का कोई भी राष्ट्रभक्त नेता नहीं पहुंचा जबकि एक विदेशी कंपनी ने ये गोली कांड किया। और न ही राज्य में सत्तारूढ़ केंद्र के विपक्षी दल की सरकार का ही कोई नेता-नुमाइंदा पीड़ितों की सुध लेने आया। गोलीकांड के तुरत बाद ही पूरे इलाके में निषेधाज्ञा लागू किए जाने से आसपास के सभी गांवों के लोग पुलिसिया दमन के डर के साये में फिर से जीने को मजबूर हो गए हैं।

वेदनता 1.jpg

ओडिशा के नियामगिरी पर्वतीय क्षेत्र स्थित कालाहांडी ज़िले के लांजीगढ़ में पिछले कई वर्षों से वेदांता की अल्युमिनियम रिफायनरी कंपनी चल रही है। 2003–04 में शुरू होने वाली ब्रिटेन की वेदांता कंपनी की इस परियोजना के खिलाफ शुरू से ही स्थानीय आदिवासियों का प्रतिवाद जारी रहा है। फिर भी 2004 के विधानसभा चुनाव पूर्व राज्य बीजू जनता दल सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इसका शिलान्यास किया। इसे ‘विनिवेश से विकास’ की जनहित योजना बताकर स्थानीय लोगों को इसमें रोजगार दिये जाने की घोषणा भी की। इस परियोजना के लिए कंपनी का लठैत बनकर राज्य सरकार ने ज़मीन अधिग्रहण के लिए लाठी–गोली और दमन का भरपूर सहारा लिया। लेकिन आदिवासियों-मूलवासियों व सामाजिक–मानवाधिकार संगठनों के व्यापक विरोध के कारण लोभ और झांसे से ज़मीनें हासिल कर लीं। साथ ही जनहित के नाम पर दिखावे के लिए कंपनी से लिखित करार करा दिया। जिसमें क्षेत्र के सभी गांवों में मुफ्त शिक्षा, स्वस्थ्य, बिजली व पानी इत्यादि सुविधाएं देने का वायदा किया गया। जो शुरू के कुछ वर्षों तक ही लागू हुआ। कंपनी में रोजगार देने के करार के नाम पर लगभग 3000 स्थानीय लोगों की अस्थायी बहाली कर बकियों को चलता कर दिया गया।

जैसे जैसे कंपनी का मुनाफा और खनन कार्य स्थायित्व ग्रहण करने लगा, स्थानीय जनता से किए सभी गए करार पर अमल रोक दिया गया। फलतः बिजली–पानी–शिक्षा और स्वास्थ्य इत्यादि की निःशुल्क सभी सुविधाएं बंद कर दी गयीं। स्थायी रोजगार के नाम पर कंपनी में अनुबंध पर बहाल हुए लोगों में से किसी को भी स्थायी नहीं किया गया। इसे लेकर कंपनी प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन को कई बार लिखित ज्ञापन भी दिया गया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

अंततोगत्वा 18 मार्च को पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत वेदांता कंपनी की वादा खिलाफी और स्थायी नौकरी के सवाल को लेकर स्थानीय गांवों के सैकड़ों ग्रामीण व आदिवासी कंपनी गेट पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने पहुंच गए। जिनसे बिना कोई वार्ता और पूर्व सूचना दिये, वहाँ तैनात कंपनी के हथियारबंद गार्डों और ओडिशा पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और फायरिंग शुरू कर दी। जिसमें एक ग्रामीण की मौत घटनास्थल पर ही हो गयी औए अनेक महिला–पुरुष घायल हो गए। जवाब में आक्रोशित आदिवासियों की ओर से भी कुछ पत्थर चलाये गए और झड़प में ओडिशा प्रदेश पुलिसबल का एक सिपाही मारा गया। कंपनी व प्रशासन ने अफवाह फैला दी कि रिफायनरी के अंदर अनुबंधकर्मियों ने ही सुरक्षाकर्मियों से झड़प कर स्थिति बेकाबू कर दी थी इसलिए मजबूरन गोली चलानी पड़ी। प्राप्त खबरों में अभी तक प्रदेश की सरकार से घटना की विशेष जांच पड़ताल संबंधी न तो कोई आदेश जारी हुआ है और न ही आंदोलनकारियों व कांड के पीड़ितों से मिलने सरकार की कोई टीम ही आई है।

तमाम सत्ताधारी राजनीतिक दलों की संगठित चुप्पी के बावजूद प्रदेश की राजधानी भुवनेश्वर में विभिन्न सामाजिक व मानवाधिकार संगठनों, वामपंथी दलों तथा जन संगठनों द्वारा इस दमन–हत्याकांड के खिलाफ प्रतिवाद किया जा रहा है। केंद्र व राज्य सरकार के संरक्षण में हो रही कॉर्पोरेट हिंसा के खिलाफ प्रदेश की अन्य लोकतांत्रिक व प्रगतिशील ताक़तें भी एकजुट हो रही हैं।  

देश में संसदीय चुनाव की प्रक्रिया शुरू है और ओडिशा में इसके साथ विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इस लिहाज से नियामगिरी का यह इलाका जो पिछले कई वर्षों से यहाँ के बेशुमार बक्साइट खनन के लिए ब्रिटेन से आई वेदांता कंपनी के खिलाफ पूरे इलाके के आदिवासी–किसानों के विरोध आंदोलनों से काफी चर्चित रहा है। जिसे कुचलकर कंपनी राज को स्थापित करने में वर्तमान केंद्र की सरकार से मिल रहे संरक्षण के साथ साथ तथाकथित केंद्र विरोधी प्रदेश बीजद की सरकार भी जुटी हुई है। प्रदेश के वामपंथी दलों को छोड़ भाजपा व कांग्रेस समेत लगभग सभी का मौन समर्थन है। ऐसे में, जब इस पूरे इलाके के ग्रामीण गरीब व दलित-आदिवासी जो पहले ‘विकास’ के नाम पर कंपनी हित में अपनी पारंपरिक ज़मीनों से बेदखल किए गए और अब कंपनी व सरकार के वादा खिलाफी–फरेब को झेल रहे हैं, इनसे क्या कहकर वोट मांगे जाएंगे? साथ ही यहाँ “एक भी वोटर छूटे ना ...अभियान कैसे सफल होगा…?

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