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उत्तर प्रदेश: क्या बेरोज़गारी ने बीजेपी का युवा वोट छीन लिया है?

21 साल की एक अंग्रेज़ी ग्रेजुएट शिकायत करते हुए कहती हैं कि उनकी शिक्षा के बावजूद, उन्हें राज्य में बेरोज़गारी के चलते उपले बनाने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
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नई दिल्ली: नाराज़गी से भरी रोजी कुमारी कहती हैं, "पढ़ लिखकर गोबर पाठ रही हूं। हमारे जैसे पढ़ें लिखे लोगों के साथ मोदी-योगी सरकार ने यह किया है।"

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की चकरनगर तहसील में तमतमाती दोपहर की धूप छाई हुई थी। अब पारा तीन डिग्री नीचे आ गया है। बिना छपाई वाली दीवारों और कच्चे फर्श के लंबे बरामदे में कुछ महिलाएं बैठी हुई हैं और आपस में हंसी-ठिठोली, बातचीत कर रही हैं। वहीं गाय, भैंसें अस्थायी सार में बंधी हुई हैं, जहां भूसे और कुछ लकड़ियों में आग लगाकर धुआं किया गया है। ताकि मच्छर, मक्खियां और दूसरी चीजें जानवरों से दूर रहें। यह किसी भी गांव की आम तस्वीर है। यहां भी ऐसा ही है।

रोजी बरामदे के आगे के कोने में उपले बनाने में व्यस्त है। जब हमने रोजी से उनकी तस्वीर लेने की गुजारिश की, तो उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया। वह नहीं चाहतीं कि दुनिया उन्हें इस तरह देखे। रोजी शिक्षक बनने के रास्ते पर चल रही थी। उन्होंने उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपी टीईटी) पास कर ली थी। लेकिन राज्य सरकार ने 2019 से कोई भर्ती ही नहीं की। 2019 में बुनियादी शिक्षा विभाग में 69,000 शिक्षकों की भर्ती हुई थी।

लेकिन इस भर्ती के बाद भी राज्य में प्राथमिक और अन्य उच्च दर्जों के स्कूल में शिक्षकों की कमी बनी रही, जिसके चलते राज्य का शिक्षा क्षेत्र काफ़ी खस्ताहाल है। सबसे ज़्यादा प्राथमिक स्कूलों की हालत खराब है, जहां 1 अप्रैल 2019 के मुताबिक़ कुल 4.12 लाख शिक्षकों के पदों का सृजन किया गया है, लेकिन इनमें से भी 1.8 लाख पद अब भी खाली हैं।

सरकारी सहायता प्राप्त परिषदीय स्कूलों में शिक्षकों के 4500 पद और क्लर्क काडर में 1500 पद खाली हैं। इसी तरह सरकारी मदद प्राप्त सेकंडरी स्कूलों में 32,000 शिक्षकों के पद खाली हैं, जबकि गवर्मेंट सेकंडरी स्कूलों में 6,000 पद खाली हैं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी मदद प्राप्त और सरकारी कॉलेजों में कुल मिलाकर 8000 पद खाली हैं।

उत्तर प्रदेश की युवा बेरोज़गारी दर इस अवधि में पूरे भारत के औसत से ज़्यादा बनी रही। सिर्फ़ अप्रैल-मई-जून 2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान ही यह भारतीय औसत से थोड़ी कम रही। 

तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी रोज़ी सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं करतीं, क्योंकि घर में एक ही स्मार्टफोन है। उनके पिता कमलेश छोटे किसान हैं, जिनके पास सिर्फ़ 1।1 एकड़ ज़मीन ही है। परिवार आजीविका के लिए कृषि और दूध के अपने छोटे धंधे पर निर्भर है।

रोजी कहती हैं, "मैं कपड़े सिलकर परिवार की आर्थिक मदद करती हूं। योगी सरकार का दावा है कि उन्होंने लाखों नौकरियां उफलब्ध करवाईं। लेकिन उनके ज़्यादातर दावे सिर्फ़ कागज़ों पर हैं। कई सालों से कोई नियुक्तियां नहीं हुई हैं।"

और कहानी जारी है… 

मैनपुरी जिले के घिरोर प्रखंड के बलरामपुर गांव में रहने वाले रामतीर्थ यादव ने पिछले 3 चुनाव (2014 और 19 का लोकसभा व 2017 में विधानसभा) में बीजेपी को वोट दिया है। उन्हें आशा थी कि नई सरकार बदलाव लाएगी, अवसंरचनात्मक विकास करेगी और नौकरियां पैदा होंगी। 

लेकिन अब उन्हें देश के लाखों दूसरे युवाओं की तरह लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है। वह कहते हैं, "मोदी द्वारा तीनों चुनावों के पहले किए गए सभी बड़े वायदे सिर्फ़ जुबानी जुमले ही साबित हुए हैं।"

31 साल के रामतीर्थ गणित में पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उन्होंने इसके बाद प्राथमिक शिक्षा में डिप्लोमा (डीएलएड) भी हासिल किया, जिसे पहले उत्तर प्रदेश बुनियादी प्रशिक्षण प्रमाणपत्र के तौर पर जाना जाता था। रामतीर्थ को डिप्लोमा से उम्मीद थी कि भविष्य में वे प्राथमिक शिक्षक बन सकेंगे।

उन्होंने यूपीटीईटी और सीटीईटी की परीक्षा भी पास की है। लेकिन वे अब भी 10 हजार रुपये से कम कमाते हैं। यह कमाई उन्हें अपने गांव में कोचिंग सेंटर चलाने से होती है। वे कहते हैं, "राज्य में रोज़गार की स्थिति बदतर है। सभी सरकारी विभागों में 50 से 70 फ़ीसदी पद खाली हैं। योगी सरकार द्वारा अलग-अलग विभागों में आवंटित पदों को लाखों की संख्या में कम करने के बावजूद, राज्य में अब भी पांच लाख पद खाली हैं। लेकिन सरकार की उन्हें भरने की कोई योजना नहीं है।" 

2016 में 69000 प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए आवेदन बुलवाए गए थे। लेकिन नियुक्तियां तीन साल बाद 2019 में की गईं। रामतीर्थ कहते हैं, "मैंने परीक्षा दी थी, लेकिन मेरा मेरिट लिस्ट में नाम नहीं आया, क्योंकि नियुक्तियां मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के उल्लंघन के साथ की गईं। तबसे कोई भर्ती नहीं आई है। जब चुनाव आ गए, तब सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में 17,000 शिक्षकों की भर्तियों का ऐलान किया।" रामतीर्थ कहते हैं कि भर्तियों का इंतज़ार अब कभी ख़त्म ना होने वाला इंतज़ार बन चुका है।

उन्होंने कहा कि राज्य में प्राथमिक स्कूल के शिक्षकों के 97,000 पद, प्रशिक्षित ग्रेजुएट शिक्षक (टीजीटी) और प्रशिक्षित पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक (पीजीटी) के 27,000 पद, एलटी ग्रेड शिक्षकों के 12,000 पद और पुलिस विभाग में 52,000 पद खाली हैं, जिसमें तृतीय स्तर के कर्मचारियों के 50 हजार पद शामिल हैं।" रामतीर्थ के मुताबिक़ सब मिलाकर राज्य में 5 लाख पद खाली हैं। 

यादव के पास ज़मीन नहीं है। वे पूरी तरह कोचिंग से होने वाली आय पर निर्भर हैं। एक बच्ची के पिता रामतीर्थ कहते हैं, "हर चीज का दाम आसमान छू रहा है। अब इतनी कम आय से परिवार के खर्च चलाना मुश्किल हो गया है।"

बदायूं जिले में लखनपुर गांव के रहने वाले संदीप कहते हैं कि योगी सरकार को पद ना भरने के चलते राज्य में गंभीर नुकसान उठाना पड़ेगा। उन्होंने कहा, "पिछले पांच सालों में राज्य में कोई भी बड़ी भर्ती कवायद शुरू नहीं की गई। यहां तक कि सुरक्षाबलों में भी कोई भर्ती नहीं की गई। जब चुनाव नज़दीक आ गए, तो लेखपाल के लिए आवेदन बुलवा लिए गए, लेकिन नियुक्तियों की कोई गारंटी नहीं है।"

भारत में नौकरियों की घोषणा और चुनाव अक्सर आपस में जुड़े हुए रहते हैं। रेलवे भर्ती बोर्ड ने फरवरी 2019 में एनटीपीसी भर्तियों की घोषणा की थी, जो लोकसभा चुनाव के बिल्कुल पहले हुई थी। चुनावों के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। 2021 में दो बार ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन हुए। लेकिन यह चुनावी मुद्दा नहीं बने।

 ऊपर से अधिसूचना जारी होने से लेकर नियुक्ति तक आदर्श स्थिति में भर्ती की प्रक्रिया पूरा होने में दो साल से ज़्यादा लेती है। लेकिन आमतौर पर यह आदर्श स्थितियां नहीं होतीं।

संदीप कहते हैं कि अच्छी आय वाले परिवारों के बच्चे बड़े शहरों में इनजीनियरिंग और मेडिसिन की पढ़ाई करते हैं। "हम इन खर्चीले पाठ्यक्रमों का भार नहीं उठा सकते। इसलिए हम बीएससी, बीए और एम करते हैं, साथ में सरकारी नौकरियों की तैयारी करते हैं।"

बी कॉम अंतिम वर्ष के छात्र अमित यादव लखनपुर के ही रहने वाले हैं। वे पुलिस और सशस्त्र बलों की भर्तियों की तैयारी कर रहे हैं। वे कहते हैं, "रक्षा क्षेत्र में 2016 से किसी भी भर्ती की घोषणा नहीं हुई है। पुलिस विभाग में भी कोई भर्ती नहीं हुई है। इस सरकार के अंतर्गत तो हमारा भविष्य अंधकारमय दिखाई देता है। इसलिए इस सरकार को जाना होगा।"

प्रतापगढ़ में कुंडा के रहने वाले 28 साल के धर्मेंद्र साहू प्रयागराज में पिछले पांच सालों से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें घर से हर महीने खर्च के लिए 4000 रुपये मिलते हैं। वे एक साझा कमरे में रहते हैं, जिसके लिए उन्हें 2800 रुपये किराया चुकाना होता है।

वे कहते हैं, "मेरे पिता किसान हैं और मैं इनजीनियरिंग या किसी दूसरे पेशे के पाठ्यक्रम का खर्च वहन नहीं कर सकता। इसलिए मैंने सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू की, ताकि उससे मिलने वाली सुरक्षा हासिल कर सकूं।"

धर्मेंद्र अलग-अलग भर्तियों में होने वाली देरी से नाराज़ हैं। वे कहते हैं, "पेपर लीक और अनियमित्ताओं के चलते होने वाली देरी आम है। कोविड ने सरकार को परीक्षा ना करवाने और नियुक्तियों में देरी करने का एक और बहाना दे दिया है।"

धर्मेंद्र कहते हैं कि शहर में इतने कम पैसे में रह पाना मुश्किल है। वे कहते हैं, "मैं बच्चों को ट्यूशन दिया करता था। लेकिन महामारी ने यह स्त्रोत् भी छीन लिया।"

उत्तर प्रदेश में शहरी युवाओं के बीच बेरोज़गारी 23 फ़ीसदी के ऊपर है। इसका मतलब हुआ कि 15 से 29 साल की उम्र के बीच में कुल युवाओं का चौथाई हिस्सा बेरोज़गार है।

पिछले तीन सालों से यही स्थिति है। महामारी से पहले से यह स्थिति बनी हुई है। 2018-19 की तीसरी तिमाही में उत्तर प्रदेश में शहरी युवाओं में बेरोज़गारी 29 फ़ीसदी की भयावह ऊंचाई पर पहुंच गई थी। यह भारत के 24 फ़ीसदी के आंकड़े से कहीं ज़्यादा थी।

सरकार कर रही इनकार

 सरकार तो राज्य में बेरोज़गारी की स्थिति को मानने को तक तैयार नहीं है। योगी सरकार में लघु, छोटे व मध्यम उदयमों के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह कहते हैं, "जैसा आरोप लगाया जाता है, उसके उलट अभी बेरोज़गारी का कोई संकट नहीं है। हमने लोगों को 2.64 करोड़ रोज़गार उपलब्ध करवाए।"

लेकिन इस दावे के समर्थन के लिए कोई आंकड़े नहीं हैं। 2018 में उत्तर प्रदेश में एक चपरासी की नौकरी के लिए 93,000 लोगों ने आवेदन किया, जिसमें 3,700 लोग पीएचडी धारक थे। पिछले पांच सालों में परीक्षार्थी अलग-अलग परीक्षाओं में होने वाली अनियमित्ताओं के विरोध में प्रदर्शन करते रहे हैं। दिसंबर 2021 में शिक्षक बनने की आस लगाए बैठे परीक्षार्थियों ने प्रदर्शन किया। उन्होंने यूपी टीईटी परीक्षा में अनियमित्ता का आरोप लगाया था।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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