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पहलू ख़ान लिंचिंग :  पुलिस की जांच में मिलीं 29 ग़लतियां, 4 अफ़सरों पर कार्रवाई की सिफ़ारिश !

बताया जा रहा है कि एसआईटी ने अपनी 84 पन्नों पर आधारित पूरी रिपोर्ट में अनुसंधान की कुल 29 ग़लतियों को चिह्नित करते हुए जांच अधिकारियों के रवैये को बहुत ही ख़राब मानते हुए केस की जांच से जुड़े चार अधिकारियों पर सख़्त विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की है।
Pehlu khan case

राजस्थान के बहुचर्चित पहलू ख़ान मॉब लिंचिंग प्रकरण में न्यायिक फ़ैसले के बाद सरकार द्वारा गठित एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट 4 सितंबर 2019 को राजस्थान के डीजीपी भूपेंद्र चौधरी को सौंप दी है। सूत्रों के मुताबिक रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने अपने अनुसंधान यानी जांच के दौरान गंभीर लापरवाही बरती है जो सभी आरोपियों के पक्ष में गयीं और कोर्ट में उन्हें संदेह का लाभ मिल सका जिस कारण वे छह आरोपी बरी हो गए।

कुछ मीडिया रिपोर्टों और सूत्रों के मुताबिक एसआईटी ने अपनी 84 पन्नों पर आधारित पूरी रिपोर्ट में अनुसंधान की कुल 29 ग़लतियों को चिह्नित करते हुए जांच अधिकारियों के रवैये को बहुत ही ख़राब मानते हुए केस की जांच से जुड़े चार अधिकारियों पर सख़्त विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की है।

गौरतलब रहे कि पहलू ख़ान मॉब लिंचिंग मामले में पिछले महीने 14 अगस्त 2019 को राजस्थान के अलवर के अपर जिला और सत्र न्यायालय नंबर-1 की जज डॉ. सरिता स्वामी ने अपने फ़ैसले में छह आरोपियों विपिन यादव, रविंद्र कुमार, कालूराम, दयानंद, योगेश कुमार और भीम राठी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था और अनुसंधान अधिकारियों की गंभीर लापरवाहियों पर कठोर टिप्पणी की थी। मामले से जुड़े तीन नाबालिग़ आरोपियों की सुनवाई अभी भी जुवनाइल कोर्ट में चल रही है।

पहलू ख़ान ने अपनी मौत से पहले जिन आरोपियों के नाम (ओम यादव, हुकुम चंद यादव, सुधीर यादव, जगमल यादव, नवीन शर्मा और राहुल सैनी) पुलिस को बताये थे यानी जो उनका डायिंग डिक्लिरियेशन था उन्हें पुलिस ने अपने प्रारम्भिक अनुसंधान में तक़रीबन घटना के पांच महीने बाद क्लीन चिट दे दी थी।

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या (14 अगस्त 2019 ) को आये कोर्ट के इस फैसले ने भारत के न्यायप्रिय जनवादी तबक़े को न केवल बहुत निराश किया था बल्कि सभी स्तब्ध थे जिस जघन्य हत्याकांड को पूरी दुनिया ने घटनास्थल पर रिकॉर्ड किये वीडियो के माध्यम से देखा उसे न्यायपालिका आख़िर क्यों नहीं देख पाई।

ये भी एक कड़वा सच है ये न्याय पालिका सबूतों की बुनियाद पर फ़ैसले सुनाती है और इंसाफ़ का बुनियादी उसूल है कि भले ही सौ दोषी छूट जाएँ लेकिन एक निर्दोष को सज़ा नहीं होनी चाहिए।

कोर्ट के फ़ैसले के बाद बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की तरफ़ से कठोर प्रतक्रिया आयी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के द्वारा राजस्थान सरकार की मंशा और जांच में बरती गयी लापरवाहियों के ख़िलाफ़ मोर्चेबंदी शुरू हुई तो राजस्थान सरकार ने मामले की दोबारा जांच के लिए तीन सदस्यीय एसआईटी गठित करने की घोषणा की।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 16 अगस्त 2019 को एक ट्वीट के माध्यम से ये सूचना दी कि वरिष्ठ अधिकारीयों के साथ बैठक के बाद ये निर्णय लिया गया है कि अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय पर अपील की जाए,जिसमें एक वरिष्ठ अधिवक्ता की सेवाएं ली जाएंगी। सम्पूर्ण प्रकरण की जांच के लिए एडीजी क्राइम की निगरानी में तीन सदस्यीय एसआईटी का गठन किया जाएगा। यह एसआईटी 15 दिन में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

उसके बाद डीआईजी (विशेष ऑपरेशन ग्रुप) नितिन दीप बल्लगन के नेतृत्व में अन्य दो सदस्यों एसपी (सीआईडी-सीबी) समीर कुमार सिंह और एएसपी (विजिलेंस) समीर दुबे के साथ एक जांच टीम का गठन किया गया जिसकी मॉनिटरिंग का ज़िम्मा राज्य के एडीजी क्राइम बीएल सोनी को दिया गया था।

एसआईटी को अनुसंधान के दौरान बरती गयीं लापरवाहियों और ख़ामियों की निशानदेही करते हुए महत्वपूर्ण मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्यों को जमा करने की भी ज़िम्मेदारी दी गयी थी जो अनुसधान के दौरान जमा नहीं किये गए थे। टीम को पन्द्रह दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी।

जांच टीम ने गठन के बाद 21 अगस्त को ही राजस्थान के राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-8 पर अलवर के बहरोड़ के क़रीब उस जगह का मुआयना किया था जहाँ पहलू ख़ान के साथ मारपीट की गयी थी। उसके बाद उसी दिन बहरोड़ थाने पहुँच कर घटना के दौरान तैनात रहे सभी पुलसीकर्मियों से पूछताछ की थी एवं केस से जुडी तमाम फाइलों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था। घटना के वीडियो देखे थे, पोस्टमार्टम रिपोर्ट का निरीक्षण किया था और स्थानीय लोगों ने भी टीम से मुलाक़ात कर के उन्हें कुछ जानकारी उपलब्ध कराई थी। एसआईटी ने उस दौरान भिवाड़ी के नए एसपी अमनदीप कपूर से भी घटना के संबंध में विचार विमर्श किया था।

टीम ने अपंनी जांच पूरी करते हुए बीते 4 सितंबर को राज्य के डीजीपी भूपेंद्र चौधरी को रिपोर्ट सौंप दी है।

बताया जा रहा है कि एसआईटी ने अपनी जांच में पाया है कि जांच प्रारम्भिक समय से बहुत घटिया रही और केस से जुड़े चारों जांच अधिकारीयों ने अपना दायित्व सही से निर्वहन नहीं किया।

सूत्रों के मुताबिक एसआईटी टीम के अनुसार पहले जांच अधिकारी ने घटनास्थल का दौरा घटना के तीन दिन बाद किया, जहां पर पहलू खान के साथ हिंसा की गई थी। घटना स्थल के दौरे के समय न तो फोरेंसिक एक्सपर्ट को बुलाया गया और न ही उन वाहनों की उचित विभागीय मैकेनिकल जांच की गयी जिन वाहनों में पहलू ख़ान मवेशी ले कर आ रहे थे। उसके बाद दूसरे जांच अधिकारी ने ख़राब तरीके से जांच को आगे बढ़ाया। अनुसंधान के तीसरे जांच अधिकारी ने चश्मदीदों के बयान ही दर्ज नहीं किए और न ही उन्होंने पूर्व के जांच अधिकारीयों द्वारा जांच में की गयी गड़बड़ियों की जांच में सुधार के लिए कोई प्रयास किया।

चौथे अधिकारी ने बिना किसी सबूत के छह संदिग्धों के नाम लिखे हैं। एसआईटी के अनुसार जांच अधिकारी ने कोर्ट में झूठा बयान दिया कि आरोपियों के मोबाइल फ़ोन उन्होंने ज़ब्त नहीं किये थे। जब कि जांच दल ने पाया है कि आरोपियों के मोबाइल फ़ोन ज़ब्त किये गए थे और उनकी फोरेंसिक जांच कर लैब की रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत की जानी थी जो अधिकारी द्वारा नहीं किया गया और ये नहीं किया जाना, अनुसंधान की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है।

गौरतलब है कि अदालत ने अपने निर्णय में भी जिन मुख्य बिंदुओं को उठाया है जिस कारण आरोपियों को संदेह का लाभ मिलने का रास्ता आसान हुआ, उसमें भी अनुसंधान के दौरान मोबाइल की सीडीआर सबूत और वीडियो की फोरेंसिक रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत न किये जाने का ज़िक्र है।

इसी तरह से एसआईटी ने कुल 29 ग़लतियों की चर्चा अपनी रिपोर्ट में की है और  अपनी रिपोर्ट में जांच अधिकारी रहे रमेश सिनसिनवार और परमाल सिंह को लापरवाह माना है।

साथ ही साथ एसआईटी ने चारों जांच अधिकारियों के ख़िलाफ़ अपने दायित्वों के निर्वहन में कोताही और लापरवाही बरतने के आरोप में सख़्त विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा भी की है।

अब जब पहलु ख़ान मामले में एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है और सरकार इस रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट में अपील करने की तैयारी कर रही है, तो एक बार फिर पहलू के परिवार को नहीं बल्कि देश के समस्त न्यायप्रिय अवाम को एक उम्मीद बंधी है के दोषी कानून की ग़िरफ़्त में आएंगे।

आपको बता दें कि अलवर में 1 अप्रैल 2017 को भीड़ ने गौ तस्करी के शक में पहलू ख़ान को बुरी तरह पीटा था। इसमें पहलू की मौत हो गई थी। वह बेटों के साथ जयपुर के मेले से मवेशियों को खरीद कर हरियाणा के नूह स्थित घर ले जा रहे थे। इस मामले में क्रॉस एफआईआर दर्ज की गई थीं। पहली एफआईआर में पहलू और उनके परिवार पर हमला करने वाली भीड़ को आरोपी बनाया गया था। वहीं, दूसरी एफआईआर में पहलू और उनके परिवार के खिलाफ गौ तस्करी के आरोप थे।

अब इस मामले में पीड़ित पहलू ख़ान का परिवार भी अपनी तरफ़ से हाईकोर्ट में निचली अदालत से आये फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील दायर करेगा। यह जानकारी केस की शुरुआत से मॉनिटरिंग कर रहे अधिवक्ता सह मानवधिकार कार्यकर्ता असद हयात और मेवात नूह के निवासी एडवोकेट नूरउद्दीन ने दी है। उन के अनुसार ये अपील सम्भवतः 20 सितम्बर से पहले दायर कर दी जायेगी। पहलु ख़ान के बेटे इरशाद का भी कहना है कि हम लोग आगे अपील करेंगे और हाईकोर्ट से उन्हें ज़रूर न्याय मिलेगा इसका उन्हें पूरा विश्वास है।

(फ़र्रह शकेब स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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