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पुलवामा हमले की ख़बरों के बीच प्रधानमंत्री मोदी डिस्कवरी चैनल की शूटिंग में व्यस्त रहे

मान लीजिए ख़बर आती कि मुंबई हमले के बाद तक मनमोहन सिंह डिस्कवरी चैनल के लिए शूटिंग कर रहे थे तब आपकी क्या प्रतिक्रिया होती? बीजेपी के प्रवक्ता हर घंटे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे होते।
modi film shooting
Image Courtesy: Scroll.in

पुलवामा हमले की ख़बर आते ही जब सुनने वाले स्तब्ध हो रहे थे, प्रधानमंत्री मोदी कैमरे के सामने पोज़ दे रहे थे। डिस्कवरी चैनल के वीडियो और स्टिल कैमरे के बीच प्रधानमंत्री का अलग-अलग कपड़ों में दिखाई देना हैरान करता है। स्टिल तस्वीर में वे अपने कुर्ता पाजामा में नज़र आ रहे हैं और वीडियो फुटेज में प्रिंस सूट में हेलिकाप्टर से उतरते दिखते हैं। घड़ियाल देखने के लिए नौकायान के समय वे तीसरे कपड़े में नज़र आ रहे हैं। क्या उन्होंने शूटिंग के लिए तीन बार कपड़े बदले थे?

डिस्कवरी चैनल अपनी शूटिंग का रॉ-फुटेज दे दे तो सारा कुछ पता चल सकता है। रॉ-फुटेज बिना संपादित होता है। रिकार्डिंग की निरंतरता से ही पता चलेगा कि कब कौन से कपड़े में हैं। यह जानना ज़रूरी है कि शूटिंग कब शुरू हुई थी और हमले की खबर आने के बाद कब तक जारी रही या नहीं। अगर पहले शूटिंग हो चुकी थी तब फिर कांग्रेस के आरोप में कोई दम नहीं है।

कांग्रेस का आरोप यही है कि घटना के बाद वे शूटिंग कर रहे थे। डिस्कवरी चैनल की टीम के साथ थे और उनके साथ उनका अपना प्रचार माध्यम भी था। इसका पता सिर्फ डिस्कवरी के रॉ फुटेज से पता चल सकता है। रॉ-फुटेज से पता चल जाएगा कि उनके चेहरे पर पुलवामा की उदासी थी या कैमरे के सामने अपना बेस्ट देने की फिक्र थी। प्रधानमंत्री हमेशा कैमरे के सामने अपना बेस्ट देना चाहते हैं। पीएमओ को खुद ही रॉ फुटेज जारी कर देना चाहिए ताकि कांग्रेस को जवाब मिल जाए ताकि पता चल जाए कि शाम साढ़े छह बजे तक शूटिंग हुई थी या नहीं।

कांग्रेस का आरोप है कि हमले की घटना 3:10 बजे हुई थी। जिम कार्बेट में 6:45 तक शूटिंग हुई। इस बीच पीएम ने चाय-नाश्ता भी किया। अब इसके लिए रसोइया से पूछताछ की ज़रूरत नहीं है कि उन्होंने उस अच्छे मौसम में क्या खाया था, जिसे उड़ान भरने के लिए ख़राब माना गया था। सरकारी सूत्रों के खंडन में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने कुछ नहीं खाया था। चलिए जब सरकारी ही महत्व दे रहे हैं तो कोई बात नहीं वरना मेरे लिहाज़ से खाना कोई बुरी बात नहीं है। बुरी बात यही है कि क्या वे घटना के बाद पोज़ दे रहे थे? उन्होंने शूटिंग कैंसिल क्यों नहीं की?

कांग्रेस के अनुसार 6:45 तक शूटिंग कर रहे थे तब फिर मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 5:30 के आस-पास फोन से रैली को संबोधित किया। इसका मतलब वे जहां थे, वहां फोन काम कर रहा था। बग़ैर अच्छे सिग्नल के रैली को संबोधित नहीं किया जा सकता है। तो फिर इस ख़बर का क्या मतलब है कि प्रधानमंत्री ने पुलवामा हमले की सूचना समय पर न मिलने की शिकायत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से की है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने इसकी जांच के आदेश दिए हैं। यह ख़बर कांग्रेस के आरोप के बाद सरकारी सूत्रों के हवाले से मीडिया में भेजी गई। क्या हम कभी जान पाएंगे कि हमले की खबर उन्हें कितनी देर से मिली?

सरकारी सूत्रों के हवाले से जारी यह ख़बर, ख़बरों के मैनेज करने वालों की हड़बड़ाहट साबित करती है। सफाई देकर और भी गड़बड़ कर दी है। क्या भारत के सुरक्षा सलाहकार वाकई पुलवामा जैसे बड़े अटैक के तुरंत बाद प्रधानमंत्री से संपर्क नहीं कर सके? वो भी उस उत्तराखंड में जहां से वे ख़ुद आते हैं? प्रधानमंत्री को ऐसी जगह पर कैसे ले जाया जा सकता है जहां सूचना तंत्र कमज़ोर हो जाए? जिम कार्बेट में ऐसा कौन सा मुश्किल इलाका है जहां सिग्नल कमज़ोर हो जाते हैं।

सूचना में चूक सुरक्षा में चूक है। प्रधानमंत्री के आस-पास सूचना तंत्र एक सेकेंड के लिए काम नहीं करता है तो यह उनकी सुरक्षा में चूक है। इससे समझौता नहीं हो सकता। यह समझौता कैसे हो गया? इस चूक को उनकी शूटिंग की ख़बर को ढंकने के लिए सामने लाया गया है या चूक का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री शूटिंग करने में लगे थे। चलो फोन नहीं लग रहा है तो कुछ शूटिंग कर लेते हैं।

40 जवानों की मौत के बाद कुछ घंटों तक प्रधानमंत्री शूटिंग करते रहे। जब हमले के अगले दिन प्रधानमंत्री झांसी में अपने लिए वोट मांग सकते हैं तो कैमरे के लिए पोज क्यों नहीं दे सकते हैं। हमले के बाद बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में नहीं गए। विपक्ष का सामना नहीं करने के लिए या फिर इस राजनीति को अकेले करने के लिए? कांग्रेस के आरोप के बाद रविशंकर प्रसाद की प्रेस कांफ्रेंस आप भी सुने। उसमें वे सवालों के जवाब नहीं दे रहे हैं। बेवजह गंभीर दिखने की कोशिश में प्रधानमंत्री मोदी का मज़ाक उड़वा रहे हैं। गनीमत है कि मोदी के समर्थकों को तथ्यों से फर्क नहीं पड़ता वरना रविशंकर की प्रेस कांफ्रेंस से प्रधानमंत्री का बड़ा राजनीतिक नुकसान हो सकता था।

मान लीजिए ख़बर आती कि मुंबई हमले के बाद तक मनमोहन सिंह डिस्कवरी चैनल के लिए शूटिंग कर रहे थे तब आपकी क्या प्रतिक्रिया होती? बीजेपी के प्रवक्ता हर घंटे प्रेस कांफ्रेंस कर रहे होते। मुझे अच्छी तरह याद है। शिवराज पाटिल अहमदाबाद अस्पताल धमाके बाद दौरे पर गए थे। कैमरे का एक शॉट दिखा था जिसमें वे कीचड़ बचाकर पांव रख रहे हैं। उतने भर से शॉट लेकर मैंने ही उस हिस्से को गोले से घेर कर खींचाई कर दी थी। छवि का इतना नुकसान हुआ कि शिवराज पाटिल को इस्तीफा देना पड़ा।

मुंबई हमले के वक्त तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी मुंबई ही पहुंच गए। राजीव प्रताप रूडी का वीडियो है जिसमें वे पूरी सरकार से ही इस्तीफा मांग रहे हैं। बीजेपी तब राजनीति नहीं कर रही थी? आज भी राष्ट्रीय एकता के नाम पर बीजेपी राजनीति ही कर रही है। उसके नेताओं के बयान काफी है प्रमाणित करने के लिए। राष्ट्रवाद के नाम पर विपक्ष को डरा देती है और विपक्ष डर जाता है। पुलवामा हमले के बाद विपक्ष चुप ही रहा। भाजपा के नेता माहौल बनाने का बयान देते रहे।

मेरी राय में सरकार को विपक्ष का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उससे किसी नेता ने इस्तीफा नहीं मांगा। सरकार को अपने समर्थकों का भी शुक्रिया अदा किया कि उन्होंने अब सवाल करना छोड़ दिया है। इस्तीफे की कल्पना उनके दिमाग़ से ग़ायब हो गई है। सिर्फ उन लोगों को छोड़ कर जो जूता पहन कर शोक सभा में आए मंत्रियों पर गुस्सा हो गए और जूते उतरवा लिए। उन लोगों ने भी इस्तीफा नहीं मांगा।

विपक्ष की चुप्पी के कारण पुलवामा हमले को लेकर चूक का सवाल जनता तक नहीं पहुंचा। कांग्रेस ने भी तीन दिनों बाद आरोप लगाए कि पुलवामा हमले के बाद राष्ट्रीय शोक की घोषणा हो सकती थी मगर इसलिए नहीं की गई क्योंकि इससे प्रधानमंत्री की सरकारी सभाएं रद्द हो जातीं। कांग्रेस को घटना के तुरंत बाद ही राष्ट्रीय शोक घोषित की मांग करनी चाहिए थी।

हिन्दी अख़बारों ने इसे कैसे छापा है। अमर उजाला के ई पेपर ( दिल्ली) के पहले पन्ने पर खबर नहीं है। दैनिक जागरण के ईपेपर (नेशनल) के पहले पन्ने पर यह खबर नहीं है। पांचवे पन्ने पर है। हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर है। किसी के हेडलाइन से पता नहीं चलता है कि प्रधानमंत्री हमले के वक्त शूटिंग कर रहे थे। "शहादत पर सरकार राजधर्म भूली- कांग्रेस", इस हेडलाइन की आड़ में घटना के बाद तक शूटिंग करने की बात को महत्व नहीं दिया गया है। आप अंग्रेज़ी अख़बार टेलिग्राफ को देखिए, उसने कैसे इस ख़बर को ट्रीट किया है।

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( रवीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार और टीवी एंकर हैं। यह लेख उनके आधिकारिक फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।) 

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