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चुनावी बॉन्ड का विवरण 30 मई तक चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश

बीजेपी समेत कई दलों ने इस फैसले पर चुप्पी साध ली है, हालांकि वामपंथी दलों समेत कुछ अन्य पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है।
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को 30 मई तक इलेक्टोरल यानी चुनावी बॉन्ड का विवरण चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश दिया है। बीजेपी समेत कई दलों ने इस फैसले पर चुप्पी साध ली है, हालांकि वामपंथी दलों समेत कुछ अन्य पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने ये फैसला सुनाया। इस सिलसिले में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल, चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पेश हुए। सभी की दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिय़ा था।

इलेक्टोरल या चुनावी बॉन्ड को मोदी सरकार ने यह कहकर पेश किया था कि इसके जरिये चुनाव में कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लगेगी और चंदा देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी। ये बॉन्ड 1000, 10 हज़ार, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ के रूप में रखे गए थे इसमें सरकार ने यह सुनिश्चित किया था कि चंदा देने वालों की पहचान का खुलासा न हो सके।

मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने पारदर्शिता की वकालत करते हुए कहा था कि आयोग चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना चाहता है, जिसे वर्तमान में चुनावी बॉन्ड के रूप में सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। उधर सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल (AG) ने दलील दी थी कि चुनावी बॉन्ड योजना का मकसद चुनावों में काले धन पर अंकुश लगाना है। उन्होंने दावा किया था कि योजना के दुरुपयोग के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं और ये बॉन्ड केवल भारतीय स्टेट बैंक के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं, जो बॉन्ड के खरीदार की पहचान बनाए रखेंगे। लेकिन जिस पार्टी को बॉन्ड प्राप्त हुआ, वह गोपनीय होगा। उनका कहना था कि बैंक, बॉन्ड खरीदार का केवाईसी बनाए रखेगा। एक राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड के लिए केवल एक चालू खाता खोल सकता है। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया है कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा देने वालों की पहचान का खुलासा न हो। उनके मुताबिक चुनावी बॉन्ड की योजना कालेधन पर अंकुश लगाने का एक प्रयोग है और न्यायालय को इस मामले में कम से कम इस लोकसभा चुनाव के अंत तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। नई सरकार सत्ता में आने के बाद इस योजना की समीक्षा करेगी।

अटॉर्नी जनरल की दलीलों पर जस्टिस दीपक गुप्ता ने टिप्पणी की कि यह प्रणाली अपारदर्शी है। इसके परिणामस्वरूप काले धन को सफेद में परिवर्तित किया जा सकता है। इसके अलावा लोकतंत्र में मतदाता को यह जानने का अधिकार है कि राजनीतिक दलों द्वारा किससे दान प्राप्त किया जा रहा है लेकिन "आप इसे रोक रहे हैं।"

जस्टिस गुप्ता की टिप्पणी पर अटॉर्नी जनरल ने बड़ी अजीब दलील दी कि "मतदाताओं को दान के बारे में जानने का अधिकार नहीं है। उन्हें केवल उम्मीदवारों के बारे में पता होना चाहिए। मतदाताओं को यह जानने की जरूरत नहीं है कि राजनीतिक दलों का पैसा कहां से आता है।

चीफ जस्टिस ने भी अटॉर्नी जनरल से सवाल पूछा, "हम जानना चाहते हैं कि जब बैंक X या Y द्वारा आवेदन पर चुनावी बॉन्ड जारी करता है, तो क्या बैंक के पास यह विवरण होगा कि कौन सा बॉन्ड X को जारी किया गया है और कौन सा Y को?" उन्होंने आगे कहा, "यदि ऐसा है तो काले धन से लड़ने की कोशिश करने की आपकी पूरी कवायद बेकार हो जाती है।"

जस्टिस संजीव खन्ना अटॉर्नी जनरल को बताया कि आपने जिस केवाईसी का उल्लेख किया है वह केवल क्रेता की पहचान के बारे में है। यह धन की वास्तविकता का प्रमाण पत्र नहीं है - चाहे वह काला हो या सफेद। यदि कई शेल कंपनियों के माध्यम से पैसे का लेन-देन किया जाता है तो केवाईसी किसी भी उद्देश्य से कार्य नहीं करेगा।
अब चुनाव के बीच सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर तो रोक नहीं लगाई है लेकिन सभी राजनीतिक दलों को चुनाव खत्म होने के बाद 30 मई तक चुनावी बॉन्ड का पूरा विवरण सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश दिया है।

इस फैसले पर बीजेपी समेत कई दलों ने चुप्पी साध ली है, हालांकि वामपंथी दलों समेत कुछ अन्य पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट कर कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने मोदी, जेटली और भाजपा द्वारा उठाए गए कदम को ध्वस्त कर दिया - जिन्होंने इसे एक अपारदर्शी, गुप्त चुनावी बॉन्ड बनाने के लिए धन विधेयक के रूप में पेश किया था। अदालत का कहना है कि पारदर्शिता चुनावी फंडिंग का मूल सिद्धांत है। लोगों को यह जानने का अधिकार है कि किस पार्टी को कितना और किससे मिला।

एक अन्य ट्वीट में येचुरी ने कहा कि अब कालाधन दाताओं को इस तरीके से फंड करने में डर लगेगा। आज चुनाव आयोग के पास आंकड़े हैं, कल जनता के पास भी होंगे।

बीएसपी प्रमुख मायावती ने भी ट्वीट कर कहा, अब बीजेपी व इनके निरंकुश नेताओं को कम्बल ओढ़ कर घी पीते रहने के बजाए उन्हें चुनाव आयोग को यह बताना ही होगा कि कौन उद्योगपति/ धन्नासेठ चुनावी बाण्ड के रूप में उन्हें कितना अकूत धन दे रहा है तथा उनकी शान-शौकत, शाह खर्ची व चुनाव में धनबल के प्रयोग आदि का असली रहस्य क्या है?

(लाइव लॉ के इनपुट के साथ)

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