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रफ़ाल डील : ऐसा बहुत कुछ है जिसे सुप्रीम कोर्ट से छिपाया गया !

भारत की तरफ से निगोसिएशन करने वाली टीम के बीच इसी तरह के कई मतभेद थे। सिंह, सुले और वर्मा की तिकड़ी डील पर असहमति जताती थी और बाकी चार लोगों की टीम राकेश भदौरिया की अगुवाई में इसका विरोध करती थी।
Rafale-SC

अंग्रेजी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘कारवां’ में रफ़ाल मामले पर शॉट डाउन” नाम से एक रिपोर्ट छपी है। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि 36 रफ़ाल लड़ाकू विमान खरीदारी से जुड़ी डील के कई पक्षों पर भारत के तरफ से डील करने वाले अधिकारी सहमत नहीं थे कई अधिकारियों का तो यहाँ तक मानना था कि यह डील भारतीय हित में नहीं है। सरकार ने रफ़ाल खरीदारी से जुड़ी सरकारी प्रक्रियाओं की इन असहमतियों को सुप्रीम कोर्ट से छिपा लिया था।

रफ़ाल डील की बेंचमार्क कीमत से जुड़ी असहमति पहले से ही सार्वजनिक है। बेंचमार्क कीमत यानी रफ़ाल डील अमुक राशि से अधिक की नहीं होगी। लेकिन रफ़ाल की अंतिम डील में बेंचमार्क कीमत 5.2 बिलियन यूरो से 2.5 बिलियन यूरो अधिक थी। रफ़ाल बेंचमार्क की कीमत निर्धारित करने में इंडियन निगोसियशन टीम के सदस्य एमपी सिंह ने भूमिका निभाई थी। इस भूमिका में उन्हें जॉइंट सेक्रेट्री (एयर), एक्वीजीशन मैनेजर राजीव वर्मा (एयर) और फिनानंस मैनेजर अनिल सुले ने सहयोग किया था। सात लोगों की टीम में इन्हें कीमत निर्धारण के विशेषज्ञ के तौर पर शामिल किया गया था। इसके अलावा टीम के चार लोगों में डिप्टी चीफ ऑफ़ एयर स्टाफ राकेश कुमार भदौरिया शामिल थे। इन चार लोगों ने शुरूआती बेंचमार्क कीमत को अनुचित मानकर विरोध किया था। डील करने वाली टीम के इस विवाद को सुलझाने के लिए कीमत से जुड़े पूरे विषय का फैसला करने की जिम्मेदारी डिफेन्स एक्वीजीशन कौंसिल को सौंपा गयी। कौंसिल ने रफ़ाल की कीमत निर्धारण के लिए जिस मेथड को अपनाया वह डिफेन्स प्रोक्योरमेंट प्रोसीजर–2013 से अलग था, जिसके आधार पर रफ़ाल जैसे लडाकू विमान की खरीदारी के लिए कीमत का निर्धारण करना था। एक्वीजीशन कौंसिल ने ऊँची कीमत वाला बेंचमार्क निर्धारित कर दिया। जिसे प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने मंजूरी दे दी। इस तरह से मिली यह मंजूरी बने बनाये डिफेन्स प्रोसीजर के नजरिये के आधार पर पूरी तरह से गलत थी।  

भारत की तरफ से निगोसिएशन करने वाली टीम के बीच इसी तरह के कई मतभेद थे। सिंह, सुले और वर्मा की तिकड़ी डील पर असहमति जताती थी और बाकी चार लोगों की टीम राकेश भदौरिया की अगुवाई में इसका विरोध करती थी। मामला एक्वीजीशन कौंसिल से होता हुए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी के पास पहुंचता था और यहाँ से इसे मंजूरी मिल जाती थी।

रफ़ाल डील में शामिल अधिकारियों की डील के खिलाफ जताई गयी कुछ असहमति इस प्रकार हैं-

  • रफ़ाल की अंतिम डील  बेंचमार्क कीमत 5.2 बिलियन यूरो से 2.5 बिलियन यूरो अधिक थी। यानी बहुत अधिक कीमत पर रफ़ाल की डील हुई।
  • दासौल्ट एविएशन से किसी भी तरह का एडवांस एंड परफॉरमेंस बैंक गारंटी जैसा करार नहीं किया गया, जबकि डिलीवरी से पहले ही बहुत अधिक पैसा एडवांस में भुगतान कर दिया गया। इसका मतलब यह है कि करार टूटने पर भारत सरकार फ्रांस की सरकार और दासौल्ट से किसी भी तरह का पैसा निकाल पाने ने असफल रहेगी। जबकि इस तरह का करार हो ताकि पैसे की सुरक्षा बनी रहे, यह डिफेन्स प्रोक्योरमेंट डील का अहम हिस्सा होता है।
  • नये वाला 36 रफ़ाल समझौता पहले वाले 126 लड़ाकू विमान से बेहतर नहीं था। 36 लड़ाकू विमान के रखरखाव की शर्तें पहले वाली 126 की शर्तों से बेहतर नहीं थीं। 
  • मोदी सरकार के पहले कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार के समय दासौल्ट एविएशन ने 126 लड़ाकू विमान की देने का ठेका सबसे कम बोली लगाकर हासिल किया था। मोदी सरकार ने 126 विमानों की खरीद वाले करार को रद्द कर दिया और सरकारों के बीच होने वाले अंतर सरकारी समझौते के तहत केवल 36 रफ़ाल विमान खरीदने का समझौता किया। वायुसेना प्रमुख सहित कई अधिकारियों ने मोदी सरकार के फैसले का यह कह कर बचाव किया कि नया समझौता पहले के करार से बेहतर शर्तों पर है, लेकिन विरोधी अधिकारियों ने इस तर्क को सही नहीं माना है। 
  • विमान और हथियार सप्लाई प्रॉटोकॉल के अंतर सरकारी करार के अनुच्छेदों और धाराओं में बदलाव विधि एवं न्याय मंत्रालय की सिफारिशों से हुआ। 36 रफ़ाल के करार को जिस समय मंजूरी के लिए विधि मंत्रालय भेजा गया तब मंत्रालय ने इसके कई पक्षों पर आपत्ति जताई थी। इन चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया गया और विधि मंत्रालय की आपत्तियों पर विचार किये बिना ही करार को कैबिनेट कमेटी ने मंजूरी दे दी। फ्रांस के साथ संयुक्त दस्तावेज” को मंजूरी देने वाली भारतीय टीम में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी शामिल थे। टीम ने कानूनी आपत्तियों की अनदेखी की और भविष्य में उठाए जा सकने वाले सवालों को प्रभावकारी रूप में मिटा दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को खरीद प्रक्रिया में शामिल होने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में सरकार ने डोभाल की भूमिका को छुपाया था। 
  • पहले हुए 126 विमान के करार में  ईएडीएस द्वारा प्रस्तावित 20 प्रतिशत छूट को नजरअंदाज कर दिया गया। यूरो टाइफून की निर्माता कंपनी यूरोपियन डिफेंस एंड स्पेस (ईएडीएस) कंपनी रफ़ाल जैसे लड़ाकू विमान के टेंडर के लिए तकनीकी ट्रायल को पास करने वाली दूसरी कंपनी थी। 126 जेटों के करार में कम बोली लगाने के चलते दसौल्ट को यह टेंडर दे दिया गया। इसके बाद ईएडीएस ने प्रस्तावित कीमत में 20 प्रतिशत छूट देने का प्रस्ताव दिया लेकिन भारत सरकार अपने फैलसे पर कायम रही। करार से असहमति जताने वाले निगोसियशन टीम के सदस्य छूट वाली कीमत से 36 रफ़ाल विमानों की कीमत की तुलना करना चाहते थे। अन्य चार सदस्यों ने दावा किया कि ईएडीएस का यह प्रस्ताव अमान्य है क्योंकि यह बोली प्रक्रिया के बाद का है इसलिए इससे खरीद प्रक्रिया का उल्लंघन होता है। रफ़ाल की अंतिम करार कीमत पहले लगाये गयी बोली में दसौल्ट द्वारा प्रस्तावित कीमत से बहुत अधिक थी।
  • भारतीय जरूरतों पर आधारित सुधारों का खर्च बहुत अधिक है। भारत सरकार ने बार-बार यह दावा किया है कि 36 रफ़ाल की खरीद में इन विमानों में भारतीय परिस्थतियों के तहत किए गए सुधारों को शामिल किया गया है। असहमति जताने वाले तीन सदस्यों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इन सुधारों की कीमत भी बहुत अधिक है।
  • फ्रांसमिस्र और कतर के साथ दसौल्ट के करार के कारण यह कंपनी करार में तय आपूर्ति की समय सीमा का मान नहीं रख पाएगी। असहमति जताने वाले अधिकारियों का दावा था कि दसौल्ट कंपनी ने फ्रांसीसी सेना तथा मिस्र और कतर के साथ भी विमानों की आपूर्ति का करार किया है। इसलिए वह भारत के साथ तय समय सीमा में विमानों की आपूर्ति नहीं कर सकेगी। 
  • दसौल्ट द्वारा जारी फाइनेंसियल स्टेटमेंट की माने तो कंपनी की वित्तीय स्थिति कमजोर है। ऐसा हो सकता है कि वह 36 विमानों की आपूर्ति न कर पाए। इन तीन अधिकारियों का मानना था कि दसौल्ट की फाइनेंशियल स्थिति पर विश्वास नहीं किया जा सकता। फ्रांस सरकार ने अंतर सरकार समझौते के तहत अपनी जवाबदेही को दसौल्ट सहित निजी निर्माताओं को हस्तांतरित कर दिया है और भारत सरकार इन निर्माताओं से कानूनी रूप से बाध्यकारी गारंटी लेने में विफल हो गई। यदि दसॉल्ट 36 विमानों की आपूर्ति करने में विफल रहता है तो भारत के पास कोई भी वैध वित्तीय सुरक्षा नहीं होगी। 
  • दसौल्ट के फाइनेंसियल स्टेटमेंट के तहत उसने कतर और मिस्र को भारत से सस्ते में रफ़ाल बेचे हैं। लेकिन चार अधिकारियों ने उक्त दावे पर असहमति व्यक्त की। दसौल्ट ने दावा किया है कि उसके वित्तीय खुलासे की गलत व्याख्या हुई है और फ्रांस सरकार ने लिखित में माना है कि भारत को मिस्र और कतर से कम कीमत में रफ़ाल विमान बेचे गए हैं।

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