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ओबामा का नया मकसद: सीरिया को इराक बनाना

ओबामा ने आई.एस. (आई.एस. जिसे पूर्व में आईएसआईएस कहा जाता था) पर एक रणनीति का वादा किया है जो वह मानता है कि अमेरिका के पास पहले यह रणनीति नहीं थी। अब उसने इस रणनीति की घोषणा कर दी है: बिना जमीन पर पैर जमाये, ज्यादा से ज्यादा बमबारी, और सऊदी अरब, तुर्की और "मध्यम" विद्रोहियों जो सीरिया को अस्थिर करना चाहते हैं के साथ गठजोड़ कर इस नयी रणनीति का खुलासा किया है। यह माना जाता है कि यह सब आई.एस. को अपमानित करने और हराने के लिए किया जा रहा है। अमेरिका "उदारवादी" सीरिया के विद्रोहियों को हमला करने के लिए हथियारों की आपूर्ति में मदद करेगा और खुद उस पर हवाई हमले करेगा। हम फिर वापस सीरिया के "उदारवादी" विद्रोहियों की उसी कहानी पर आ गए हैं, जो हमेशा समय दर समय बदनाम होती रही है।

अमेरिका और सऊदी अरब ने,  सउदी में उदारवादी सीरियाई विद्रोहियों को "प्रशिक्षण" देने के  लिए उन्नत ठिकानों की मेजबानी करने की घोषणा की है। दुसरे शब्दों में, हमारे पास सीरियाई सरकार विरोधी विद्रोहि है जिन्हें खाड़ी की सबसे प्रतिक्रियावादी सरकारों, क़तर और सऊदी जिसमें इस्लामिक तुर्की भी शामिल है और जो आई.एस. के विरुद्ध लडाई में अमरीका का मुख्य सहयोगी होगा, को वित्त सहयोग मिल रहा है। खुले ज्ञान के बावजूद कि ज्यादातर हथियार और प्रशिक्षित विद्रोहियों या तो आई.एस. में शामिल हो गए हैं या फिर जबाहत अल नुसरा में जोकि अल-कायदा का सहयोगी संगठन है।

इसलिए अमेरिका की विदेश नीति की रूपरेखा अब स्पष्ट हैं – इराक में उसने अपने सहयोगियों  के प्रति अपना समर्थन जारी रखा हुआ है – जिसमें उत्तर में कुर्दों और बगदाद में नई इराकी प्रधानमंत्री, हैदर अल इबादी  के नेतृत्व में इराकी शासन शामिल है। अमेरिका हवाई हमले के साथ, आई.एस. को सीरिया पर हमला करने के लिए उकसाता है। सीरिया में अमेरिका अपने  उन विद्रोहियों की मदद कर रहा है जो मरिकास के ग्राहक/सहयोगियों और असद सरकार के खिलाफ लड़ रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, यह सामरिक दृष्टि से सामान्य व्यापार है। एक ही धुरी पर - अमेरिका, सऊदी अरब, खाड़ी राजतंत्र, कतर और तुर्की – जो पिछले दो दशकों से इस क्षेत्र के आतंकी आपदा लाये हैं, एक ही तरह की निति के साथ जिसमें केवल अमरीका की वायु सेना शामिल हुयी है, एक दुसरे के सहयोगियों बने रहेंगें,  यह अमरीका की असफल नीती का ही नतीजा है जिसके चलते इराक टूट गया, और अब वह सीरिया में गृह युद्ध को बढ़ावा दे रहें है, यही वजह है की आज इन दोनों देशों का बड़ा हिस्सा आई.एस. के हाथ में है। और हिजबुल्लाह- सीरिया-ईरान गठबंधन के खिलाफ सुन्नी उग्रवाद के साथ निरंतर अपना दिवालिया गठजोड़ बनाए हुए है।

कुछ अंतरराष्ट्रीय कानून से संबंधित मुद्दे। सीरिया की सरकार की मंजूरी के बिना, सीरिया में किसी भी जगह बम विस्फोट अवैध है। यह युद्ध का कृत्य है जिसकी अमेरिका पूरी तरह से कोई मंजूरी नहीं है – और न ही अस्पष्ट रूप से संयुक्त राष्ट्र के किसी भी प्रस्ताव में इसकी जरा सी भी मंजूरी है। सऊदी अरब और अमरीका द्वारा सऊदी अरब में हथियार सीरिया के विद्रोहियों का प्रशिक्षण भी युद्ध का ही एक कृत्य। अभी तक, ये प्रशिक्षण शिविर क़तर, जॉर्डन और तुर्की में गुप्त रूप से चलाये जा रहे हैं। बम विस्फोट, विद्रोहियों को प्रशिक्षण और हथियार मुहैया करना, सीरिया की कानूनी सरकार के खिलाफ युद्ध के कृत्यों में शामिल हैं। अमेरिका, नाटो और तुर्की और अन्य अमेरिका समर्थक अरब सरकारों द्वारा "विद्रोहियों" को खुला समर्थन देना और आई.एस. के खिलाफ लड़ने के नाम पर सीरिया में असल मकसद शासन में परिवर्तन करना है।

यह सबको पता है कि तथाकथित उदारवादी विद्रोहियों आई.एस. और अल कायदा से सम्बद्ध जबाहत-अल-नुसरा से संबद्ध या उनसे अलग होते रहे हैं। फ्री सीरियन आर्मी (एफएसए) सिर्फ एक मुखौटा है जिसे की पश्चिम ने निर्मित किया है और आईएसआईएस एवं जबाहत-अल-नुसरा को रास्ता प्रदान किया है। एफएसए जिसे कि अमेरिका और उसके सहयोगियों ने हथियारों और उपकरण प्रदान किये थे काफी हद तक ख़त्म हो गया है। सउदी और तुर्की ने  खुले तौर पर आई.एस. और जबाहत-अल-नुसरा  को समर्थन देने में कभी कोई भेद नहीं किया।

उनके लिए जो जानते हैं, आई.एस, की भी वही विचारधारा है जो अरब की शासक परिवार की है – विशेषतौर पर उसके द्वारा इस्लाम का प्रतिक्रियावादी वर्णन। सऊदी अरब इस इस्लामिक ब्रांड को दुनिया भर में फिलिपिन्स से नाईजीरिया तक निर्यात करने के लिए मदरसों और धार्मिक ट्रस्टों को अरबों डॉलर की "सहायता" देता है - यह वही अंतरराष्ट्रीय जिहाद है जिसे अमेरिका और सऊदी ने अफगानिस्तान में लड़ने के लिए बनाया था और जिसने बिन लादेन को दुनिया के मंच लाकर खड़ा कर दिया था। सउद की सभा के साथ अमेरिका का गठबंधन का ही परिणाम है कि हम आज आई.एस., बोको हरम, अल शबाब ने दक्षिण पूर्व एशिया से अफ्रीका तक अस्थिरता का माहौल उभार दिया है।

यह कोई दुर्घटना नहीं है कि पश्चिम ने इस्लामवादियों के साथ गठजोड़ का फैसला लिया – उनके लिए तो जो ज्यादा प्रतिक्रियावादी वही बेहतर। उनका लक्ष्य विभिन्न रूपों का राष्ट्रवाद था जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को नियंत्रित करना चाहता था। इस्लामी ताकते अरब में – मुस्लिम ब्रदरहुड जिन्हें प्रांरभिक तौर पर सऊदी का समर्थन प्राप्त था भी अरब राष्ट्रवाद के दुश्मन थे जिनमें नासेर और इराक और सीरिया में बात। यह शीतयुद्ध की पुरानी धुरी है, इस्लामवादियों के गठबंधन को पश्चिमी शक्तियों के खिलाफ सोवियत संघ ने अरब राष्ट्रवाद का समर्थन किया। यह वही धुरी है जो अब आई.एस. के खिलाफ काम कर रही है।

आई.एस. के उदय और उसके द्वारा इराक के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्जा करने से  अमेरिका अपनी नीतियों पर फिर से विचार कर सकता था। यह ईरान और सीरिया जोकि दोनों ही हमले के तहत हैं साथ एक सतर्क अमन कायम कर सोचने के लिए उन्हें नेतृत्व दे सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि हमें इरान पर ओर ज्यादा अमेरिकी प्रतिबंध देखने को मिल रहे हैं और अब सीरिया के खिलाफ उन्ही नीतियों को जारी रखने से वहां गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो गयी है।

जमीनी स्तर पर एक असफल नीति हवाई बम विस्फोट को सफल नहीं बना जा सकती है। तो क्यों ओबामा केवल ऐसे रास्ते पर चल रहा है जहाँ विफलता ही हाथ लगेगी और आई.एस. जैसे बलों को लंबी अवधि के लिए ताकत मिलेगी?  इसका एक ही विश्वसनीय जवाब मिलता है जब केन्स ने अर्थव्यवस्था के बारे में जो कहा – भविष्य में हम सभी मर चुके हैं। सब कुछ इस पर निर्भर है कि आज क्या होगा। अमरीका के सभी उद्देश्य छोटी अवधी के हैं; अरब दुनिया में अपने मुख्य सहयोगियों को बचाना, सऊदी अरब; उन सभी देशों को तोड़ दो जो इजराइल के लिए खतरा हैं, इस क्षेत्र में जो दुसरे सहयोगी हैं; उसके लिए हवाई हमलों और द्रोंन हमले जारी रखो, जिसमें अमरीकी जानों को कम खतरा है। भविष्य में इस क्षेत्र का सर्वनाश बहुत ही कम मायने रखता है – जब तक की यह अमरीका और उसके सहयोगियों के फौरी हितों को पूरा करता है। यह ओबामा की आई.एस. के प्रति नयी नीति का निचोड़ है। यही वजह है कि इस क्षेत्र में सीरिया भी इराक की तरह एक असफल राष्ट्र में शामिल हो जाएगा।

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

 

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