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साध्वी प्रज्ञा को ‘स्वास्थ्य ख़राब’ होने पर मिली थी ज़मानत, तो क्या चुनाव के लिए वो स्वस्थ हैं?

मालेगाँव बम विस्फ़ोट पीड़ित के पिता ने विशेष एनआईए अदालत में केस दाख़िल करते हुए आग्रह किया गया है कि वह भोपाल से भाजपा की घोषित उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा को लोकसभा चुनाव लड़ने से रोक दें क्योंकि वह मालेगाँव बम विस्फ़ोट की मुख्य आरोपी हैं। इस मामले पर सुनवाई सोमवार को की जाएगी।
साध्वी प्रज्ञा को ‘स्वास्थ्य ख़राब’ होने पर मिली थी ज़मानत, तो क्या चुनाव के लिए वो स्वस्थ हैं?

बुधवार को, मालेगाँव बम विस्फ़ोट जिसमें छह लोगों की हत्या हो गयी थी और 100 लोगों को घायल कर दिया था, की प्रमुख आरोपी 48 वर्षीय साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में हाथ पसार कर स्वागत किया गया है। आतंक फैलाने की आरोपी, जो ज़मानत पर हैं, मध्य प्रदेश के भोपाल से भाजपा की उम्मीदवार होंगी।
पूर्व मुख्यमंत्रियों शिव राज सिंह चौहान और उमा भारती जैसे दिग्गजों के चुनाव लड़ने से इनकार करने के बाद, भगवा पार्टी को उम्मीद है कि वह इस सीट पर वोटों का ध्रुवीकरण कर पाएगी जिसे वह 1989 से नहीं हारी है। प्रज्ञा ठाकुर कांग्रेस के दिग्गज और दो बार सीएम रह चुके दिग्विजय सिंह से चुनावी मुक़ाबला करेंगी। 

प्रज्ञा की बाइक और मालेगाँव विस्फ़ोट 

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का नाम पहली बार 29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र में मुस्लिम बहुल मालेगाँव में हुए धमाकों के संबंध में सामने आया था, जब एक एलएमएल फ़्रीडम बाइक के साथ बंधे एक तत्कालिक विस्फ़ोटक उपकरण ने छह लोगों की जान ले ली थी और 101 अन्य लोग घायल हो गए थे। महाराष्ट्र एंटी टेरर स्क्वाड (एटीएस) के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे ने सूरत में लिंक का पता लगाया और पाया कि साध्वी के पास न केवल यह बाइक थी, बल्कि उन्होंने इसे अंजाम देने के लिए उन लोगों का भी इंतज़ाम किया था, जो कट्टरपंथी हिंदुत्व समूहों से जुड़े थे।

मालेगाँव, अजमेर शरीफ़, हैदराबाद में मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस में किए गए हमलों की एक श्रृंखला के बीच भी इस लिंक का पता पूछ-ताछ के दौरान चला। 24 अक्टूबर, 2008 को उनकी गिरफ़्तारी के बाद, जांच में एक व्यापक नेटवर्क और 'जिहादी' आतंकवाद के ख़िलाफ़ बदला लेने की विस्तृत योजना का पता चला। नेटवर्क के प्रमुख सदस्यों में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, सुनील जोशी और स्वामी असीमानंद उर्फ़ नबा सरकार शामिल थे। जहाँ ठाकुर और जोशी मालेगाँव विस्फ़ोटों में आरोपी थे, वहीं असीमानंद समझौता एक्सप्रेस विस्फ़ोटों में आरोपी थे। दिलचस्प बात यह है कि सभी आरोपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे हैं।

एटीएस द्वारा एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर हमलों को अंजाम देने के लिए एक और अधिक भयावह डिज़ाइन का खुलासा हुआ था। एटीएस द्वारा दायर आरोपपत्र में पता चला कि ठाकुर 2002 में गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर में लोगों की हत्या का बदला लेने के लिए मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को निशाना बनाने के लिए देश भर में हुई अधिकांश बैठकों में शामिल थीं। भोपाल में इस तरह की एक बैठक में, उन्होंने कार्यभार संभाला था। मालेगाँव में विस्फ़ोट को अंजाम देने के लिए रसद और लोगों का इंतज़ाम किया था। हमले के लिए चुने गए लोगों में सुनील जोशी, रामचंद्र कलसांगरा और संदीप डांगे थे।

विस्फ़ोट के संबंध में उनकी बातचीत का पकड़ा जाना 

ठाकुर के ख़िलाफ़ मामला तब और बढ़ गया जब जांच अधिकारियों ने लेफ़्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित के बीच उनकी हुई बातचीत को पकड़ा जिसमें दोनों विस्फ़ोट में उनकी भूमिका पर चर्चा करते हुए पाए गए थे। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य आरएसएस के सदस्य यशपाल भड़ाना से मिले जिन्होंने 11 अप्रैल, 2008 को भोपाल में एक बैठक में अपनी उपस्थिति का दावा किया था, जहाँ पुरोहित ने जिहादी ताक़तों के ख़िलाफ़ गुरिल्ला युद्ध छेड़ने की इच्छा व्यक्त की थी। उनके बयान में लिखा है कि, "कर्नल पुरोहित ने जिहादियों के ख़िलाफ़ छापामार युद्ध छेड़ने के मुद्दे को दोहराया, जिसका उन्होंने पहली बार 26 जनवरी को फ़रीदाबाद में एक बैठक में उल्लेख किया था।" "कर्नल पुरोहित ने कहा कि हमें मुसलमानों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के लिए जल्दी से कुछ करना चाहिए।" बयान में कहा गया है, "महाराष्ट्र के मालेगाँव में, मुसलमानों की आबादी बहुत अधिक है। अगर हम वहाँ बम विस्फ़ोट करते हैं तो हम हिंदुओं के ख़िलाफ़ अत्याचार का बदला ले सकते हैं। इस पर, साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि वह इस काम को अंजाम देने के लिए लोगों की व्यवस्था करेंगी।"

राष्ट्रीय जांच एजेंसी का केस की छानबीन करना 

राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने गृह मंत्रालय के निर्देश पर 13 अप्रैल, 2011 को एटीएस ने मामले की जांच शुरू की और 2016 में पांच साल बाद आरोप पत्र दायर किया। यह अवधि काफ़ी घटनापूर्ण थी; सबसे पहले, भाजपा 2014 में सत्ता में आई थी। दूसरा, विशेष अभियोजक रोहिणी सालियांल का एक बयान कि एजेंसी उन पर मामले में 'नरम' होने के लिए दबाव डाल रही थी। इस बीच, बयान एनआईए की चार्जशीट में परिलक्षित हुआ, जिसमें ठाकुर और अभियुक्त कर्नल पुरोहित शामिल थे। एजेंसी ने अपने आरोप पत्र में कहा है कि हालांकि बाइक को परिवहन विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार ठाकुर के नाम पर पंजीकृत किया गया था, लेकिन इसका उपयोग कालसंगरा द्वारा किया गया था। एनआईए की चार्जशीट में आगे कहा गया है कि भड़ाना का बयान दबाव के तहत लिया गया था और यह बचाव योग्य नहीं है क्योंकि यह मकोका एक्ट के तहत एक इंस्पेक्टर के सामने लिया गया बयान था न कि मजिस्ट्रेट के सामने, जैसा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 द्वारा निर्धारित किया गया है।

आरोप पत्र के बाद, ठाकुर ने मामले से अपने आपको बरी करने की अपील की थी। हालांकि, एनआईए अदालत ने उन्हें आरोपों से छूट देने से इनकार कर दिया था। और यह आदेश दिया कि ठाकुर और छह अन्य के ख़िलाफ़ मामला चलाया जाना चाहिए। अक्टूबर 2018 में अदालत ने ठाकुर के ख़िलाफ़ धारा 16 (एक आतंकवादी कार्य करने के लिए) और 18 (ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत आतंकवादी गतिविधि करने की साजिश) के लिए आरोप तय किए थे।

अदालत ने कहा, "यह ध्यान में रखना होगा कि एटीएस अधिकारी के समक्ष गवाहों के बयानों के अनुसार, आरोपी नंबर 1 ने विस्फ़ोट के लिए लोगों का इंतज़ाम करने पर सहमति व्यक्त की थी। दोनों जांच एजेंसियों (एटीएस और एनआईए) के अनुसार, फ़रार आरोपी रामचंद्र कलसांगरा और संदीप डांगे बम लगाने के आरोपी थे। इसलिए, उपरोक्त सामग्री को इस प्रथम चरण में अनदेखा नहीं किया जा सकता है। ”
मालेगाँव विस्फ़ोट मामले में कड़े महाराष्ट्र नियंत्रण कानून (मकोका) के तहत आरोपों को अदालत द्वारा ख़ारिज कर दिए जाने के बाद भी, ठाकुर अभी भी ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम सहित अन्य आपराधिक प्रावधानों के तहत मुक़दमे का सामना कर रही हैं। अप्रैल 2017 में, उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट ने ज़मानत दे दी थी जहाँ उन्होंने दावा किया था कि वह स्तन कैंसर के कारण दुर्बल हो गई हैं और वह जिस आयुर्वेदिक अस्पताल में दाख़िल थीं, वहाँ उन्हें पर्याप्त उपचार नहीं मिल रहा था।

मालेगाँव हमले के पीड़ित के पिता ने एनआईए कोर्ट में अपील दायर की 

कोर्ट के आदेश के अनुसार, ठाकुर को इसलिए ज़मानत दी गई है क्योंकि वह "स्तन कैंसर से पीड़ित" हैं और "बिना सहारे के चलने में भी असमर्थ हैं"। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया दावा कि हिंदू आतंक जैसा कुछ भी नहीं है यह इनके खोखलेपन को और उजागर करता है, इस बयान ने पीड़ितों के वकीलों की व्यापक आलोचना को आमंत्रित किया जिन्होंने इसे न्याय का उपहास क़रार दिया।

पीटीआई के अनुसार, 2008 के मालेगाँव विस्फ़ोट के पीड़ितों में से एक के पिता ने गुरुवार को विशेष एनआईए अदालत का रुख किया, जिसमें प्रमुख आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को लोकसभा चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का आग्रह किया है।

आवेदन निसार सईद द्वारा दायर किया गया है, जिन्होंने विस्फ़ोट में अपने बेटे को खो दिया था।

विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी के मामलों के न्यायाधीश वी.एस.पाडलकर ने एनआईए और ठाकुर दोनों से जवाब मांगा और मामले को सोमवार की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया है।

आवेदक ने मांग की कि ठाकुर को, जो ज़मानत पर हैं, मुंबई में अदालत की कार्यवाही में भाग लेने के लिए कहा जाए और चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए क्योंकि अभी जांच चल रही है।

इसमें आगे उल्लेख किया गया है कि ठाकुर को स्वास्थ्य आधार पर ज़मानत मिली है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अगर वह "झुलसाने वाली गर्मी में चुनाव लड़ने के लिए स्वस्थ थीं", तो उन्होंने अदालत को गुमराह क्यों किया!

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