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प्रकाश किरण के सहारे दुनिया को और बेहतर समझाने वाले वैज्ञानिकों को भौतिकी का नोबेल

लेजर फिजिक्स में हुए इन अविष्कारों की वजह से दुनिया के सबसे सूक्ष्तम चीजों जैसे डीएनए की संरचना, आँख की सर्जरी, परमाणुओं की अन्तः क्रिया आदि का अध्ययन करने में भी सहायता मिल रही है।
नोबेल पुरस्कार विजेता
Image Courtesy: Indian Express

कुछ साल पहले तक यह माना जाता था कि प्रकाश किसी वस्तु  पर पड़कर दबाव तो पैदा करता है लेकिन यह दबाव इतना नहीं होता जिसे महसूस किया जा सके या वैज्ञानिक जिसका अनुमान लगा सकें।  लेकिन अमेरिकी  वैज्ञानिक आर्थर अस्किन ने 1980 के मध्य में पहली बार यह कर दिखाया कि लेजर से पैदा होने वाले प्रकाश पुंज की ताकत से किसी वस्तु के सबसे सूक्ष्मतम हिस्से यानी परमाणु को खिसकाया जा सकता है।  इसका फायदा यह हुआ कि पहले जहां वैज्ञानिक किसी परमाणु की प्रकृति निर्धारित करने के लिए कई सारे परमाणुओं का अध्ययन करके उसका औसत निकालते थे, वहीं अब आर्थर अस्किन के अथक प्रयास के बाद प्रयोगशालाओं में लेजर बीम की मदद से किसी एक परमाणु का गुण और दोष निर्धारित होने लगा।  विज्ञान  की दुनिया में इस अविष्कार को ‘ओप्टीक्लस ऑफ़ ट्वीजर्स’ कहा जाता है।  इस अविष्कार की वजह से हम अपने जगत के सूक्ष्तम  हिस्से का अध्ययन  कर पाते हैं।  हम समझ पाते हैं कि सजीव की कोशिकाओं के भीतर होने वाली गतिविधियाँ कैसी हैं और निर्जीव पदार्थों के परमाणुओं का हिसाब-किताब क्या है।  कहने का मतलब यह है कि विज्ञान की दुनिया का यह ऐसा अविष्कार था, जिसने विज्ञान के सफ़र में अनन्त संभावनाएं पैदा कर दी। 

अब आप पूछेंगे कि  इसके बारें में अब क्यों चर्चा की जा रही है तो जवाब है कि लेजर फिजिक्स के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए इस साल का नोबेल पुरस्कार ‘ऑप्टिकल ऑफ़ ट्वीजर्स’ के अविष्कारकर्ता आर्थर अस्किन सहित दो अन्य वैज्ञानिकों को दिया जाएगा। 96 साल के हो चुके अमेरिका के वैज्ञानिक आर्थर अस्किन अब तक नोबेल पुरस्कार पाने वाले वैज्ञानिकों में सबसे अधिक उम्रदराज वैज्ञानिक हैं।  इनके द्वारा लेजर फिजिक्स में दिए परिवर्तनकारी योगदान को तो हमने जान लिया।  अब नोबेल पुरस्कार पाने वाले अन्य दो वैज्ञानिक -फ्रांस के गेरार्ड मोरो और कनाडा की डोना स्ट्रिकलैंड के योगदान की बात करते हैं। 

गेरार्ड मोरो और डोना स्ट्रिकलैंड ने आर्थर अस्किन के लेजर बीम की क्षमताओं को आगे बढाया। लेजर बीम से बहुत ही कम समय अंतराल यानी कि  तकरीबन माइक्रो और नैनों सेकंड पर प्रकाश उत्पन्न होता है। कम से कम समय-अंतराल पर बहुत अधिक शक्ति और तीव्रता वाला प्रकाश उत्पन्न किया जा सकता है। इसलिए यह सिद्धांत है कि जितना कम समय-अंतराल होगा उतनी ही अधिक शक्ति वाला प्राकश का पुंज लेजर बीम से पैदा करने में मदद मिलेगी। लेकिन यह भी एक सीमा तक हो सकता है।  एक सीमा के बाद अधिक शक्तिशाली प्रकाश पुंज की उत्पति लेजर के भीतर लेजर की संरचना पर निर्भर करता है। यहाँ समझना जरूरी है कि लेजर क्या है? लेजर कोई प्रकाश पुंज नहीं है बल्कि यह एक ऐसा डिवाइस है जिससे एकसमान फ्रीक्वेंसी और ऊँचें तीव्रता की प्रकाश किरणें निकलती हैं।  इसलिए एक सीमा से अधिक शक्ति और तीव्रता का प्रकाश पैदा करने के लिए लेजर की ऐसी संरचना की जरूरत होती है, जिसके भीतर लम्बे उतार-चढ़ाव वाले (प्रकाश का आयाम) प्रकाश किरण पैदा की जा सके। लेजर की क्षमता में यह बढ़ोतरी करने के लिए प्रकाश पुंज उत्पन्न होने के समय अंतराल को बढ़ाना होता है ताकि प्रकाश की तीव्रता (इंटेंसिटी) कम हो जाए और अधिक शक्ति (पॉवर) वाला प्रकाश  पुंज पैदा हो सके। इसी  अविष्कार के लिए  गेरार्ड मोरो और डोना स्ट्रिकलैंड को आर्थर आस्किन के साथ लेजर फिजिक्स के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गयी है। 59 वर्षीय डोना स्ट्रिकलैंड तीसरी महिला हैं जिन्हें विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिल रहा है। विज्ञान में इस  योगदान की वजह से वैज्ञानिक प्रयोगशाला में  लेजर से बहुत अधिक शक्तिशाली क्षमता वाला प्रकाश पुंज पैदा करने में कामयाब हो पा रहे हैं। इस तरह की क्षमता वाले प्रकाश पुंज वैज्ञानिक अध्ययन  के क्षेत्र में बहुत उपयोगी साबित हुए हैं।  इन प्रकाश किरणों के सहारे वैज्ञानिक यह अनुमान लगाने  में कामयाब हुए हैं कि तारों के भीतर किस तरह की गतिविधियाँ होती होंगी और तारों की भौतिक संरचना कैसी होगी। चूँकि लेजर के सहारे कम से कम और अधिक से अधिक तीव्रता और शक्ति (इंटेंसिटी और पावर) वाला प्रकाश पुंज पैदा किया जा सकता है। लेजर फिजिक्स में हुए इन अविष्कारों की वजह से दुनिया के सबसे सूक्ष्तम चीजों जैसे डीएनए की संरचना, आँख की सर्जरी, परमाणुओं की अन्तः क्रिया आदि का अध्ययन करने में भी  सहायता मिल रही है।  

इसलिए यह कहा जा सकता है कि इस बार का भौतिक का नोबेल पुरस्कार उन्हें दिया गया है, जिन्होंने प्रकाश से बने यंत्र की  क्षमताओं में विस्तार कर भौतिक जगत के जटिल सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की है और जैविक जगत की परेशानियों को कम किया है।  

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