‘सहिष्णु देश’ में स्टैंडअप कॉमेडी की भी जगह नहीं!
“हम बेहद सहिष्णु हैं” ये दावा उस सरकार का और उस विचारधारा का है जो आज 80 प्रतिशत राज्यों में सरकार बना कर बैठी है। ये वो विचारधारा है जो दावा करती है कि सिर्फ़ वही देश के बारे में सोचा करती है और बाक़ी हर कोई देशद्रोही है, देश-विरोधी है। ये वही विचारधारा है जो इतनी सहिष्णु है कि उसे किसी के खाने से दिक़्क़त है, किसी के कपड़ों से दिक़्क़त है, किसी की दाढ़ी से दिक़्क़त है और यहाँ तक कि ‘व्यंग्य’ और ‘चुटकुलों’ से भी दिक़्क़त है। हाल की ख़बर है सूरत की, जहाँ Standup Comedian कुनाल कामरा का एक शो ये कह कर कैंसिल कर दिया गया कि कुछ लड़कों ने उसमें हंगामे की धमकी दी है।
ये लड़के किस संगठन से थे ये बताया नहीं गया है। लेकिन ग़ौरतलब बात ये है कि वो कुनाल की कॉमेडी को "देश विरोधी" और "हिन्दू विरोधी" कह रहे थे। पुलिस का कहना ये है कि जो लोग इस शो को आयोजित कर रहे थे, उनके पास पर्मिशन नहीं थी। पुलिस ने ये नहीं बताया कि पर्मिशन न होने पर उनसे पहले आसपास के कुछ लड़के क्यों आ गए? और क्यों पुलिस को पहली शिकायत उन लड़कों की तरफ़ से गई? कुनाल की तरफ़ से इस घटना पर कोई बयान नहीं आया है। लेकिन आयोजक ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा है कि 9 बजे से शो शुरू होने वाला था और 7 बजे कुछ लड़के आ गए और शो न करवाने की धमकी देने लगे। लड़कों ने ये भी कहा कि अगर शो करवाया गया तो वो अंडों और टमाटरों से हमले करेंगे।
ये पहली बार नहीं है जब ऐसा कुछ हुआ है। पिछले साल अगस्त के महीने में ही कुनाल कामरा का एक शो वडोदरा के एक विश्वविद्यालय में होने वाला था, जिसे तब कैंसिल किया गया जब कुछ पास आउट छात्रों ने कुनाल पर "देश विरोधी" होने का इल्ज़ाम लगाया था। छात्रों ने ये भी कहा था, कि कुनाल लोकसभा चुनावों से पहले वडोदरा के लड़कों का "माइंड वॉश" करने के लिए आए हैं।
इसके अलावा गाहे-ब-गाहे कुनाल कामरा और उनके साथ के तमाम कोमेडियन को गालियाँ दी ही जाती हैं। कुनाल कामरा राजनीतिक कॉमेडी करते हैं, और सत्ताधारी पार्टी पर व्यंग्य करते हैं।
ये बात सिर्फ़ कुनाल कामरा का शो कैंसिल होने की नहीं है। ये दरअसल एक पैटर्न बन चुका है कि सरकार-विरोधी लोगों को टार्गेट किया जाए और उन्हें देश विरोधी बता दिया जाए। देश में 2014 के बाद से आए दिन लोकतंत्र का जश्न मनाया जा रहा है। लेकिन लोकतंत्र की प्रमुख शर्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोज़ ही कुचला जा रहा है और असहमति की जगह लगातार कम होती जा रही है।
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