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पंजाब : कांग्रेस की हार और ‘आप’ की जीत के मायने

कांग्रेस को जो नुक़सान हुआ, उसका लगभग सीधा लाभ 'आप' को मिला। मौजूदा वक़्त में पंजाब के लोगों में नाराज़गी थी और इस कारण लोगों ने बदलाव को ही विकल्प मानते हुए आम आदमी पार्टी पर भरोसा किया है।
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image credit- Social media

पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब कांग्रेस के अंदर उठापठक और राज्य में केंद्रीय नेतृत्व का हस्तक्षेप बढ़ रहा था तभी कई जानकारों ने कहना शुरू कर दिया था कि कांग्रेस अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारने की तैयारी कर चुकी है। और अब जब चुनाव परिणाम सामने हैं, तो किसी को इसमें कोई अचरज़ नहीं है कि यहां आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए कुल117 सीटों में से 92 सीटों पर बड़ी बाज़ी मारी है। सत्ताधारी कांग्रेस मात्र18 सीटें जीत सकी तो वहीं बीजेपी को राज्य में जहां केवल दो सीटें मिली हैं, कुछ वक्त पहले तक उसकी सहयोगी रही शिरोमणि अकाली दल तीन सीटों पर सिमट गई है।

बता दें कि साल 2017 के चुनाव में आम आदमी पार्टी को 20, बीजेपी को तीन, शिरोमणि अकाली दल को 15 और कांग्रेस को 77 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। राजधानी दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी के लिए ये पहली बड़ी जीत है। कभी टेलीविज़न पर बतौर स्टैंडअप कॉमेडियन दिखने वाले भगवंत मान अब पंजाब के अगले मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। चुनावों से क़रीब एक महीना पहले आम आदमी पार्टी ने पंजाब में भगवंत मान को पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया था और इसके लिए पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं के बीच बकायदा रेफ़रेंडम (जनमत संग्रह) भी करवाया था। हालांकि अब भगवंत मान के सामने मुफ़्त योजनाओं के लिए बजट संबंधी तमाम चुनौतियां भी हैं, जिससे निपटना आसान नहीं होगा।

आप की जीत और कांग्रेस की हार के प्रमुख कारण क्या हैं?

बदलाव ही विकल्प है इसी को ध्यान में रखते हुए पंजाब की जनता ने इस बार एकमत होकर बदलाव के लिए वोट किया है। पारंपरिक पार्टियों से उब चुकी जनता इस बार नई पार्टी को वोट करने के लिए आगे बढ़ी, जिसका सीधा फायदा आप को मिला। आम आदमी पार्टी ने अपने अभियान में शुरू से ही ये नैरेटिव सेट किया कि पिछले बीस साल से जनता ने अकाली दल, बीजेपी या कांग्रेस का शासन देखा है, इसलिए इस बार नई पार्टी को वोट देकर देखा जाए। साथ ही पार्टी ने अपने दिल्ली मॉडल पर ख़ासा ज़ोर दिया जिसे वो शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार का मॉडल कहती है।

आप ने यहां दिल्ली की तर्ज पर ही मुफ्त योजना के तहत तीन सौ यूनिट फ़्री बिजली और 18 साल से ऊपर की औरतों को हज़ार रुपये महीना देने जैसे वादे भी किए हैं। वहीं, किसान आंदोलन की वजह से कृषि से जुड़ी समस्याएं भी चर्चा में आईं और इसे लेकर पुरानी सरकारों की नाकामियों पर भी चुनाव में काफ़ी चर्चा थी।

कांग्रेस की अंदरूनी कलह और आप की चुनावी रणनीति

चुनावों की तैयारी महज़ जमीन पर नहीं होती ये लोगों के दिमाग के जरिए भी होती है। एक ओर पंजाब में जहां लोग कई महीनों से कांग्रेस के भीतर अस्थिरता देख रहे थे, वहीं आम आदमी पार्टी अपना हर कदम फूंक-फूंक कर समझदारी से रख रही थी। इससे पहले 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में जहां सीएम पद के उम्मीदवार को लेकर संशय की स्थिति थी, वहीं इस बार पार्टी आलाकमान ने वक़्त रहते फ़ैसला लिया और भगवंत मान को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के चेहरे के रूप में पेश कर दिया।

वहीं कांग्रेस की बात करें तो, कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम की कुर्सी से हटाया गया और नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब का इंचार्ज बनाया गया जिसे लेकर कांग्रेस के नेताओं की असहमति सामने आई, ये पूरा मामला सार्वजनिक हो रहा था। पार्टी के नेताओं के मतभेद खुले तौर पर लोगों के दिमाग पर असर छोड़ रहे थे। लोगों को लगने लगा थे कि अगर पार्टी जीत भी गई तो शायद ये कलह पंजाब की गवर्नेंस को अस्थिर कर देगी। इस बात का फ़ायदा आम आदमी पार्टी को हुआ।

ज़मीनी होमवर्क और मज़बूत रणनीतिकार

इस बार पंजाब के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जहां ज़मीन से दूर अपने बड़े लोगों को ही मैनेज नहीं कर पा रही थी, वहीं आप ने छोटे-छोटे नाराज़ लोगों को भी मैनेज किया। पंजाब में आम आदमी पार्टी के लगभग आधे उम्मीदवार दूसरी पार्टियों से निकल कर 'आप' में शामल हुए थे, इसलिए दिल्ली और पंजाब के बीच ठनने की स्थिति आ सकती थी। लेकिन आप ने इस समस्या का समय रहते बखूबी हल निकाला।

पंजाब की राजनीति पर नज़र रखने वाली पत्रकार आरजू अहुजा का मानना है कि आप की जीत में बहुत बड़ा हाथ पार्टी के रणनीतिकार संदीप पाठक का है। संदीप आईआईटी से पढ़े हैं, लंदन रिटर्न हैं। वो पहले जाने माने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ भी काम कर चुके हैं और पार्टी आलाकमान के फ़ैसलों को लागू करवाने के पीछे संदीप पाठक का ही हाथ रहा है।

आरजू ने न्यूज़क्लिक को बताया, "इस बार आप सिर्फ और सिर्फ संदीप पाठक के नेतृत्व में ये चुनाव लड़ी और जीती है। संदीप की टीम पूरी तरह खुद सोशल मीडिया और चुनाव की लाइमलाइट से दूर रही, लेकिन चुपचाप सबके सोशल मीडिया अकॉउंट्स को हैंडल करती रही। पहले पंजाब को ज़ोन और फिर सब जोन में बांटा गया, फिर हर ज़ोन का पूरा अध्ययन करने के बाद चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन हुआ। नाराज़ लोगों को भी मैनेज किया गया। ये सब संदीप की ही मैनेजमेंट था।"

ईमानदार छवि वाली सरकार

लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकैडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक डॉक्टर नरेश चंद्र सक्सेना ने साल 2019 में दावा किया था कि पंजाब और उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोक सेवक देश के सबसे भ्रष्ट लोकसेवक हैं। इसी साल एक स्वतंत्र सर्वे में ये बात सामने आई कि देश के सबसे अधिक भ्रष्टाचार ग्रस्त राज्यों में पंजाब छठे नंबर पर है। इस सर्वे के अनुसार राज्य के 63 फ़ीसदी लोगों का कहना था कि उन्होंने अपना काम कराने के लिए रिश्वत दी है। पंजाब में भ्रष्ट लोकसेवकों और नेताओं की सांठगांठ की बातें बड़ा मुद्दा रही हैं।

पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे प्रदीप सिंह कहते हैं कि पंजाब में धीरे-धीरे व्यापक तौर पर भ्रष्टाचार फैल चुका है। ये पुरानी सरकारों की ही देन है है कि शिक्षा से लेकर रोज़गार और अब तो स्वास्थ्य भी इसकी चपेट में आ चुका है। लोगों में भारी इसे लेकर भारी गुस्सा था और वो इस भ्रष्टाचार पर रोक लगाना चाहते थे। जनता कांग्रेस और अकाली दल के सत्ता चलाने को तरीके को देख चुकी थी और यही वजह भी है कि इस बार लोगों ने नई पार्टी को मौका दिया।

प्रदीप के मुताबिक अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने पंजाब में स्वच्छ, पारदर्शी और ईमानदार प्रशासन का दावा किया है। उन्होंने पंजाब के लोगों को ख़राब आर्थिक स्थिति, क़र्ज़ और लालफ़ीताशाही से छुटकारा दिलाने की बात की है, जो शायद लोगों के दिलों को जीतने में कामयाब रही है।

कैंपेन और नैरेटिव का कमाल

अब तक कांग्रेस की राजनीति देखें तो, वो सब को साथ लेकर चलती रही है। लेकिन इस बार कांग्रेस की तरफ़ से ये संकेत आया कि पंजाब का मुख्यमंत्री एक सिख ही होगा। ये चीज़ें शायद लोगों को पसंद नहीं आईं। कांग्रेस के लिए हिंदू, दलित सभी वोट करते रहे हैं, इसके अलावा अमरिंदर सिंह के वोट बैंक में जाट-सिख भी शामिल थे। लेकिन इस बार कांग्रेस के लिए ख़ुद अपने ही पाले में गोल करना आत्मघाती रहा। वहीं नवजोत सिंह सिद्धू ने शुरू से अपनी ही पार्टी को टारगेट किया, उसका भी बड़ा नुक़सान हुआ।

वहीं आम आदमी पार्टी का कैंपेन देखें तो वो शुरू से ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार जैसे मुद्दों पर खड़ी रही। दिल्ली मॉडल को उन्होंने उदाहरण के तौर पर पेश किया, जो लोगों को खूब भाया। पार्टी ने इस बार भी मालवा पर ज़्यादा ध्यान दिया। मालवा को तीन ज़ोन में बांटा गया था और यहां पार्टी ने ज़ोरदार अभियान चलाया। चुनाव के नतीजे बताते हैं कि पार्टी को यहां साठ से ज़्यादा सीटें मिली हैं।

गौरतलब है कि इस बार पंजाब के शासन में एक नई पार्टी के आने का इतिहास बनेगा। जानकारों का मानना है कि मौजूदा वक्त में पंजाब के लोगों में नाराज़गी थी और इस कारण लोगों ने आम आदमी पार्टी को मैन्डेट दिया। कांग्रेस को जो नुक़सान हुआ, उसका लगभग सीधा लाभ 'आप' को मिला। 'मुफ़्त' घोषणाओं का असर भी हुआ, लोगों को आम आदमी पार्टी की घोषणाएं समझ में आई, जिसके चलते अन्य पार्टियों से अधिक उन्होंने आप पर भरोसा किया। लेकिन आगे पूरा मामला इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टी का नेतृत्व कैसे काम करता है। आम आदमी पार्टी की पंजाब में जीत से ही तो रातोरात उनकी भारतीय राजनीति में साख तो बदल गई है, लेकिन अब उसके सामने चुनौतियों का अंबार भी खड़ा हो गया है।

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